कभी अपने लेखन के लिए प्रसिद्ध आगरा के अमर उजाला की स्थिति मानसिक दिवालिएपन के कगार पर पहुंच चुके संस्थान जैसी हो चुकी है। इसका जीता-जागता उदाहरण हाल ही में प्रकाशित एक खबर है। इस खबर में सीमा के एक सजग प्रहरी की याद को ताजा रखने के लिए दस साल से किए जा रहे दोस्तों के संघर्ष की खबर पर एक क्षण में पानी फेर दिया गया। खबर इतनी अधिक गलत है कि खुद अमर उजाला को इसका खंडन करते हुए शर्म महसूस हो रही है।
आगरा का एक वीर सुपुत्र आशीष देवा वर्ष 2002 में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान दुश्मनों से लोहा लेते हुए कश्मीर के कानाचक क्षेत्र में शहीद हो गया था। इसके बाद इसके कुछ जांबाज दोस्तों ने उसके संघर्ष को यादगार बनाए रखने के लिए आगरा के एक प्रमुख मार्ग सिकंदरा-बोदला मार्ग का नामकरण शहीद आशीष देवा मार्ग करने के लिए 10 वर्ष तक लंबा संघर्ष किया। आखिरकार इस वर्ष इस संबंध में आगरा नगर निगम की ओर से प्रस्ताव पारित कर इस मार्ग का नामकरण शहीद आशीष देवा के नाम पर कर दिया गया।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम की खबर जब अगले दिन 4 अक्टूबर को आगरा के अमर उजाला में पेज नंबर 3 पर प्रकाशित हुई तो आशीष के जुझारू दोस्त हतप्रभ रह गए। इस खबर में आशीष देवा का नाम बदलकर आशीष देवा दत्ता कर दिया गया। खबर में हेडिंग सहित कई स्थान पर गलत नाम इस्तेमाल किया गया। इस संबंध में जो फोटो प्रकाशित की गई उसमें भी साफतौर पर दिख रहा है कि शहीद का नाम आशीष देवा है न कि आशीष देवा दत्ता। सीमा के सजग प्रहरी को कलम के सिपाही से हारा देख उसके कुछ साथियों ने जब अमर उजाला में संपर्क करके इस गलती के बारे में बताया तो वरिष्ठ पत्रकारों ने बेशर्मी के साथ उनकी आपत्ति को दर किनार कर दिया।
अत्यंत अल्प ज्ञान के साथ लिखी गई इस खबर में शहीद आशीष देवा को कारगिल युद्ध 2002 का शहीद बताया गया है जबकि उनकी शहादत आपरेशन पराक्रम के दौरान 2002 में हुई थी। वैसे भी कारगिल युद्ध 1999 में हुआ था। अतः इस खबर में दो बड़ी गलती एक साथ कर दी गयी। आखिर कैसे इतनी बड़ी गलतियां अमर उजाला से हो गई जबकि रिपोर्टर के लिखने के बाद इसे दो-तीन स्तर पर पढ़ा जाता है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किस प्रकार अमर उजाला, आगरा का संपादकीय विभाग मानसिक दिवालिएपन के कगार पर पहुंच चुका है, जहां वह अपना छह दशक पुराना अनुभव दिखाने की बजाय बचकानापन दिखा रहा है।
इससे पूर्व भी अमर उजाला ने शहीद आशीष देवा की याद में शहीद स्मारक पर आयोजित कार्यक्रम के बारे में एक लाइन भी नहीं छापकर शहीद के परिजनों और मित्रों की नाराजगी मोल ले ली थी. वहीँ कुछ लोग इसे सम्बंधित रिपोर्टर द्वारा जानबूझकर की गयी हरकत से जोड़कर भी देख रहे हैं। बहरहाल अमर उजाला की समृद्ध परंपरा को इस एक समाचार ने मटियामेट कर दिया। अब शहीद के परिजन और दोस्त अमर उजाला का बायकाट करने का मन बना चुके हैं।
हरिदत्त तिवारी
आगरा
htiwari68@gmail.com
Comments on “अमर उजाला, आगरा की शहीद को यह कैसी श्रद्धांजलि?”
भैया जब से अशोक अग्रवाल अलग हुए है जब से अब तक यही पोजिसन हैं अमर उजाला की। तो फिर इस एक खबर से क्या कम चलेगा मेरे मालिक । पूरा का पूरा अखबार ही गलत लगाओ ना यार।
रिपोर्टर किस कदर संवेदनाशून्य हो गए हैं ये इस खबर को पढ़कर पता चलता है ।कई बार वहाँ जाये बगैर खबरें लिख दी जाती हैं . किन्तु देश के लिये शहीद होने वाले सैनिकों के मामले में इस तरह की लापरवाही शर्मनाक है ।
नीरज वर्मा की करतूतों से पहले भी अमर उजाला, आगरा कईं बार शर्मसार हो चुका है। एक बार उन्होंने कासमास माल आज टूट जाएगा जैसी सनीसनीखेज खबर भी लिखी जो आज तक नहीं टूटा। उनकी एत्माद्दौला के मुर्गों वाली स्टोरी तो आज भी चर्चा में रहती है। पुष्पेंद्र शर्मा की चमचागिरी करके रिर्पोटिंग तो हासिल कर ली मगर अभी तक उसकी स्किल हासिल नहीं कर सके। इनकी डिग्री भी फर्जी है तो इनसे अच्छी खबर की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है। अब तो यह महिला पत्रकारों के बारे में तरह-तरह की बातें करके खुद को चर्चाओं में रख रहे हैं।
इन नीरज वर्मा साहब को तो मैं भी बहुत अच्छे से जानता हूं। यह आज अखबार में थे, एक दिन इन्होंने नवभारत टाइम्स से खेल की एक खबर हूबहू टीपकर संपादक शशि शेखर से बाईलाइन ले ली थी परंतु बाद में जलेश्वर उपाध्याय (तत्कालीन समाचार संपादक) ने चोरी पकड़ ली। बहुत गालियां खाईं थीं शशिशेखर से, बाद में विदाई भी इसी कारण हुई। दैनिक जागरण में फ्री में काम करते थे ये, क्योंकि इनके भाई जनरल मैनेजर के चमचे थे।… आशीष देवा के साथ इस अखबार ने जो किया, इसकी वर्तमान गैरजिम्मेदार नेतृत्व और घटिया दर्जे की सिटी टीम का नतीजा है।
अरविंद शर्मा,
समाचार संपादक, दैनिक कुमुद टाइम्स
आगरा