: बोले- यह रिश्ता बेच दिया, फिर बिना बिके कुछ नहीं बचेगा : लखनऊ : एक दिन बस यूं ही भाई के घर पर था। भतीजा आया हुआ था नागपुर से। वहीं आयकर अधिकारियों के ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट में ट्रेनिंग पर था। स्वाभाविक सी खुशी की बात थी कि वह दूसरे अटेम्प्ट में आईआरएस हो गया। नाम है कंवल तनुज। पूरे खानदान में सरकारी ओहदे के हिसाब से यह अब तक की सबसे बड़ी पारिवारिक उपलब्धि थी।
सभी लोग इस बात पर भी प्रसन्न थे कि उसकी शादी तय हो गयी है। हालांकि यह बात अभी घर के ही स्तर पर थी। ज्यादा प्रचारित नहीं हो पायी थी। बस सोचा गया था कि शादी के कार्ड वगैरह छपने के बाद ही सबको एकसाथ बताया जाएगा। इसी बीच देखुआ टाइप के भी कुछ लोग खजूर की तरह आ टपके। पट्टीदारी में से थे। गांव के रिश्ते से हमसे कुछ बड़े। उन लोगों ने पहले तो उसके आयकर सेवा में चुने जाने की बधाइयों का टोकरा बढ़ाते हुए सामने रखी प्लेट से मिठाई उठायी। आवभगत के बाद असल मुद्दे पर आ गये। बोले: देखा कुछ शादी-वादी का मामला इसके लिए। घर का बच्चा है, इसी बहाने नाते-रिश्तेदारों का नाम भी हो जाएगा। अरे भाई, तमाम लड़कियां शादी के लिए तैयार हैं अपने आसपास।
बड़े भाई यानी दद्दा ने अपनी आदत के मुताबिक हां हूं में ही जवाब दे दिया।
क्या हां हूं। क्या सोचा है इसकी शादी के मामले में:- सवाल उछला।
दद्दा बोले:- शादी तो तय हो चुकी है।
कहां:- जिज्ञासा शांत नहीं हो रही थी उन लोगों की।
इसके साथ ही पढ़ती थी: दद्दा बोले।
कितना दहेज दे रहे हैं लड़कीवाले:- सीधे मुद्दे पर आ गये वे लोग। हम लोग यह सोच कर कि बीच में क्या बोलें, चुप ही रहे।
सवाल-जवाब ने एक-दूसरे पर टूट पड़ने के लिए एक्सीलेटर तेज कर दिया।
नहीं दहेज नहीं।
काहे। फ्री में कर रहे हो शादी।
दहेज का सवाल ही नहीं है इस शादी में। लड़के की शादी में उसी से हो रही है जो उसके साथ स्कूल के जमाने से पढ़ती थी। दोनों की आपसी समझ है। फिर इसमें दहेज की बात कहां से आ गयी।
काहे। बिना दहेज के शादी कैसे होती है, जरा हम भी सुनें।
बस होती है। जैसे यह हो रही है।
लेकिन शादी तो लड़के का मामला है, दहेज तुम्हारा मामला है। अपना काम लड़का देखे, तुम अपना काम करो।
अरे वह लव मैरिज कर रहा है और हम लोग दहेज लेते ही नहीं:- दद्दा अब तक झुंझलाने लगे थे। बोले:- बड़े वाले की शादी भी ऐसे ही हुई थी। इसमें दहेज-वहेज कहां से आ गया।
छोड़ो यार। हमको सब पता है यह प्रेम-वेम का बवाल। होता है यह भी। जवानी में कौन नहीं करता। लेकिन हर एक फैसला ऐसे ही थोड़े चलता है। छोड़ो भी। अरे, हमारी पहचान में दर्जनों ऐसे लोग हैं जो नकद दहेज लिये बैठे हैं। ऊपर से जमीन-जायजाद भी तो मिलेगी ही लड़के को ससुराल से। बोलो, लाखों नहीं, करोड़ों की बात कर रहे हैं हम। लड़की भी सुशील और मालदार खानदान। ऐसा जुगल बनेगा कि लोग देखते ही रह जाएंगे।
अब इसके पहले कि दद्दा कुछ बोलते, कंवल तनुज भड़क उठा:- यह रिश्ता बेच दिया तो फिर दुनिया में बिना बिके कुछ न बचेगा। मजाक मत बनाइये रिश्तों का।
मामला खत्म। आवाज में तेजी ही नहीं, फैसले का गर्व भी था। जाहिर है, आसपास का माहौल सहम कर थम सा गया। कुछ क्षण के सन्नाटे के बाद प्लेट से ग्लास के उठने और गले से पानी उतरने की गटगट की आवाजें आती रहीं। फिर पूरी शांति से यह मसला शादी के पांडाल से उतर कर गांव की खेती-बाड़ी तक सीधे पहुंच गया। चंद मिनटों में ही विदा हो गये वे लोग।
और इसके कुछ ही महीने बाद हमारे घर एक प्यारी सी गुडिया जैसी बहू आ गयी। नाम था सोनल। वह तो बाद में एक दिन सोनल के सामने दद्दा ने हंसी में मेरे सवाल के जवाब में कहा:- नहीं, सोनल की किस्मत में तो इंजीनियराइन लिखना बदा था, वह तो मोनू की किस्मत से यह आईएएसाइन बन गयी।
कहने की जरूरत नहीं कि शादी के तीन महीने बाद ही कंवल तनुज, जिसे हम घरेलू नाम से मोनू बुलाते हैं, सीधे आईएएस में चुन लिया गया। कैडर मिला है बिहार और पहली पोस्टिंग है गया में असिस्टेंट कलेक्टर। पता चला है कि उसकी छवि एक धाकड़ ईमानदार अफसर के तौर पर उभर रही है। साथ मिला है वहां की डीएम वंदना प्रेयसी का, जो खुद भी अपनी कार्यशैली से अफसरशाही को एक नया खूबसूरत चेहरा देने में जुटी हैं।
जाहिर है कि हमारी पीढ़ी के लोगों ने जो भी जाने-अनजाने गलतियां की हैं, उनका अर्पण-तर्पण गया में ही हो रहा है। वहां की गंगा में हम ही नहीं, हमारे पूर्वज भी तृप्त हो रहे हैं। हो भी क्यों न, आखिर वहां की गंगा से तप कर एक नयी पीढ़ी बाकायदा साफ-सुथरी हो रही है। चमक रही है।
अब बताइये, किसे नहीं चाहिए ऐसी नयी पीढ़ी जिस पर हम गर्व कर सकें, सीना ठोंक कर कह सकें कि यही है हमारा असली चेहरा। मुझे तो लगता है कि हमें अब अपनी मोनू पीढ़ी पर पूरा यकीन करना चाहिए, ताकि वह कंवल तनुज की तरह जालों से अटे-पटे पड़े कमरे का साफ कर कम से कम रौशनी की व्यवस्था तो कर सके।
लेखक कुमार सौवीर यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
Comments on “आईआरएस कंवल तनुज ने भी ठुकराया करोड़ों के दहेज का ऑफर”
सौवीर जी,
इस दृष्टांत को प्रस्तुत करने के लिए बहुत धन्यवाद. आपने कँवल तनुज के इस कार्य का भी जिक्र प्रस्तुत करके तमाम लोगों के लिए एक नयी दृष्टि दिखाई है. हम सबों को तनुज पर गर्व है जिन्होंने वह गलती नहीं की जो जाने-अनजाने हम लोगों से हुई.
बस एक निवेदन करूँगा कि मैं भी यही समझता था कि शायद नयी पीढ़ी उन गलतियों का अर्पण-तर्पण कर चुकी है जो हमने की थी पर इस युवा आईपीएस अधिकारी की बातों से मुझे यह लगने लगा है कि अभी इस रोग पर काबू पाना बाकी है.
इस विषय में आपका क्या कहना है?
अमिताभ
नयी पीढ़ी की ये जोड़ी पुरानी पीढी के ठेकेदारों के लिए नायाब मिसाल है और साथ ही एक उदाहरण उन लोगों के लिए भी जो इस पीढ़ी पर रत्तीभर भी भरोसा नहीं करना चाहते हैं… लेखन में चार चाँद लगाने के लिए सौवीर जी भी बधाई के पात्र हैं…
ऐसे अधिकारियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वह लोग ईमानदारी की मशाल जला रहे हें। मुझे इस बात पर अफसोस होता है कि हर अखबार और चैनल्स दिखाते हैं कि कौन करोडपति और अरबपति है लेकिन कोई भी यह छापने की हिम्मत नहीं करता कि फलां अधिकारी ईमानदार है। जरूरत इस बात की भी है कि लोग भ्रष्ट अधिकारियों व व्यापारियों से दूरी बनाये रखें और ईमानदारों को सम्मान दें
aise shaksh ko mera pranam, shayad isi leye aaj bhi jinda hai bharat
jai bharat