: आलोक तोमर- तू मर नहीं सकता : मुझे उम्मीद नहीं थी पर जानकारी तो थी ही. वैसे ही जैसे हर कोई बखूबी जानता था कि आलोक तोमर साहब को कैंसर नामक भयावह बीमारी है जिनका सिर्फ एक अंत होता है- मौत, पर इनमें से हर आदमी ये सोचता था कि आलोक तोमर जी के मामले में शायद ऐसा ना हो, शायद नियति उलट जाए.
लोग ऐसा इसीलिए सोचते थे क्योंकि आलोक तोमर ऐसे थे ही, क्योंकि वे अपने रास्ते के राही थे, क्योंकि आलोक तोमर अकेले ही अपने किस्म के आदमी थे, क्योंकि आलोक तोमर सर्वमान्य क्रांतिदूत और दैदीप्यमान ज्योतिपुंज थे. मैं ऐसा मात्र इसीलिए नहीं कह रहा क्योंकि एक आदमी की मृत्यु के बाद ऐसी बातें लिखनी चाहिए या फिर ऐसा ही कहा जाता है. मैं ऐसा इसीलिए लिख रहा हूँ क्योंकि जितना मैंने उन्हें जाना उसके अनुसार वे मुझे बस ऐसे ही नज़र आये- एक चमकता हुआ सितारा, एक जगमग ज्योति, एक प्रकाश स्तंभ. मैंने आलोक जी को जीवित कभी नहीं देखा, मैं उनसे उनके जीवन में कभी नहीं मिला. मैं नहीं जानता वे कैसे हँसते होंगे, कैसे बोलते होंगे, लोगों से कैसे मिलते होंगे, मिलने पर क्या कहते होंगे. उनसे फोन से दो-तीन बार बातचीत जरूर हुई पर इतने पर ही मुझे उन पर अपना पूरा हक लगता है, इतने में ही मालूम होता है कि वे मेरे बड़े भाई थे और मुझे उनका अनुज होने का अधिकार है. मैंने उनकी पत्नी और हम लोगों की भाभी से भी आलोक जी के रहते कभी मुलाक़ात नहीं की, एक बार बात जरूर हुई पर मैं यह जानता हूँ कि उनके जैसी औरत इस संसार में बहुत कम होंगी. मैं यह जानता हूँ कि आलोक तोमर को आलोक तोमर बनाने में उनकी इस अद्भुत गृहस्वामिनी का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है.
मैं आलोक तोमर के व्यक्तित्व से तब परिचित हुआ जब उन्हें कैंसर हो चुका था. कई बार सुनता पढता कि उनकी तबियत खराब है पर पता नहीं क्यों मन मानता नहीं था. अंदर से पूर्णरूप से आश्वस्त था कि कैसर को वे पराजित कर देंगे, कि वे फिर से बत्रा अस्पताल से निकल कर अपना काम करना शुरू कर देंगे, कि वे फिर सड़कों पर गरजते-बरसते नज़र आयेंगे.
अब मैं उनसे मिलूँगा, मैं और नूतन थोड़ी देर में दिल्ली रवाना हो रहे हैं, अलोक तोमर से मिलने. उस आलोक तोमर से जो अब जीवित नहीं रहे, पर फिर भी मेरी निगाहों में, मेरे मन में पूरी तरह बसे हुए हैं. मैं नहीं जानता कि आदमी को किसी-किसी के प्रति बिना मिले ही अपनापन और स्नेह क्यों हो जाता है. आलोक जी से, मेरे बड़े भाई से मेरा इसी तरह से सम्बन्ध बन गया था. और वह सम्बन्ध सिर्फ मेरे और उनके तक सीमित नहीं रह गया था, उनकी श्रीमती से, मेरी पत्नी से और बच्चों के बीच, और यह सबकुछ सिर्फ टेलीफोन पर.
आलोक तोमर अब नहीं हैं, अब उनकी जगह उनका पार्थिव शव है, अब उनके तेज की जगह मृत्यु का दंश नज़र आएगा. जब मैं उनसे मिलूँगा, उनके चरण स्पर्श करूँगा और उनके सामने अपने आंसू निकालूँगा तो वे मुझे देख नहीं पा रहे होंगे. पता नहीं वे कहाँ होंगे, किस जगह होंगे, क्या कर रहे होंगे, क्या सोच रहे होंगे. होंगे भी या नहीं?
मृत्यु वास्तव में एक अजीब चीज़ है, मृत्यु से बलशाली संसार में कोई शक्ति नहीं है. आज तक आलोक तोमर नामक यह जीव जीवित था, गरजता था, बरसता था, खुश होता था, उदास होता था, हंसता-हंसाता था, नाराज़ होता था. कई प्रशंसक थे, कुछ आलोचक भी, कई उनसे अनुप्राणित थे, कुछ उनके आजन्म शत्रु भी. पर अब जब आलोक तोमर (या उनका शव) जमीन पर चुपचाप लेते छत को निहार रहे होंगे तो ना तो उनका कोई प्रशंसक ही उनके ;लिए कुछ कर पा सकने की स्थिति में होगा और ना ही उनका कोई शत्रु ही उनका कुछ बिगाड़ सकने ही हालत में होगा.
आलोक तोमर अब नहीं रहे, यह एक सच्चाई है. आप और हम, जो उनकी मृत्यु पर शोकाकुल हैं, भी शीघ्र ही अपने-अपने समय के अनुसार नहीं रहेंगे. पर यह जरूर है कि जितने दिन आलोक तोमर रहे, वे रहे और पूरी शिद्दत से रहे, पूरे मनोबल से रहे, पूरी ईमानदारी से रहे, पूरे ठसक से रहे, पूरे शबाब पर रहे. मैं अचानक से शोकाकुल हो जाता हूँ पर फिर सोचता हूँ कि क्या आलोक तोमर की मृत्यु पर शोक मनाना उनके जीवन का अपमान नहीं होगा?
मैं और नूतन दिल्ली जा रहे हैं और आलोक तोमर से मिलेंगे, उनकी अदभुत पत्नी से मिलेंगे, और उनके जीवन और जीजिविषा का उत्सव उनकी मृत्यु के अवसर पर मनाएंगे. आलोक तोमर अमर रहें, क्योंकि उनका जीवन ही अमरता का जीवंत प्रतीक था..
लेखक अमिताभ ठाकुर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं. इन दिनों मेरठ में पदस्थ हैं.
Comments on “आलोक तोमर उर्फ सर्वमान्य क्रांतिदूत और दैदीप्यमान ज्योतिपुंज”
मेरा भी सलाम बोलना उस दिगम्बर पत्रकार कुल श्रेष्ठ से।
कहना कि अब हम लोग होली में श्मशानघाट पर ही मिला करेंगे।
नाचेंगे, गायेंगे, झूमेंगे, मौज करेंगे। और क्या।
क्या बोलूं। कुछ समझ ही नहीं पा रहा हूं।
जाने कितनी बार खुद को चिकोटी काट कर पूछ चुका हूं कि क्या वाकई अब हम नहीं मिल पायेंगे आलोक तोमर से।
कुमार सौवीर
dukhad, behad dukhad…
आलोक तोमर कई पत्रकारों के प्रेरणास्रोत रहे हैं. उनके निधन से हिंदी पत्रकारिता को अपूरणीय क्षति हुई है. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि. भगवान उनकी आत्मा को शांति और उनके परिवार को इस दुखद घडी में शक्ति दे…
-संजीव समीर
alok tomar jaisa dam karodon me kisi ek me hota hai. unke jaisa dam aaj ki patrakarita me durlbh hai. mujhe bhi unse milne ka saoubhagya prapt nahi ho saka. lekin unka likha hua padhkar sachmooch kafi bal milta tha.
amar anand
manzilaurmukam.blogspot.com
amaranand07@gmail.com
आलोक तोमर साहब को नमन…
अत्यंत दुखद खबर । न जाने क्यों जिनकी जरुरत है , वो चले जाते हैं चाहे बहाना कैंसर हो या कुछ और । नियती के इस काल चक्र से कोई नही बच पाता है , पर क्या शाम होने के पहले सुर कहीं ढल जाता है । मेरा भी सलाम उस बहादुर शख्स को
आलोक तोमर जी को अंतिम समय में जाना, और उनके अंत (केवल दुनिया से, लोगो के दिलो से नहीं) से ये सवाल भी जाना कि हर ईमानदार पत्रकार का अंत यही होगा क्या…
Alok ji jaise logo ki jagah shayad pura karna patakarita ke liye sambhaw nahi hai , wah nirbhik aur sachai ke rasate par chalane wale patrakaro ke liye wo prenake srot rahe unko shat shat naman
MR alok tomar tumehai salam
Sad demise of Shri Alok Tomar is a big to all of us.-H.R.Tripathi
Sad demise of Shri Alok Tomar is a big loss to all of us.-H.R.Tripathi
जिंदगी बस एक उम्मीद भरी डगर है…मौत एक हक़ीकत है। लेकिन आख़िर दम तक अपने पसंदीदा क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए मौत से रुबरू होने का नसीब कम लोगों को ही मिलता है। आलोक जी आपका जाना दुखद है लेकिन आपका सफ़र सुकुन भी देता है क्योंकि इसमें ये अहसास छिपा है कि अपनी शर्तों पर भी जिदंगी को बख़ूबी जिया जा सकता है। कलम के इस अद्वितीय सिपाही को पूरे सम्मान और गौरव के साथ भावभीनी श्रद्धाजंलि…. विशाल शर्मा,पत्रकार,(जयपुर)