इन दिनों लखनऊ में एक मामला काफी चर्चा में है. ऊपर से तो मामला छोटा सा ही नज़र आता है- चोरी का, पर अंदरखाने बात कुछ ज्यादा ही गंभीर दिख रही है. ये हम सभी जानते हैं कि पुलिस वाले ज्यादातर चोरी के मुक़दमे लिखते ही नहीं और बड़ी मुश्किल से यदि लिख भी दें, तो उनमें चीज़ों और रुपये की बरामदगी लगभग नहीं के बराबर होती है. ऐसे भी वे लोग चोरी के मामलों को बहुत ही हल्की निगाह से देखते हैं. इसमें उन्हें कुछ खास सनसनी फैलने वाली बात नहीं नज़र आती.
पर इस बार चोरी ऐसी हुई है और उस जगह हुई है कि पूरा पुलिस महकमा इस बात को ले कर हैरान-परेशान है. फिर इस मामले में घटना घटने का समय भी काफी महत्वपूर्ण है. दरअसल हुआ यह है कि लखनऊ में एसएसपी के सरकारी आवास पर ही चोरी हो गयी है. जी हाँ, खुद एसएसपी के घर, जिसकी जिम्मेदारी होती है पूरे जिले के अपराध पर नियंत्रण की. ऐसे में खुद उन्हीं के घर में चोरी की घटना घट जाना ही अपने आप में चिंतनीय है. लेकिन पूरी बात यहीं खत्म नहीं हुई. चोरी मामूली धनराशि की नहीं थी- पूरे दस लाख रुपये चोरी गए बताए जा रहे हैं. जी हाँ, दस लाख रुपये. कहा यह जा रहा है कि ये रुपये एसएसपी के स्टेनो की आलमारी में रखे थे जहां से वे गायब हो गए. आलमारी का ताला टूटा नहीं, बस किसी ने खोल कर दस लाख रुपये निकाल लिए. यह भी कहा जा रहा है कि इस मामले में इतनी बड़ी रकम चोरी होने के बावजूद पुलिसवालों का पहला प्रयास यह था कि मामले को दबा दिया जाए.
आखिर क्या बात थी कि जिस रकम के चोरी हो जाने पर बाकी दुनिया हाय-तौबा मचाने लगती है, उसमें लखनऊ पुलिस के अधिकारी उसे चुपचाप दबाने में लग गए थे? क्या उन लोगों के पास पैसे ज्यादा हो गए हैं या ये कोई ऐसा पैसा था जिसकी चर्चा ठीक नहीं रहती? वो कौन सी बात थी जिसके कारण पुलिस के लोग, और खुद एसएसपी और उनके शेष अधिकारी इस मामले में तुरंत सक्रिय न हो कर शान्ति की मुद्रा में चले आये और सब ने मौन धारण कर लिया. इन सारी बातों से शक तो पैदा होता ही है. क्योंकि यह बात तो नहीं मानी जा सकती कि बाकी सारे लोगों जैसे ही पुलिस ने एसएसपी आवास में हुई चोरी पर भी मुक़दमा लिखने से इनकार कर दिया. ठीक है कि पुलिस में भी गलत-सही बहुत होता है और पुलिस के अफसरों का इकबाल घटा है, पर यह बात नहीं मानी जा सकती कि हालात ऐसे हो गए हैं जो खुद एसएसपी के घर में हुई चोरी का मुकदमा नहीं लिखा जा सके. फिर क्यों इस भीषण और बड़ी चोरी के मामले में मुकदमा लिखने में देर हुई?
इसके साथ ही एक और सोचने वाली बात यह है कि यह चोरी ठीक इसी दिन हुई जिस दिन लखनऊ के पुराने एसएसपी राजीव कृष्ण का ट्रांसफर हो गया था और अभी आवास पर नए एसएसपी डी के ठाकुर नहीं आये थे. और पैसा भी था उनके ही स्टेनो सरोज वर्मा के आलमारी में. अब कई कहने वाले तरह-तरह से बातें कह रहे हैं- कुछ पैसे के लेने-देने की बातें, कुछ नीयत में आ गयी खोट के बारे में और कुछ दूसरी और ही तरह की चर्चाएं. अब सच क्या है यह तो अभी तक कोई नहीं जानता और शायद इस पर से पर्दा कभी नहीं उठ सके, क्योंकि पुलिस की ये गहरी बातें क्या उजागर हो सकती हैं जब पूरा महकमा ही उसे दबाने पर लग जाएगा.
ये अलग बात है कि इस बात के आम चर्चा में आने पर अंत में झक मार पर पुलिस को इसमें मुकदम भी लिखना पड़ा. एक और मजेदार बात कि इस प्रकरण में अब तक और कोई कार्रवाई नहीं करके एसएसपी के स्टेनो को एसएसपी आवास से फिलहाल ट्रांसफर कर दिया गया है और ये कहानी सामने ला दी गयी है कि वह पैसा वर्मा के एक मित्र एन पी सिंह का था, जो उन्हें किसी जमीन के बेचने के बाद मिला था. लेकिन कोई भी आदमी यह बात नहीं मान रहा है. हर आदमी का यही सवाल है कि सिंह साहब इतने बेवकूफ थोड़े ही होंगे कि अपना पैसा किसी तीसरे आदमी के पास यूँ ही छोड़ देंगे. बस एक ही मुहावरा हर कोई दोहरा रहा है- “दाल में कुछ काला है” पर यह काली दाल कब पक कर सबके सामने आएगी या फिर आएगी भी या नहीं, यह अपने आप में एक बड़ा राज़ है.
हाँ, इतना जरूर है कि लखनऊ के तमाम बड़े-छोटे पत्रकार इस राज़ के तह में जा कर पर्दाफ़ाश करने में अपनी ओर जुट गए हैं. देखना यह है कि इस खेल में पत्रकार जीतते हैं या फिर पुलिस वाले.
डॉ नूतन ठाकुर
संपादक
पीपल’स फोरम, लखनऊ