: पीसीआई और मेरी यादें- अंतिम : राहुल जलाली और पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ : चित्रिता और एआर विग दोनों ही चुनाव हार गए. राहुल जलाली और पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ अध्यक्ष और महासचिव बन गए. एक दिन मैं किसी काम से पुष्पेन्द्र के कमरे में जाकर बैठ गया. इतने में वहां देखा कि दो व्यक्ति आ गए.
एक मेरा परिचित नरेश गुप्ता और दूसरा अपरिचित था. बैठकर बातचीत करने लगे. उस व्यक्ति ने कहा कि मुझे देहरादून से अमुक व्यक्ति ने भेजा है. आगंतुक और प्रेस क्लब के महासचिव आपस में बात करते रहे. उनकी बातें विभिन्न मुद्दों पर होती रहीं. दिल्ली की स्थिति और सरकार व्यापार के आम मुद्दे. आगंतुक ने प्रेस क्लब के महासचिव से पूछा कि आप इतने उदास क्यों हैं. बताइये मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ. आप खुलकर बोलें. महासचिव पुष्पेन्द्र बोले- क्या बताऊँ दोस्त, 31 मार्च 2007 तक हमें क्लब की बिल्डिंग के लिए कुछ लाख रुपये सरकार को देना है. उस बिल्डर ने कहा कि मैं आपको एक करोड़ रुपये देता हूँ.
उसने एक लाख रुपया नक़द दिया और 99 लाख का चेक दिया. पुष्पेन्द्र ने इस बाबत क्लब के किसी कर्मचारी को नहीं बताया. एक लाख की रसीद मेरे सामने ही दे दी गयी. 99 लाख का चेक अगली डेट का था. उसने कहा था कि फलां तारीख के पहले चेक न डालें लेकिन महासचिव ने चेक पहले ही डाल दिया. चेक बाउंस हो गया. चेक मिलते वक़्त वहां मौजूद नरेश गुप्ता ने कहा था कि जिस बैंक का चेक है उसके मैनेजर से बात करके मैं आपको बता दूंगा कि खाते में पैसा है कि नहीं. जब पैसा हो तभी डालिएगा. उस मित्र ने बता दिया कि बैंक में पैसा नहीं है, लेकिन पुष्पेन्द्र ने चेक जमा करा दिया. उनकी उस गलती के कारण क्लब को चेक वापसी का खर्चा बतौर जुर्माना देना पड़ा.
फिर एक दिन बिल्डर क्लब में आया, वह अपने वकील के साथ आया था. उसकी खूब आव-भगत हुई. बिल्डर उप्पल के क्लब में आने की भनक उसके क़र्ज़दारों को लग गयी थी. वे भी आ गए और बिल्डर से झगड़ा करने लगे. इस बीच कार्यकारिणी के सदस्य नरेंद्र भल्ला वहां गए और क़र्ज़दारों को धमका कर भगा दिया. बिल्डर कुछ देर वहां रहा बाद में पता नहीं कब वहां से बाहर निकला. इस बीच दुबारा एक दिन चेक जमा करा दिया गया. इस बार भी चेक बाउंस हो गया. चेक बाउंस होने की बात को क्लब के लेखाकार ने कोषाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को बता दिया. और चेक की फोटो कापी दे दी. मुख्य लेखाकार तो इस्तीफ़ा दे चुके थे. उस समय उनसे यह कहा गया था कि नई व्यवस्था होने तक आप अपना काम करें. यह बात रिकार्ड में थी कि मुख्य लेखाकार ने इस्तीफ़ा दे दिया था.
2007 के आख़िरी दिनों में जब चुनाव हुए तो पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ और राहुल जलाली की टीम दुबारा जीत गयी. पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ का एक साथी नरेंद्र भल्ला हर गतिविधि में उसका साथ दे रहा था. बिल्डिंग फंड के लिए जो एक लाख रुपये नक़द और 99 लाख का चेक मिला था, उस घपले में नरेंद्र भल्ला के साथ देने से निकटता और बढ़ गयी थी. एक और साथी जो संजीव आचार्य की टीम में था, लेकिन बुरे वक़्त में इस्तीफा देकर भाग गया था. वह भी साथ था. उसका नाम प्रमोद कुमार था. प्रमोद कुमार पहले बनारस के अखबार ‘आज’ में काम करता था. वहां से उसे निकाल दिया गया था, वह अब कुलश्रेष्ठ का पक्का साथी था.
यह तीनों मिलकर राहुल जलाली के खिलाफ काम करने लगे थे. मीटिंग में नारे लगाते थे कि जब संजीव आचार्य पहले इस्तीफ़ा देकर भाग गए थे तो क्लब की हालत बहुत खराब थी. अब उसे पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है. वैसे क्लब को पटरी पर लाने में राहुल जलाली का भी हाथ था. लेकिन यह लोग अपने पुराने साथी संजीव आचार्य और कुशाल जीना को क्लब में वापस लाने पर विचार कर रहे थे. लेकिन राहुल जलाली इनका विरोध करते थे और कहते थे कि यह लोग क्लब को लूट कर भागे हैं, इसलिए इनको वापस नहीं लाया जाएगा.
अचानक एक घटना हुई. क्लब में कश्मीर का एक प्रतिनिधिमंडल आया. प्रतिनिधिमंडल को दिए गए खाने के बिल में छूट दे दी गयी. यह छूट राहुल जलाली ने दी थी. राहुल जलाली का कहना था कि उन्होंने कोई छूट नहीं दी. इन लोगों ने एक षड़यंत्र रचकर कार्यकारिणी की बैठक में मुख्य लेखाकार से कहलवा दिया. राहुल जलाली इन लोगों के षडयंत्र से बहुत दुखी हुए. राहुल जलाली बार-बार क्लब में हो रही गड़बड़ियों की बात करते रहते थे. उनका आरोप था कि रोज़ ही 30-40 हज़ार रुपये के कैश लेन देन हो रहा था. जब कि नक़द भुगतान 5 हज़ार से ज्यादा का किया ही नहीं जा सकता. महासचिव कुलश्रेष्ठ और उनके साथियों ने ई-मेल सेवा शुरू कर दी, लेकिन उसका भुगतान किसको हो रहा था, वह पता नहीं लग पा रहा था.
राहुल जलाली इन गड़बड़ियों के लिए इन्टरनल ऑडिट की बात करते थे. क्लब का महासचिव कुलश्रेष्ठ कहते थे कि कंपनी ला के अनुसार वह क्लब के मुख्य कार्याधिकारी हैं, वह जो चाहे कर सकते हैं. महासचिव की मनमानी से परेशान होकर राहुल जलाली और कुछ अन्य सदस्यों ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और जनरल बाडी की बैठक बुलाई. इस्तीफ़ा देने वालों में राहुल जलाली के साथ दिनेश तिवारी, महुआ चटर्जी और ज्ञानेंद्र पांडे थे. परन्तु जनरल बाडी नहीं बुलाई गयी. पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ और उनके साथियों ने परवेज़ अहमद को कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया. उधर विनोद शर्मा चुने हुए लोगों के खिलाफ आन्दोलन चलवा रहे थे. क्योंकि वे पाकिस्तान के एक पत्रकार के साथ साफमा के अध्यक्ष थे. पुष्पेन्द्र भी उसकी कार्यकारिणी में थे. पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ अपने पुराने साथी संजीव आचार्य और कुशाल जीना को क्लब में वापस लाये. ऐसा कहा जाता है कि दरअसल साफमा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी का एक अंग है, जिसे भारत में पाकिस्तान का समर्थन कराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
एक दिन कार्यकारिणी के कुछ और सदस्यों ने मुझे घेर कर कहा कि आप पहले की तरह ही क्लब में सुधार करें, जैसे जब क्लब डूब गया था तब एक इंटरिम कमेटी बनाकर क्लब को चलाया था और क्लब को रास्ते पर ला दिया था. उन्होंने कहा कि अंदर हालात खराब हैं. मैं ने उन कार्यकारिणी और क्लब के सदस्यों से पूछा, ‘आप लोग चुनाव क्यों लड़ते हैं? आप लोग अपने में हौसला पैदा करें, मिल बैठकर महासचिव से बात करें. उसी से समाधान निकलेगा. मैं ने कहा कि मैं चुनी हुई कमेटी को कैसे भंग करवा सकता हूँ. क्लब के कर्मचारियों ने बिलों का पैसा लेकर करीब साढ़े तीन लाख अपनी जेब में डाल रखा है. इस पैसे की उन लोगों से उगाही कराओ. क्लब के कर्मचारी तो आप लोगों की सुनते हैं. यह काम तो करो”.
एक दिन महासचिव कुलश्रेष्ठ ने मुझे बुलाकर कहा कि त्यागी जी मैं तो क्लब के इन कर्मचारियों से परेशान हो गया हूँ. आप हमारी और क्लब की मदद करें. आप कर्मचारियों से पैसा निकलवा दें. मैं ने कर्मचारियों और कार्यकारिणी के सदस्यों से बातचीत की. सब ने अपनी स्वीकृति दे दी. मैंने कर्मचारियों से अलग-अलग बात की. सब ने धीरे-धीर करके पैसा लौटा दिया. जिसे क्लब के खाते में जमा करा दिया गया. सब ने लिख कर दिया कि इस बार माफ कर दीजिये, दोबारा ऐसा नहीं होगा. मैंने यह पत्र और बैंक की जमापर्ची पुष्पेन्द्र को दे दी.
इसके बाद वाले चुनाव में पुष्पेन्द्र की टीम हार गयी. चुनाव के दिन जब मीटिंग हुई तो अनिल त्यागी ने खड़े होकर कहा कि पुष्पेन्द्र ने जो बैलेंस शीट बनायी है क्या उसे आप लोग स्वीकार करते हैं. सब ने एक स्वर में कहा कि हम इसे स्वीकार नहीं करते. नई टीम रामचंद्रन और संदीप दीक्षित की आई. उन्होंने कुछ समय बाद जनरल बाडी की एक बैठक बुलाई और कहा कि पिछले चार वर्षों में क्लब के धन को लूटा गया है. करोड़ों रुपयों का घपला किया गया है. जनरल बाडी में सब ने हाथ उठाकर कहा पिछले चार सालों में जितने घपले हुए हैं सबकी जाँच होनी चाहिए. पुष्पेन्द्र चुनाव हारने के बाद एक दिन के लिए भी क्लब में नहीं आया. नई कमेटी ने सारे घपलों की शिकायत कंपनी अफेयर्स मंत्रालय के पास भेज दी. मंत्रालय ने जांच का काम पुलिस को दे दिया. अब पुष्पेन्द्र के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 और 120बी के तहत जाँच चल रही है. एक अन्य मामला धारा 406 के अधीन भी दर्ज है. पुष्पेन्द्र की अग्रिम जमानत की अर्जी कोर्ट ने नामंजूर कर दिया है.
…समाप्त…
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लेखक विजेंदर त्यागी देश के जाने-माने फोटोजर्नलिस्ट हैं और खरी-खरी बोलने-कहने-लिखने के लिए चर्चित हैं. पिछले चालीस साल से बतौर फोटोजर्नलिस्ट विभिन्न मीडिया संगठनों के लिए कार्यरत रहे. कई वर्षों तक फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट के रूप में काम किया और आजकल ये अपनी कंपनी ब्लैक स्टार के बैनर तले फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हैं. ”The legend and the legacy : Jawaharlal Nehru to Rahul Gandhi” नामक किताब के लेखक भी हैं विजेंदर त्यागी. यूपी के सहारनपुर जिले में पैदा हुए विजेंदर मेरठ विवि से बीए करने के बाद फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हुए. विजेंदर त्यागी को यह गौरव हासिल है कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर अभी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीरें खींची हैं. वे एशिया वीक, इंडिया एब्राड, ट्रिब्यून, पायनियर, डेक्कन हेराल्ड, संडे ब्लिट्ज, करेंट वीकली, अमर उजाला, हिंदू जैसे अखबारों पत्र पत्रिकाओं के लिए काम कर चुके हैं. विजेंदर त्यागी से संपर्क 09810866574 के जरिए किया जा सकता है.
Comments on “उस बिल्डर ने पुष्पेंद्र से पूछा- आप इतने उदास क्यों हैं”
varishth patarkar saleem saifi ke pita ka nithan allaha unkee magferith farmaie ameen
tayagiji ne achcha likha hai me bhi ye sab bate janta hoon naresh gupta mera bhi prichit hai…99 lak ka ghapla hua hai..