उस बिल्डर ने पुष्पेंद्र से पूछा- आप इतने उदास क्यों हैं

विजेंदर त्यागी: पीसीआई और मेरी यादें-  अंतिम : राहुल जलाली और पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ :  चित्रिता और एआर विग दोनों ही चुनाव हार गए. राहुल जलाली और पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ अध्यक्ष और महासचिव बन गए. एक दिन मैं किसी काम से पुष्पेन्द्र के कमरे में जाकर बैठ गया. इतने में वहां देखा कि दो व्यक्ति आ गए.

संजीव आचार्य के कमेंट पर लड़की भयभीत हो गई

विजेंदर त्यागी: पीसीआई और मेरी यादें-  पार्ट पांच : प्रभात डबराल का कार्यकाल : चाँद जोशी के बाद प्रभात डबराल और एके धर की टीम विजयी हुई. क्लब में पहाड़ी यानी उत्तराखंड के पत्रकारों की अच्छी खासी संख्या है. प्रभात डबराल अपने व्यवहार से उत्तराखंडियों और अन्य पत्रकारों में बहुत पापुलर थे.

वह गर्लफ्रेंड के साथ नाचने लगा तो पत्नी ने चप्पलों की बौछार कर दी

विजेंदर त्यागी: पीसीआई और मेरी यादें – पार्ट तीन : प्रेस क्लब में एक की हत्या हो गई, हत्यारे छूट गए क्योंकि सबने कहा- हत्या होते मैंने नहीं देखा: विजय पाहुजा प्रेस क्लब से मुर्गा-शराब उठाकर उस अड्डे पर ले जाते थे : दक्षिण एशिया के पत्रकारों का संघ बनाकर विनोद शर्मा दूसरा खेल खेल रहे थे : चेतन चड्ढा नामक पत्रकार शहर के जुआरियों का खास आदमी था :

एक रात क्लब सदस्यों ने हल्ला मचाया- शराब में मिट्टी का तेल मिला है

विजेंदर त्यागी: पीसीआई और मेरी यादें – पार्ट दो : 1980 में इंदिरा गांधी दुबारा प्रधानमंत्री बनीं. उसी साल अगस्त में मुरादाबाद में दंगा हो गया. मैंने उस दंगे की तस्वीरें खींची थीं. उनमें से एक तस्‍वीर दुनिया के कई अखबारों में छपी थी. इस तस्वीर में वह घटना थी, जिसमें चार-पांच सूअर ईदगाह के पास एक आदमी की लाश को खाते दिख रहे थे.

मायावती को राजनीति का भस्‍मासुर किसने बनाया!

””….मैंने प्रधानमंत्री नरसिंह राव से उस समय सवाल किया था- ”राव साहब आप गांधीवादी नेता हैं और बहुजन समाज पार्टी के लोग गांधी को गाली देते हैं, यह कैसा समझौता है?” इस पर राव साहब ने जवाब दिया- ”आप अच्छी तस्वीर खींचें।” तब मैंने उनसे कहा- ”मैं तस्वीर खींचू या लिखूं, इससे आपका कोई मतलब नहीं होना चाहिए,  लेकिन मुझे आपसे सवाल करने का हक है। कृपया करके आप सवाल का जवाब दें।”….””

प्रभु चावला की कहानी, विजेंदर त्यागी की जुबानी

एक दिन ‘सीधी बात’ वाले टेढ़े आदमी ने मुझे टेलीफोन किया. ”त्‍यागी जी मुझे आपसे एक व्‍यक्तिगत काम है”. मैंने पूछा- ”चावला जी, मुझसे ऐसा कौन सा काम आ पड़ा. आप तो पत्रिका के संपादक हैं और पत्रकारिता के स्‍टार यानी सितारे”. उनका जवाब था – ”मजाक छोडि़ये, मेरी आज मदद कीजिए. आपने पत्रकारों के सरकारी मकान जो खाली कराने का अभियान चलाया है उससे सभी संबंधित कागजात ले आएं”.