कुछ नहीं कर पाएगा जनलोकपाल बिल!

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अमिताभ पिछले कुछ दिनों से देश में एक ही शब्द गूंज रहा है- जन लोकपाल बिल और इससे जुड़ा एक ही नाम- अन्ना हजारे. मैं इतने दिनों तक ये चर्चाएँ तो सुन रहा था पर कभी भी प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को देखने का मन नहीं बना था. आज अचानक इस जन लोकपाल बिल का प्रस्ताव देखा तो इस कदर सन्न रह गया कि सोच भी नहीं पाया एक पूरा देश किसी भी कही-अनकही पर किस तरह आ सकता है.

मैंने और आपने इससे पहले गणेशजी को दूध पिलाने की घटना देखी और सुनी थी,  जिसके दौरान एक ही दिन के अंदर सारा देश गणेश जी को दूध पिलाने लगा था और शाम होते-होते गणेश जी ने दूध पीना बंद कर दिया था. मुझे अचरज है कि किस तरह से एक लंबे समय से गणेश जी के दूध पिलाने वाले वाली बात चल रही है और पूरा देश उसके पीछे ऐसा मंत्रमुग्ध हो कर चल रहा है,  जैसे हमने रॉबर्ट ब्राउनिंग की विश्वप्रसिद्ध कविता पाईड पायिपर ऑफ हेमलिन में देखा था जब पूरे शहर के चूहे और बच्चे इस पाईड पायिपर के पीछे बस चल ही देते हैं.

इस भूमिका के साथ मैं मुख्य बिंदु पर आ जाता हूँ. भ्रष्टाचार हमारे देश की एक प्रमुख समस्या मानी गयी है जिसके विषय में आम और खास सभी एकमत हैं. तभी तो हम देखते हैं कि नीरा राडिया जैसी महिला भी, जो आम तौर पर एक मिडलमैन (या दलाल) के रूप में मानी जाती है, राजस्थान के अपने परिचित आईएएस अफसर के साथ बातें करते हुए कथित टेप में इस बात पर कड़ा ऐतराज जताती हैं कि इस देश की उच्च न्यायपालिका में भयानक घुन लग गया है और बिना पैसे के काम नहीं होता. अभी हाल में शांति भूषण की बातचीत से सम्बंधित जो कथित सीडी प्रसारित हो रहा है उसमे शांति भूषण की आवाज़ वाले व्यक्ति जहां एक तरफ अपने पुत्र के लिए पीआईएल के नाम पर चार करोड़ रुपये मांग रहे हैं, वहीँ वह भी यह टिप्पणी करने से नहीं चूकते कि आज कल तो हाई कोर्ट जज बनाने के लिए भी पैसे चल रहे हैं. इस तरह क्या आम और क्या खास, भ्रष्टाचार से हर आदमी भयानक रूप से पीड़ित है.

इस भ्रष्टाचार रुपी दानव से निजात सभी चाहते हैं, और इसके लिए कई सारे सामाजिक कार्यकर्ता विशेष तौर पर प्रयासरत हैं. ये सभी अत्यंत सम्मानित व्यक्ति हैं और देश भ्रष्टाचार के मुद्दे को सामने लाने के लिए उनका हर तरह से आभारी है. पर इसके साथ यह बात भी ध्यान में रखना चाहिए कि कई बार अच्छे उद्देश्य मात्र से काम नहीं चलता, इसके साथ सही दिशा में और सही तरीके से प्रयास की भी जरूरत होती है. और इसी जगह पर मुझे इस कथित जन लोकपाल बिल से गहरा ऐतराज है.

पहले तो मैं यह प्रस्तुत करूँ कि इस मूवमेंट से जुड़े लोग क्या कहते हैं. इनका कहना है कि जन लोकपाल एक्ट आएगा और देश से भ्रष्टाचार की रुखसती के दिन आ जायेंगे. मैं सबसे पहले तो इसी दावे को पूरी तरह खारिज करता हूँ. कोई भी क़ानून, कोई भी नियम, कोई भी एक्ट तब तक अपना व्यवहारिक स्वरुप नहीं पकड़ सकता जब तक उसके क्रियान्वयन में ईमानदारी नहीं हो, जब तक उसका सच्चा पालन नहीं हो. यदि एक लोकपाल और कुछ उसके साथी बन भी गए तो सिद्धान्ततया यह होगा कि लोग उनके पास शिकायतें करेंगे, वे जांच करना शुरू करेंगे, सही पाए जाने पर मुक़दमा लिखवायेंगे, यदि गलत ढंग से पैसा आया साबित हुआ तो उसे सीज कर लेंगे और ना जाने क्या-क्या. लेकिन हकीकत में इसमें से कुछ भी नहीं होगा. क्यों?

बहुत सीधा सा उत्तर है. इसीलिए कुछ नहीं होगा क्योंकि हिंदुस्तान में एक-दो नहीं, सैकड़ों-हज़ारों नहीं लाखों-करोड़ों की संख्या में शिकायतें मिलेंगी. जी हाँ, एक सौ बीस करोड़ का यह देश कोई स्विट्ज़रलैंड नहीं है कि जहां लोकपाल बैठ कर आनन फानन में निर्णय कर देगा. एक-दो महीने में ही इतनी शिकायतें आ जायेंगी कि लोकपाल साहब चारों खाने चित्त हो जायेंगे. कुल लोग ही कितने होंगे- दस, बीस, तीस, पचास. और शिकायतें एक करोड. सोच लीजिए, एक आदमी पर कितनी शिकायतों का औसत हुआ. फिर वह बेचारा (मैं इस भविष्य के लोकपाल को बेचारा ही कहूँगा क्योंकि एक अकेला एक शहर में, शिकायतों की भीड़ में उसी तरह खोया दिखेगा जैसा भूसे के बीच सुई दिखती है) लोकपाल कौन-कौन सी शिकायतें देखेगा और कौन-कौन सी शिकायतें छोड़ेगा? दो-चार महीने में इसकी दशा वही हो जायेगी जो तमाम अन्य पदों और संस्थाओं की हो जाया करती है.

क्या हमारे देश में पहले से संस्थाएं कम हैं? क्या हमारे यहाँ न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट नहीं है? क्या हाई कोर्ट और निचली अदालत नहीं हैं? क्या अलग-अलग कार्यों के लिए दुनिया भर के ट्रिब्यूनल नहीं हैं- नौकरीपेशा लोगों के लिए अलग, सेल्स टैक्स के लिए अलग, इन्कम टैक्स के लिए अलग, बैंक से वसूली के लिए अलग, इलेक्ट्रिसिटी मामलों के लिए अलग. इनमे से हर नया ट्रिब्यूनल इस आस से बनाया जाता है कि चूँकि कोर्ट में बहुत मारा-मारी हैं, देरी है इसीलिए ट्रिब्यूनल बन जाए. वहाँ जल्दी-जल्दी केस निपटेंगे. फिर उसके लिए अलग भवन, अलग स्टाफ, अलग व्यवस्थाएं बनती हैं और साल भर में वहाँ भी वही हाल हो जाता है. मैंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटीव ट्रिब्यूनल में तीस साल पहले एक केस किया था, अभी लंबित है. कई साल पुराने केस भी चल रहे हैं जबकि सोच यह थी कि छह महीने में मामलों का निस्तारण हो जाया करेगा.

अभी कुछ साल पहले केन्द्रीय और राज्य सूचना आयोग बने. बड़ा खुशनुमा माहौल बन गया. छह साल भी नहीं बीते हैं. उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में नंबर आने में ही सात-आठ महीने तक लग जा रहे हैं, निस्तारण होने में साल से ऊपर भी. यही स्थिति केन्द्रीय सूचना आयोग की है. प्रशासनिक हलकों में भी यही हाल है. राष्ट्रपति कार्यालय में शायद लाखों शिकायतें आती होंगी और प्रधान मंत्री कार्यालय में भी. मेरी पत्नी नूतन ने एक शिकायत उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के यहाँ रजिस्टर्ड डाक से भेजा था. एक दिन वहाँ के एक अधिकारी मिल गए, नूतन ने गलती से पूछ लिया कि मैंने भी एक शिकायत भेजी थी, क्या वह ऊपर चला गया होगा. उस अधिकारी ने धीरे से मुस्कुरा कर कहा कि यहाँ शिकायत पत्र एक साथ बोरों में डाल कर ट्रकों में भर के सम्बंधित स्थानों पर भेज दिए जाते हैं, आप की शिकायत भी उन्हीं बोरों में कहीं पड़ी होगी.

तात्पर्य यह हुआ कि जब सारी संस्थाएं ‘काम के बोझ से मारा यह बेचारा’  बनी हुई हैं तो यह नई-ताज़ी संभावित संस्था कौन से नए कारनामे करने लगेगा. क्या जो लोग इस बिल से जुड़े हुए हैं, वे इस तथ्य को नहीं जानते? यदि जानते हैं तो फिर क्यों इस तरह से पूरे देश को छलावा कि आया, आया एक नया जादूगर आया. इस पूरी बात को कहने के पीछे मेरा मात्र यह उद्देश्य है कि यदि वर्तमान संस्थाएं कथित तौर पर फेल हैं तो हमें उन्हें तुरंत त्याग कर फिर एक नयी संस्था के चक्कर में पड़ने की जगह वर्तमान में जो संस्थाएं हैं उन्हें ही ठीक करने की बात सोचनी चाहिए और उसी दिशा में प्रयास करना चाहिए.

आज इस देश में सुप्रीम कोर्ट है, हाई कोर्ट हैं, राष्ट्रपति हैं, प्रधान मंत्री हैं, मंत्रिमंडल है, प्रत्येक राज्य में मुख्यमंत्री हैं, उनके अपने मंत्रिमंडल हैं, फिर करोड़ों शासकीय अधिकारी हैं, ना जाने कितनी ही संस्थाएं और संगठन हैं, उन सब में अपने विजिलेंस विंग हैं और तमाम तरह की व्यवस्थाएं हैं. यदि कथित तौर पर ये सब भ्रष्टाचार मिटाने में फेल हैं तो यह ‘सुपरमैन’ लोकपाल कौन से नए कारनामे कर लेगा?

इसीलिए मेरा यह स्पष्ट और अत्यंत दृढ मत है कि हम ‘ये बीवी अच्छी नहीं, नयी बीवी लायेंगे’  का सिद्धांत छोड़ कर (जिसका एक रूपान्तर एलिजाबेथ टेलर के रूप में अमेरिका में हुआ था जो आठ-आठ शादी के बाद भी अपनी मृत्यु के समय अकेली थीं) जो कुछ अपने पास है, उसी पर पूरा ध्यान केंद्रित करें और उसी की जरूरतों को समझते हुए उन्हें पूरा करने की कोशिश करें. यह नहीं कि जो मेरे पास है, उसे तो नकार दिया और काल्पनिक लोक से एक नया शिगूफा ले आये. ठीक है, लोकपाल अपने देश में नहीं है, पर लोक आयुक्त तो हर राज्य में हैं. क्या लोग उसके कार्यों से संतुष्ट हैं? क्या लोग ऐसा मानते हैं कि लोक आयुक्त ने अपने सारे काम कर दिए? बात वहाँ भी वही है. शुरू में तो शिकायतें आती हैं और जब स्टाफ और संसाधनों की कमी के कारण वे शिकायतें लंबित रह जाती हैं तो लोगों का इन संस्थाओं पर से विश्वास कम होता जाता है, और एक समय के बाद ये अपना मूल्य खो दी सी दिखती हैं.

यह वह मूल बात है जिसके आधार पर मैं दावे से कह सकता हूँ कि लोकपाल या किसी अन्य नए संस्था के स्थान पर यदि हम मौजूदा संस्थाओं को ही मजबूत करेंगे तो वह हमारे देश के लिए वास्तविक तौर पर लाभप्रद रहेगा. यदि हमारा उद्देश्य व्यवस्था में वास्तविक सुधार है तब तो हम सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, ट्रिब्यूनल, न्यायालयों, राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री कार्यालयों की जरूरतों को पूरा करने में लगें और उनकी दृष्टि से उनकी समस्याओं को समझते हुए उन्हें मजबूती प्रदान करें और यदि हमारा उद्देश्य मात्र अपने अहम की तुष्टि है तब तो हम लोकपाल के बाद एक नए संस्था के आने के लिए भी तैयार रहें.

लेखक अमिताभ आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों मेरठ में पदस्थ हैं.

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Comments on “कुछ नहीं कर पाएगा जनलोकपाल बिल!

  • Indian citizen says:

    इस बार आपसे सहमत नहीं. पुराने कानूनों की उपयोगिता खत्म होने पर ही नये कानून की आवश्यकता होती है. यदि अपराध बढ़ जायें या जारी रहें तो क्या पुलिस की उपयोगिता खत्म हो जायेगी. यदि आप की बात को पूरी तरह माना जाये तो नये थाने चौकियों की आवश्यकता ही नहीं.

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  • nikhil agarwal says:

    amitabh ji
    sarkari seva main rahte hue appka lekhan ke field main karya sarahniya hai. desh main har naujawan ke dil main khawish hoti hai ki wo IAS IPS Bane. Kuch Desh Sewa karna chahte hain aur bahut se paisa kamane ke liye. maine Ek patrakar hone ke nate jab bhi kisi IAS IPS Officer se corruption ke Bare main poocha to Uska yahi jawab hota tha ki Hum log bhi to samaj ka hi hissa hain aur uska asar hum par bhi hota hai. unme se n kuch log corrupt ho sakten hain lekin sabhi ek jaise nahi hote. ap IPS officer hain. kai distt. main sp rah chuke hain. sarkari system se bhali bhanti parichit hain. IIM se course bhi kiya hai. Research ka kaam karte rahte hain.
    main aapse kuch jaankari chahta hoon.
    1- kya aap bhi mante hain ki police system desh main sabse corrupt system ban chuka hai?
    2- if yes then why
    3- aap as IPS, system main rahte hue kya badlav chahte hain
    4- kya aap jeevan bhar police seva main rahenge ya kuch aur bhi socha hai?
    i will be very oblize if you answer me on my email also
    thanking you
    nikhil agrawal
    meerut
    my email is – nikhilagarwal707@gmail.com
    ph. no. 9997395427

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  • The day it started Sharad Pawar resigned from committee. People like Kapil sibal were seen running form jantar mantar to madam. It brought the whole nation together, for a moment all corrupt leaders looked scared. Now diggy is out like a jinn from bottle to save their Aka.

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  • आदरणीय अमिताभ जी आपकी सारी बातें सत्य है जैसा मैं भी मानता हूँ कि भारतीय कानून में कुछ कमियां जरूर है पर अपने आप में सक्षम भी है तभी तो आपको भी याद होगा कि हमारे देश के एक मुख्य चुनाव आयुक्त हुए है श्री टी आर शेषन जिन्होंने ने राज्य सरकारों एवं केंद्र की सरकार को भी कानून का पालन करना सिखाया था जिसका लाभ आज भी देश को मिल रहा है सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि सक्षम अधिकारी अपने अधिकारों को पुरी इमानदारी से निभाएं तो कहीं भी किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी – कानून का जनाजा तो उस समय निकलता है जब उसका पालन कराने वाला व्यक्ति स्वयं ही कुछ लालच में उस कानून को तोड़ने के लिए प्रेरित करता हुआ दीखता है – इस लिए लोकपाल कानून बन जाने के बाद कोई करिश्मा हो जायेगा ऐसा मैं भी नहीं मानता – उल्टे सरकारी काम को अपने हाथ में लेकर कथित सिविल सोसाइटी के कुछ लोगो ने अपने आपको कलंकित करने का आचरण और अपने माथे मढ़ लिया है – इस लिए सिविल सोसाइटी अगर देशवाशियों के चरित्र निर्माण कि ओर ध्यान दे तो अधिक उचित होगा कानून भी बन जाने से कुछ नहीं होने वाला – अगर क़ानून से डरने के बात होती तो देश में एक भी अपराध नहीं होता क्योंकि सब के लिए सख्त प्राविधान हैं जैसे हत्या करने के लिए मृत्यु दंड तो क्या देश me हत्याएं होनी बंद हो गई हैं, नहीं ? एस.पी सिंह

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  • Arun Kumbhat says:

    भ्रष्टाचार सिर्फ कानून से ही नहीं समाप्त हो सकता है यह सत्य है किन्तु कानून का भ्रष्टाचार के उन्मूलन में कोई योगदान नहीं हो सकता यह एक भ्रान्ति है

    भ्रष्टाचार का जन्म शक्ति के आँगन में होता है यह एक सत्य है और उससे जन्मा शोषण रक्तबीज की तरह फैलता है और जल्द ही उसका उद्गम अदृश्य हो जाता है….ठीक यही स्थिति है हमारे देश में…और नतीजा यह की हर वर्ग दुसरे पर उसके प्रवर्तन का ठीकरा फोड़ रहा है….जनता नेता पे, नेता व्यवसायी पर और व्यवसायी नेता और नौकरशाही पे…..

    भ्रष्टाचार का उद्गम समझ लें और स्वीकार लें तो फिर यह भी स्पष्ट है कि उसका उन्मूलन तीन सतहों पर करना होगा…

    पहली सतह कानून कि है जिस पर जन लोकपाल कि मांग केन्द्रित है…

    दूसरी सतह है तंत्र कि …यानि तंत्र में अधिकार और जवाबदेही का दांपत्य बना रहे….भारतीय व्यवस्था में इनका तलाक हुआ जान पड़ता है….उदहारण आपके सामने है कि देश का प्रधानमंत्री सिर्फ यह कह कर पल्ला झड लेता है कि गठबंधन कि मजबूरियां होती हैं…अंतरात्मा कि कोई मजबूरी नहीं जान पड़ती वोह तो यागी कि देह कि तरह लचीली है. किसी नें अंतरात्मा कि आवाज़ कि दुहाई देकर महानता का चोला ओढ़ लिया तो किसी नेह उसे गंदे कपड़ों कि तरह निकाल फेंका…

    इस सतह पर अगला वार करना होगा…एक उपाय यह है कि देश का प्रधान मंत्री जनता द्वारा सीधा चुना जाये, किसी सुरक्षित स्थान से उसे शिखंडी कि भाँती खड़ा न किया जाये, जिसकी ओट लेकर तरह तरह कि गुरु घंटाल अपना खेल खेलते रहे या कोई धूर्त जोड़-तोड़ और जुगाड़ से जनादेश का बलात्कार कर ले….चरण सिंह, च्नाद्रशेखर, देवेगौडा, गुजराल मनमोहन सिंह जैसे कई नटवरलाल इस चोर दरवाज़े से दाखिल हुए हैं…

    तीसरी और सबसे महत्त्वपूर्ण सतह है परिवार और संस्कार कि….ध्यान से देखें अपने परिवार को और अपने आप को…कहीं आपका आचार-विचार और कथनी-करनी का अंतर आपके बच्चों को ‘सबसे बड़ा रुप्पैया’ कि घुट्टी तो नहीं पिला रहा ?

    क्या कोई भी व्यक्ति इमानदारी से यह कह सकता है कि उसकी कोई भूमिका नहीं हो सकती या इस दानव के किसी अंश पर वार नहीं कर सकता ?

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  • sonu agrawal says:

    i also disagree. You need an independent body to prosecute ministers and judiciary. Proposed lokpal bill by the civil society will ensure this

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  • Vineeta Singh says:

    The article rightly conveys the deep-rooted systemic problems that our nation faces and limitations of various institutions. This recent movement if a manifestation of pent-up collective public anger that has suddenly got a vent and hence, it has been effective also.. but one draft bill prepared by a few cannot be an answer to this menace of corruption.

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  • Dr Ajay Srivastava says:

    It will definitely help to those who want to fight against the corruption by opening a channel where people can go without facing the harassment by babus and other official mercenaries ( not machinery) who work as per the dictates of netas and ministers. There is a need to create a platform where ordinary people can go and register their complaints. lets not worry about the no. of complaints that will be dealt and brought to any conclusion. I expect it to act as a deterrent and only slow down the spread of corruption. At present its very difficult to even lodge a FIR in a police station and same is the situation in all other government offices.

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  • Meri Awaaz says:

    Very true. Lot of energy is wasted. Need of the hr is consolidation of existing institutions like cvc, rti, cbi, etc & grant prosecuting powers (over top executive) in existing judicial structure.

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  • The analogy of the “new wife” is not relevant.This is a widely-prevalent and necessary institution for ensuring honesty in administration and governance.It has a specific role.It is found worldwide.Please judge from th way it is being fought how much people fear it.think if we had it earlier,possibly we wouldn’t have so much corruption.Also,the possible lack of effectiveness of the Lokayuktas is because there isnt a Lokpal at the Centre.

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  • Ajay Tiwari says:

    Kanoon banane se jyada mahatawapurn hota unko palan karna aur karwana. Samay ki mang hai system mai sudhar lane ki . Naye kanoon ban jane ke baad bhi koi khas pariwantan nahi aanewala , keyu ki system mai wahi log hoge jo vartaman mai hai. Achchhe rajya ke sanchalan ke liye behtar hoga , kanoon kum aur saqat hone chahiye sath mai unke istemal mai pardarshita hona chahiye. Judiciary mai logo ka vishwas jage iske liye nyaypalika ko ahem bhumika nibhani hogi .

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  • Praveen Rai says:

    आपके इस लेख को पढ़कर अचानक ही आपके अन्दर का वह ‘पुलिसवाला’ नज़र आने लगा, जो बीच चौराहे पर ही सत्य-असत्य, ग़लत-सही, साधू-असाधु का निर्धारण करने के साथ ही समुचित दंड भी दे देता है, आपके लेख की भूमिका पढ़ कर लगा आप बिल के प्रस्ताव पर अपनी निष्पक्ष व्याख्या देंगे, लेकिन जैसे-जैसे आगे पढ़ता गया, लगा, जैसे किसी हताश व्यक्ति की पूर्वाग्रही सोच से ज्यादा इसमें कुछ भी नहीं है. मैंने जन लोकपाल बिल का प्रस्तावित प्रारूप नहीं देखा है. ना ही आपने इस लेख में कहीं भी प्रस्तावित बिल की कमियों पर प्रकाश डाला है, अपितु पूर्व की दुर्व्यवस्था से हताश, पूर्वाग्रह से परिपूर्ण भविष्यवाणी भर की है, जैसे जन लोकपाल बिल के आने से वर्तमान संस्थाओं में सुधार के सभी मार्ग बंद हो जायेंगे. वैसे, जहाँ तक मुझे ज्ञात है, अभी तो बिल का प्रारूप तैयार करने के लिए Bill Drafting Committee के गठन सम्बन्धी अध्यादेश ही जारी हुआ है, बिल का प्रारूप तैयार होना तो अभी भी दूर की कौड़ी है.

    यदि आप ‘India Against Corruption’ द्वारा प्रस्तावित बिल, के प्रारूप, पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं, तो, अन्ना व उनके सहयोगियों ने जन लोकपाल बिल की आवश्यकता के दो प्रमुख कारण बताये थे.
    पहला तो यह कि, उच्चतम सरकारी एवं संवैधानिक पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए वर्तमान संस्थाएं अक्षम हैं, क्योंकि वर्तमान संस्थाओं को कहीं ‘जांच’, तो कहीं ‘अभियोजन’ की पूर्वानुमति ‘उचित स्तर’ पर प्राप्त करनी पड़ती है, और यह ‘उचित स्तर’ ही ज़्यादातर भ्रष्टाचार का पोषक बन जाता है.
    दूसरा यह की, भ्रष्टाचार के विरुद्ध समयबद्ध कार्यवाही हेतु वर्तमान कानून में व्यवस्था नहीं है.
    साथ ही इस अभियान से जुड़े लोगों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जन लोकपाल बिल भ्रष्टाचार के विरुद्ध अंतिम लड़ाई नहीं है अपितु एक पड़ाव मात्र है. वैसे ही जैसे ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’, जिसकी वजह से आप व आपकी पत्नी पर्याप्त शोहरत और सम्मान प्राप्त कर चुके हैं.

    यह देखकर भी प्रसन्नता हुई कि, आप जैसे विद्वान ने, आज के सबसे जनलोकप्रिय आन्दोलन को समझने का वक्त निकाल लिया. लेकिन दुःखद यह रहा कि नींद से उठते ही, आन्दोलन की ‘लोकप्रियता’ को, भारतीय समाज की ‘अंधभक्त अभिव्यक्ति’ के रूप में परिभाषित करना, ‘ईर्ष्यालु जनसेवक’ की संकुचित मानसिकता का आभास कराता है.

    आपसे अपेक्षा है कि अपनी वर्तमान मनःस्थिति से बाहर आकर, प्रस्तावित बिल, और वर्तमान व्यवस्था में सुधार, के लिए सकारात्मक सुझाव देंगे.

    सादर,
    प्रवीण राय

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  • sutikshan dubey says:

    Aapki baat ki shikayaten bahut jyada aayengi aur lokpal samitiyan (jo ki center main ek aur har rajya main ek hongi) kam pad jayegi, muhe “Jayaz” lagti hain.
    Baki muddon par shayad aapko yahan jawab mil jaye.

    http://www.youtube.com/watch?v=Uose3lLj8Bo

    Aasha banaye rakhiyega, aapse to bahut ummiden hain hum sabko.
    Dhanywad

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