हरिद्वार कुंभ के लिए नोबेल प्राइज पाने की लालसा रखने वाले मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के दावों की पोल खुल गई है। कैग की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि किस तरह आंख मूंदकर कुंभ के नाम पर निशंक की छत्रछाया में उनके चहेते नौकरशाहों ने करोड़ों के वारे-न्यारे किए। न केवल कुंभ में अनाप-शनाप खर्च किया गया, बल्कि कमीशनखोरी के लिए ठेकेदारों को करोड़ों का लाभ पहुंचाया गया।
बेशर्मी की हद ऐसी कि अब तक करोड़ों का चूना लगाने वाले भ्रश्ट नौकरशाहों के खिलाफ निशंक सरकार ने चूं तक नहीं की। लेकिन अब यह मामला निशंक के गले की फांस बनता दिख रहा है। कैग की रिपोर्ट को ही आधार बनाकर तिवारी सरकार में अपर महाधिवक्ता रहे जेडी जैन ने निशंक के साथ ही कुंभ मंत्री मदन कौशिक और इन दिनों केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर नौकरी बजा रहे आईएएस आनंद बर्द्धन के खिलाफ कोर्ट में केस फाइल किया है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुख्य अंश : कुंभ-2010 के लिए केन्द्र सरकार ने 565 करोड़ रुपये की सहायता दी। बावजूद इसके निशंक सरकार पैसा का रोना रोते हुए केन्द्र सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाती रही। निशंक सरकार ने कितनी ईमानदारी से कुंभ को मिली केन्द्रीय सहायता का उपयोग किया, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केन्द्र को उपयोगिता प्रमाणपत्र तक उपलब्ध नहीं कराया गया।
कुंभ मेले के तहत 2007-08 से 2009-10 के मध्य 590.01 करोड़ की लागत के 311 कार्य अनुमोदित किए गए थे। इसमें से 527.09 करोड़ लागत के 273 कार्य दिसम्बर 2009 तक स्वीकृत किए गए थे। इन स्वीकृत कार्यों को 31 दिसम्बर तक पूर्ण हो जाना चाहिए था, लेकिन इस तिथि तक मात्र 82 कार्य ही पूर्ण हो पाए थे। सरकार की लेटलतीफी के चलते इस तरह समय पर ज्यादातर काम पूरा न हो पाने के कारण नौकरशाहों ने अनाप-शनाप तरीके से खर्च किया और निर्माण कार्यों में गुणवत्ता की अनदेखी की। सीएजी के अनुसार जुलाई 2010 तक 180 करोड़ लागत के 54 निर्माण कार्य मेला खत्म होने के बाद भी अधूरे पड़े हुए थे।
इस तरह हुई धांधली : बिना स्वीकृति के मनमानी से किए कार्य- ग्यारह कार्यदायी संस्थाओं सिंचाई विभाग, लोक निर्माण विभाग, राजाजी राश्टीय उद्यान, उत्तर प्रदेश सेतु निगम, स्वास्थ्य विभाग, मेला प्रशासन, पर्यटन विभाग, सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, सुलभ इंटरनेशनल और पेयजल निगम ने 19.39 करोड़ के कार्य बिना सरकार की मंजूरी के गलत-शलत तरीके से कर दिए। सीएजी की जांच में पता चला कि करोड़ों रुपयों की यह बंदरबांट मेला अधिकारी आनंद बर्द्धन के मौखिक आदेशों पर किए गए। इस पर सीएजी ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि यह वित्तीय नियमों का उल्लंघन है।
गैर कुंभ कार्यों पर फूंके 17.40 करोड़ : मेला अधिकारी द्वारा निर्माण खंड लोनिवि रुड़की, निर्माण शाखा पेयजल, ऋशिकेश, जल संस्थान हरिद्वार और पेयजल निगम हरिद्वार से 17.40 करोड़ रुपये के ऐसे काम करवाये गए जिनका कुंभ मेले से कोई संबंध नहीं था। मेलाधिकारी द्वारा इसके लिए सरकार से भी कोई मंजूरी नहीं ली गई।
ठेकेदारों को अग्रिमों का अनधिकृत भुगतान : राज्य सरकार के नियमों में ठेकेदारों को किसी भी तरह ब्याज रहित अग्रिम भुगतान का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद गंगा प्रदूशण नियंत्रण इकाई, हरिद्वार और नगर पालिका, हरिद्वार को 1.55 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान कर दिया गया। इन दोनों ही संस्थाओं द्वारा ठेकेदारों को यह धनराशि बिना ब्याज के ही अग्रिम तौर पर दे दी गई। इस तरह देहरादून की एक फर्म को भी 1.90 करोड़ की प्रतिभूति अग्रिम का भुगतान कर दिया गया।
राजस्व का नुकसान : कुंभ मेले के लिए भारत सरकार से राज्य को मिले 565 करोड़ रुपये पर जून 2010 तक राज्य सरकार ने 86.54 लाख का ब्याज प्राप्त किया। इसी तरह हरिद्वार जल निगम द्वारा भी 11 लाख रुपये का ब्याज अर्जित किया गया। राज्य सरकार द्वारा ब्याज की इस धनराशि को भारत सरकार से छुपाया गया। इस तरह सरकार ने इस पैसे का क्या किया, यह भी संदेह के घेरे में है।
पार्किंग स्थलों से राजस्व का नुकसान : यह भी कितना अजीब खेल है कि मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल कुंभ मेले में रिकॉर्ड श्रद्धालुओं के आगमन का ढोल पीटते नहीं थकते, लेकिन दूसरी ओर करोड़ों की लागत से बने पार्किंग स्थलों के ठेके नहीं छूटे और कुछ छूटे भी उनसे राजस्व की वसूली नहीं की गई। कुंभ मेले के दौरान पार्किंग सुविधा के लिए शहर में 38 पार्किंग स्थल तैयार किए गए। इसके मुकाबले 35 पार्किंग स्थल के लिए ठेकेदारों ने 1.71 करोड़ की निविदा डाली। इस पर मेला प्रशासन ने 1.29 करोड़ की ही वसूली की। कुछ पार्किंग स्थल के लिए ठेके निरस्त किए जाने के चलते कुल मिलाकर इससे सरकार को 70 लाख रुपये का चूना लगाया गया। सीएजी ने सरकार की खिचाई करते हुए कहा कि एक ओर जहां मेला अधिकारी पांच करोड़ श्रद्धालुओं के आगमन का दावा करते रहे, वहीं पार्किंग स्थलों से राजस्व का नुकसान होना चिंताजनक है। इससे सरकार के दावों पर भी सवाल उठते हैं।
अस्थाई दुकानों में भी धांधली : मेला प्रशासन ने हरिद्वार की फर्म लल्लू जी एंड सन्स के माध्यम से 32 लाख की लागत से 467 अस्थाई दुकानों का निर्माण कराया। सीएजी की जांच में पाया गया कि बिना किसी आवश्यकता के ही इन दुकानों का निर्माण कराया गया। पूरी दुकानों की नीलामी भी मेला प्रशासन नहीं कर पाया। मेला प्रशासन केवल 234 दुकानों की 47 लाख में ही नीलामी करा पाया। इस तरह 233 दुकानें बनी तो सही, लेकिन उनकी नीलामी न होने से सरकार को लाखों के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा। जो दुकाने नीलाम हुई हुई उनसे भी प्रशासन डेढ़ लाख रुपये की वसूली नहीं कर पाया।
स्टालों से किराये और जल प्रभार की वसूली न होने से करोड़ों का नुकसान : कुंभ मेले में प्रदर्शनी के लिए पर्यटन विभाग की ओर से सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को स्टॉलों का आवंटन में भी गड़बड़ी पाई गई। अधिकारियों द्वारा मनमाने ढंग से स्टॉल आवंटित किए जाने से करीब 7 लाख रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। इसी तरह पेयजल निगम द्वारा भी जल संयोजन की वसूली न किए जाने से सरकार को करीब एक करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा। इसी तरह मेले में धार्मिंक संस्थाओं व अखाड़ों को टेंट, फर्नीचर और भूमि उपलब्ध कराने के एवज में करीब एक करोड़ की वसूली की जानी थी, लेकिन एक भी रुपये वसूल नहीं किया गया।
जल संस्थान की करनी : मेले में पेयजल उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जल संस्थान को 4.97 करोड़ रुपये उपलब्ध कराये थे। जल संस्थान की ओर से केन्द्रीय भंडार शाखा, देहरादून से 1.18 करोड़ की सामग्री खरीदी गई। इस पर सीएजी की जांच में पता चला कि जल संस्थान ने 1.18 करोड़ के स्थान पर सरकार के सामने बढ़ा-चढ़ाकर 1.29 करोड़ की खरीद का दावा किया गया। इसके साथ ही प्रतिशत प्रभार के रूप में 9 प्रतिशत के बजाय 22.71 प्रतिशत प्रभार का भुगतान किया गया, जिससे 13 लाख का अधिक भुगतान किया गया। इस तरह जल संस्थान द्वारा झूठ बोल कर लाखों का गोलमाल किया गया।
बजट के उपयोग में जमकर हुई धांधलीः सीएजी की जांच में पता चला कि सात विभागों ने बिना काम किए करीब 31 करोड़ का अधिक व्यय दिखाकर नई किश्त प्राप्त करने की कोशिश की। मेला अधिकारी द्वारा बिना सत्यापन के शासन को प्रतिवेदित व्यय के आकड़े, कमजोर आंतरिक नियंत्रण और अप्रभावी अनुश्रवण तंत्र को दर्शाता है। इस तरह मेलाधिकारी ने भारत सरकार को भी बढ़ा चढ़ाकर गलत तरीके से उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजे।
सफाई कर्मचारियों के नाम पर करोड़ों का गोलमाल : कुंभ मेले में सफाई कर्मचारियों को काम पर रखने के नाम पर मेलाधिकारी स्वास्थ्य ने जमकर धांधली की। सफाई कर्मचारियों के नियोजन के लिए सरकार ने मेलाधिकारी स्वास्थ्य को 15.29 करोड़ की योजना को मंजूरी दी। मेलाधिकारी स्वास्थ्य अनिल त्यागी ने सफाई कर्मचारियों के नियोजन पर बिना मंजूरी के ही 92.69 लाख रुपये की अधिक खर्च कराना बताया। सीएजी की जांच जांच में पता चला कि सफाई कर्मचारियों की भर्ती के नाम पर करोड़ों का खेल खेला गया। जांच में खुलासा हुआ कि सरकार के स्पश्ट निर्देश थे कि प्रत्येक कर्मचारी को मजदूरी का भुगतान बैंक अकाउंट के जरिये ही किया जाना चाहिए, लेकिन त्यागी ने इसमें जमकर मनमानी की। 9000 हजार कर्मचारियों में से मात्र 352 कर्मचारियों को ही बैंक अकाउंट के जरिये भुगतान किया गया। बाकि को मस्टररोल के जरिये भुगतान करने की बात बताई गई। सीएजी की जांच में मौका मुआयना से पता चला कि त्यागी ने जिन-जिन स्थानों पर सफाई कर्मचारियों की तैनाती बताई गई, वहां पर कर्मचारी मिले ही नहीं। त्यागी की मनमानी यहीं खत्म नहीं हुई। उन्होंने मनमानी से कर्मचारियों की मजदूरी 125 रुपये बढ़ाकर 180 रुपये कर दी। इस तरह त्यागी ने मेला प्रशासन के साथ मिलीभगत कर सफाई कर्मचारियों के नाम पर करोड़ों रुपयों का गोलमाल किया। सीएजी के अनुसार मनमानी के जरिये करीब 5 करोड़ का सरकार को चूना लगाया गया।
नौकरशाहों के नाम पर भी घोटाला : मेलाधिकारी स्वास्थ्य अनिल त्यागी ने सफाई कर्मचारियों के नाम पर ही करोड़ों का गोलमाल नहीं किया, बल्कि उन्होंने नौकरशाहों की आड़ लेकर भी लाखों के वारे-न्यारे किए। मेले में अधिकारियों के लिए अस्थायी सर्किट हाउस तैयार किया गया था। इसके बावजूद त्यागी ने 40 लाख की लागत से अधिकारियों के लिए टेंट और स्विस कॉटेज किराए पर लिए, जिनका कोई उपयोग किया ही नहीं गया।
शौचालय निर्माण घोटाला : घोटालेबाज सुलभ इंटरनेशनल : सरकार ने मेलाधिकारी स्वास्थ्य के प्रस्ताव पर 7 करोड़ 32 लाख की लागत से 10010 अस्थाई शौचालयों के निर्माण की मंजूरी दी। इसके अलावा सुलभ इंटरनेशनल को 3896 अस्थाई शौचालयों के निर्माण के लिए 2.68 करोड़ रुपये का ठेका दिया गया। लेकिन सुलभ ने मेला प्रशासन से मिलीभगत कर 97 स्थानों पर 6.32 करोड़ की लागत से बिना किसी आवश्यकता और मंजूरी के 4080 शौचालयों का निर्माण करने का दावा किया। सुलभ इंटरनेशनल ने न केवल बढ़ा चढ़ाकर शौचालयों के निर्माण का दावा किया, बल्कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा बनाये गए शौचालयों की लागत से 9746 रुपये प्रति शौचालय की लागत अधिक बताई। स्वास्थ्य विभाग ने जिस शौचालय को 5744 रुपये में बनाया सुलभ इंटरनेशनल नाम के एनजीओ ने उसे 15490 रुपये में बनाकर सरकार को जमकर चूना लगाया। पहले बिना मंजूरी के शौचालयों का अधिक निर्माण और फिर दोगुनी से अधिक लागत पर शौचालयों का निर्माण करने के साथ ही सीएजी की जांच में खुलासा हुआ कि सुलभ ने जमीन में बहुत कम संख्या में शौचालय निर्मित किए। सीएजी ने ऋशिकेश और डामकोटी में स्थलीय निरीक्षण कर पाया कि 21 शौचालयों के दावे के विपरीत मौके पर मात्र 10 शौचालय ही पाये गए।
शौचालय निर्माण में स्वास्थ विभाग ने भी खूब काटी चांदी : सरकार ने मेलाधिकारी स्वास्थ्य को 10010 अस्थाई शौचालयों के निर्माण की अनुमति दी थी, लेकिन अनिल त्यागी ने मनमानी से 556 अधिक शौचालयों का निर्माण कराया। इस तरह 32 लाख रुपये का चूना लगा दिया गया। यह तब किया गया जब सरकार ने पहले ही जरूरत से अधिक दस प्रतिशत शौचालयों के निर्माण को मंजूरी दी थी। मेला खत्म होने के बाद इन अस्थाई शौचालयों में प्रयोग किए गए टिन शेड, सीट और पाइप की नीलामी भी नहीं की गई। उल्टा इसको हटाए जाने पर दस लाख रुपये खर्च किए गए।
कमीशनखोरी के लिए ठेकेदार पर लुटाए 4.77 करोड़ : मेले में टिन, टेन्टेज और फर्नीचर किराए पर लेने के लिए मेला प्रशासन ने हरिद्वार की फर्म लल्लू जी एंड सन्स पर खूब दरियादिली दिखाई। मेला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने कर छूट के नाम पर इस फर्म को 1.34 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया गया। लल्लूजी के नाम पर मेला प्रशासन और मेला अधिकारी स्वास्थ्य की दरियादिली यहीं खत्म नहीं हुई। सीएजी की जांच में पाया गया कि फर्म को मेला प्रशासन और मेलाधिकारी स्वास्थ्य ने अनुबंध से हटकर 3.43 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान किया। चार माह की मेला अवधि के बजाय फर्म को घोटालेबाज नौकरशाहों ने मनमानी से कमीशनखोरी के लिए छह माह का भुगतान कर करोड़ों का खेल खेला। मेलाधिकारी स्वास्थ्य ने इसके अलावा स्वास्थ्य से संबंधित सामग्री के क्रय में भी जमकर गोलमाल किया। उन्होंने बिना किसी मंजूरी के करीब 40 लाख रुपये लागत की सामग्री की खरीद की।
इस तरह जिस कुंभ मेले के सफल आयोजन के लिए निशंक अपने चेले-चपाटों के जरिये नोबेल प्राइज पाने की इच्छा पाले हुए बयानबाजी करा रहे थे, उसकी पोल सीएजी की रिपोर्ट से खुल गई है। करोड़ों के इन घपले-घोटालों के अलावा सड़क निर्माण से लेकर गंगा नदी में प्रदूशण नियंत्रण जैसे कामों के नाम पर भी करोड़ों रुपयों की बंदरबांट की गई। सीएजी का कहना है कि कुंभ मेले में उसकी नमूना जांच से साफ होता है कि व्यापक स्तर पर घोटाले किए गए।
अगर ईमानदारी से सीएजी की रिपोर्ट के आधार पर ही कार्रवाई हो तो आनंद बर्द्धन, अनिल त्यागी जैसे कई बड़े अफसरों को जेल की सींखचों के पीछे होना चाहिए। लेकिन जिस राज्य का मुखिया कुंभ की इस घोटालागाथा के लिए नोबेल पाने की हसरत पाल रखा हो, वहां इसकी उम्मीद रखना कि जनता का करोड़ों का पैसा कमीशनखोरी के लिए अनाप-शनाप तरीके से खर्च करने वाले भ्रष्ट नौकरशाहों, ठेकेदारों और एनजीओ संचालाको के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी, सोचना थोड़ा अटपटा लगता है। लेकिन कैग की रिपोर्ट के आधार पर टूजी घोटाले में राजा एंड कंपनी की तर्ज पर देर सबेर निशंक एंड कंपनी भी सलाखों के पीछे पहुंच सकती है।
देहरादून से दीपक आजाद की रिपोर्ट
apoorva joshi
April 28, 2011 at 8:20 am
excellent report Deepakji
mini sharma
April 28, 2011 at 11:53 am
Aise too Nishank ji ne kae Ghotale kiye hain. Aur sab dab gaye hain. yeh Ghotala bhee dab jayega.
Is desh ko chalane wala too Bhagwan hai. Neta too sochte rahte hain ke kaha se Janta kaa paisa khaya jaye…aur is khel me hamare bade bade Emandar IAS officer bhee shamil hain.
Rakesh Rawat
April 28, 2011 at 12:38 pm
मुख्यमंत्री निशंक ने क्या खुद हरिद्वार जाकर भुगतान किया जिन्होने भुगतान किया क्या वे दूध पीते बच्चे हैं। असलियत तो यह है कि प्रदेश के कुछ नेता जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजरें गढ़ाये बैठे हैं वे ही यह सब प्रलाप कर निशंक को बदनाम करने की कोशिश में जुटे हैं, और इनका साथ दे रहा है एक दलाल जिसके अवैध कार्यों पर निशंक ने रोक लगायी हैं। देहरादून,ऋषिकेश, हरिद्वार सहारनपुर, मसूरी तथा अब नौयडा तक में यह व्यक्ति जमीनों के काले कारनामों में लिप्त है। अपने को पत्रकार कहलाने वाले इस शख्स के पास तीन-तीन हथियारों के लाइसंेस हैं वे भी फर्जी पते
के आधार पर। आखिर पत्रकार को इतने असले रखने की क्या जरूरत आ पड़ी यह सोच कर उत्तराखण्ड के पत्रकार हतप्रभ हैं। जहां तक इस खबर की बात है यह खबर भी प्रायोजित लगती है। भगवान के यहां देर है अंधेर नहीं एक दिन फैसला हो ही जाएगा कि कौन साफ है और कौन दागदार।
chandan
April 28, 2011 at 12:51 pm
utttrakhand ke c.m. ka karname kholne ka sadhuwad. mail today, sunday post, tehelka ki sarkar ke karname chap rahe hain.baki media to chaplus ban baithi tamasha dekh rahi hai bhai.
prem kandpal
April 28, 2011 at 2:19 pm
lag raha hai theek nahi chal raha hai nishank ji ke saath…
sanjay sharma.
April 28, 2011 at 2:30 pm
Badia khabar…apna ph. no. de deejie deepak bhai.
smily todariya
April 28, 2011 at 2:50 pm
bhajpa ke netaon ki aur nishak ke ghotalon ki baat naa hi karey tto achha hai..uttarakhand ka poora media kharidne ke baad nishank ne bhajpa adyaksh gadkari , sushma swaraj aur advani ji ki beti ke madhyam se advani ji ko apni jeb me dala hua hai…aur mota party fund aur kendriyan netratva ki sewa ye sab karne ke liye paisa kahan se aayega..ek mote anuman ke mutabik 400 crore party fund me gaya hai..ye paisa koi imaandari se tto aayega nahi…ab gadkari ji ko sab pata hai aur wo bhi bahti ganga me haath me dho rahe hain..
Sabka Baap
April 28, 2011 at 8:59 pm
अबे फ्राड राकेश रावत… कुछ पता भी है या इस भांड निशंक की दलाली ही आती है…. CAG की रिपोर्ट झूठी है उस CAG की जिसकी रिपोर्ट पर 2G तक के मामले में रजा जेल गया. और रही बात उस जमीन का धंधा करने वाले दलाल पत्रकार की, उसने तुम जैसे दलालों और निशंक जैसे भांड की ठोक भी रखी है और चाहकर भी पूरी सरकार और तेरे जैसे दलाल उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए… आया बड़ा सी एम् का दलाल… एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी.. २३३ करोड़ रुपये खा गए धर्म के नाम पर और बकवास करते हो… इस भरष्ट मुख्यमंत्री इसके दलाल जवाब दें क्या कैग की रिपोर्ट प्रायोजित है?? अगर कुछ पता न हो तो फर्जी कमेन्ट मत लिख फर्जी राकेश रावत.. और सुन तुझसे या तेरे फ्राड निशंक से उस दलाल पत्रकार का कुछ बिगड़ता हो तो बिगड़ लेना,… दो दिन बाद देखना कैसी ठोकेगा तुम्हारी और तुम्हारे सी एम् की… सोमवार को देखना अगर पसीने न निकल दिए तुम्हारे तो बताना… यशवंत जी दिन सोमवार और मंगलवार के गवाह रहेंगे आप
sumit kumar
April 29, 2011 at 6:28 am
Jaisa ki Azadji ne swayam likha hai ki kumbh ke liye nirman karya financial year 2007-08 se hone arambh ho gaye the, us samay Sh. Khanduri pradesh ke mukhyamantri the jo june 2009 tak is pad par rahe. Kumbh ke snan January 2010 se arambh hone the va Nishank ke mukhyamantri banne tak nirman karyon ki pragati santoshjanak nahi thi. Itne kam samay me desh aur pradesh ki ijjat banaye rakhne ke liye jitni sheeghrata se kam kiya ja sakta tha vo kiya gaya. Ho sakta hai is jaldbaji me kuchh aniyamittayen bhi hui hongi lekin ye aniyamittayen aisi to nahi jinke liye Nishank ko jail jana pade. Azadji aur apne ap ko sabka bap kahne vale mahanubhaon se mera anurodh hai ki is forum par sanyamit bhash ka prayog karen taki parishkrit ruchi vale log bhi ise parh saken.
Uttarakhandi
April 29, 2011 at 6:58 am
Azadji are u getting some commission or something else from so called journalist Umesh kumar and co.or from somebody else for writing against Nishank? According to CAG the work for kumbh mela started in the year 2007-08. Mr. Khanduri was CM at that time. Then why you have not written a single word against him ? Because of slow pace of work during his tenure the responsibility fall on the shoulders of Nishank and he managed it very well. It’s very easy to write and speak against any body ” par jab sir par padti hai tab pata chalta hai”.
sudhir mamgain
April 29, 2011 at 7:54 am
hafte bhar bad beti ki shadi ho aur ghar bahar koi intjam na hua ho, ghar parivar ki ijjat danv par ho , aisi stithi me kya karenge Deepakji ap aur ye badi badi baten karne vale, sabko chor thahrane vale log, batayenge kya? Itne kam samay me ( Jab purvavarti sarkar ne kachhuye ki gati se kam kiya ho) mahakumbh ki tayyariyan kar use saphalta purvak nibta dena mahatvapurna uplabdhi hai. Apni negative aur kunthit soch se bahar nikalne ka prayas karen ap log.
bhartiya nagrik
April 29, 2011 at 10:36 am
Sabke baapji apse vinamra nivedan hai ki apne priya mitra umesh kumar, jinki tariph karte apki kalam nahi thakti, ko “journalistassets.com” par apni va apni patni ke assets aur un assets ko banane ke source ke bare me batane ko avashya kahiye, taki bichare garib patrakar ye jan saken ki patrakarita ke pawan peshe se kaise aur kitni sampatti banayi ja sakti hai.
uttarakhandi
April 29, 2011 at 11:08 am
Deepakji are you getting any commission or any other favour from Umesh kumar & co. and others who are opponents of Nishank. As you have stated that the work for Mahanumbh was started in the year 2007-08. If i am not wrong Mr. Khanduri was C.M. of the state till June 2009. You have not even uttered a single word against him. Has he not worked at all ? And if he had not done anything till June 2009 than it was a great challenge for Nishank to complete the work in time as the Mahakumbh was startiing in Januaury 2010. There may be some irregularities due to time constraint but all of us know that inspite of huge recordbreaking crowd in the kumbh it was completed peacefully. It is very easy to write and speak something about the mistakes done by others but “pata to tabhi chalta hai jab sir par pade”.
Sabka Baap
April 29, 2011 at 1:15 pm
Aam Naagrik Sahab Arun poorie Se Puchne Ki Himmat Hai Aapki Ki Unke Paas Itni Sampatti Kanha Se Aayi, Nishank Se Puchiye Ki Ek Sachool Ke Pracharya Ke 2-2 Ayurvedic College Kanha Se ban Gaye…. Maurtius Aur Goa Ka Hotel kanha Se bana…. 5 Crod Ka Cantt Road Par Ghar Kanha Se Ban Raha Hai
uttarakhandi
April 30, 2011 at 5:54 am
Yashwantji ap bhi bik gaye kya Deepak Azad, Umesh kumar ki tarah. Why are you not posting my comments on your site regarding non completion of work till June 2009 by the then C. M. Mr. B.C. Khanduri ?
bhartiya nagrik
April 30, 2011 at 6:13 am
Sabke baapji(mere nahi) humne aisa kab kaha ki Arun Puri ityadi ko apne assets nahi batane chahiye. Jikra apke priya mitra ka tha so humne unhi ka nam le liya. Rahi bat Nishank ki to unhone apne assets show kiye hue hain aur apki yaddasht ke liye bata doon ki isi bhadas me inhi Azadji ne us par 1 lamba sa alekh likh mara tha.Nishank lagbhag pichhle 20 varsha se rajneeti me hain, kuchh to kamaya hoga lekin apke ye mitra itne kam samay me itne amir kaise ho gaye iska raj baki logon ko bhi bata den, kuchh garib patrkaron ka bhala ho jayega.
avinash
April 30, 2011 at 8:04 am
Jab kumbh ke nirman karya 2007-08 se arambh ho gaye the to akele Nishank kaise is ghotale ke liye jimmedar hain ?
deepak aazad
April 30, 2011 at 8:19 am
sanjay bhai ye raha mobile N 9410593337
i am fine
April 30, 2011 at 10:38 am
दीपक जी….. इस लम्बे चौड़े आलेख पर अपने अपनी कलम घिसी … माफ़ कीजिये… कीबोर्ड के बटन घिसे… उँगलियाँ घिसी… उल जलूल लिख कर अपना दिमाग घिसा… अपने आप को एक बार फिर विक्षिप्त घोषित किया… आखिर आप किसी अछे डोक्टर को क्यूँ नहीं दिखाते खुद को… डॉ. निशंक विवेकाधीन कोष से मुफ्त में इलाज़ भी करवा देंगे… चलिए छोडिये यह आपका व्यक्तिगत मामला है…
पहले यह बताइए कि सिटुर्जिया मामले पर आपका क्या कहना है?? याद कीजिये अपने कुछ हफ्ते पहले सिटुर्जिया मामले पर भी अपने दिमाग कि गोबर साफ़ कि थी…. लेकिन आप जानते होंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निशंक सरकार को क्लीन चिट दे दी और… आपके दिमाग से निकली गोबर फिर वहीं भर दी है…पहले आपने कहा कि निशंक ने घोटाला किया… जब नैनीताल हाईकोर्ट ने क्लीन चिट दी तो तुमने कहा कि कोर्ट में सांठ गाँठ कर दी… अब कहिये.. क्या सुप्रीम कोर्ट भी बिका हुआ है ?? कल को तुम बोलोगे कानून ही गलत है… फिर कहोगे … संविधान ही गलत है… अरे हाँ याद आया आजाद जी… आप को तो माओवादी भी कहा जाता है न…? अभी मैं इसी आलेख कि प्रतिक्रियाओं में पढ़ रहा था कि 3-3 हथियार हैं आपके पास.. हाँ भाई… जब ट्रेनिंग ली है हथियार तो रखना है ही… फिर ठोकने-ठाकने कि भी कुछ बातें लिखी हैं नीचे… तब तो आप पक्का संविधान को भी किनारे रख ही दोगे… इसमें आपका दोष नहीं है…
आप सोच रहे होंगे कि मैं निशंक का कोई नजदीकी हो सकता हूँ… बिलकुल गलत… मैं किसी ज़माने में आपका नजदीकी हुआ करता था… अब दिमाग पर जोर डालकर मुझे याद ना करना.. फालतू में अपने दिमाग के गटर में घसीटो मत मुझे ……मुझे आपके इस लेख से कोई आपत्ति नहीं है… मलाल है इस बात का कि … तुमको हो क्या गया… पत्रकार हो.. पत्रकार बने रहो… क्यों भडवागिरी पर उतर आए हो… कभी ब्लैकमेलिंग.. कभी दलाली .. दल्ले बनने पर क्यों उतारो हो…?
अभी देख रहा था कि आपके इस लेख पर अपूर्व जोशी जी ने भी … कीबोर्ड के जरिये ताली दी है… अच्छा है… अपूर्व जी को याद होगा .. पिछले अंक में उन्होंने उत्तराखंड सरकार से जारी विज्ञापनों कि लिस्ट छापी थी… उस आलेख में दो खास बातें थी … एक तो ये कि उस लिस्ट में अपूर्व जी के अख़बार का नाम नहीं था… होता तो अख़बार के उस पृष्ठ पर ये लेख छपता ही क्यूँ ? दर्द यही था कि हमें पैसा नहीं दिया … जब अख़बार चलाने का पैसा नहीं है तो बंद कर दीजिये ना काहे खींच रहे हैं भैया..? दूसरी खास बात यह कि वो लिस्ट २७ जून के बाद कि है जब डॉ. निशंक ने गद्दी संभाली थी… इसका मतलब अपूर्व जी आपका झुकाव २७ जून से पहले कि तरफ तो नहीं है…? यदि है तो आप भी निष्पक्ष नहीं… आप भी दलाली के स्वीमिंग पूल में डुबकी लगा चुके हैं…लगता है..
खैर छोडिये दीपक जी कहाँ की बात कहाँ आ गयी… चलिए आपका समय लिया इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ…. शायद आप इस वक़्त इसी तरह के एक और ब्लैकमेलिंग लेख की रचना में व्यस्त रहे होंगे… और आखिरी में…. आपके एक समर्थक हैं जो खुद को ‘सबका बाप’ बताते हैं … जरा इनसे पूछिए की अपने बाप का अता-पता है इनको या नहीं..???.
pramod
April 30, 2011 at 11:36 am
इस आर्टिकल के लेखक दीपक आजाद जी ज़रा ध्यान दीजिये, लगता है आपने जिंदगी में हमेशा नकारात्मक सोचने की कसम खा ली है, आपको शायद याद नहीं कि डॉ. निशंक ने ही महाकुम्भ में उत्तराखंड और देश कि लाज बचायी थी, विदेशी सैलानियों तक ने सदी के पहले महाकुम्भ कि तयारियों पर सुखद आश्चर्य व्यक्त किया और वैसे भी डॉ निशंक के मुख्यमंत्री बनने से दो साल पहले से ही इसकी तयारियां चल रही थी , निशंक जब मुख्यमंत्री बने तब महाकुम्भ के लिए ६ महीने से भी कम समय रह गया था, ऐसे में निशंक सरकार ने बड़े ही सलीके से इस आयोजन को संपन्न करवाया.
दूसरी बात यह कि सितुर्जिया केस में भी आप ने खुल कर भड़ास निकली लेकिन जब अब उच्च न्यायालय ने निशंक सरकार को बेदाग साबित कर दिया तो आपकी बोलती बंद हो गयी. अब क्यों नहीं आप सितुर्जिया पर कुछ कहते?
अब आपने कुम्भ का राग अलापना शुरू कर दिया, कुछ दिन में इसका भी सच्च सामने आ जायेगा, रहा आपका सवाल कि निशंक जी के होटल और घर के बारे में, तो पहले आप भी तो बताइए कि आपके पास ये सम्पति कहा से आई? निशंक एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं, अब वे अपना घर बना रहे हैं तो आप को क्या आपत्ति है? यशवंत जी से भी मेरा आग्रह है कि कृपया ऐसे लोगों कि सांगत में ना रहें जो हर वक़्त नकारात्मक सोचते हैं या फिर कथित तौर पर माओवाद से जुड़े हैं, आजाद जी को याद होगा कि दैनिक जागरण से उनको कैसे भगाया गया था. ऐसे लोगिन कि खबर छाप कर यशवंत जी को पब्लिशिटी मिल जाएगी लेकिन विश्वश्नियता ज़रूर घटेगी.
bal krishan chamoli
April 30, 2011 at 12:45 pm
nishank yuva hone ke sath hi 1 urjawan mukhyamantri hain.1 din mein 18 ghante lagatar kaam karne ke baad bhi unke chehre par aaj tak sikan dekhne ko nahi mili.kumbh ka safal sanchalan nishank ke alawa koi dusra c.m. kar bhi nahi sakta hai.jis tarh raat ke 2 baje surksha ka ouchak nirikshan karna aur nirman karyo mein teji lana tatha achha mela prabandhan karna sabke bas ki baat nahi.karodo log is uttrakhand mein kubh snan par aye lekin kisi ne bhi ye shikayat nahi kari ki unhe koi badi pareshani ka samna karna pada ho.pradesh ke har achhe bure kaam ka shrey ya thikra mukhiya ko hi milta hai.kuch kamiya shayad rahi ho aur naukarshahi ki or se ho sakta hai kuch laparwahi bhi hue ho to iska ye matlab nahi hota ki aap nishank ko jo chahe man mein aye wo likh or kah do.ab chekbook lekar khud c.m. to baitha nahi tha wanha.aise mein bina kisi adhar ke arop lagana sankirn mansikta ka dhotak hai.uttrakhand banane ke baad kuch logo ne ptrakarita ko bleckmaling ka jariya bana liya hai jo sari biradari ko badnam kar rahe hain aur loktantra ke chouthe stambh ko deemak ki tarh khokhla karne par tule hain unhe apne bare mein apne kartabyo ke bare mein bichar karna chahiye.nishank ne jis tarh kumbh,saif winter game aur 4dham yatra ke madhyam se uttrakhand ko pure vishwa ke patal par ek alg tasveer bana di hai.is baat ko koi nahi kahega.state ka pahla c.m. hai jo har block mukhyalya tak janta ke bich unki problem sunane ja raha hai aur nipta bhi raha hai.daiveya apda ke dino mein nishank meelo padal jakar ghatna sthal tak gaya aur uska labh public ko mila warna naukarshah janta tak kabhi nahi jate. naukarshaho mein jitna dar nishank se hai utna kisi c.m. se nahi.sasta rashan dekar gareeb janta ka dukh dard ko kuchh kam kiya hai.ab deepak ji aap bhi uttrakhandi hain,state mein khadyan sankat hai,lpg ka sankat hai.industrial package centre govt ne 2013 ki jagh 2010 kar diya.ab meri samjh yanha dokha kha jati hai ki in sab muddo ke liye apki kalam aur soch kanha supt awastha mein padi hai.aur aap jo bhi likhte ho usmein ye ghotale,dalali,comissionkhori aur lotpaat hi kyun hoti hai.isase hat state ke liye kuch or bhi soch sakte hain aap-apki lekhni se aisa lagta hai jaise kisi ne apko nishank ke khilaf kisi mission mein laga rakha hoga.agr aisa hai to ap apne swabhiman ke sath ek bhada majak kar rahe hain.jara 5 sansado se bhi kuch pooch liya karo yada-kada
negi
May 3, 2011 at 1:47 pm
Deepak ji apki jankaari ke liye bata dun ki jis MAMLE ko lekar apne itna lamba chauda lekh likha hai, wo MAMLA adalat ne khariz kar diya hai…..
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Puran chandra
May 5, 2011 at 5:24 am
this is true that Mr CM is a corrupt person. In the coming election this will be proved by the public.
ramesh
May 5, 2011 at 6:43 am
Puranji, this C M is corrupt, previous CM was also corrupt, that’s why he was thrown out from power in previous elections. This is the history of Uttarakhand till date that none of the CM is repeated. It means according to your theory all were corrupt. Now the million dollar question is which political leader is not corrupt, who can be the next CM of our state. Is it again Congress ? Actually now corruption has become the way of life. There is a need to change the system not the CM who is also part of this system. Despite all these odds he is doing very well and his repeatation will be good for the state.
satvir
May 23, 2011 at 6:36 pm
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