दैनिक जागरण ने सोनभद्र-चंदौली और मिर्जापुर जिलों में एक के बाद एक ऐसी खबरें प्रकाशित की जिससे पुलिस के लिए तो मुश्किल खड़ी हो ही गई, आम आदमी भी भय और दहशत में जीने लगा. इस अखबार ने माओवादियों की तथाकथित बैठकों के अलावा बेहद शांत क्षेत्रों में माओवादियों के प्रवेश जैसी कथित खबरों को सनसनीखेज तरीके से, प्रमुखता से प्रकाशित किया. ऐसी कहानियां इस अखबार ने कई बार छापी.
जिस वक्त झारग्राम और अन्य जगहों से माओवादियों द्वारा ट्रेनों को अगवा किये जाने और ट्रेनों को डिरेल्ड करने की कोशिशों की खबर आ रही थी, ठीक उसी वक्त दैनिक जागरण ने पूर्व-मध्य रेलवे के सिंगरौली-चुनार खंड के जंगलों से होकर निकलने वाले हिस्सों की बार-बार तस्वीर छापी. इनका नतीजा ये हुआ कि आला अधिकारियों के दबाव में पुलिस उन जंगलों से होकर गुजरने वाले आम आदिवासियों को भी शक की निगाह से देखने लगी. रोज-रोज की पूछ-ताछ, बेवजह की गिरफ्तारी. लेकिन उसके बाद जो हुआ वो बेहद चौकाने वाला था.
ठीक उसी जगह पर जहां की तस्वीर जागरण बार-बार छाप रहा था, 7 अक्तूबर की रात में पटरियों की फिश प्लेट खोल दी गयी. आधा दर्जन यात्री ट्रेनों को निरस्त कर दिया गया. दैनिक जागरण ने अपने सभी संस्करणों में खबर छापी कि माओवादियों ने इस घटना को अंजाम दिया है, साथ ही ख़बरों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए पुरानी छपी ख़बरों के स्क्रीन शाट भी छापे गए, वहीं अन्य अखबारों चैनलों ने तथ्यपरक ढंग से इस पूरी घटना के पीछे आपराधिक तत्वों के होने की बात का खुलासा किया.
जागरण अखबार ने इस बेहद गंभीर मामले को लेकर किस तरह की सतही पत्रकारिता की, इसका पता उन खबरों की प्रति में आप देख सकते हैं. एक तरफ अखबार ने लीड स्टोरी छापी… ”नक्सलियों ने फिश प्लेट खोलने से पहले गैंगमेन का अपहरण कर लिया था”, वहीं दूसरी तरफ उसी पेज पर छपी एक खबर में कहा गया, “नक्सली हों या बदमाश, घटना तो हुई.” खबर छपने के बाद उत्तर प्रदेश के एडीजीपी के अलावा तमाम आला अधिकारियों को आनन-फानन में सोनभद्र आना पड़ा. अगले दिन जागरण की बाटम स्टोरी में इस वारदात में शामिल नक्सली, कथित नक्सली हो गए थे!
आखिर झूठ कब तक छुपता. इस पूरी घटना का सच अगले 48 घंटों में ही सबके सामने था. मीडियाकर्मियों और पुलिस द्वारा की गई अलग-अलग जांचों में जानकारी मिली कि जिस घटना के पीछे दैनिक जागरण माओवादियों का हाथ बता रहा था, दरअसल वो सब कुछ, शरारती तत्वों द्वारा किया गया था. साथ ही गैंगमेन को बंधक बनाए जाने की बात पूरी तरह से बेबुनियाद है. पुलिस अधीक्षक सोनभद्र डॉ प्रीतिंदर सिंह, जिन्होंने हाल ही में आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की एक श्रृंखला शुरू की है, बताते हैं कि हमने उस पूरे इलाके में रहने वाले आदिवासी किसानों से बात की, किसी ने भी नक्सलियों के आमदरफ्त की कोई सूचना नहीं दी. उन्होंने कहा कि हम जल्द ही इस मामले में शामिल बदमाशों को गिरफ्तार कर लेंगे.
जागरण सिर्फ एक बानगी है. कश्मीर से लेकर दंतेवाडा तक मीडिया के बड़े नामों ने अशांति की नयी परिभाषाएं गढ़नी शुरू कर दी है. इंटेलीजेंस की नाकामी को झेल रहे सरकार और सुरक्षाबल मीडिया की ख़बरों पर विश्वास करके काम करते हैं. ये ख़बरें सत्ता की ज्यादती के लिए कभी-कभी शेल्टर का काम करती हैं तो कभी उनके लिए मुश्किलें खड़ा कर देती हैं. जागरण जैसे अखबार जो कुछ कर रहे हैं, वह जनता के साथ, अपने पाठकों के साथ विश्वासघात तो है ही, इसे सीधे-साधे शब्दों में कहा जाए तो पाठकों के साथ धोखाधड़ी और ब्लेकमेलिंग भी कह सकते हैं.
लेखक आवेश तिवारी प्रतिभाशाली जर्नलिस्ट हैं. सोनभद्र में डेली न्यूज एक्टिविस्ट के ब्यूरो चीफ हैं. वेब व ब्लागों पर अति सक्रिय रहने वाले आवेश की लेखनी जनपक्षधरता की हिमायती है.