प्रभात खबर, पटना को तीन लोगों ने अलविदा कह दिया है. जबकि तीन और लोगों के शीघ्र ही अखबार छोड़ने की बात कही जा रही है. इस्तीफा देने वालों में प्राणेश कुमार, अनिल कुमार एवं गुंजन गांगुली शामिल हैं. इन तीनों ने अपनी नई पारी दैनिक जागरण, धनबाद के साथ शुरू कर दी है.
प्राणेश ने अपने करियर की शुरुआत आज, मुजफ्फरपुर के साथ की थी. उसके बाद प्रभात खबर, रांची के साथ जुड़ गए. बाद में पटना यूनिट में उनका ट्रांसफर कर दिया गया था. अनिल कुमार मूल रूप से बांका के रहने वाले हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत हिन्दुस्तान, पटना के साथ की थी. इसके बाद वे आज से जुड़े. गुंजन गांगुली ने अपने करियर की शुरुआत प्रभात खबर पटना के साथ ही की थी.
बताया जा रहा है कि कार्यालय में अंदरूनी राजनीति ने काम करने वालों को परेशान कर रखा है. जिसके चलते एक के बाद एक लोग प्रभात खबर का दामन छोड़ते जा रहे हैं. इन लोगों का आरोप है कि संपादक का रवैया पत्रकारों के प्रति ठीक नहीं रहता है. जिससे लोग एक के बाद एक संस्थान को छोड़ते जा रहे हैं.
Comments on “जागरण, धनबाद से जुड़े प्राणेश, अनिल और गुंजन”
sir m b dhanbad govindpur se hu. dehradun se mass com kiya h or aaj pahli bar bhadas kholkr dekha best of luck sir.
मैं अखबार का पाठक हु, पिछले कई महीनो से पढ़ रहा हूँ कि प्रभात खबर पटना से लोग छोड़ रहे है. इससे लगता है कि कही न कही संपादक प्रबंधन में कमी है. अखबार का एक मित्र ने बताया कि दो दर्जन से अधिक लोग एक साल में छोड़ा है सभी तो ख़राब नहीं थे. जो भी हो इससे गुड बिल पर असर परता है. आप इमानदारी से विश्लेषण करे, पिछले तीन char mah से अखबार kee gunvatta पर असर pada है. bhasha में kafi galti dikh rahi है. लगता है kuchh कमी है. es पर dhyan dene कि jarurat है. आप sab कमी ko behtar samajh sakte है,
मैने स्वयं प्रकाश जी के मार्गदर्शन में काम किया है. पता नही किस योग्यता के कारण उन्हे संपादक का पद दिया गया है. हो सकता है कोई विशेष योग्यता हो. इतनी तो है कि वे अच्छे और काम लायक कार्मियो को पसंद नही करते. उनके कार्यकाल में २२ से अधिक लोगो ने अखबार छोडा है. जहां तक मुझे मालूम है उनमें अधिकतर दूसरे अखाबरो में बेहतर प्रदर्शन कर रहे है. वे सभी पटना में नये थे. जाच परख और टेस्ट के बाद बहाली हुई थी. अपनी कमी को तालाशे और सही और गलत की पहचान करे. चमचागिरी को बढावा देने और दादागिरी से अखबार का भला नही होगा. अब तो संपादक का घमंड त्यागे. एक अच्छे और विजोन वाले अखबार को बरबाद नही करे.
शक्ती कुमार
Bilkul galat.5000% galat. Prabhat Khabar ke Editor Swaym Prakash ka wahan ke patrakaron ke prati rawaya hamesha se sahi raha hai. Agar kaam nahi karne wale log khud hi nakara hain to phir koi baat hi nahi. Kaam nahi karne wale log sirf rupaye aur paise ginane ke pher mein rahte hain. Agar unhe malai mil gayi to thik warna sampadak galat ho jate hain. Swayam Prakah Ji ko kaam karne wale logon ki pehchan hai.Unhone waise logon ko bhi naukri diya jo kaam jante the magar hashiye par chale gaye the.He is a good soul.
यसवंत प्राणेश अनिल और गांगुली बहुत काम के आदमी है जागरण में उनको काम नहीं करना होगा जागरण उनको बिठा कर बेतन देगा, अगर संपादक जी में कोइ खराबी रहती तो ये लोग इतना दिन प्रभात खबर में रहते ही भाग नहीं जाते काम नहीं करोगे तो जागरण भी कण पकड़ कर भगा देगा और गाली और मारेगा वो मुफ्त में, शक्ती कुमार,sourabh सिंह पहले आपने जमीर को देखो उसके बाद समझ में आएगा पटना के संपादक जी के जैसा १ भी आदमी अगर लाकर दिखा दो तो सालो तो माने सौरभ तो पेपर पढो प्रबंधन नहीं देखो नहीं तो तेल बेचते रह जाओगे मै संपादक जी को दस साल से जनता हूँ काम करने वालो को हवाई जहाज से कोल्कता भेजते है नहीं काम करने वालो को दो बात भीं नहीं कहेंगे आपना सब कुछ छोड़ कर सुबह दस का रात दो तक काम करते है तब तो पेपर पटना में बेहतर हुआ है स्वयं प्रकाश संपादक बेहतर और साफ सुथरा संपादक है वो अखबार की दुनिया का भगवान है
प्राणेश गांगुली और अनिल तुम लोग महान हो और यसवंत आप तो पुरे देश में महान है साथ में स्वयं प्रकाश जी के साथ में खाना खाते हो और ……………………………..
mahan…..maan gaye dost, had hai chamchagiri giri ki.
Bhadas ek social network ki traha portal hai, Isme jo bhi khabar published hota hai owh kisi reporter ki hi dil ki awaz hoti hai. isliye isme published khabar ke liye Yaswantji ko Gali dena uchit nahi hai, Jo aisa karte hai, usse unki yogyata ka praman mil jata hai.
Sawam Prakash ji Sampadak ho sakte hai, par management unka achchha nahi hai. Agar hota to unke samarthak Gali bakne wakle nahi hote. Sajjanata isi me nihit hota hai. Waise hamne suna hai Swamprakash Ju Galio ka prayog bhut achchhe dhang se karte hai. Waisa, jaisa koi sarabi a mawali bhi nahi karte. Eh galat bhi ho sakta hai lekin jis taraha unke samarthak Bhadas me likh rahe hai, usse puri duniya ke log unke bare me achchhi taraha se jan rahe hai. Durbhagya hai Prabhat Khabar ka ki aise log ko abhi tak dhone ko bajboor hai. By d way,Harivanshji Kya soye hue hai…….
Gumsum
उन सभी को जिन्होंने प्रभातखबर छोड अन्य अखबारों का दामन पकडा, उन्हें साधुवाद। जब भी कभी प्रभात खबर पटना से छोड कर जाता है, भडास में खबर छपती है, उक्त पत्रकार ने संपादक के रवैये से तंग आकर अखबार को अलविदा कह दिया। संपादक के विषय में न जाने क्या क्या छपते रहे हैं। मैं भी उस अखबार में करीब सात साल काम कर चुका हूं। कुछ कमियां जरुर है, लेकिन बहुत कम नहीं। कमियां कहां है,यह गौर करने की बात है। प्रभात खबर में पहली कमी पैसे की है। पत्रकारों को उतना पैसा नहीं मिलता। दूसरी कमी लोग कहते है संपादक के रवैये में। लेकिन सवाल है कि बांकी अखबारों में क्या आपके साथ सही व्यवहार होता है। किसी न किसी रूप में आपका शोषण जरुर होता है। कहीं पैरे छूने पडते हैं, तो कही जी हजूरी। प्रभात खबर में यह बडे पैमाने पर नहीं है। स्वयंप्रकाश जी एक अ’छे पत्रकार है। हां, छोटी-मोटी गलतियों पर वे झल्ला जाते हैं। दरअसल, आज के पत्रकारों में वे जुनून नहीं होता, जो उनमें है। वे प्रत्येक में देखना चाहते है, लेकिन ऐसा हो नही सकता। मुझे याद है, जब मैं पटना आया था, मुझे एक-एक शब्द एक एक वर्तनी की उन्होंने काफी बारीकी से उन्होंने समझाया। कुछ लोग मुझे उनके करीबी मानने लगे। पर बाद में मुझे भी सबके श्रेणी में ला दिया। भले ही लोग उन्हें गालियां, पर उनमें पत्रकारीय क्षमता थोडी बहुत होगी, तो उसके पीछे वहीं स्वयंप्रकाश होगा।