“आज तक” के भाइयों, तुम केवल विदेश में अपराध कर के आई लड़की को छिपाने, हाईड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में कमीशन खाने, मॉरिशस से ब्लैक मनी को सफ़ेद करने और शनि के नाम पर पैसे वसूलने की बात कर रहे हो. जबकि यह सच्चाई है कि धर्म के नाम पर और धर्म की आड़ में इससे कई गुना घिनौने, कुत्सित और जघन्य खेल आज से नहीं सदियों से चलते आ रहे हैं. अपने देश में ही नहीं, विदेशों में भी, सारी दुनिया में.
धर्म- एक ऐसा ताना-बाना, एक ऐसी अवधारणा, एक ऐसा विचार, एक ऐसी अद्भुत शक्ति, जिसके जादू में फंसना तो आसान है, उससे निकल पाना लगभग असंभव. यह एक भंवर-जाल भी है, ये एक तिलस्म भी, एक जादुई संसार भी, एक चकित कर देने वाला कार्य-व्यापार भी. और यह नया भी बिल्कुल नहीं है. मनुष्य के उद्गम से धर्म किसी ना किसी रूप में उसके साथ मौजूद रहा है. साथ ही रहें हैं धर्म के कर्ता-धर्ता. धर्म जिसे हम अंग्रेजी में रिलिजन कहते हैं, मूल रूप से मनुष्य की अनिश्चितता और उसकी मरणशीलता से जुड़ा हुआ है. जो मनुष्य आया है वह जाएगा, यह तो तय है पर वह कहाँ से आया और कहाँ जाएगा ये बातें उतनी ही अज्ञात हैं, जितना घुप्प अँधेरे में आस-पास पड़ी वस्तुएं.
जाहिर है कि इंसान जैसा काबिल जीव यह जीवन पा कर उसे ऐसे ही नहीं गंवाना चाहता. वह चाहता है इसका शत-प्रतिशत उपयोग, इहलोक में भी और परलोक में भी. लेकिन इसमें तो कदम-कदम पर बाधाएं हैं, दिक्कतें हैं, परेशानियां हैं. फिर आगे मौत का गहराता साया है. ऐसे में कहाँ जाएँ, किसकी शरण लें, कौन रक्षक है? एक ही ऐसी शक्ति दिखती है जो सब कुछ कर सकती है, एक ही ऐसी ताकत- भगवान. लेकिन ये भगवान है क्या- ये वह हर चीज़ है, जो मैं और आप नहीं है. यह सर्व-शक्तिमान है, सर्वत्र उपस्थित है, सर्व-व्यापी है, अनंत है, निस्सीम है और न जाने क्या-क्या.
लेकिन भगवान अपने आप तो दिख नहीं सकता. सो उसे चाहिए एक ऐसी व्यवस्था जिसमे उसे प्रतिस्थापित किया जा सके, जहां वह अपने पूर्ण-स्वरुप में लोगों के सामने उपस्थित हो सके, और जिसे लोग अपनी क्षमता और बुद्धि के अनुसार ग्रहण कर सकें. इस प्रकार आता है धर्म. फिर धर्म को भी तो जरूरत है धार्मिक लोगों की, धार्मिक आडम्बरों की, रीति-रिवाजों की, ईश-पूजन के स्थानों की, मान्यताओं की. यानी कि कुल मिला कर एक ऐसा अभेद तंत्र जिसकी जड़ें इतनी गहरी हों जिन्हें तोड़ना तो दूर की बात है, जिसका प्रयास भी कोई ना कर सके.
इसके बावजूद भी प्रत्येक धर्म अपने अस्तित्व को ले कर प्रारभ से अत्यंत चैतन्य रहा है. यदि सबसे क्रूर, लोमहर्षक, निर्मम और कठोर न्याय किसी भी क्षेत्र में रहा है तो वह धर्म के क्षेत्र में. धर्म एक पल नहीं हिचकता ईसा-मसीह को सूली पर चढाने से, धर्म एक क्षण नहीं हिचकता मोहम्मद साहेब को मक्का से मदीना भेज देने से, धर्म एक पल नहीं सोचता जान हस को ज़िंदा जला देने से. धर्म आज भी उतना ही सक्रिय है अपने विरोधियों को सजा देने में- आज भी हमारे इर्द-गिर्द तमाम तसलीमा नसरीन हैं, जिन्हें धर्म बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्यूंकि धर्म का पहला और सबसे मजबूत हथियार ही है- खामोश स्वीकारोक्ति, पूर्ण समर्पण और अंध-विश्वास. ऐसे में क्या वह कभी किसी कार्ल मार्क्स या भगत सिंह को पसंद करेगा जो इसके मूल स्वरुप पर ही प्रश्न-चिन्ह लगाने का प्रयास करते हैं.
लब्बोलुवाब यह कि जब ऐसी अनुकूल स्थितियां होंगी तो स्वाभाविक तौर पर उनका दुरूपयोग करने वालों की भी कमी नहीं होने वाली. जहां शक्ति है, भक्ति है, समर्पण है, अंध-विश्वास है, वहां उस श्रद्धा को नोचने-खसोटने वाले, उससे व्यक्तिगत स्वार्थ-सिद्धि करने वाले और उसके बल पर राज करने वाले तो स्वतः ही पैदा हो जायेंगे. और ऐसा आदि-काल से ही होता आया है. मैं पुलिस का अधिकारी हूँ. कुछ मामूली अधिकार हमें भी मिले होते हैं जब हम अपने पद पर होते हैं. धर्म की तुलना में ये अधिकार बहुत कम हैं, क्यूंकि एक तो ये बाह्य हैं दूसरे एक क्षेत्र-विशेष से सम्बंधित. तब तो पुलिसवालों पर अपने पद के दुरूपयोग की इतनी शिकायतें मिलती हैं. फिर जिसके सामने हम स्वेच्छा से अपना सर झुका दे रहे हैं और अपना सब कुछ देने को तैयार बिधे हैं, उस स्थान पर यदि कोई गड़बड़ आदमी बैठ जाए तो समझ लें अनर्थ तो होगा ही.
मैं “आज-तक” के इस कार्य की अन्दर से सराहना करता हूँ और दूसरे चैंनेलों और समाचार-पत्रों से अनुरोध करता हूँ कि वे भी इसी प्रकार से ऐसे तमाम अधार्मिक-धार्मिक नटवरलालों का काला चेहरा सामने लायें, जिससे लोगों की कुछ तो आँख खुले. लेकिन हाँ, जैसा कुछ लोगों ने कहा, ये सिर्फ हिन्दू धर्म की बात नहीं है, ऐसा इस्लाम में भी है, इसाई धर्म में भी, बौध और जैन धर्म में भी. आखिर धर्म-धर्म तो सगे भाई हुए. इसीलिए यह क्रिया-कलाप समभाव से किया जाए और जम कर किया जाए. इस तिलस्म को तोड़ने वाले मनुजता के सच्चे सेवक होंगे.
लेखक अमिताभ ठाकुर लखनऊ में पदस्थ आईपीएस हैं. इन दिनों शोध कार्य में रत हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
Mahendra singh
September 12, 2010 at 9:18 am
dharm ke vyapak pahloon par apki vivechna padh kar acha laga. achi bat ye hai ki apne mdeia ko updesh ne dete huai uske kuch imandar prayah ki sarahna ki hai.media ko gali dena aaj kal kathit intelectual ka priya sagal ban gaya hai.kas log media ko bhi samaj ka hissa maan kar uska aaklan karte.
chandan srivastava
September 12, 2010 at 11:56 am
dharm to dharm koi koi brajbhushan sharn singh type ke neta/gunda ko dharm bana le to use kya kaha jaay thakur sahab? anyway aapka MBA kaisa chal rha hai?
xyz
September 12, 2010 at 5:51 pm
Amitaabh ji ,
Aaj tak waalon ne jo dikhaaya us se sab sahmat hain . par Aaj tak ho ya dusare channels , wo sirf ek Dharm vishesh ke baare mein dikhaate hain , apwaad swarup hi kisi dusare dharm ko chute hain . Shaayad dusare Dharm se hone waale *khauf *se wo bakhubi parichit hain , warna Taaleem ke liya videshon se aa raha paisa aur uske evaz mein mil rahi shahron aur aadivaasi ilaakon mein mil rahi *taalim* aur Dharmparivartan se aaj duniya parichit hai . Par channel waale bhi *soch samajh kar * hath daalte hain .
Channel gar aam aadmi ki baat karta hai to , aam aadmi to har samudaay ka pareshaan hai , likhaaza channel waalon ko har samudaay mein faili is tarah ki samasya (Ya gandagi ) ko saam ne laana chaaiye , *** kisi ek samudaay ko humsha aur dusare samudaay ke *Khauf* ke chalte apwaadswarup *** waali neeti channel ko nahi apnaani chaaiye . Is se aisa lagta hai ki maano, saari gandagi ek hi samudaay ke *Dhaarmik netaaon* mein hai .
Aur gar netaaon ki tarz par baat ki jaaye to yahi kah sakate hain ki *Dharmnirpeksh* aur *Nyayapriya* wo kahlaata hai , jis mein *sahishnu* aur *Garib* samaaj ki ek khaamiyon ko ujaagar karne aur *aakraamak* aur *Daulatmand* samaaj ki kai khaamiyon par ( dar ke maare ) chuppi saadhe rakhne ki kala jaanta ho . Shaayad aaj tak waale bhi *Dharmnirpeksha* aur *Nyayapriya* hain .
Main ye maan ta hun ki Dharm ke naam par gandagi aur gair qanooni harqaton par lagaam lagani chaahiye , par ye Dharmnirpekhsha aur nyayapurn Tarique se hona chaaiye . Aaj se aap is tarah ki reporting par dhyaan dijiyega aur uska % nikaaliyega , aap khud samajh jaayenge kis samaaj ke kitne % **Dhaarmik guru** benaqab hue . Is se Channels ke *Bekhauf* Andaaz ka pata bhi aap ko chal jaayega.
Chandrabhan Singh
September 13, 2010 at 8:04 am
AAJ TAK ki niyat par sak ! Hindu Dharmacharyon ke ashram or unke pas aaj tak ka camra jata hai. Esai or Muslim unhe nahi dikhte ?