अचानक अमर उजाला का दाम पांच रूपये कर दिए जाने और कमीशन न बढ़ाए जाने से बौखलाए और आक्रोशित अखबार वितरकों ने सोमवार को सुबह अमर उजाला का बंडल फेंक दिया। इतना नहीं उन्होंने यह अखबार न उठाने की भी घोषणा कर दी। साथ ही वितरकों ने यह भी घोषणा कर दी कि यदि समाचार पत्रों का मैनेजमेंट दैनिक पत्रों के साथ निःशुल्क कैलेंडर नहीं दिया तो पचास प्रतिशत कमीशन की मांग करते हुए संबंधित पत्र का वितरण रोक दिया जाएगा।
दरअसल हुआ यह कि 27 दिसंबर, सोमवार को प्रातःकालीन अमर उजाला के साथ जब कैलेंडर पत्र विक्रेताओं ने पाया और मूल्य पांच रूपया पढ़ा तो उनमें आक्रोश पैदा हो गया। तुरंत ही उन्होंने अमर उजाला उठाकर फेंक दिया और आगे से इस अखबार का वितरण न करने का निर्णय ले लिया। अखबार न उठते देख अमर उजाला से आए कर्मचारियों के हाथ-पांव फूल गए। कर्मचारियों ने प्रिंटेड मूल्य पांच रूपये में से ढाई रूपया अर्थात पचास प्रतिशत कमीशन देने की तत्काल मौके पर ही घोषणा कर दी। इसके बाद भी थोड़ी किचकिच के बाद अमर उजाला की बिक्री सुनिश्चित हुई। यह पहला मौका है जब पूरे पचास प्रतिशत कमीशन की घोषणा प्रबंध तंत्र की ओर से हुई है।
इस बीच समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के तत्वावधान में संत गुरू रविदास घाट पर समाचार पत्र विक्रेताओं, हाकर यूनियन काशी की संयुक्त बैठक लंका बूथ के वरिष्ठ समाचार पत्र विक्रेता सतीश चंद्र सिंह की अध्यक्षता में हुई। इस बैठक में दर्जनों पत्र विक्रेताओं ने समाचार पत्र उद्योग एवं पत्र-पत्रिकाओं की विभिन्न समस्याओं पर विस्तार से गर्मागर्म बहस की। बैठक में यह निर्णय हुआ कि समाचार पत्र प्रबंधन पत्रों की बिक्री पर पचास प्रतिशत कमीशन सुनिश्चित करे, कैलेंडर निःशुल्क पाठकों तक पहुंचाया जाए, अखबारों का मूल्य पूरे जिले में समान रूप से सुनिश्चित किया जाए, पत्र विक्रेताओं के लिए समूह बीमा योजना के अंतर्गत प्रबंधन की ओर से अंशदान निश्चित किया जाए, पत्र विक्रेताओं को वर्ष में एक बार बोनस दिया जाए।
लंका बूथ के पत्र विक्रेताओं की शानदार सफलता पर समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी एवं काशी पत्रकार संघ एवं वाराणसी प्रेस क्लब के सदस्य जय नारायण ने समाचार पत्र विक्रेताओं की इस उपलब्धि पर साधुवाद दिया। कमीशन के बढ़ते ही पत्र विक्रेताओं में हर्ष की लहर दौड़ गयी। साभार : पूर्वांचल दीप
Comments on “नाराज हॉकरों ने अमर उजाला का बंडल फेंका”
सबका पेट है ,पेट है तो भूख है, रोटी की और नोटो की भूख मे अन्तर है मालिको। आप लोगो को जल्दी यह समझ आ जाय तो अच्छा है।
अखबार पर कमीशन पूरे सौ प्रतिशत ही रख लो भाईयों। जितनी मांगें की हैं उतनी तो यहां काम करने वाले कर्मचारियों को नहीं मिलती।