उत्तराखंड के मुख्यमंत्री निशंक पत्रकार रहे हैं. उन्हें पत्रकारिता के दांवपेंच खूब पता हैं. पटाना-डराना-मनाना उन्हें अच्छी तरह आता है. इसीलिए उत्तराखंड में पत्रकारों के बीच उनकी जय-जय रहती है क्योंकि वे ज्यादातर को खुश रखते हैं. अमर उजाला, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण में निशंक की जय-जय छपती रहती है.
निशंक के राज में हुए और हो रहे घपले-घोटाले को कोई उजागर नहीं करता. निशंक के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले / वालियों को मीडिया का उपेक्षा झेलना पड़ता है. न्यूज चैनल वाले कभी-कभार घपला-घोटाला दिखाते भी हैं तो उन्हें भी मैनेज करने की कवायद शुरू कर दी जाती है. पर इन दिनों एक पत्रकार निशंक से मैनेज नहीं हो सका तो उसके खिलाफ उत्तराखंड सरकार ने अभियान शुरू कर दिया है. यह कहकर कि वह पत्रकार सरकार को ब्लैकमेल कर रहा है. सोचिए, सरकार खफा है कि सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश की जा रही है. बड़ा आसान होता है कि किसी पुलिस व किसी सरकार का किसी पत्रकार को भ्रष्ट बता देना लेकिन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे पुलिस वालों व सरकार के लोगों का लंबा-चौड़ा भ्रष्टाचार उन्हें खुद नहीं दिखाई देता.
मामला एनएनआई उर्फ न्यूज नेटवर्क आफ इंडिया के चीफ उमेश कुमार से जुड़ा है. पत्रकारिता से शुरुआत कर एक मीडिया उद्यमी बने उमेश के पीछे आजकल उत्तराखंड सरकार पड़ी है. सूचना है कि देहरादून में एनएनआई के मालिक उमेश कुमार के खिलाफ एससी एसटी एक्ट और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है. ये मामला देहरादून जिला सूचनाधिकारी नीतिन उपाध्याय की ओर से दर्ज करवाया गया है. सरकार ने एनएनआई की एसएमएस अलर्ट सर्विस को बंद करने की चेतावनी भी दी है. सरकार का कहना है कि एनएनआई अपनी एसएमएस सेवा के जरिए सरकार को ब्लैकमेल कर रही है. इसी के मद्देजनर सरकार ने राज्य में एसएमएस सेवा की अन्य एजेंसियों की नकेल कसने की सोची है. इसलिए कभी भी ऐसी एजेंसियों के सर्विस को सरकार द्वारा बंद किए जाने की नोटिस भेजी जा सकती है. सरकार का कहना है कि ये एजेंसियां ट्राई के नियमों का उल्लंघन कर एसएमएस सेवा चला रही हैं.
उधर एनएनआई चीफ उमेश कुमार ने भी उत्तराखंड सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है. भड़ास4मीडिया से बातचीत में उनका कहना है कि निशंक सरकार अपने खिलाफ खबरों-एसएमएस से चिढ़ती है. वे लोग नहीं चाहते कि उनके खिलाफ कुछ भी कहीं भी किसी रूप में प्रकाशित प्रसारित हो. न्यूज चैनलों और अखबारों में तो शीर्ष स्तर पर सब कुछ सेटिंग-गेटिंग के तहत मैनेज हो जाता है लेकिन एसएमएस न्यूज सर्विस ने सरकार की गलत नीतियों का खुलासा जारी रखा तो यह सब निशंक को पसंद नहीं आ रहा है. इसी कारण इरादतन परेशान करने की नीयत से गलत-सलत मुकदमे दर्जा करा रहे हैं वे लोग. उमेश ने बताया कि प्रदेश सरकार की पत्रकार विरोधी नीतियों के खिलाफ आज पत्रकार सूचना एवं लोक सपंर्क का कार्यालय को घेराव करेंगे.
उधर, उमेश कुमार के विरोधी पत्रकार भी सक्रिय हैं. ये लोग उमेश पर जमीन-मकान कब्जे समेत कई तरह के आरोप लगा रहे हैं. आरोपों पर उमेश कुमार का कहना है कि वे फर्स्ट जनरेशन एंटरप्रीन्योर हैं, इसलिए उन्हें सब कुछ झेलना पड़ेगा, नैतिकता-अनैतिकता के भंवरजाल में डूबना-उतराना पड़ेगा. लेकिन बड़े मीडिया हाउसों के मालिकों पर कोई उंगली नहीं उठाएगा क्योंकि वे जो डील-डाल करते हैं, वे बहुत उपर लेवल पर होते हैं और उन्हें प्रोटेक्ट करने के लिए पत्रकारों-संपादकों की फौज लगी रहती है. अगर हम लोग अपनी कंपनी के हितों के लिए काम करते हैं तो तुरंत हमें ब्लैकमेलर और गैर-पत्रकार बता दिया जाता है. उमेश के मुताबिक ऐसे आरोपों व गीदड़भभकियों से हम लोग डरने वाले नहीं हैं और सरकार का मुकाबला करेंगे.
उमेश ने जानकारी दी कि जो मुकदमें उनके खिलाफ दर्ज किए गए हैं, वे उस वक्त के हैं, जब वे सपरिवार विदेश यात्रा पर थे. एफआईआर में जो बातें कही गई हैं, उसे पढ़कर किसी को भी हंसी आ सकती है. पुलिस प्रशासन व सरकार के लोग अगर किसी को परेशान करने पर उतारु हो जाएं तो बिना सोचे समझे नियम कानून का दुरुपयोग करने लगते हैं और इसी में फंस जाते हैं. उमेश ने बताया कि उनके पास चीन यात्रा के कागजात सुरक्षित हैं और उन्हीं दिनों में देहरादून में उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया. ऐसा करके निशंक सरकार ने खुद की थू थू करा ली है और रही-सही कसर अदालत में पूरी हो जाएगी. उमेश ने मुश्किल के इस वक्त में सहयोग-समर्थन देने के लिए पत्रकारों व पत्रकार संगठनों का आभार जताया.
Comments on “‘पत्रकार’ के पीछे पड़ा ‘पत्रकार मुख्यमंत्री’”
यहीं राजनीति है। निशंक पहले तो मैनेज करना चाहे और बाद में ऐसा नहीं होने पर ब्लैकमेलिंग का आरोप गढ़ने लगे। अरे निशंक जी आप भी उस पत्रकारिता से आए हो, जहां पर आज हो….
अपने अतित को ना भूलें… और पत्रकारों को स्वतंत्र होकर काम करने दें।
आपके कई घोटाले सामने आने लगे हैं, शायद इसलिए आप बौखलाहट में ये सब कर रहे हैं। अगर ऐसा है तो ना हीं करें तो बेहतर होगा। क्यूंकि पत्रकारों से बैर करना ठीक नहीं। आप भी ये भली भांति जानते होंगे। रही बात एनएनआई के एसएमएस सेवा प्रतिबंधित करने की तो आप शासन में हैं कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन ये चौथे स्तंभ यानि मीडिया का मजाक उड़ाना होगा। आप अपने स्तर से अपने उपर लगाए गए आरोपों को गलत साबित करें, अगर वो गलत है तो। बौखलाहट में एनएनआई पर प्रतिबंध लगाकर मुख्यमंत्री के पद की गरिमा को महिमामंडित ना करें।
उत्तराखंड सरकार के पहले ही बहुत गड़बड़ झाले सामने आ चुके हैं, एनएनआई के माध्यम से जब सरकार के घोटालों की पोल खुल रही है तो उत्तराखंड सरकार तिलमिला गयी है, इसीलिए पत्रकारों पर फर्जी मुकदमे लगाकर उन्हें फंसाने की कोशिश की जा रही है। उत्तराखंड सरकार के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से लेकेर स्टर्डिया जैसे बड़े घोटालों के बारे में कौन नहीं जानता। निशंक सरकार को अपने खिलाफ खबरें बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हैं औऱ खासतौर पर ऐसी ख़बरें जो उनके द्वारा किए जा रहे घोटालों की पोल खोल कर रख दें, सत्ता का कैसे गलत इस्तेमाल किया जाता है ये तो कोई उत्तराखंड सरकार से सीखे।
[b]उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कितने दूध के धुले हैं यह सब जानते हैं, खुद घोटालेबाज हैं और पत्रकारों पर ब्लाक्मैलिंग का अरूप लगा कर उन्हें परेशान करते हैं, वह खुद पत्रकार हैं तभी तो सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकारों का गला दबाने पर तुले हैं, उमेश कुमार अकेले नहीं हैं, उनका उत्पीडन हुआ तो उत्तर यू पी और दुसरे राज्यों के पत्रकार भी उनके साथ हैं, सुनने में आया है की कुछ चमचे पत्रकार मुख्यमंत्री की चमचागिरी कर उमेश जी के कद को कम करके बता रहे हैं, उमेश जी के साथ ज्यादती हुए तो सरकार को पता चल जायेगा की उमेश जी अकेले नहीं हैं
जब किसी पत्रकार को परेशान करना होता है तो अफसर और सरकारें उन पर मनघडंत आरोप मढ़कर उन्हें बदनाम करने की साजिश रचती हैं] उनपर फर्जी मुक़दमे लगाये जाते हैं ] उमेश जी के साथ भी यही किया जा रहा है ] उमेश जी अकेले नहीं है] देश भर के पत्रकार उनका साथ देने को तैयार हैं] मुख्यमंत्री जी खुद कितने चरित्रवान हैं सब जानते हैं ]
utpeedan ke khilaf patrakaron ko ekjut hokar sangharsha karna chahiye.
nishank ji aapko patrkar kahu ye neta aagar aap patrkar hote to esa kaam kabhi nahi karte.ye kaha ki bbat hai ki aap jab nni ko manej nahi kar paye to unke onar par mukadme karva kar dabaav banae ki koshis ki. ek cm ko asi harkat karna sobha nahi deta or lok tantar ke chothe istambh ko inhi hila sakte. agar ayodhiya fesla, comanvalth game or baadh nahi aayi hoti to aapko phir pta chalta ki midia ki pawar kiya hai, agar aap pahad me sir maro ge to nukshaan sir marne vale ka hi hai,
क्या बात है उमेश जी
आगे आगे दूल्हा, पीछे चोरों की बारात
कभी आंखे बंद करके अपने अंदर झंकना सब सामने आ जायगा i
kya umesh kya nishank ek hi baat hai
उत्तराखंड की राजनीति के इतिहास में पत्रकारों के हितों की चिंता मुख्यमंत्री डॉ, निशंक ने की है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इससे बड़ा उदहारण और क्या हो सकता है कि डॉ निशंक के कार्यकाल में पत्र-पत्रिकाओं तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया, वेब मीडिया की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है. जिनका हमेशा से ही सकरात्काक सहयोग निशंक सरकार को मिला है.
पत्रकार कहीं भी कैसे भी संकट में फंसा हो तो डॉ. निशंक ने उनकी पहले चिंता की है. अभी अभी पिथौरागढ़ के कैलाश मानसरोवर रूट के गुंजी में फंसे पांच पत्रकार अजय शाह, रीमा सिंह, भावना पंचभैया, सुखवीर सिंह, अजित सिंह को हैलीकॉप्टर से रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर लाया गया. स्व. पत्रकार उमेश जोशी के घर पर जाकर उनके परिजनों को न केवल आर्थिक सहायता दी वरन स्वर्गीय जोशी के पुत्र को नौकरी देने का भी आश्वासन दिया.
छायाकार श्री विनोद पुंडीर जो कि हृदयाघात से पीड़ित थे तो ढाई लाख रुपये कि आर्थिक सहायता तत्काल मुहैय्या कराकर उनको मौत के मुह में जाने से बचाया. पत्रकार अजय गुलाटी, एम् एस जौहर, राजेश देवरानी, वाचस्पति गैरोला को चिकित्सा के लिए तथा दिवंगत पत्रकार कुंवर सिंह नेगी एवं शशिकांत मिश्र के परिजनों को संकट की घडी में आर्थिक मदद दी है. ऐसे कई पत्रकारिता से जुड़े लोगों को मुख्यमंत्री निशंक ने मदद की है जिनका मैं यहाँ उल्लेख नहीं करना चाहता.
आपको तो खुश होना चाहिए कि प्रदेश को पत्रकारों का पैरोकार एक पत्रकार मुख्यमंत्री मिला है.
मेरे पिछले आलेख पर कुछ बंधुओं ने टिपण्णी करके मेरे पत्रकार होने पर सवाल उठाया था. यदि तर्क व सच्चाई रखना चमचागिरी है तो मुझे ‘चमचा’ कहे जाने में कतई गुरेज़ नहीं. जो लोग मुझे पत्रकार मानने से इंकार कर रहे हैं वे उपरोक्त उल्लिखित नामों को तो पत्रकार मानेंगे जिनकी सहायता डॉ. निशंक ने संकट कि घडी में की है?
और एक बात और, जिस महानुभाव ‘पत्रकार’ को ‘मुख्यमंत्री पत्रकार’ द्वारा प्रताड़ित किये जाने की खबर आपने भड़ास पर प्रकाशित की, शायद आप भी उनकी असलियत जानते होंगे, यदि नहीं, तो मैं उनका काला चिठ्ठा आपको जल्द ही ‘भड़ास’ पर पढने को मिल जायेगा. तब आप तय करिए की कौन किसके पीछे पड़ा है.
प्रमोद कुमार
देहरादून, उत्तराखंड
parmod akhir tu hai kun……..
nishank, chief minister, uttrakhand, journalist, press, chautha stambh, blackmailing ye sab kya hai bhai……………….modal uttrakhand ke liye yah sab theek nahi… THINK…