पीएम की पीसी में बड़े संपादकों के छोटे सवाल

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नूतन ठाकुरआज मैंने कई सारे बहुत बड़े पत्रकारों / संपादकों को प्रधानमन्त्री के प्रेस कांफ्रेंस के बाद बाहर निकल कर वहां उपस्थित मीडियाकर्मियों के सामने अपनी बात कहते सुना. डॉ प्रणव रॉय, राजदीप सरदेसाई और अर्नब गोस्वामी जैसे वे नाम हैं जो आज भारतीय मीडियाजगत के चोटी के लोगों में माने जाते हैं. इसीलिए जब ये लोग कोई बात कहते हैं तो ना सिर्फ मीडिया जगत के लोग बल्कि बाकी लोग भी बड़े ध्यान से इनकी बात सुनते हैं और उन पर विश्वास करते हैं.

लेकिन पता नहीं क्यों, आज मेरी जैसी एक साधारण सी पत्रकार जब इन बड़े लोगों की बातें टीवी पर सुन रही थी तो कहीं कुछ आधा-अधूरा सा लग रहा था. कुछ ऐसा लग रहा था मानो ये लोग इसी बात से बहुत अधिक प्रसन्न हों कि आज प्रधानमंत्री जी के यहाँ बुलावा आया है, जहां इन्हें एडिटर होने का सम्मान मिला, कुछ बढ़िया नाश्ता मिला, साफ़-सुथरे माहौल में अच्छी खासी गुफ्तगू हुई और उसके बाद सभी लोगों से सलीके से हाथ मिला कर प्रधानमंत्री ने ससम्मान वापस किया. वैसे मैं सुनती हूँ कि इन बड़े एडिटर लोगों के लिए प्रधानमंत्री आदि से मिलना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती पर शायद अब वक्त में बदलाव जो हो चला है और अब पहले वाली बात नहीं रही कि जब जो एडिटर चाहे इन चोटी के नेताओं के इंटरव्यू ले ले.

मैं तो याद नहीं कर पा रही कि डॉ मनमोहन सिंह का कोई व्यक्तिगत इंटरव्यू किसी पत्र पत्रिका में मैंने बहुत दिनों में पढ़ा हो. इसी तरह उनका या सोनिया मैडम का कोई टीवी इंटरव्यू भी बहुत दिनों से नहीं दिखा. कुछ महीने पहले एक चैनल पर सोनिया जी का एक छोटा सा इंटरव्यू जरूर दिखा था और यह इंटरव्यू इतनी बार वहाँ दिखाया गया कि बाद में तो लगभग सारे प्रश्न और उत्तर याद से हो गए थे. हो सकता है कि अब के हालातों में जब इन लोगों के इंटरव्यू काफी कम हो गए हैं, ऐसे में आज जब डॉ मनमोहन सिंह ने इन बड़े पत्रकारों को बुला कर काम लायक समय दे दिया तो यह बात अपने आप में इतनी संतोष देने वाली होगी कि सारे बड़े-बड़े पत्रकारों के चेहरे पर एक अदभुत संतुष्टि का भाव स्वयं ही दिख रहा था.

लेकिन इसके साथ ही यह भी दिख रहा था कि प्रधानमंत्री का यह लंबा प्रेस कांफ्रेंस कोई भी नयी बात सामने नहीं ला सका. उन्होंने तो लगभग वही सारी बातें दुहराईं जो वे अक्सर पब्लिक प्लेटफोर्म से कहते सुने जा रहे हैं पर दुर्भाग्यवश जिस पर अब बेहद कम लोगों को यकीन हो रहा है. ये वही डॉ मनमोहन सिंह हैं जिनके विषय में सब लोग एकमत थे कि वे चाहे और कुछ भी करें, कम से कम भ्रष्टाचार के दलदल से तो बिलकुल अलग ही रहेंगे. पर अब कीचड़ में कमल की स्थिति समाप्त हो चली है और कीचड़ और कमल इस कदर आपस में मिलते जा रहे हैं कि इन दोनों में विभेद कर पाने में दिक्कत हो रही है.

प्रधानमन्त्री प्रेस कांफ्रेंस में कहते हैं कि उन्हें टू जी घोटाले में किसी तरह की खबर ही नहीं मिली, पर आम आदमी यह मानने से इनकार करता दिखता है. वैसे भी सरकारी तंत्र के क्रिया-कलाप से परिचित सारे पत्रकार यह जानते हैं कि इस तरह के बड़े मामले बिना ऊपर के इशारे या जानकारी या सहमति के नहीं हो सकते. फिर यदि कोई एक बार गलती से यह मान भी ले कि पीएमओ को इसकी जानकारी नहीं थी तो भी इस बात पर क्या कहा जाए कि जब पिछले साल भर से टू जी घोटालों की लगातार चर्चा अखबारों और मीडिया में लगातार चलती रही तब प्रधानमंत्री चाहते तो चैतन्य हो सकते थे पर वे इस ओर ऐसे देखते रहे जैसे इससे उन्हें कोई मतलब ही नहीं हो. लेकिन वे आराम से सोये रहे और उनकी यह कुम्भकर्णी नींद किसी को भी हजम नहीं हो पा रही है.

वह तो जब विपक्षी पार्टियों ने पूरे देश को सर पर उठा लिया और महीनों सदन को नहीं चलने दिया तब जा कर सीबीआई जांच में तेजी आई. फिर नतीजा भी सबों के सामने जाहिर है. ए राजा और कई नौकरशाह जेल में हैं. जांच की आंच करूणानिधि तक पहुँचने की बात अखबारों में आ रही है. लेकिन क्या प्रधानमंत्री यह काम पहले नहीं कर सकते थे? इसके साथ यह सवाल भी जुड़ा है कि जब ये बड़े एडिटर सदल-बल प्रधानमंत्री के प्रेस कांफ्रेंस मे पहुंचे तो क्या इन लोगों से यह अपेक्षित नहीं था कि वे प्रधानमंत्री जी की पूरी बात सुनने के अलावा इन बिंदुओं पर भी सवाल पूछें?

इस जगह पर मुझे लगता है कि कुछ चूक जरूर हुई है कि एकतरफ़ा भ्रामक बातों को सुन कर पूरे देश और विदेश में उसे ही प्रसारित-प्रचारित किया गया जबकि शायद इन जिम्मेदार लोगों से हम सभी विशेष रूप से यह अपेक्षा और उम्मीद रखे थे कि वे परदे के पीछे की सच्चाईयां भी उगलवा कर देश की जनता को बेहतर जानकारी दे सकने का काम करेंगे. मैं खास कर इसी कारण से इन चोटी के ख्यातिप्राप्त एडिटर बधुओं के टीवी पर चमकते और मुस्कुराते चेहरों से उतना अधिक प्रभावित नहीं हो पा रही क्योंकि मुझे लगता है कि लाखों करोड़ रुपये के जिन बड़े-बड़े घोटालों के बारे में अंदर की बात सामने लाने की उम्मीद हम लोगों को थी, उसमें काफी हद तक निराशा हाथ लगी है और हम बस उतना ही सुन और जान पा रहे हैं जितना डॉ मनमोहन सिंह बताना चाहते थे और जिस पर अब लोगों का ऐतबार दिनों-दिन कम होता जा रहा है.

डॉ नूतन ठाकुर

एडिटर

पीपल’स फोरम, लखनऊ

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Comments on “पीएम की पीसी में बड़े संपादकों के छोटे सवाल

  • kuldeep dev dwivedi says:

    notan ji aapka articl wakayi prashanshniy hai ..
    sath hi aapki bat ko main aur aage le jana chahta hu ki is mauke par pradhan mantri ji ko bhi kade faisle dete huye sunne ki meri ichchha thi jo ki adhori rah gayi..
    iske alawa media ke bajar me jo chij jyada bikau hai uska dam hi sabhi ke man me tha aur porwaabhash bhi tha ki ye hi poonchhna hai.. taki is khabar ko jor mile so jisko jisme apna munafa dikha kharid dari kar li banki.. drsh ke liye kya jaroori hai inko isbat ka khyal tak aaya ho to bhagwan i jane waise jisne bhi us p.c. ko dekha hai aur samjha hai shayad wo samajh gaya hai ki akhir antim vyakti ki chinta aur sudh lene wala shayad koi nahi hai. ..
    kuldeep dev dwivedi…

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