: पर्चे बांटकर की गई अपील- अगर ऐसे भ्रष्ट लोगों से प्रेस क्लब को बचाना है तो राम – संदीप – नदीम पैनल को जिताना है : प्रेस क्लब आफ इंडिया के चुनावी मौसम में आरोप-प्रत्यारोप के दौर तेज हो गए हैं. जो लोग विपक्ष में हैं, बदलाव की बाबत चुनाव लड़ रहे हैं, अभी तक काबिज लोगों को हटाना चाहते हैं, उनने दो पेजी एक आरोप पुस्तिका का प्रकाशन कर वितरण करना शुरू कर दिया है. इसमें प्रेस क्लब के सेक्रेट्री जनरल पर कई आरोप जड़े गए हैं और उनसे जवाब की उम्मीद की गई है. यहां हम वो दोनों पेजों को प्रकाशित कर रहे हैं ताकि सवाल ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे. अगर प्रेस क्लब के वर्तमान पदाधिकारी, जो फिर जीतने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, इन आरोपों का कोई जवाब भेजते हैं तो उसे भी ससम्मान प्रकाशित किया जाएगा. -एडिटर, भड़ास4मीडिया
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प्रिय सदस्यों, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया देश के सभी पेशेवर पत्रकारों का राष्ट्रीय मंच है. लेकिन आज इसकी हालत बदतर है. इतनी कि किसी ने कल्पना तक भी नहीं की होगी कि यह बंद होने के कगार पर हैं . प्रेस क्लब की इस दुर्दशा के लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो वो संस्था की मौजूदा प्रबंधन समिति है. ये कोई कही सुनी बात नहीं है…ये तथ्य हाल ही में जारी हुई ऑडिटर रिपोर्ट में सामने आए हैं.
रिपोर्ट के सेक्शन 4 (i) में तो प्रेस क्लब के अस्तित्व पर ही चिंता जताई गई है. क्लब के पास बिल्कुल भी पूंजी नहीं है. प्रेस क्लब के एकाउंट को देखते हुआ यहां साफ कहा गया है कि अगर इसमें डेढ़ करोड़ रुपए की पूंजी नहीं लगाई गई तो हमारा क्लब इतिहास बनकर रह जाएगा.
ये हाल इस साल क्लब को मिले अच्छे खासे राजस्व के बाद है.
रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2010 तक क्लब ने 2.68 करोड़ रुपए की कमाई की. इसमें सदस्यों की सालाना सदस्यता फीस के तौर पर जमा होने वाले 54.23 लाख रुपए भी शामिल हैं.
इतनी भारी भरकम आय के बाद भी रिपोर्ट के मुताबिक क्लब इस दौरान 1.02 करोड़ रुपए के घाटे में था. यही नहीं खाते में जमा रकम से 42.53 लाख रुपए ज़्यादा निकाल लिए गए.
ये सब कैसे हुआ? इस सब के पीछे एक ही वजह है..मौजूदा कमेटी की वित्तीय अनियमितताएं. कमेटी ने इस दौरान वो तमाम गैरज़रूरी खर्चे किए जिनके बिना आसानी से प्रेस क्लब को चलाया जा सकता था.
अगर हम इन ग़ैरज़रूरी खर्चों को जोड़ें तो ये आंकड़ा क़रीब 25 लाख रुपए का होता है. मौजूदा प्रबंधन को इस सवाल का जवाब क्लब के सभी सदस्यों को देना चाहिए कि आख़िर इनके तीन सालों के राज में इतनी कंगाली कैसे आ गई?
आखिर कौन इसका ज़िम्मेदार है? क्या वो अध्यक्ष हैं…जनरल सेक्रेटरी…या ट्रेजरर हैं या फिर पूरा का पूरा मैनेजमेंट इस गोरखधंधे में शामिल है. इसके पीछे जो कोई भी हम सभी सदस्यों को बस इस बात का जवाब चाहिए.
यही नहीं, हम मामले की पूरी जांच और इस घोटाले में दोषी पाए जाने वाले को उचित सज़ा दिए जाने की भी मांग करते हैं.
हमारा मानना है कि ये सब महज इसलिए हुआ है क्योंकि मौजूदा कमेटी के कामकाज का तरीका ठीक नहीं है. किसी भी प्रबंध समिति के काम करने का एक तरीका होता है..एक शैली होती है लेकिन इस मामले में वो सब नदारद है.
और तो और, दो महिला कर्मचारियों के मामले में तो सारी हदें ही पार कर दी गई हैं, जिनके साथ छेड़छाड़ की घटना हुई थी. इस पूरे मामले को बेतरतीब ढंग से निपटाया गया. सुप्रीम कोर्ट के नियमों के मुताबिक़ जहां इस मामले की तुरंत जांच के आदेश देने चाहिए थे…वहां मैनेजमेंट ने पहले तो पीड़ितों को डराया-धमकाया और जब इससे भी बात न बनी तो महिलाओं को ही दोषी करार देकर काम से सस्पेंड कर दिया.
ये तो बस एक बानगी भर है… जुल्मों की फेहरिस्त और भी लंबी है. यहां तो अक्सर पीड़ितों को ही दोषी बना दिया जाता है…बस ध्यान इस बात का रखा जाता है कि जिस पर ज़ुल्म हुआ है वो मैनेजमेंट का कोई अपना आदमी तो नहीं है.
इस तानाशाही रवैये को बदलना बेहद ज़रूरी है. इसके लिए मीडिया की तरफ से एक वैकल्पिक टीम बनाई जाए. उस टीम का काम इसकी गरिमा की रक्षा करना और क्लब को अस्तित्व को बचा सके
हम हैं-
अध्यक्ष पद के उम्मीदवार टी आर रामचंद्रन (जी फाइल्स)
महासचिव संदीप दीक्षित (द हिन्दू)
उपाध्यक्ष- अनिल आनन्द (डीएनए)
उपाध्यक्ष- विनीता पांडे (डीएनए)
कोषाध्यक्ष- नदीम अहमद काजमी (एनडीटीवी इंडिया)
16 सदस्यीय कार्यकारिणी सदस्यों के लिए
1. आरती धर (द हिन्दू)
2. अदिति निगम (फाईनेंसियल वर्ल्ड, तहलका)
3. अवतार नेगी (डी डी न्यूज)
4. दिनेश कुमार तिवारी (हिन्दुस्तान)
5. जी कृष्ण मोहन राव (ईनाडू)
6. जोमी थामस (मलयालम मनोरमा)
7. एम के तयाल (द डे ऑफ्टर)
8. नितिन ए गोखले (एनडीटीवी)
9. राजीव रंजन( एनडीटीवी इंडिया)
10. संजय सिंह (राष्ट्रीय सहारा)
11. संजीव उपाध्याय (दूरदर्शन)
12. शंभूनाथ चौधरी (ऑल इंडिया रेडियो)
13. सुमीत मिश्रा (आजतक)
14. सुशील शर्मा (हिंदुस्तान)
15. विजय सलूजा (पना इंडिया) और
16. विजय शर्मा (पूर्वांचल सूर्य) उम्मीदवार है.
पहले आपसी स्वार्थ के लिये लड रहे दोनो ग्रुप यह बताओं की क्या पी सी आई वाकई पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करता है ? सुदुर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत पत्रकारों की मेहनत से जुटाई गई प्रकाशन योग्य समाचार की बदौलत नामी पत्रकार बने पाखंडियों तुम सब आज़ाद भारत के नव जमींदार आई ए एस आई पी एस से ज्यादा बुरे हो यह तो शुक्र मनाओं की पत्रकारिता के क्षेत्र में नक्सलवाद जैसा कोई आंदोलन नही पैदा हुआ है। वक्त है सुधर जाओ , वरना जिला स्तरीय पत्रकार आज न कल तुमसे हिसाब मांगना शुरु कर देंगें फ़िर बाथरुम में भी छुपना मुश्किल हो जायेगा।
Madan Tiwari ne bahut hi sahi baat kaha ! Ye Bade Khae jaane waale Patrakaar, Patrakaar kam Mathaadheesh zyaada hain.