अंग्रेजी में एक कहावत है- “फीट ऑफ क्ले” (जो कुछ हद तक हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और से मिलता-जुलता माना जा सकता है). इसी प्रकार एक हिंदी कहावत है छुपा रूस्तम. कुछ ठेठ भाषा में देहात वाले कहते हैं- “बांवन हाथ का अंतरी.” रंगा सियार एक इसी प्रकार का दूसरा मुहावरा है. नीरा राडिया, बरखा दत्त तथा वीर संघवी की बातचीत के टेप मुझे ये सारी लोकोक्तियाँ और मुहावरे याद दिला दे रहे हैं. एनडीटीवी और वीर सांघवी की तरफ से आए बयान और कुछ साबित करें या न करें, इन टेपों के सही होने की बात साबित कर देते हैं. इन दोनों में से किसी ने भी इन टेपों को गलत नहीं ठहराया है. आज से करीब चार-पांच महीने पहले जो शासकीय दस्तावेजों की छाया-प्रतियाँ बड़ी तेजी से सामने आई थीं वे भी इसी ओर इशारा करती हैं.
यही बातें हम सबों को भयानक कष्ट भी देती हैं, नाराजगी भी पैदा करती हैं. ये दोनों बहुत सम्मानित लोग हैं, अपनी-अपनी जगह समाज के लिए आदर्श. बरखा तो फिल्मों तक में दिखाई गयी हैं और उनसे मिलते-जुलते किरदार कई फिल्मों में नज़र आ जाते हैं. छोटे बालों वाली छरहरी, तेज-तर्रार और सुन्दर रूप-स्वरुप वाली एक मॉडर्न कैरीअर गर्ल के रूप बरखा का अपना एक विशेष स्थान रहा है. यदि मैं अपने विभाग से तुलना करूँ तो मुझे एकबयक किरण बेदी याद आ जाती हैं जिन्होंने भी इसी प्रकार से अपने ब्यक्तित्व और कृतित्व के आधार पर अपने आप को मध्यम वर्ग की नायिका के रूप में स्थापित किया है.
अब अगर वही नायिका उस तरह की बातें करते नज़र आ जा रही हैं जो इन टेपों के हिसाब से बरखा नीरा राडिया से कर रही हैं तो वैसा ही लगता है जैसे पुरानी किसी फिल्म में सर तक घूँघट ओढ़े मीना कुमारी जैसी नायिका अचानक हेलेन और कुक्कू जैसी डांसर की तरह अर्ध-नग्न कपडे पहने कोई कैबरे करती नज़र आ जाए. यह झटका भी उस झटके से कम नहीं है. कहाँ तो बरखा दत्त विस्फोटक तेवर और ऊँचे आदर्शों से लैस एनडीटीवी की स्टार, जो पूरे देश में एक अलग ही अलख जगाये हुए है और कहाँ परदे के पीछे की टेप वाली कथित बरखा जो जोड़-तोड़ की बातें बड़ी शिद्दत और चतुराई के साथ छुप-छुप के कर रही है. क्या हम लोग कोई जासूसी फिल्म देख रहे हैं जो हमारे राष्ट्रीय फलक पर फिल्माया जा रहा है?
अब हम वीर सांघवी की बात करें. कोई ऐसा रविवार नहीं बीतता जब वीर संघवी अपने गुरु-गंभीर विचारों के साथ किसी बड़े आदमी को कटाक्षपूर्वक कटघरे में खडा करते नहीं दिखते. हिंदुस्तान टाइम्स अखबार का रविवासरीय अंक वीर संघवी के विचारोत्तेजक लेखों के बिना उतना ही अधूरा दिखता है जितना शादी के जोड़े के बिना दुल्हन. पर कभी-कभी फिल्मों में वैसी भी दुल्हन दिखा दी जाती है जो अचानक ही अपने शादी का जोड़ा उतार कर अंदर पहने बिकिनी में अपने आप को लोगों के सामने खुले आम प्रकट कर रही हो.
इन टेपों के आने के बाद इन दोनों महानुभावों की तरफ से अलग-अलग बयान भी आये हैं. बरखा की ओर से तो खैर उनकी संस्था एनडीटीवी ही सामने आई है जबकि वीर अपनी बात खुद रख रहे हैं. देखें इन सफाई में क्या कहा गया है. दोनों की बातों में कुछ बातें समान है. दोनों यह दलील देते हैं कि पत्रकारों को अपने पेशे के दौरान कई सारे लोगों से संपर्क में आना होता है और यह अस्वाभाविक नहीं है. एनडीटीवी के बयान में कहा गया है कि पत्रकारिता के काम के दौरान हुए बात-चीत को लॉबिंग कत्तई नहीं कहना चाहिए. वीर संघवी कहते हैं कि उनके कथित टेप में एक बार भी यह बात नहीं आती कि इन्होने ए राजा के लिए लॉबी किया है.
अब सवाल यह है कि जिस तरह से बरखा रानी लगातार नीरा मैडम से दिन-रात बातें कर रही थी और हर बातचीत में केवल और केवल मंत्रिमंडल और उनसे मंत्रियों को स्थान दिलाने की चर्चा हो रही थी, उसे क्या कहा जाना चाहिए? जिस तरह से बड़े-बड़े नेताओं से इस सम्बन्ध में बात करने पर चर्चाएं हो रही थीं, उन्हें किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए? इसी प्रकार कम से कम एक टेप में तो वीर सांघवी भी साफ़ तौर पर इस प्रकार के मंत्रिमंडल निर्माण में एक बहुत बड़े नेता से चर्चा करने की बात कर ही रहे है. यह सही है कि जब इन सारे टेपों (बरखा के पांच और वीर के तीन) में कहीं भी किसी भी स्थान पर किसी भी प्रकार के लेन-देन की बात नहीं हुई है पर इसके विपरीत यह भी सही है कि इनसे यह तो दिखने ही लगता है कि ये समाज के पुरोधा अपने रूटीन के कामों के अलावा अन्य कार्यों में भी बड़ी सक्रियता से संलिप्त रहे. इससे यह भी तो दिखता ही है मंत्रिमंडल गठन जैसे मामलों में अब ख्यातिप्राप्त और चोटी के पत्रकार भी अपनी खास भूमिका निभाते हैं.
अब यह बात कितनी गलत है, कितनी सही यह अपने आप में बहस का मुद्दा हो सकता है. इन लोगों ने इस काम के एवज में कुछ लिया या बस ऐसे ही दोस्ती में कर दिया, इस पर भी अलग-अलग विचार हो सकते हैं. पर यह कहना कि ये सब काम पत्रकारिता के लिए और उस प्रोफेशन की जरूरतों के अनुरूप हो रहे थे, एक बार में गले नहीं उतरता. समाज में कई सारे पेशे हैं. हर पेशे के काम-काज बंटे हुए हैं. फिर यदि एक पत्रकार खबरों के अलावा मंत्रिमंडल के गठन में कौन-कौन लोग हों, उस पर नीरा राडिया जैसी महिला से बातें करता है और उन्हें मंत्रिमंडल गठन सम्बंधित बातें ऊपर पहुंचाने के आश्वासन देता है जिनकी आम ख्याति सारे बड़े लोग जानते रहे हैं कि वे न तो नेता हैं न ही सामजिक कार्यकर्ता पर जिनका कई बड़े लोगों से काफी नजदीकी रिश्ते है, तो प्रथमद्रष्टया शंका तो हो ही जाती है. कहते हैं ना कि कोयले की दलाली में हाथ काला. अंगेजी में भी तो कहावत है- “अ मैन इज नोन बाई द कंपनी ही कीप्स” (अर्थात एक आदमी अपने साथियों के जरिये जाना-पहचाना जाता है)
यही वह पहलू हैं जो इस पूरे मामले को बहुत गंभीर बना दे रही हैं. बात तब और बिगड़ती दिखती है जब बाद में जिन लोगों के लिए उच्चतम स्तरों पर बात-चीत की गयी उनमें से एक को ले कर कई प्रकार के गंभीरतम आरोप लगे. आजकल जिस प्रकार से स्पेक्ट्रम घोटाला चर्चा में है और उसमे एक पूर्व मंत्रीजी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है, उनके बारे में खास कर बरखा के टेप में कई बार जिक्र विचारणीय प्रश्न तो है ही. इस रूप में ये दोनों ही मामले बहुत गंभीर हैं और खतरनाक भी. ये दोनों महत्वपूर्ण लोग है, देश के सबसे बड़े पत्रकारों में हैं और उनके बारे में ये साक्ष्य तुरंत विस्तृत जांच मांगते हैं.
मैंने पढ़ा है कि लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना पर इस्तीफा दे दिया था. यह भी अक्सर देखता हूँ कि टीवी के बड़े-बड़े पत्रकार किसी राजनेता के विरुद्ध इस तरह के टेप आदि के जारी हो जाने पर चीख-चीख कर उस नेताजी का जान लेने पर तब तक आमदा रहते हैं जब तक नेताजी शाहीद नहीं हो जाते. मैं समझता हूँ कि बरखा और वीर आज उसी स्थिति में, उसी कटघरे में खड़े हैं जिसमे इन दोनों ने न जाने कितने ही नेताओं को बड़े शौक से खडा किया होगा. साथ ही इन लोगों ने पत्रकारों के अधिकार और कर्तव्य जैसे बिंदुओं पर भी एक नयी बहस चालू कर दी है.
लेखक अमिताभ ठाकुर पुलिस अधिकारी हैं. इन दिनों अवकाश लेकर शोध, लेखन और घुमक्कड़ी के काम में व्यस्त हैं. उनसे संपर्क amitabhthakurlko@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
Comments on “बरखा और वीर आज उसी कटघरे में खड़े हैं”
प्रधान मंत्री को ईस्तीफ़ा दे देना चाहिये । मैने अपने ब्लाग पर २ नवंबर को हीं लिखा था मनमोहन सिंह जी ईस्तीफ़ा दे दें। वैसे यह सरकार नैतिकताविहीन है।
सेवा शर्तों की तहत मैं मान कर चल रहा हूँ की आप अपनी बात खुल कर नहीं कह पा रहे हैं.सच्चाई ये है की NDTV की तरह के बहुत सारे चैअनल इस खेल में हैं और इनमे लगा विदेशी धन इस सोच को पुख्ता करता है . साफ़ है की ये लोग पत्रकारिता की आड़ में सत्ता के दलाल हैं .
गद्दार सरकार के नपुंसक सरदार से कोई उम्मीद न पालें . यह तो मुखौटा है .इसकी नकेल तो राजमाता के हाँथ है .’ कठपुतली ‘ का खेला देखा है ?
koi tayagpatr nahi samajhe ! yah lal bahadur shastri ka samay nahin hai. ye samay hai raja or rani ka.
आईना दिखाना आसान काम होता है अमिताभ जी! आईना देखने का हौसला करिए जरा! मीडिया को ही आईना दिखाने में लगे हैं आजकल सभी लोग?
अमिताभ जी मीडिया के इस हमाम में सब नंगे हैं कोई पर्दे के आगे तो कोई पर्दे के पीछे जो दिखाई नहीं देते अब सवाल ये है की आखीर इस का समाधान क्या है जब पैसे की कीमत सभी चीजों से ऊपर समझी जाने लगती है तो इस तरह के वाकिया सामने आते हैं जिनकी हमें उम्मीद नहीं होती ये बात एक परिवार में भी देखी जा सकती है हमें जरुरत है एक जागरूक नागरिक बन्ने की जो देश की हालत जानने के लिए किसी पत्रकार की खबर का मोहताज़ न हो .
सूचना प्रौद्योगिकी का कमाल है. कल तक जो बातें दबी छिपी रहती थीं वे अब सामनें आ रही हैं. मसला यह है की प्रवर्तन निदेशालय के “किसी और” प्रयोजन के लिये नीरा राडिया के फोन सरकारी इजाजत के साथ टेप करवाये थे. किसे पता था कि खोदा पहाड़ और निकली चुहिया की जगह लोमड़ी (FOX) निकल आयेगी. खैर, तो रिकार्डिग के सारे टेप आयकर विभाग को बिना सुने भेज दिये गये. बस, वहीं कोई राष्ट्रभक्त था जिसने आपके हमारे लिये और भारत की जनता के लिये ये रिकार्डिंग निकाल बाहर की. भारत की जनता को सुनाइये. अपनी वॉल पर साझा करिये. सबको बताइये की क्या बला है यह अबला बरखा दत्त, यह वीर वीर सांघवी और गंदी बाद करने वाला प्रभु चावला. इसके जैसे बाकी और बिचौलियों के भी भेद इसी तरह खोलिए. टेप में कई और लोमड़ी हैं.