: त्वरित टिप्पणी : प्रभु चावला का अतीत दुनियादारी के अंदाज में काफी सफल रहा है. जब वे दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते थे तो बस का किराया नहीं होता था. बाद के दिनों में वे इतने सफल हुए कि कई बार वे दूसरों के पैसे से चार्टर जहाजों का इस्तेमाल भी करते रहे. जो लोग इन्हें चार्टर जहाज देते हैं, वे काशी के पंडों को दान देने वाले लोग नहीं है. ये साहब काम करवाते वो साहब दाम देते.
असल में प्रभु चावला को संघ में स्खलित हुई परम्परा का हिस्सा माना जा सकता है, जहां चरित्र और चिंतन की बजाय दलाली चापलूसी और भड़ैती ने ले ली है. आखिर वे भी उसी गिरोह के हिस्से हैं जिसमें रजत शर्मा हुआ करते थे और अरुण जेटली अपना दामन बचा के राजनीति में चले गए. अगर अब कोई कदम रखते भी हैं तो राजनीति में कलंक किसके माथे पर नहीं है.
रही बात प्रभु चावला की तो उनका पतन बहुत पहले शुरू हो गया था. असल में जब से वे राज्यसभा के लिए अपने आप को पात्र समझने लगे थे और आडवाणी व अटल जी के यहां जाकर एक दूसरे की चुगली करने लगे थे, जिसकी वजह से अटल जी ने इनका अपने यहां आना बंद करवा दिया था और वह आज तक बंद है, तभी से उनकी असलियत हर आम-ओ-खास को पता चलने लगी थी. इसी कारण अटल जी उनकी ‘सीधी बात’ नाम के कुख्यात कार्यक्रम में कभी नहीं आए. अमर सिंह प्रकरण ने चावला के चालूपने के किस्से को जन-जन तक पहुंचा दिया.
इसके अलावा प्रभु चावला के बारे में जो कहानियां कही जाती हैं, उसमें अरुण पुरी की एक बड़ी नाराजगी इस बात को लेकर भी बताई जाती है कि कई राज्यों के चुनाव में छपाई के जो काम हुए उसे दिलवाने के एवज में प्रभु बीच में पैसा हजम कर गए और ये बात बाद में पता चली. ताबूत में आखिरी कील उनके बेटे अंकुर चावला ने ठोंकी. असल में तो अंकुर चावला के संपर्कों, संबंधों व सारे प्रभाव का असली कारण उनके पूज्य पिताजी ही हैं. मगर जब अंकुर चावला को साक्षात अभियुक्त होते हुए भी गिरफ्तार नहीं किया गया जबकि सरकारी अधिकारी जेल चले गए तो लोग प्रभु चावला की तरफ उंगली उठाने लगे. ये भारत के न्याय इतिहास में अकेला मामला होगा. देश के एक नामचीन संपादक की असलियत सामने आ चुकी थी. प्रभु को अदालत ने तो सजा नहीं दी लेकिन ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती और अब वे हिन्दी में चल रही अनुवाद में पत्रिका चलाएं क्योंकि उन्हें अंग्रेजी भी खास नहीं आती. ये थीं खबरें आज तक, पढ़ते रहिए भड़ास4मीडिया.
लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं.
Comments on “बहुत पहले चालू हुआ था चावला का पतन”
आलोक जी, आपने ठीक लिखा। पत्रकारिता में ऐसे भड़ैंत संपादकों की संख्या ढेर सारी है जिनकी पत्रकारिता ही लिबलिबाहट, चापलूसी और संपादकों की सब्जी लाने तक सीमित है। दिलचस्प बात ये है कि प्रभु चावला अंग्रेजी में रहते हुए भी हिंदी पत्रकारिता की मारते रहे और हम उसे द्खते रहे क्योंकि वो दलाली या फिक्सिंग में हिंदी के दूसरे दलाल संपादकों से कहीं आगे रहे। हिंदी में तो ऐसे संपादक जिंह देखा तिंह पाइयां वाला हाल है। किसी ने अखबार को राज्यसभा में घुसने के रास्ते के रूप में चुना है तो कोई मकान और जमनीन खरीदने के धंधे में है। कोई अपने को डॉन समझता है (दीगर बात तो ये है कि उसने अपने इर्द गिर्द चूहों को रूप में ढेर सारे स्थानीय संपादक चूहों के रूप में पाल रखे हैं। )
भगवान ही मालिक है। क्या करें इन साले मालिकों को भी यही नगीने पसंद है।
अभी तक आप कहाँ थे ? पहले प्रभु पर कुछ लिख देते तो लोगों को उनके रहते ही असलियत पता चल जाती. किसी के मरने के बाद उसकी बुरे करने से कता फायदा?
Aap Lagbhag sabhi patrakaaron ki khaamiyaan ( Aua kabhi-kabhi to chaaritra se judi information) behad shaatiraana aur bebaak (Ya bad-bole ? ) andaaz mein, Bina lihaaz kiye , bayan karte hain ! Aap bhi kabhi shikhar par honge , aap ka bhi patan hua hoga . Khaami har kisi mein hoti hai , Kyonki GOD to koi nahi hota ( Aap Khud ko maan baithe hon, to baat alag hai ) . Agar Khud ko God nahi maane hain , to Kabhi khud mein bhi khaami nazar aayee hai ya nahi ? Gar aayee hai to ek-aadh *kissa* , isi shaatiraana andaaz mein, khud ke baare mein bhi bayan karien !
Sheeshe ke ghar mein maith kar , dusaron ke gharon par patthar barsaane ki addat ab Media jagat mein aam hai, lihaaza Ummid hai ki aap na-ummid karenge !
[b][u]ये लिखा तो था[/u] —
केंद्रीय लॉ बोर्ड के सदस्य और कार्यकारी मुखिया आर वासुदेवन हालांकि अमर उजाला अखबार समूह से दस लाख रुपए रिश्वत मांगने और सात लाख रुपए पाने के मामले में तिहाड़ जेल में बंद हैं लेकिन अब तक उनके ठिकानों पर हुई तलाशी में एक करोड़ चालीस लाख रुपए नकद और करीब एक करोड़ रुपए के गहने बरामद किए जा चुके हैं। वासुदेवन कुख्यात सत्यम घोटाले की भी जांच कर रहे थे। उन्हें रकम पहुंचाने वाला कंपनी सेक्रेटरी मनोज बाठिया भी हिरासत में है। लेकिन इस पूरे मामले के सूत्रधार वकील अंकुर चावला से पूछताछ हुई, बाठिया के साथ बिठा कर तथ्यों की पड़ताल हुई और उसके बाद उसे घर जाने दिया गया। आखिर अंकुर चावला देश के सबसे चर्चित संपादक प्रभु चावला के बेटे हैं। प्रभु चावला जिंदगी भर दिल्ली में जमुना पार विवेक विहार में रहे और मगर बेटे का कार्यालय डिफेंस कॉलोनी जैसी शानदार बस्ती में है।
बाठियां ने चावला की मौजूदगी में कहा कि सौदा पूरा चावला ने किया था, अमर उजाला के मालिकों से रकम ले कर भी उसी ने दी थी और कहा था कि इसे वासुदेवन को पहुंचा दिया जाए। बाठिया और वासुदेवन को तो जेल भेज दिया गया मगर अंकुर चावला के पिता का प्रताप इतना है कि उन्हें बाइज्जत बुला कर सिर्फ पूछताछ की जा रही है। जैसी प्रभु इच्छा।
अंकुर चावला घपले वाले मामलों में पहली बार नहीं फंसा है। वह क्लिफोर्ड चांस नाम की एक कानूनी फर्म के साथ काम करता है और इस फर्म पर आरोप है कि उसने भारत में 9 करोड़ 16 लाख रुपए 1996 से 1998 के बीच आयकर में हजम कर लिए। अंकुर चावला इस कंपनी के वकीलों में से एक हैं और इन वकीलों का तर्क है कि भले ही काम भारत में हुआ हो मगर भुगतान विदेश में हुआ है इसलिए भारत के आयकर कानून इस पर लागू नहीं होते। इस सिलसिले में बांबे हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला भी दिया गया हैं। जहां जनवरी में फैसला आया था कि भारत में किए गए काम पर ही भारत में टेक्स लग सकता है।
इसे ऐसे समझिए। आपको कोई व्यापार करते हैं। आपको दिल्ली या भारत के किसी भी शहर में इस व्यापार से एक करोड़ रुपए का लाभ होता है। लाभ का यह भुगतान आप किसी विदेश बैंक में लेते हैं और भारत में आयकर नहीं भरते। कानूनी भाषा में यह मामला हवाला और प्रवर्तन निदेशालय दोनों का अभियोग बनेगा मगर क्लिफोर्ड चांस के मामले में अभूतपूर्व रियायत बरती जा रही है। जैसी प्रभु इच्छा।
अमर उजाला वाले मामले पर लौट कर आए तो वासुदेवन के लॉकर खुल रहे हैं, फिक्स डिपाजिट बरामद हो रहे हैं। बारह बैंक खाते मिल चुके हैं और उनकी पड़ताल हो रही है, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में जांच चल रही है। सीबीआई ने बाठिया और वासुदेवन को तो गिरफ्तार कर लिया मगर अंकुर चावला की पूछताछ के लिए हिरासत भी नहीं मांगी। जाहिर है कि अंकुर के प्रभाव का दायरा काफी बड़ा है। यह भी जाहिर है कि सीबीआई के अभियुक्त मामने के पैमाने असल में इस बात से तय होते हैं कि अभियुक्त कितना असर रखता है। अंकुर के पिताश्री प्रभु चावला की राजनैतिक दायरों में हस्ती से कोई भी अपरिचित नहीं हैं। आखिर वे सरकार द्वारा पद्मभूषण यों नहीं बन गए।
मामला यह है कि अमर उजाला के मालिकों अतुल महेश्वरी और अशोक अग्रवाल के बीच कानूनी लड़ाई चल रही हैं। एक तरफ अशोक अग्रवाल और उनके बेटे मनु अग्रवाल है जिनके अधिकार कम किए गए तो वे कंपनी लॉ बोर्ड चले गए। वहां वासुदेवन ने सुनवाई की और फैसला दिया कि आखिरी फैसले तक जो स्थिति है वही बनी रहनी चाहिए। आखिरी फैसले के दौरान तय था कि अशोक अग्रवाल को उनके हिस्से के बदले सैकड़ों करोड़ रुपए देने पड़ते और अतुल महेश्वरी के बारे में कहा जाता है कि वे यही फैसला बदलवाना चाहते थे। अब अतुल महेश्वरी को भी पूछताछ के लिए नोटिस मिल चुका है क्योंकि शिकायतकर्ता अशोक अग्रवाल है। [b][/b][/b]
dead body par goli nahi chalaijati. khud ke gireban me jhakna chahiye ki satta ke galiyare me kab kisne kya kiya?
alok ji
aap ne likhne me deri kyo ki, pahle likhte to kam se kam duniya ko pata chalta or kam nukshan hota http://www.vkkaushik1.blogspot.com
regards