बिनायक के साथ खड़े न हुए तो हमारे साथ भी यही होगा

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बिनायक सेन
बिनायक सेन
छत्तीसगढ़ में रायपुर की एक अदालत ने मानवाधिकार नेता डॉ. बिनायक सेन को आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी. पुलिस ने डॉ. सेन पर कुछ मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं लेकिन उन पर असली मामला यह है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ रियासत के शासकों की भैंस खोल ली है. बिनायक सेन बहुत बड़े डाक्टर हैं, बच्चों की बीमारियों के इलाज़ के जानकार हैं. किसी भी बड़े शहर में क्‍लीनिक खोल लेते तो करोड़ों कमाते और मौज करते.

शासक वर्गों को कोई एतराज़ न होता. छतीसगढ़ का ठाकुर भी बुरा न मानता, लेकिन उन्हें पता नहीं क्या भूत सवार हुआ कि वे पढ़ाई-लिखाई पूरी करके छत्तीसगढ़ पहुंच गए और गरीब आदमियों की मदद करने लगे. उन्हें गरीब आदमियों की मदद करनी थी तो छत्तीसगढ़ के बाबू साहेब से मिलते और सलवा जुडूम टाइप किसी सामजिक संगठन में भर्ती हो जाते. गरीब आदमी की मदद भी होती और शासक वर्ग के लोग खुश भी होते, लेकिन उन्होंने राजा के खिलाफ जाने का रास्ता चुना और असली गरीब आदमियों के पक्षधर बन गए. केसरिया रंग के झंडे के नीचे काम करने वाले छत्तीसगढ़ के राजा को यह बात पसंद नहीं आई और जब उनकी चाकर पुलिस ने फर्जी आरोप पत्र दाखिल करके उन्हें जेल में भर्ती करवा दिया है तो देश भर में लोकतंत्र और नागरिक आज़ादी की बात करने वाले आग-बबूला हो गए हैं और अनाप-शनाप बक रहे हैं.

दिल्ली हाई कोर्ट में पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर कहते हैं कि न्याय नहीं हुआ. मुझे ताज्जुब है कि जस्टिस सच्चर इस तरह की गैर-ज़िम्मेदार बात क्यों कर रहे हैं. उनके स्वर्गीय पिता जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भीमसेन सच्चर ने तो सत्ता के मद में पागल लोगों की कारस्तानियों को बहुत करीब से देखा है. वे आज़ादी के बाद भारतीय पंजाब के मुख्यमंत्री थे. आज का दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और भारतीय पंजाब तब एक सूबा था. स्व. भीमसेन सच्चर उसी राज्य के मुख्यमंत्री थे और जब उनको 1975 में लोकतंत्र की रक्षा की बीमारी लगी तो जेल में ठूंस दिए गए. उन पर इमरजेंसी की मार पड़ गयी थी. जब वे जेल के अन्दर बंद करने के लिए ले जाए जा रहे थे तो उन्होंने जेल के गेट पर लगी शिला पट्टिका को पढ़ा. लिखा था- “इस जेल का शिलान्यास पंजाब के मुख्यमंत्री श्री भीमसेन सच्चर के कर कमलों से संपन्न हुआ.” मुस्कराए और आगे बढ़ गए. तो जब उन आज़ादी के दीवानों को, जिनकी वजह से इमरजेंसी की देवी प्रधानमंत्री बनी थीं, भी जेल में ठूंसा जा सकता है तो डॉ. बिनायक सेन की क्या औकात है. उनका तो छत्तीसगढ़ के बाबू या उनके दिल्ली वाले आकाओं पर कोई एहसान नहीं है, उनको जेल में बंद करने में कितना वक़्त लगेगा.

यहाँ यह भी समझने की गलती नहीं करनी चाहिए कि बिनायक सेन को जेल में ठूंसने वाली सरकार और स्व. भीमसेन सच्चर को जेल में बंद करने वाली सरकार की विचारधारा अलग थी. ऐसा कुछ नहीं था. दोनों ही शासक वर्गों के हित साधक हैं और दोनों ही गरीब आदमी को केवल मजदूरी करने का हक देने के पक्षधर हैं. ऐसी मजदूरी जिसमें मेहनत की असली कीमत न मिले. डॉ. बिनायक सेन की गलती यह है कि उन्होंने अपने आपको उन गरीब आदमियों के साथ खड़ा कर दिया जिनका शोषण शासक वर्गों के लोग कर रहे थे और डॉ. सेन ने उनको जागरूक बनाने की कोशिश की. इसके पहले इसी गलती में जयप्रकाश नारायण को जेल की हवा खानी पड़ी थी.

महात्मा गाँधी और उनके सभी साथियों को 1920 से 1945 तक बार-बार जेल जाना पड़ा था. उनका भी जुर्म वही था जो बिनायक सेन का है यानी गरीब आदमी को उसके हक की बात बताना. शासकवर्ग शोषित पीड़ित जनता के जागरण को कभी बर्दाश्त नहीं करता. जो भी उन्हें जागरूक बनाने की कोशिश करेगा, वह मारा जायेगा. वह महात्मा गाँधी भी हो सकता है, जयप्रकाश नारायण हो सकता है, या बिनायक सेन हो सकता है. एक बात और. अगर महात्मा गाँधी के साथ पूरा देश न खड़ा हुआ होता तो आज उनकी कहानी का कोई नामलेवा न होता. जेपी के साथ भी देश का नौजवान खड़ा हो गया तो सत्ता के मद में पागल लोग हार गए. अगर हुजूम न बना होता तो सब को मालूम है कि इमरजेंसी की देवी ने हर उस आदमी को जेल में बंद कर दिया था जो जयप्रकाश नारायण को सही मानता था. अगर सब उनके साथ न आ गए होते तो जेपी के साथ-साथ हर उस आदमी की मौत की खबर जेल से ही आती, जो लोकतंत्र और नागरिक आज़ादी को सही मानते थे. डॉ. बिनायक सेन के केस में भी यही होने वाला है.

अगर लोकशाही की पक्षधर जमातें ऐलानियां उनके साथ न खड़ी हो गयीं तो सब का वही हाल होगा जो बिनायक सेन का हुआ है. बिनायक सेन के दुश्मन छत्तीसगढ़ के राजा हैं लेकिन उनके साथी हर राज्य में हैं, कहीं वे कांग्रेस पार्टी में हैं तो कहीं बीजेपी में लेकिन हैं सभी लोकतंत्र की मान्यताओं के दुश्मन. इसलिए ज़रुरत इस बात की है कि देश भर में वे लोग मैदान ले लें जो नागरिक आज़ादी और जनवाद को सही मानते हैं. वरना आज जो लोग बिनायक सेन का घर जलाने पहुंचे हैं वे कल मेरे और आपके दरवाज़े भी आयेगें और हमारे साथ खड़ा होने के लिए कोई नहीं होगा.शेषजी

लेखक शेष नारायण सिंह देश में हिंदी के जाने-माने स्तंभकार, पत्रकार और टिप्पणीकार हैं. इन दिनों मुंबई में डेरा डाले हुए हैं.

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Comments on “बिनायक के साथ खड़े न हुए तो हमारे साथ भी यही होगा

  • kamta prasad says:

    शेष नारायण जी और विनायक सेन की पक्षधरता को सलाम।

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  • madan kumar tiwary says:

    शे्षनाथ जी लडाई लडने के लिये लोग तैयार हैं। चारो तरफ़ से आवाजे उठ रहीं हैं। मैने अपने ब्लाग पर भी लिखा है। और अरुण साथी ने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है है पढे और लोगो को जाग्रुक करे । जीत हमारी हीं होगी । डाक्टर बिनायक सेन एक महान देशभक्त हैं अभी तक कोई भी मुझे नेट पर नही मिला जिसने उनकी आलोचना की हो या उन्हे देश गद्दार कहा हो। आधी लडाई तो हम जित चुके । बाकी रही जेल से छुटने की बात एक हफ़्ते के अंदर वह लडाई भी मुकाम पर पहूंच जायेगी।
    मेरे ब्लाग से आज रायपुर की अदालत ने डाक्टर बिनायक सेन जो नक्सलवाद ग्रसित छतीसगढ के आदिवासी क्षेत्रों में चिकित्सालय चलाने के लिये पुरी दुनिया में ख्याति अर्जित कर चुके हैं , को देशद्रोह के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई । डाक्टर सेन पर अभियोग था की जेल में बंद एक नक्स्लवादी की चिकित्सा करते समय , उसके द्वारा दिये गये एक पुर्जी को बाहर पहुंचाया था। डाक्टर सेन ने किसी भी गलत काम से ईंकार किया था। डाक्टर सेन को २००७ में गि्रफ़्तार किया गया था। उनकी रिहाई के लिये दुनिया के २२ नोबल प्राईज विजेताओं ने भारत की सरकार से अपील की थी । सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें जमानत दी गई थी। उनके उपर देशद्रोह का अभियोग लगा था। हमारे देश के कानून की किताब आईपीसी के चैप्टर VI देश के विरुद्ध अपराधों से संबंधित है। बडा हीं अजीब है इसके प्रावधान , खासकर के धारा १२३ और १२४ ए । इन प्रावधानों के तहत किसी भी व्यक्ति को जो सही बात भी कह रहा हो जेल भेजा जा सकता है, १२३ में यह लिखा गया है की कोई भी व्यक्ति कोई ऐसी हरकत करता है जिससे यह जाहिर हो की भारत के सरकार के खिलाफ़ युद्ध से संबंधित कोई जानकारी वह छुपा रहा है या उसके द्वारा उस जानकारी के नही उजागर करना , भारत के सरकार के खिलाफ़ युद्ध का कारण हो सकता है, । दुसरी धारा है १२४ ए , ईसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर, इशारे या दिखाई देने वाले तरीके से प्रदर्शित करता हो या अन्य तरीके से , भारत की सरकार से लोगो का मोहभंग करने का प्रयास करता है, उसे आजीवन कारावास की सजा होगी। मैं समझता हूं की १२३ और १२४ए के प्रावधानों के अनुसार सच बोलने और भारत की सरकार के द्वारा किये जा रहे गलत कार्यों की आलोचना करने वाला हर भारतीय देशद्रोही है। मैं खुद को उन देशद्रोहियों की श्रेणी में पाता हूं , क्योकिं मैं बहुत सारी गलत बाते जो इस देश की सरकार करती है, उसके खिलाफ़ हूं। अभी कुछ दिन पहले गया जिले के के बोधगया के ढाबानुमा होटल से सीआरपीएफ़ के द्वारा चार लोगो को दिन दहाडे उठाकर , कैंप में ले जाकर , चार दिनोंतक पुछताछ के नाम पर यातना दी गई। मैने गया के जिलाधिकारी के द्वरा चुनाव के दरम्यान बुलाये गये प्रेस कांफ़्रेस में एस एस पी अमित लोढा से पुछा, उन्होने गिरफ़्तारी से ईंकार किया लेकिन सीआरपीएफ़ के कैंप मे रखकर पुछताछ किये जाने को अमित लोढा ने जायज ठहराया। आप सभी जानते हैं देश के कानून के अनुसार किसी को भी चार दिनों तक बिना एफ़ आई आर दर्ज किये , पुछ्ताछ के लिये रखना, गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाकर रखने का अपराध है। खैर मेरी आदत में शुमार है गलत के खिलाफ़ आवाजे उठाना वह भी बिना किसी अपेक्षा के। अब मैं चर्चा करता हूं उस जज के जिसने सजा सुनाई । पहली बात जज या वकिल बनने के पहले समझ जाईये की आपके अंदर क्या गुण होना चाहिये। एक – कानून का ग्यान , दुसरा – अनुभव और तिसरा सबसे महत्वपू्र्ण है। सहज-ग्यान या स्वभाविक बुध्दि . In English, legal knowledge, experience and instinct. दु्र्भाग्य या यों कहिये की सबसे दुखद बात यह है की देश के नब्बे प्रतिशत , चाहे निचली अदालतों में हो या सर्वोच्चय न्यायालय मे, उनके पास सहज-न्यायायिक बुद्धि का अभाव है। यह शिक्षा से नही आती बल्कि नैसर्गिक होती है। आज देश की जेलों में ५० प्रतिशत से ज्यादा सजायाफ़्ता निर्दोष है । उनकी सजा को सर्वोच्चय न्यायालय ने भी बहाल रखा है। अब उन जजों को जिन्होने निर्दोषों को सजा सुनाई उन्हें अपराधी न कहना अपने जमीर को झुठलाना है। कानून की किताबों में एक ्प्रावधान है decision taken in good faith. और इस गंदे प्रावधान के कारण निर्दोष को फ़ांसी की सजा देनेवाले को भी कुछ नही हो सकता . हालांकि गुड फ़ेथ की एक व्याख्या लिमिटेशन एक्ट में है , परन्तु विवेकहीन न्यायाधीश यह मानकर चलते हैं की सिर्फ़ घुस लेकर या किसी के दबाव में लिया गया फ़ैसला हीं उस श्रेणी में आता है। मैने रिटार्यड भारत के मुख्य न्यायाधीश के जी बाला कर्‍ष्णन को गैस विवाद के मामले में मुकेश अंबानी के पक्ष में गये फ़ैसले को सबसे खराब फ़ैसला मानता हूं। मैने केजीबी के बारे में लिखा है की वह भ्रष्ट था। रिटा्र्यड होने के पहले हीं उसने जुगाड बैठा लिया था और तुरंत उसे मानव अधिकार आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया । खैर दोस्तो आगे आओं डाक्टर बिनायक सेन के समर्थन में आवाज उठाओ। मैं छ्तीसग़ढ के उस विवेकहीन जज के फ़ैसले को बहुत हीं गलत मानता हूं। वस्तुत: उसे जज नही होकर पुलिस अधिकारी होना चाहिये था। डाक्टर बिनायक सेन आपको मेरा शत-शत नमन । हिन्दुस्तान को आप जैसे लोगों की जरुरत है । मैने इस फ़ैसले को मानवाधिकार का हनन माना है।

    अरुण साथी जी के ब्लाग चौथा खंभा से ली गई कविता पढे :

    राजद्रोह है
    हक की बात करना।

    राजद्रोह है
    गरीबों की आवाज बनाना।

    खामोश रहो अब
    चुपचाप
    जब कोई मर जाय भूख से
    या पुलिस की गोली से
    खामोश रहो।

    अब दूर किसी झोपड़ी में
    किसी के रोने की आवाज मत सूनना
    चुप रहो अब।

    बर्दास्त नहीं होता
    तो
    मार दो जमीर को
    कानों में डाल लो पिघला कर शीशा।

    मत बोलो
    राजा ने कैसे करोड़ों मुंह का निवाला कैसे छीना,
    क्या किया कलमाड़ी ने।

    मत बोला,
    कैसे भूख से मरता है आदमी
    और कैसे
    गोदामों में सड़ती है अनाज।

    मत बोलो,
    अफजल और कसाब के बारे में।
    और यह भी की
    किसने मारा आजाद को।

    वरना

    विनायक सेन
    और
    सान्याल की तरह
    तुम भी साबित हो जाओगे
    राजद्रोही

    राजद्रोही।

    पर एक बात है।
    अब हम
    आन शान सू
    और लूयी जियाबाओ
    को लेकर दूसरों की तरफ
    उंगली नहीं उठा सकेगें।

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  • Ramesh Kumar Singh says:

    Vinayak Sen ko di gayee saja , Manvadhikar sanghthano avam karyakartayon ke rachnatmak prayshon par bhari kutharadhat hai. Jise saja milni chahiye unse varta ke dwar khole jate hain aur jinhen samman milen chahiye woh sajaye kaid hain. Dhanya ho hamari bayabastha ki.

    Reply
  • sandhir kumar boudh says:

    Yahan par sahi baat kahane wale ko deshdrohi aur Andwisav ke pujari aur Manwanta ke dusman ko deshbhagat karar diya jaata hai.

    Reply

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