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दुख-दर्द

मजाक बनी उत्तराखण्ड में प्रेस मान्यता

: आंख मूंदकर दी गयी राज्य में पत्रकार मान्यता : आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को मिली पत्रकार मान्यता : एलआईयू जांच पर उठने लगे सवाल : देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य में पत्रकार मान्यता एक मजाक बनकर रह गयी है। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा दी जाने वाली पत्रकार मान्यता से ऐसे लोगों को लाभान्वित कर दिया गया है जो आपराधिक प्रवृत्ति के हैं। इतना ही नहीं, कई लोग तो स्वयं को दूसरे राज्यों में मृत भी घोषित कर चुके हैं।

: आंख मूंदकर दी गयी राज्य में पत्रकार मान्यता : आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को मिली पत्रकार मान्यता : एलआईयू जांच पर उठने लगे सवाल : देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य में पत्रकार मान्यता एक मजाक बनकर रह गयी है। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा दी जाने वाली पत्रकार मान्यता से ऐसे लोगों को लाभान्वित कर दिया गया है जो आपराधिक प्रवृत्ति के हैं। इतना ही नहीं, कई लोग तो स्वयं को दूसरे राज्यों में मृत भी घोषित कर चुके हैं।

इन लोगों की एलआईयू जांच किस प्रकार की गयी, इस पर भी बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। केवल आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को मान्यता प्रदान करने की बात ही नहीं बल्कि सूचना एवं लोक संपर्क विभाग ऐसे लोगों को भी पत्रकार मान्यता प्रदान कर चुका है जो कल तक चौराहों पर आवाज लगाकर समाचार पत्र बेचने का काम करते थे। हॉकर कहलाने वाले ये लोग आज मान्यता प्राप्त पत्राकार बनकर प्रदेश में घूम रहे हैं। अक्षर ज्ञान के नाम पर जीरो ये मान्यता प्राप्त पत्रकार क्या पत्राकारिता करते होंगे, इसका जवाब तो सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के पास भी नहीं है। जिन लोगों को अपने शहर तक का नाम हिन्दी में लिखना न आता हो वह देश का चौथा स्तम्भ कैसे बन सकते हैं, यह भी अपने आप में बड़ा सवाल बन चुका है।

वैसे केवल उत्तराखण्ड राज्य ही नहीं बल्कि देश के सभी राज्य अपने यहां पत्रकारिता करने वाले लोगों को पत्रकार मान्यता प्रदान करते हैं लेकिन वहां के नियम कानून बेहद सख्त हैं और वहां का स्थानीय अभिसूचना इकाई भी बेहद सक्रिय रहता है इसलिए उन राज्यों में आपराधिक प्रवृत्ति के पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों को मान्यता प्रदान नहीं की जाती। वो तो भला हो भाजपा राज्य सरकार का जिसके मुखिया स्वयं एक पत्रकार हैं और शायद वह पत्रकार मान्यता का लाभ हर किसी को देना चाहते हैं इसलिए पत्रकार मान्यता नियमावली बेहद लचीली बना दी गयी है जिसका लाभ छुटभैये लोग भी उठा रहे हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि उत्तराखण्ड राज्य में ऐसे व्यक्तियों को पत्रकार मान्यता प्रदान की गयी है जो दूसरे राज्यों में धोखाधड़ी कर वहां से भागकर देहरादून आ गए। इतना ही नहीं, वह वहां अपने को मृत तक घोषित कर चुके हैं। एक व्यक्ति जब स्वयं को मृत घोषित कर चुका है तो उसे कैसे पत्रकार मान्यता दी जा सकती है, इसका जवाब तो शायद न ही सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के पास होगा और न ही राज्य सरकार के पास।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि स्थानीय अभिसूचना इकाई ने ऐसे व्यक्ति की क्या जांच करी। वैसे उत्तराखण्ड सूचना एवं लोक संपर्क विभाग उन लोगों को भी पत्रकार मान्यता दे चुका है जो धोखाधड़ी के आरोप में जेल की हवा खा चुके हैं और वर्तमान में भी ऐसे व्यक्तियों के मामले माननीय न्यायालय में विचाराधीन हैं। देहरादून में कुछ ऐसे पत्रकार भी हैं जो रिश्वतखोरी करते समय रंगे हाथों धरे गए और हवालात तक पहुंच गए लेकिन आज न वह स्वयं मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं बल्कि पूरे खानदान को पत्रकार मान्यता दिला चुके हैं। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के अधिकारी भी ऐसे व्यक्तियों के आगे हमेशा नतमस्तक होते रहते हैं। विभागीय अधिकारियों पर दबाव डालने के इरादे से ऐसे व्यक्ति उन पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी बन जाते हैं जो स्वयं को पत्रकारहित के लिए संघर्षरत बताते हैं लेकिन आज तक पत्रकारों के हित में क्या कदम उठाये, इसका जवाब इन संगठनों के पास नहीं होता।

कुछ तथाकथित पत्रकारों ने तो सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के ऊपर अपनी ऐसे घेराबंदी की हुयी है जिसके कारण सही पत्रकारों को न ही सरकारी कार्यक्रमों की सूचना मिल पा रही है और न ही अपने ही विभाग से कुछ लाभ मिल पा रहा है। जो पत्रकार श्रमजीवी की श्रेणी में आते हैं और देहरादून में वर्षों से ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं ऐसे पत्रकारों को तथाकथित पत्रकारों ने शर्मिंदा करके रख दिया है। वरिष्ठ पत्रकार तो स्वयं को पत्रकार कहने में भी शर्म महसूस कर रहे हैं। आज का माहौल कथित पत्रकारो ने ऐसा बना दिया है कि सभी पत्रकार बिरादरी के ऊपर ब्लैकमेलिंग के आरोप लगने लगे हैं। चौराहों पर पुलिसकर्मियों से झगड़े कर स्वयं को मान्यता प्राप्त पत्रकार कहने वाले क्या पत्रकारिता करेंगे, इसका स्वयं अंदाजा लगाया जा सकता है।

इतना ही नहीं, चौराहों पर गाड़ियां खड़ी करके शराब की बोतलों को लहराने वाले किस श्रेणी की पत्रकारिता कर रहे होंगे, इसका भी अपने आप में अंदाजा लग सकता है। केवल गुंडई करने के लिए पत्रकारिता की आड़ लेने वालों की अब छंटनी होना आवश्यक है। कहावत है कि ‘एक समय में आकर सब्र का पैमाना भी छलकने लगता है।’ यही हाल उत्तराखण्ड के वरिष्ठ पत्रकारों का भी है। वह पत्रकारिता को भरे चौराहे नीलाम होता नहीं देख पा रहे हैं।

देहरादून से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित. पत्रकार महोदय ने अपना नाम गोपनीय रखने का अनुरोध किया है.

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0 Comments

  1. manoj

    February 9, 2011 at 2:14 pm

    यशवंत जी लगता है आप भी इमानदारी से भड़ास को नही चला रहे हैं. कल तक जो खबर फर्जी patrakar विजय जायसवाल ke naam से parkasit ki gaee aaj aapne use bannam kar diya

  2. Rajender

    February 9, 2011 at 3:32 pm

    यंशवत जी जिस पत्रकार द्वारा यह पत्र भेजा गया है वह ऐसा फर्जी व्यक्ति है जो खुद को पत्रकार बोलता है और अपने दफतर मेंे नंगा पाया जाता है वो दूसरों पर उंगली उठा कर क्या साबित करना चाहता है। समाचार पत्र की बीस प्रति छाप कर अपने आपको संघर्षशील पत्रकार कहना वाला इस जायसवाल ने कभी एक सम्पादकीय भी लिखा है। एक विज्ञापन एजेंसी में लाखों का चूना लगा कर अपने आपको सिद्वान्तवादी पत्रकार बनाने वाला ये मान्यावर जो छः माह जेल में रहा कर आया है और हाईकोर्ट से जमानत पर है वो दूसरों पर क्यूं आरोप लगा रहा है? इसका उत्तर अपनी मान्यता ना होना है, दूसरों के बारे में उच्च विचार रखने वाले उक्त मान्यवर अपनी धर्मपत्नी की मान्यता करते वक्त पत्रकारिता याद नहीं है। यंशवत जी, आपका में बेहद अभारी हूँ सच्ची को उजागर करने के लिये मगर कृपा करके ऐसा व्यक्ति को इस महान साईट से जगह देने से पहले सोच-समझ करे करें। पाठकों ऐसा कथित को पत्रकार नहीं कुछ और ही कहा जाता है…….। मुदद्ा सही है मगर उठाना वाला गलत और मतलबी है।

  3. Rajender

    February 9, 2011 at 3:32 pm

    यंशवत जी जिस पत्रकार द्वारा यह पत्र भेजा गया है वह ऐसा फर्जी व्यक्ति है जो खुद को पत्रकार बोलता है और अपने दफतर मेंे नंगा पाया जाता है वो दूसरों पर उंगली उठा कर क्या साबित करना चाहता है। समाचार पत्र की बीस प्रति छाप कर अपने आपको संघर्षशील पत्रकार कहना वाला इस जायसवाल ने कभी एक सम्पादकीय भी लिखा है। एक विज्ञापन एजेंसी में लाखों का चूना लगा कर अपने आपको सिद्वान्तवादी पत्रकार बनाने वाला ये मान्यावर जो छः माह जेल में रहा कर आया है और हाईकोर्ट से जमानत पर है वो दूसरों पर क्यूं आरोप लगा रहा है? इसका उत्तर अपनी मान्यता ना होना है, दूसरों के बारे में उच्च विचार रखने वाले उक्त मान्यवर अपनी धर्मपत्नी की मान्यता करते वक्त पत्रकारिता याद नहीं है। यंशवत जी, आपका में बेहद अभारी हूँ सच्ची को उजागर करने के लिये मगर कृपा करके ऐसा व्यक्ति को इस महान साईट से जगह देने से पहले सोच-समझ करे करें। पाठकों ऐसा कथित को पत्रकार नहीं कुछ और ही कहा जाता है…….। मुदद्ा सही है मगर उठाना वाला गलत और मतलबी है।

  4. shravan shukla

    February 9, 2011 at 5:24 pm

    kya sach me? aise to patrakaarita ka beda gark ho jaayega

  5. benaam

    February 10, 2011 at 8:59 am

    yashwant ji. waise to uttarakhnad me chor kism k patrkaron ki jamat kafi ho chuki he. ye bilkul sach he. lakin patrkaron ke liye ya neta mukyamantri
    mantri ke liye koi niyam kanoon thode hi na he. kahin nhi likha gaya he ki cm pada likha hona chaiye ya patrkaar padha likha hona chahiye.
    ek chaprasi ke liye 5 vi pas hona jaroori he lakin ek mukyamantri aur ek patrkaar ke liye koi jaroori nhi he.
    rahi baat uttarakhand ki to yahan to bahut bura haal . sach to ye he ki jo yahan ke adhikaari hain khaskar soochna ke unko dara dhamka kaer vigyapan hasil kiye jaten hain.
    aur vigyapan uttarakhand ke tamilnadu ke channelon tak pahuchaye ate hain.
    aur adhikariyon ki bhi phatati he iska matlab ye hai ki wo patrkaar wakai me apradhi parvartii ke hain.

    zanch to honi chahiye per is sarkaar k baad kyunki is sarkaar me koob setting chalti he in patrkaron ki.

    yaswant ji ek baat ye bhi hai ki jab asli patrkaron ki mundi khankagi to hir sare farziyon ka suupda saaf hone me der bhi nhi lagegi. bus chor type patrkaar malamaal ho rahe hain aur hum jaise patrkaar nange hi bane hue hain. humare pas ek taakat hai wo he sadachaar ki imaandari ki. isliye akad bhi rahti he.
    un choron ke saamne hum chode ho k rahte hain.

  6. raju reporter

    February 13, 2011 at 8:09 am

    rajndera ji, ap bataiye kya dehradun me golgappey aur chat bechney wala vyakti nigam aj time tv ka bureau chief bankar kya lakho me nahi khel raha hai.kya meerut me lakho ka maal kamane k bad safi aj doon me apni dukan chalakar karoda nahi kama raha hai….kya inhe ap patrakar kahenge ya dalal ya blackmailer….agar ap sab jante hai to kya kabhi apne devbhumi ki pavitra dharti se nigam,safi jaise dalalo ko bhagane k liye kabhi kuch kiya.updesh dena aasan hai khud karna bahot mushkil.

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