मीडिया का जाल या जाल में मीडिया (ए‍क)

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गोपाल शर्मा मीडिया में पैसे लेकर खबरें बेचने का का नंगा नाच भारतीय मीडिया को शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। इस बढ़ती प्रवृति को लेकर विगत महाराष्ट्र विस चुनाव और लोकसभा चुनाव के बाद प्रेस कांउसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जस्टिस जी.एन.रे ने इसे मीडिया का वेश्‍यावृति करार दिया था।

चुनाव के दौरान पैसे लेकर खबरें प्रकाशित व प्रसारित करने की पंरपरा ने समूचे मीडिया जगत को शर्मसार किया। इससे न केवल मीडिया के माथे पर बदनुमा दाग लगा अपितु मीडिया के चेहरे पर भी अच्छी खासी कालिख पुत गई है। पैसा कमाने की अंधी होड़ में कुछ समाचार पत्र तथा समाचार चैनल लोकतंत्र के प्रति अपना दायित्व ही भूल गए। मीडिया संगठनों में भी ऐसे मीडिया घरानों की करनी को लेकर अच्छी खासी नाराजगी है और आम जनमानस की नजरों में भी मीडिया की साख गिरी है। मीडिया के इस कृत्य ने मीडिया को वेश्‍या के समकक्ष ला खड़ा किया है।

दरअसल मीडिया की आउटलुक पॉवर के ग्लैमर के रूप में विगत कुछ सालों में बनती दिखी, इससे मीडिया में कई ठगों का पदार्पण हुआ। पैसे के बूते उन्होंने पहले मीडिया को अपनी रखैल बनाया और अब हर जगह बिकने बाली…। वास्तव में मीडिया में राजनीतिज्ञों के पदार्पण ने भी मीडिया को कलूषित करने का बीजारोपण किया और बढ़ते व्यवसायीकरण ने मीडिया को निर्लज्ज बना दिया। अब मीडिया की इस दुर्गति से समूचा बुद्धिजीवी वर्ग आहत है और लोकंतत्र का चौथा स्तंभ अपनी अहमियत खोता जा रहा है।

पेन पिंग्रट एण्ड इलेक्‍ट्रानिक नेटवर्क ने इसी विषय को लेकर एक खुली बहस का आयोजन किया और इसे अपनी मासिक पत्रिका के अगले अंक में हम कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित करने जा रहे हैं। हमें इस पर आपकी बेवाक टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा रहेगी ताकि इन्हें भी भड़ास4मीडिया में प्रकाशित किया जा सके। तथा इसी सब्जेक्ट पर आ रही हमारी पुस्तक में भी आपकी टिप्पणियों का समावेश हो सके। हमारा यह अभियान अप्रैल 2010 से जारी है। आगे का सफर आप और हम मिल कर भड़ास4मीडिया के साथ तय करेंगे।

भारतीय लोकतंत्र में बाजारवादी, उदारवादी नीतियों को बढ़ावा मिलने के साथ ही मीडिया के स्वरूप में भी बदलाव आया है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया पर आज चंहु ओर से आरोपों की बौछार हो रही है। देश भर में बहस छिड़ गई है कि क्या आज का मीडिया पाठकों व दर्शकों के समक्ष समाज की सही तस्वीर पेश कर रहा है या फिर किसी वर्ग विषेश का होकर रह गया है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पत्र-पत्रिकाओं में आम जनमानस की पीड़ा और सत्य को बड़ी मुश्किल से किसी कोने में स्थान मिल रहा है, जबकि धनकुबेर, कारपोरेट जगत का खुल कर गुणगान हो रहा है। स्थिति यह हो गई है कि किसी बड़े कारपोरेट या औ़द्योगिक घराने में यदि दो बर्तन भी खड़कते हैं तो मीडिया के लिए कई दिनों की रोटी का जुगाड़ हो जाता है।

वास्तव में मिशन की पत्रकारिता के दिन कब के लद चुके हैं। आज पत्रकारिता एवं मीडिया उचित या अनुचित किसी भी तरीके से पैसा बनाने का जरिया बन गया है और यहां पैसा बनाने की ही होड़ लगी हुई है। कारपोरेट कहलाए जाने वाले बड़े-बड़े मीडिया घरानों ने चुनाव के दौरान तथा अन्य अवसरों पर खबरें बेचने का जो नंगा नाच शुरू किया है, उससे पूरा मीडिया जगत शर्मसार है और मीडिया के भविष्य को लेकर चिंतित है। राज्यसभा, मीडिया संगठनों, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, यहां तक की न्याय पालिका ने भी इस मामले में संज्ञान लिया है। खबरें बेचने की घिनौनी हरकत का सच भी आज साबित हो चुका है।

सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर लगे इन जख्मों पर सरकार कोई मरहम लगाती है या कोई नीति बनाती है। कहा यही जा रहा था कि सरकार भी मीडिया प्रबंधन के आगे घुटने टेक देगी। हुआ भी यही। प्रेस काउंसिल की एक कमेटी ने जांच की, आरोप भी साबित किए लेकिन किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया। जांच के दौरान खबरों की अदायगी करने के मामले में कई नेताओं के नाम भी सामने आए। लिहाजा इन पर कोई आंच न आए इसीलिए जांच रिपोर्ट फाइलों के ढेर में कहीं दफन है। कुछ बुद्धिजीवियों की राय थी कि मीडिया को व्यापार बनाने वालों पर नकेल कसी जानी चाहिए और दोषी पाए जाने वाले समाचार पत्रों और चैनलों का पंजीकरण रद्द कर काली सूची में डाला जाना चाहिए ताकि भारतीय लोकतंत्र में आम जनमानस के बीच मीडिया की विश्‍वसनीयता एवं गरिमा को जिंदा रखा जा सके।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में खबरों से सच्चाई और तथ्य विलुप्त होते जा रहे हैं। सच्चाई को दरकिनार किया जा रहा है और बाजारू मांग के अनुरूप ही खबरें गढ़ी जा रही हैं और तराशी जा रही हैं। मुट्ठी भर लोग मीडिया को अपनी बपौती एवं गुलाम बना रहे हैं। निश्चित रूप से ऐसे हालात में मीडिया की भूमिका पर सवाल उठना लाजमी है। अब चर्चा भी इस विषय पर आम हो रही है। हैरानी तो इस बात की है कि खबरें बेचने के मामले में देश में खूब हो हल्ला हुआ लेकिन अधिकांश मीडिया ने सच को सच और झूठ को झूठ साबित करना भी मुनासिब नहीं समझा। मीडिया की पैसे लेकर खबरें छापने की घिनौनी हरकत, आम आदमी का दर्द और मीडिया कर्मियों की आह और असली मुद्दों के लिए न तो प्रिंट मीडिया के पास और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास कोई स्थान है। तमाम पहलुओं को लेकर हमने चंडीगढ़ व हिमाचल के मीडिया के प्रबुद्ध लोगों से बातचीत भी की प्रस्तुत हैं मीडिया से जुड़े लोगों की राय।

चंडीगढ़ में टाईम टुडे चैनल के समाचार प्रमुख प्रभात रंजन का कहना है कि आज ब्रेकिंग न्यूज के लिए खबरें पैदा की जा रही हैं जो नैतिक पतन का बसे बड़ा कारण है। ऊंची पहुंच वाले लोग मीडिया को प्रभावित कर अपना हित साध रहे हैं जो एक कड़वा सच है। काले कारोबारियों का रूख मीडिया की ओर तीव्रता से हो रहा है, स्वाभावकि है कि ऐसे लोगों का धन लगेगा तो नतीजा भी काला ही होगा। प्रभात रंजन कहते हैं कि लोगों में अभी भी मीडिया के प्रति विश्‍वास जिंदा है। जेसिका लाल हत्याकांड, संतोष सिंह बलात्कार मामला, बीएमडब्लयू केस, रूचिका छेड़छाड़ मामला जैसे कई उदाहरण हैं, जहां मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता ।

अमर उजाला हिमाचल के ब्यूरो प्रमुख बविंद्र वशिष्‍ठ कहते हैं कि समाज के हर वर्ग में कहीं न कहीं अवमूल्यन दिखता है और मीडिया कर्मी भी समाज का ही हिस्सा हैं। वे मानते हैं कि मीडिया की ओर काले कारोबारियों का रूख लंबे दौर तक नहीं चल सकता। उन्हें मीडिया की दशा और दिशा  सुधारने की आस है। वे कहते हैं कि मीडिया से जुड़े लोगों को अपना नैतिक चरित्र बनाए रखने के लिए खुद ही भूमिका निभानी होगी।

जारी…

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Comments on “मीडिया का जाल या जाल में मीडिया (ए‍क)

  • rakesh sharma says:

    GOPAL JI, IS BARE MAIN MERE PASS KAAFI TATHYA HAIN. IS BAARE MAIN VYAKTIGAT TOUR PER BHI KAAM KAR RAHAN HUN. IS PURE PARKARAN MAIN AAP BHADAAS4MEDIA SE BHI JAANKARI LE SAKTE HAIN. KAI BAATEN AISI HAIN JINHE PHILHAL SARVJANIK NAHI KAR RAHA HUN. MERE PAAS AAPKA NUMBER NAHI HAI AAP MERE MOBILE 094677-66607 PER SAMPARK KAR LEN.
    RAKESH SHARMA,
    KURUKSHETRA

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  • arnav, new delhi says:

    Gopal ji Aapko b4media par pada aapki lekhni me dam hai. bhatke huye media ko aap jaise log hi sambal sakte hain.
    Arnav, new delhi.

    Reply
  • sushil chitrkut says:

    Sir, Akhbar walon ne hum patrkaron ko Bhikari bana diya hai. Hamare kalam rupi hath, pawon thod kar hamare haton me kator thama diya hai ki isme vigyapan ke rup men bhik laoo.

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  • kamarkalpit says:

    paise ke liye chapna dalal ripotars ak dhandha ho gaya hai rastrya sahara deharadun ne to nishaknama chapkar ki sari simayin tor di hai.ye to paid news redn mar di hai. jo groop kamawelth gemes me news paper ko 1-1 page ka add de wo sarkari add ke liye 13 district wale cm ki charanvandana kare yah baat hajjam nahi hoti. lagta hai ki sampadak ke chintoo apna ullu sidha kar rahen hai

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  • Jai Prakash Sharma says:

    आज के समय में समाचार पत्र बड़े व्यवसायियों के लिए सुरक्षा कवच का काम कर रहा है । बड़े व्यापारी अखबार चालू करके अपना कारोबार समाचार पत्र की आड़ में धड़ल्ले से चला रहे हैं छोटे मोटे व्यवसायी भी आजकल किसी भी समाचार पत्र की एजेन्सी लेकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। मैं एक छोटे कस्बे में रहते हुए देख रहा हूं, हमारे यहां एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र की एजेन्सी लेकर संवाददाता बनकर एक पत्रकार बन्धु अपना अच्छा रूतबा जमाये हुए हैं। हाल यह है कि वे सरकारी भूमि पर अपना अच्छा षोरूम बना चुके हैं, उनके कई भू योजनाओं में भूखण्ड केवल इसलिए हैं कि वे संवाददाता हैं। समाचार पत्र की एजेन्सी आप की काबिलियत न देखकर आपकी विज्ञापन लाने की क्षमता और समाचार प़त्रों की संख्या देखती है। ऐसे लोगों से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?

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  • Jai Prakash Sharma says:

    आज के समय में समाचार पत्र बड़े व्यवसायियों के लिए सुरक्षा कवच का काम कर रहा है । बड़े व्यापारी अखबार चालू करके अपना कारोबार समाचार पत्र की आड़ में धड़ल्ले से चला रहे हैं छोटे मोटे व्यवसायी भी आजकल किसी भी समाचार पत्र की एजेन्सी लेकर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। मैं एक छोटे कस्बे में रहते हुए देख रहा हूं, हमारे यहां एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र की एजेन्सी लेकर संवाददाता बनकर एक पत्रकार बन्धु अपना अच्छा रूतबा जमाये हुए हैं। हाल यह है कि वे सरकारी भूमि पर अपना अच्छा षोरूम बना चुके हैं, उनके कई भू योजनाओं में भूखण्ड केवल इसलिए हैं कि वे संवाददाता हैं। समाचार पत्र की एजेन्सी आप की काबिलियत न देखकर आपकी विज्ञापन लाने की क्षमता और समाचार प़त्रों की संख्या देखती है। ऐसे लोगों से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?

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