मेरे जैसे एक पत्रकार के लिए इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि मुझे आलोक जी के इस दुनिया से जाने की खबर तब मिली जब उनका अंतिम संस्कार हो चुका था। हुआ यह की पिछले दो दिन मैं कुछ ऐसे काम में लगा था कि मैंने न तो कोई खबर सुनी और न ही मुझे किसी से फोन पर आलोक जी की मौत का पता चला।
मैंने 13 दिसंबर 2010 को आलोक जी को एक एसएमएस किया था, जिसमें मैंने लिखा था कि अल्लाह आपको जल्द से जल्द ठीक कर दें। मगर मुझे क्या पता था कि मेरी यह दुआ कबूल नहीं होगी और मौत जैसे सत्य का सामना आलोक जी को भी करना पड़ेगा। अब जबकि आलोक जी हमारे बीच नहीं रहे तो बार-बार यही बात ध्यान में आ रही है कि आखिर अब कौन ऐसा पत्रकार है या होगा, जो इतनी हिम्मत से किसी के खिलाफ भी लिखेगा।
राडिया वाले मामले में ही देख लीजिये उन्होंने एक पत्रकार होते हुये बेईमान पत्रकारों के खिलाफ जितना लिखा उतना किसी ने नहीं लिखा। कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद उन्हें पता नहीं इतनी हिम्मत कहाँ से आती थी। आलोक जी का एक लेख, जो की भड़ास पर ”प्रणय रॉय, आप हमें माफ ही कर दें!” शीर्षक से प्रकाशित हुआ था पर मैंने अपनी प्रतिक्रिया कुछ प्रकार लिखी थी।
आलोक जी
भाई अजब सी हिम्मत है आप में। कैंसर से पीड़ित एक व्यक्ति इतनी हिम्मत कैसे कर सकता है समझ से बाहर है। दुआ करता हूँ आप जल्दी से ठीक हो जाएँ और इसी ईमानदारी से लिखते रहें।
फिर इसपर उन्होंने जो लिखा वो देखिये। इससे अंदाज़ा हो जाएगा कि वो आदमी कितने हिम्मत वाले थे.
शिबली जी,
मेरे स्वास्थ्य की चिंता करने के लिए शुक्रिया. आपसे और सभी मित्रों से निवेदन है कि मेरे और मेरे अभिव्यक्ति के बीच बेचारे केंसर को ना लायें. मैं गोली से मर सकता हूँ, जहाज़ गिरने से मर सकता हूँ यहाँ तक कि कोई सुन्दर द्वीप मिल जाए तो उसकी सुन्दरता पर निहाल होकर मर सकता हूँ, मगर केंसर से नहीं मरूंगा. ये मरने का उचित और सार्थक तरीका नहीं है.
एक प्रोफेशनल के तौर पर प्रणय रॉय की सदा बहुत इज्ज़त की है, मगर जब जो लिखना होता है वह लिखना अपने गुरु प्रभाष जोशी से सीखा है. क्षमा सोहती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो.
मुझ पर दया नहीं करें, मेरा साथ दें और मेरी डेटलाइन इंडिया देखते रहें, बस इतनी दोस्ती निभा दीजिये. बाकी से मैं निपट लूँगा. ” मेरी हालत पे तरस खाने वालों मुझे मुआफ करो, मैं अभी ज़िंदा हूँ, औरों से जियादा ज़िंदा.”
शुभकामनाएं
आलोक तोमर
इसे पढ़कर आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आलोक जी में ग़ज़ब की हिम्मत थी। कैंसर घोषित हो जाने के बाद कौन ऐसा होगा जो इतना पाबंदी, इतनी हिम्मत और दिलेरी से लिखता रहेगा।
लेखक एएन शिबली हिंदुस्तान एक्सप्रेस के ब्यूरोचीफ हैं.
Comments on “मेरी हालत पे तरस खाने वालों मुझे मुआफ करो”
ALOK ji sher the. hamar dost hamare dilo me hamesha jinda rahega.