यकीन नहीं हो रहा रोहित के ऐसे चले जाने का

Spread the love

रोहित पाण्‍डेय
रोहित पाण्‍डेय
सुबह मोबाइल की घंटी पर हैलो के बाद जो कुछ कानों ने सुना उस पर पलभर के लिए यकीन करना संभव नहीं था। अटल सत्य मौत के चलते स्वीकारना ही पड़ा कि खुशी में खिलखिलाने व दुख में साथ-साथ आंसू बहाने वाला हरदिल अजीज मितवा रोहित पाण्डेय दुनिया में नहीं हैं। सादगी से जिंदगी गुजारने वाले कई वरिष्ठों के ‘गुरुजी‘ की मौत काफी दिनों से पीछा कर रही थी।

गुरुवार की काली रात में मौत ने आखिरकार प्रभाष जी की परम्परा के पथिक को अपने आगोश में ले ही लिया। मौत की खबर जैसे ही पता चली लोगों की आंखों के सामने बिंदास चेहरा आ गया। उसकी बेबाक लेखनी याद आ गई। दैनिक जागरण के गुरुवारीय जागरण में प्रकाशित होने वाला कालम ‘हफ्ते की बात‘ याद आने लगी, सुख हो दुख मोटरसाइकिल पर तीन सवारी बैठकर बधाई या संत्वाना देने पहुंचने वाला संवेदनशील व्यक्तित्व जेहन में दिखने लगा, पत्रकारों के गरिमा के सवाल पर बड़ों-बड़ों से भिड़ने वाला कलम का सच्चा सिपाही याद आने लगा, अभाव के बाद भी सभी के  सहयोग के लिए तत्पर रहने वाला सच्चा मित्र याद आने लगा, लेखों व स्टोरी में छोटी-छोटी गलतियों के लिए जमकर फटकार लगाने वाले असली गुरु याद आने लगा, स्वाभिमान पर ठेस लगी तो बड़े बैनर की नौकरी को ठुकराने वाला पत्रकार नजर आने लगा।

याद आता है भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी से रोहित का भिड़ना। लोकसभा चुनाव के दौरान गोरखपुर के होटल र्क्लाक इन में जोशी जी की पत्रकार वार्ता चल रही थी। बात-बात में वे कह बैठे कि हमें मालूम है कि अखबारों में पत्रकार क्या लेकर खबरें प्रकाशित करते हैं। इतने पर रोहित खड़े हुए और जोशी जी से पूछ बैठे कि आप बताएं गोरखपुर के पत्रकारों को कितना रूपए दिए हैं। जोशी जी पत्रकारवार्ता छोड़ कर चले गए। पर रोहित होटल के बाहर ही माफी की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए। बाद में पूर्व मंत्री शिवप्रताप शुक्ल के पहल पर जोशी जी ने मोबाइल पर माफी मांगी तब जाकर रोहित ने धरना समाप्त किया।

जिद भी गजब की थी यार की। जब पत्रकारिता में स्नात्कोत्तर किया तो इस जिद में डिग्री थामी की छोटे बैनर में नौकरी नहीं करनी व फ्री में भी काम नहीं करना। हुआ कुछ ऐसा ही। दैनिक जागरण गोरखपुर में वर्ष 2001 में ज्वाइन किया तो देखते ही देखते छा गए। गुरुवारीय जागरण में नियमित कालम हफ्ते की बात का तेवर इतना तल्ख था कि राजेन्द्र यादव के संपादकत्व वाले ‘हंस‘ पत्रिका को विमर्श में दो पेज खर्चना पड़ा। पत्रकारिता में भी मास्टर डिग्री होती है, के दौर में जब रोहित मंडल के पहले पत्रकारिता विषय से नेट क्वालिफाई करने वाले छात्र बने, तो लोग जानने लगे कि पत्रकारिता में ‘पास-फेल‘ भी होता है। काशी विद्यापीठ में एमजे की पढ़ाई के समय लघु शोध के लिए विषय चयन की बात आई तो उन्होंने बगैर सोचे ही गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाले ‘कल्याण‘ पत्रिका को चुना। यह अलग बात है कि लघु शोध में फोटो कापी कराकर शोध पूरा करने वालों से दिनभर गीता प्रेस के लाइब्रेरी में बैठकर शोध पूरा करने वाला शोधार्थी पीछे रह गया।

गलत पर अड़ने व लड़ने की प्रवृति ने हमेशा नुकसान किया। गोरखपुर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के कर्ताधर्ता रोहित को पढ़ाने की जिम्मेदारी उनकी क्षमता पर नहीं छात्रों की जिद से मजबूर होकर देते थे। शोध विषय के चयन की बात आयी तो उन्होंने प्रभाष जोशी के पत्रकारीय सफर को  अपना टापिक चुना। हमेशा कहते रहते कि ‘प्रभाष जी के शब्दों व जज्बे को देखकर ही पत्रकारिता का ककहरा सीखा है। उनसे बेहतर विषय और कुछ नहीं हो सकता है।‘ छह माह पहले दिल्ली इलाज के लिए गए तो मित्रों से गोरखपुर की पत्रकारिता पर  ही चर्चा में उनका अधिकांश समय गुजरता था। स्टोरी आइडिया पर बहस करने के दौरान ‘गुरु‘ का सारा दर्द काफूर हो जाता था।

आज रोहित को अपने करीब ना पाकर कुछ अनकहे सवाल अंदर तक हिला देता है। भले ही उन सवालों का उत्तर तलाशने का यह सही मंच और वक्त न हो। पर रोहित से जुड़े़ उन सभी की जिंदगी में वो लम्हा एक न एक बार जरूर आएगा, जब वे अफसोस के यह बोल बोलने को मजबूर होंगे कि ‘मौत तो अंतिम सत्य है। पर हमे दुख है कि हम वह नहीं कर सके जिसका जिंदादिल इंसान हकदार था।‘

लेखक अजय श्रीवास्‍तव हिंदुस्‍तान, गोरखपुर से जुड़े हुए हैं.

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Comments on “यकीन नहीं हो रहा रोहित के ऐसे चले जाने का

  • s.k.singh says:

    mujhe ajay ki es khabar per katai visvas nahi hota.kuchh din pahale mere patrakar mitro ne unke elaj ke liye dhan jutane ke liye baithak bullayi ,mai tha.rohit ki halat ke bare me bataya gaya to mujhe yaki nahi hua per kuchh karne ka saplap le chala aaya.mera pryas unke kam nahi aaya es bat ka mujhe kast rahega.
    rohit yuva patrakaro ke prenasrot the.
    sk singh

    Reply
  • Arvind Pandey says:

    kya likhu rohit g ke liye likhna asaan nahi hai, mere bade bhai jaise rohit g the ajay bhaiya ki baat me sirf itna jod doon ki wo jis aadmi ko mante the uske liye phir use kuchch kahne ki jaroorat nahi hoti thi wo samay aane par apni bhumika khud nibha dete the. bus aur…likha nahi ja raha..shesh smritiyo me……

    Reply
  • Abhay Tripathi says:

    बहुत ही दुख हुआ जब ये खबर मैं पढ़ा। अद्धुत इंसान थे रोहित जी, भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।

    Reply
  • दीपक श्रीवास्‍तव, गोरखपुर says:

    रोहित सर हमलोगों के लिये एक जीते जागते उदाहरण थे कि पत्रकार क्‍या होता है और पत्रकारिता कैसे होती है, उनके जाने का सदमा काफी है और उनकी जगह कोई नही ले पायेगा……. ईश्‍वर उनकी आत्‍मा को शांति प्रदान करें और उनके परिजनों को इतनी शक्ति दें कि वह इस सदमे को बर्दाश्‍त कर सकें…..

    Reply
  • ishwar singh says:

    श्री रोहित पाण्डेय युवा पत्रकारों के प्रेरणास्रोत थे। उनके निधन के बाद पत्रकारिता में शून्य पड़े स्थान को कोई भी भर नहीं पायेगा। मेरे जेहन में बार-बार ये बातें दौड़कर सामने आ रही हैं कि अब नये व युवा पत्रकार कुछ सीखने-जानने के लिये किसके पास जायेंगे। रोहित जी भले ही अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन पत्रकारिता व शिक्षा के क्षेत्र में किये गये उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उनके सपनों को साकार कर व दुख की इस घड़ी में उनके परिवार की मदद ही रोहित पाण्डेय को सच्ची श्रद्वांजलि होगी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
    ईश्वर सिंह, रिपोर्टर, Khabarindiaa.com. गोरखपुर

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *