: परदेसी से भिड़े चिखुरी ने भांजी आरोपों की गदा : चिखुरी के चीथड़े उधेड़े परदेसी ने : नारद ने झगड़े की दाल में मारा तड़का : मजबूर कनपुरिया रंगबाज ने मामला निपटाया : लखनऊ : रणभेरी के लिए पिपिहरी की आवाज में शुरुआत चिखुरी ने की:- काहे, बेइमानों के खिलाफ लड़ रहे अण्णा के समर्थन में अगर पत्रकार भी आंदोलन करें, तो इसमें गलत क्या है।
परेदसी अब तक मुंह फुलाये बैठे थे। बमक उठे:- सवाल गलत-सही का है ही नहीं। सवाल तो यह है कि तरीका क्या है। तीन सौ लोगों की यूनियन में क्या दो-चार लोग फैसला कर लेंगे। लोटा-थारी यूनियन का तौर-तरीका यहां नहीं चलेगा। कया समझे। अरे मजाक बनाने पर तुले हैं सब।
चिखुरी:- तो अब हमें बताया जाएगा कि सही-गलत क्या होता है। मेरे पास तो ईमेल आया था इस बाबत।
परेदसी:- तो खुल कर काहे नहीं कहते। कौन साला भेजा था वह मेल। और हमसे पूछा काहे नहीं। जो चाहेगा, भेज देगा। घर की खेती हे क्या। अध्यक्ष में हूं। और काहे नहीं बताया जाएगा, खुद गलत करने वालों को बेईमानी के खिलाफ जेहाद छेड़ने का हक कैसे दे दिया जाए।
तीर सीधे कलेजे में जा धंसा तो चिखुरी अब जमकर चिचिया उठे:- हमारी पत्रकार कौम में कौन है बेइमान। जरा बताओ तो।
हमसे क्या पूछते हो, बाकी लोगों के चेहरे देख कर पता नहीं चल जाता है क्या कि कौन है बेइमान हमारी बिरादरी में। किसने टेंट में रखा है माल। एकाध धेले का नहीं, कम से कम दो के नाम तो बाखुदा आईने की तरह साफ हैं। हैं तो कई और भी। और अगर ऐसे पत्रकार दलाल दस-बीस भी मान लिये जाएं तो हर एक के खाते में पांच-सात करोड़ तो गया ही है। हिन्दुस्तान वाले सर्वज्ञाता स्वामी ने बताया है कि पता लगा सको तो लगा लो, वरना मैं खुद बता दूंगा। वैसे पता क्या लगाना है, पता तो सब को है। हां, सब बेइमान नहीं हैं, लेकिन बेइमानों की तादात भी कम नहीं है। तनख्वाह झांट नहीं पाते और खर्चा हजारों का रोज। क्या इसे ही कहते है श्रमजीवी पत्रकार। अफसरों के साथ मिल कर करेंगे करोड़ों की दलाली और खुद को कहलायेंगे श्रमजीवी पत्रकार। शर्म भी नहीं आती। कमेटी को घर की जोरू बनाने का हक किसी को नहीं मिलेगा, कान खोल कर सुन लो।:- हाथ नचाते हुए परदेसी ने अपने भड़के होने का प्रदर्शन किया।
सूत्रधार:- नवाबी शौक वाले शहर-ए-लखनऊ के सचिवालय में बने मीडिया सेंटर के ठण्डे-ठण्डे माहौल में मौका माकूल था, सो माहौल गरम करने लिए शुरू हो ही गयी ले त्तेरी की, धे त्तेरी। मामला था अण्णा के आंदोलन पर उठा पत्रकारों के बीच विवाद यहां भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे अण्णा हजारे के आंदोलन को समर्थन देने या न देने का विवाद नहीं था, बल्कि खुद को आला-हजरत साबित करने का झगड़ा था। जगह भी ठीक थी, जंगजू और खाड़कू भी थे और डमरू की आवाज पर कलाबाजी दिखाने वाले हमारे पूर्वज भी। जाहिर है लड़ाई अहं को लेकर थी। हमेशा लखनऊ से बाहर रहने वाले परदेसी और लोटा-थरिया एसोसियेशन के अध्यक्ष चिखुरी का आमना-सामना हुआ तो बातचीत शुरू होते ही पएसएलवी की तरह सर्र से आसमां की बुलंदियों तक पहुंचने लगी। तो लीजिए आगे का हाल सुन लीजिए ना:-
काहे की शर्म। श्रमजीवी हैं तो हैं। हमारी पहचान ही यही है। कम से कम हम संगठित और बाकायदा अपनी यूनियन के संविधान से चलते हैं।
अब तक दब-चुप कर चूहानुमा एक पत्रकार भी आखिरकार बोल पड़ा:- अण्णा के खुद अपने गांव और आसपास चुनाव जैसी कोई चीज होती है।
अब नारद मुनि कैसे खामोश रहते। बर्दाश्त के बाहर होता जा रहा था और बाथरूम में न जाने कितनी देर से कौन होली-दीवाली तक मनाने पर आमादा था। कई बार घटखटा चुके थे। भड़ास किसी पर थी, और निकली आखिर चिखुरी पर। बोले:- चुनाव तो और भी जगहों पर नहीं होते हैं। मठाधीश की तरह लोग आजीवन एलॉटमेंट कराये रहते हैं यूनियन अध्यक्षी का।
मिर्च लग गयी चिखुरी के। लेकिन उस तरफ बात मोड़ना खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मारने की तरह था। सो, मेन रोड़ छोड़कर पगडंडी पकड़ ली। हां, चिचियाहट में दम तो था ही। बोले:- और परदेसी जिस अण्णा के खिलाफ खड़े हैं, हर कोई जानता है कि उसकी वजह क्या है। दरअसल, परदेसी प्रिज्युडिस हैं कुछ लोगों के इशारे पर।
सब समझ गये कि चिखुरी ने परदेसी पर कांग्रेसी भोंपू होने का ऐलान कर दिया है। परदेसी भी भोले नहीं। भड़क उठे:- मुझ पर दलाली का आरोप लगाने के पहले अपने गिरेहबान में झांक लो चिखुरी। मैं तो एक से प्रिज्युडिस हूं, यह तो सब जानते हैं। मैं अपना अखबार निकालता हूं। पचासों लोगों की तनख्वाह बांटते का जिम्मा है मेरा। वह भी हर महीने। लेकिन तुम जैसे लोग तो केवल अपनी जेब भरने के लिए एक नहीं दसियों के प्रति निष्ठा रखते हो। अब ज्यादा मुंह मत खुलवाओ मुझसे। अगर खुल गया तो इस हम्माम में पूरी तरह नंगे तुम ही दिखायी पड़ोगे। कहां, कितना और किस वजह से अपना लहंगा उठा देते हो तुम लोग, यह बता दूंगा। कपड़ों के नीचे तो सब जानते हैं कि आदमी नंगा ही होता है, लेकिन तब क्या होगा जब हर कोई जान जाएगा कि नंगे हो चुके आदमी के भीतर क्या-क्या, कहां-कहां और कितना-कितना गूदा-माल धरा है। बात करते हैं, हां नहीं तो।
चिखुरी चिहुंक गये, तन-बदन में आग लग गयी। लेकिन अब क्या जवाब दें। बात को ज्यादा तूल देना भी मुनासिब नहीं था। अपने बेटे की शादी के लिए वे तो यहां अपने चेलों के साथ सरकारी गेस्ट हाउस वगैरह की व्यवस्था करने आये थे और फंसा दिया इस परदेसी ने गोबर के गड्ढे में। चिटक लेना ही मुनासिब था। लेकिन ऐसे कैसे पलायन कर जाएं। चिखुरी की अपनी हैसियत है, लोटा-थरिया एसोसियेशन के अध्यक्ष हैं। ऐसे चले गये तो कालिख नहीं लग जाएगी। इसी पसोपेश में थे कि अचानक किसी देवदूत की सी आवाज आयी। यह थे कनपुरिया रंगबाज।
रंगबाज ने माहौल शांत करने के लहजे से रंभाना शुरू किया:- अरे यार। तुम लोग सब नरक कर दोगे। अपना तो कभी-कभी आते हो यहां। एक को चेयरमैनी से फुर्सत नहीं, तो दूसरे की नाल दिल्ली में गड़ी है। सरकार के चापलूस अफसरों ने यहां कैमरा तक लगवा दिया है। वे तो चाहते ही हैं कि पत्रकार आपस में गुच्ची-पिलाव करते रहें। इसी तरह झगड़ा होता रहा तो उन्हें मौका मिल जाएगा। और हम फिर यहां से भी निकाल बाहर कर दिये जाएंगे। यही चाहते हो तो यह भी कर लो। पहले वाली यूनियन ने बढिया वाली जगह से निकाल बाहर कर यहां कोने में पटक दिया, और अब तुम लोग तो सड़क पर लाकर खड़ा कर दोगे हम लोगों को। अपना ही खसम दूसरों के हाथों इज्जत लुटवाने पर तुला हो तो क्या कहा जाए। चलो, खतम करो भैया। कहो तो पैर छू लूं।
यह बात हथौड़े की तरह काम कर गयी। हालांकि भन्नाये चिखुरी चाहते थे कि रंगबाज पर इस झगड़े का उद्यापन करके अपनी भड़ास निकाल दें और पूछें कि झौव्वा भर अखबारों का बंडल लेकर टहलते हो, और दिन पर मीडिया सेंटर में इधर की उधर लगाते हो, फिर किस मुंह से बोल रहे हो, लेकिन चूंकि परदेसी के रोजा तोड़ने का वक्त आ चुका था और चिखुरी को अपने दीगर काम निबटाने। सो हां हां, चलो चलो करते हुए सभा बर्खास्त हो गयी। यह तो बाद में पता चला कि मीडिया सेंटर में चल रही इस धक्कमपेल की खबर पाकर मियां खामखां और गडकरी बाबू बाहर गेट से ही वापस रफूचक्कर हो लिए थे।
हजरतगंज के सौंदर्यीकरण में बड़े पत्रकारों ने ली थी दलाली!
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लखनऊ के पत्रकारों में ईमेल वार
लेखक कुमार सौवीर लखनऊ के जाने-माने और बेबाक पत्रकार हैं. कई अखबारों और न्यूज चैनलों में काम करने के बाद इन दिनों आजाद पत्रकारिता कर रहे हैं. उनसे संपर्क 09415302520 के जरिए किया जा सकता है.
Comments on “लखनवी पत्रकार पुराण : पुरोधा चिखुरी जब चिचिया उठे”
aap ke liye aajad patrakarita hi thik hai,, apna vigyapan chapne se naukri nahi milegii, kumar babu,,,,lage raho,,,,
आपको तो व्यंग्य बाण चलाने में अर्जुन की सी महारत प्राप्त है.
व्यंग्य लेख में एक विशिष्ट वर्ग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अत्यंत रोचक ढंग से आघात किया गया है..
कामना करता हूँ की इश्वर आपकी लेखनी को और धारदार बनाये जिसके बल पर आप समाज में व्याप्त किसी भी अनाचार पर इसी तरह कुठाराघात करते रहें…