वे बोले- मेरे संपादकीय के खिलाफ लिखो, मैं छापूंगा

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रामदत्‍त त्रिपाठी
रामदत्‍त त्रिपाठी
: इंटरव्‍यूरामदत्‍त त्रिपाठी (वरिष्ठ पत्रकार) : रामदत्त त्रिपाठी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उत्तर प्रदेश का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां उनके जानने-चाहने वाले लोग भारी तादाद में नही मिल जाएंगे. जिस प्रकार बीबीसी पूरे विश्व और भारत में निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए प्रसिद्ध है, उसी प्रकार लंबे समय से बीबीसी के उत्तर प्रदेश प्रभारी रामदत्त इस विशाल प्रदेश में अपनी निष्पक्ष, सारगर्भित शब्दावलियों और साफगोई के लिए जाने जाते है. पिछले दिनों उनसे पीपुल्स फोरम, लखनऊ की संपादक नूतन ठाकुर ने कई मुद्दों पर बातचीत की. पेश है कुछ अंश-

-कुछ अपने और अपने परिवार के बारे में बताएं?

मैं इलाहाबाद का रहने वाला हूँ और इलाहबाद विश्वविद्यालय से ला स्नातक हूँ. मेरी पत्नी पुष्पा भी इलाहाबाद की रहने वाली हैं और  एक गृहिणी है. मेरे दो बच्चे हैं. बड़ा बेटा अहमदाबाद के प्रतिष्ठित मैनेजमेंट कॉलेज मुद्रा इन्स्टिच्यूट ऑफ कम्‍यूनिकेशंस माइका से पढ़ कर दिल्ली में एक विज्ञापन कंपनी में मीडिया प्लानिंग का काम कर रहा है. छोटा बेटा इंजीनियर है, जो इसी साल आईआईएम रायपुर में चयनित हो कर वहाँ पढाई कर रहा है.

-आप पत्रकारिता में कैसे आये?

पत्रकारिता में! मैं तो समाज सेवा के लिए आया. मै यूनिवर्सिटी में यूथ लीडर था. (मुझे सहसा विश्वास नहीं हुआ, बोल पड़ी- यूथ लीडर) हाँ भाई, मैं जब 1972-73 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र था तो उस समय के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कई लब्धप्रतिष्ठित और सामाजिक सरोकार वाले प्रोफेसर लोगों के संपर्क में आ गया. उनमे प्रमुख रूप गणित के प्रोफ़ेसर बनवारी लाल शर्मा, हिंदी के डाक्टर रघुवंश, कामर्स के प्रोफ़ेसर जे एस माथुर, प्राचीन इतिहास के प्रोफ़ेसर उदय प्रकाश अरोड़ा आदि शामिल थे. ये ऐसे लोग थे जो एक महान शिक्षक होने के साथ-साथ दार्शनिक, विचारक और सामाजिक संचेतना से भी भरपूर थे. इन लोगों ने एक समिति बना रखी थी जिसका नाम सर्वोदय विचार प्रचार समिति था. इस समिति की तरफ से साप्ताहिक विचार गोष्ठी होती थीं. मैं भी इस समिति की ओर आकर्षित हो गया था. यह समिति एक पाक्षिक अखबार नगर स्वराज्य छपती थी, रेलवे स्टेशन पर सर्वोदय साहित्य स्टाल चलाती थी और लोगों तक अच्छा साहित्य पहुंचाने के लिए एक सचल पुस्तकालय चलाती थी. हम जिन लोगों के घर साइकिल पर किताबें पहुचाते थे वे सब बड़े और पढ़ने लिखने वाले लोग थे. जैसे इनमें से एक रामवृक्ष मिश्र हाईकोर्ट जज थे. मैं इन सब कामों में जुटता गया और देखते ही देखते वह मेरे दूसरे घर की तरह हो गया. फिर तो मैं अपनी पढ़ाई के साथ ही उस समिति के एक प्रमुख कार्यकर्ता के रूप में भी काम करने लगा और मेरी पहचान भी बनती चली गयी. इस समिति की अध्यक्ष महादेवी वर्मा थीं, जिनकी सादगी ने मुझे बहुत प्रभावित किया. इसी बीच मेरे जीवन में जेपी का पदार्पण हुआ.

-जेपी यानी जयप्रकाश नारायण?

जी हाँ. युवा होने के नाते सर्वोदय आंदोलन की तरुण शान्ति सेना का था. बात शायद 1973 – 74  की रही होगी, जब जेपी ने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट और भ्रष्टाचार पर एक लेखमाला लिखी और यूथ फॉर डेमोक्रेसी के नाम से आह्वान किया. तभी गुजरात और बिहार में छात्र आंदोलन शुरू हो गया. हम लोगों ने जून 74 में इलाहाबाद में दो दिन का छात्र युवा सम्मलेन आयोजित किया. मैं मंच संचालन कर रहा था. दो दिनों में कई बार जेपी से मिला. मैं तो पहली बार में ही उनसे प्रभावित हो गया था और उनका मुरीद हो गया था, पर कहीं ना कहीं मैंने भी शायद उन्हें प्रभावित किया होगा क्योंकि देखते ही देखते उन्होंने मुझे अपने बहुत नजदीक लोगों में स्थान देना शुरू कर दिया. जब हम रेलवे स्टेशन पर उन्हें पटना के लिए विदा कर रहे थे तो जेपी ने हम लोगों से कहा मैं तो बिहार में फंसा हूँ, यूपी आप लोग ही संभालो. इलाहाबाद में तो मैं जेपी आंदोलन का प्रमुख कार्यकर्ता हो गया. पूरे उत्तर प्रदेश के लिए जो छात्र युवा संघर्ष समिति बनी मैं उसका मेंबर बनाया गया. उसके बाद जेपी ने अपनी एक निर्दलीय छात्र युवा संघर्ष वाहिनी बनायी, जिसमें उन्होंने पांच युवा लोगों का एक कोर ग्रुप बनाया, मैं भी उसका सदस्य बना. मेरे अलावा संतोष भारतीय, जो आज एक बड़े पत्रकार हैं और संसद सदस्य भी रह चुके हैं, भी उस कोर ग्रुप में मेम्बर थे.

-उस कोर ग्रुप का क्या काम था और उस दौरान क्या-क्या गतिविधियां रहीं?

जेपी ने यह कोर ग्रुप पूरे उत्तर प्रदेश में अपने आन्दोलन के संचालन के लिए बनाया था. हमारा मुख्य कार्य पूरे प्रदेश में घूम कर हर जिले स्तर पर इस सम्पूर्ण क्रान्ति आंदोलन में सहभागिता करना भी था और इसका हाल-हुलिया लेना भी. उस दौरान सचमुच बहुत अधिक भ्रमण करना पड़ता था हम लोगों को. और वह भी लगभग बिना पैसे के. पास में शायद ही सौ-पचास रुपये हुआ करते हों. बस दो जोड़ी कपडे रहते और हम एक पहने और एक साथ लिए एक जिले से दूसरे जिले चलते ही चले जाते थे. ना जाने कितने ही जिले हमने इस अवधि में कवर किये- कितने सारे सभा, सम्मलेन, कितनी मीटिंग्स, कितने प्रेस कांफ्रेंस.

-उस समय का कोई खास वाकया?

एक वाकया मुझे अभी तक याद है. मैं बिजनौर जिले गया था. वहाँ एक परंपरा थी. वहाँ टाउन हॉल में सभा रात में खाने के बाद हुआ करती रही. मैं जिला परिषद डाक बंगले में ठहरा था. कई रोज के सफर में कपडे गंदे हो गए थे. मैंने अपने कपडे धो दिए थे और तौलिया और बनियान में आराम से बैठा हुआ था. तभी मालूम हुआ कि स्थानीय आयोजकों ने वहीं प्रेस कांफ्रेंस बुला राखी है. प्रेस वाले लोग आये हैं. समझ लीजिए कि मुझे उसी तौलिए और बनियान में ही प्रेस के सामने आना पड़ा और मैंने वैसे ही उन लोगों को इंटरव्यू दिया. कपडे सूखे तब रात में जनसभा में गया.

-जेपी आंदोलन के चलते पढ़ाई पर भी प्रभाव पड़ा?

उस समय की एक बात बताता हूँ. मैं उस दौरान ला के पहले साल में था. जेपी ने बिहार के सभी युवाओं को एक साल के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ कर सम्पूर्ण क्रान्ति और देश की सेवा में समर्पित होने का आह्वार किया था. उनके इस आह्वान की बड़ी आलोचना हुई. मैंने अपने अखबार नगर स्वराज्य में जेपी की हिमायत में लेख लिखा. इसके कुछ दिन बाद मेरे भी इम्तेहान आ गए. तब मैंने और मेरे दोस्त भारत भूषण शुक्ल ने जेपी आंदोलन में पूरी भागीदारी के लिए एक साल के लिए पढ़ाई छोड़ने का तय कर लिया. घर से ले कर बाहर तक सभी लोगों ने मुझे परीक्षा देने को कहा पर मैंने अपने आदर्शों और जेपी के प्रभाव के नाते अपनी परीक्षा नहीं दी और अपना साल बर्बाद होने दिया. नतीजा यह रहा कि मैंने अपनी परीक्षा छोड़ दी. इस तरह त्याग और बलिदान के जज्‍बे उभर आये थे उस समय के युवा वर्ग में. फिर इमरजेंसी के बाद मैंने ला की पढ़ाई पूरी की.

-कुछ और बातें उस समय की?

जी, जून 1975 में इमरजेंसी लगने के कुछ समय के अंदर ही मैं बनारस में गिरफ्तार हो गया और मीसा बंदी के रूप में अट्ठारह महीने बनारस और नैनी जेल में रहा.

-जेल में?

जी हाँ, जेल में रहा और बड़े मजे से रहा. चूँकि उस समय के आदर्श ही कुछ दूसरे थे लिहाजा जेल में रहने में कोई तकलीफ नहीं होती थी. कई सारे दूसरे लोग भी थे उस समय जेल में- वे लोग भी जो बाद में बड़े-बड़े मंत्री और नेता बने. जिस जेल में मैं था वहीँ राम नरेश यादव जी भी थे, जो आगे चल के उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने थे.

-फिर ये पत्रकारिता कहाँ से आ गयी?

दरअसल पत्रकारिता से मेरा लगाव पहले से था. बल्कि जिस समय यह जेपी आंदोलन चल रहा था उस समय ही मैंने सर्वोदय समिति की अपनी पत्रिका का प्रबंध संपादन और संचालन कार्य संभाला था. नगर स्वराज्य नामक यह पत्रिका काफी दिनों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आचार्य और सर्वोदय समिति के लोग निकालते रहे थे, पर उस समय वह बस किसी तरह निकल रहा था. इसके लिए हम लोगों ने हैंड कम्पोजिंग भी सीखी. मैंने समिति के लोगों से कहा कि इसे प्रोफेशनल ढंग से निकाला जाए. जिम्मेदारी मैंने स्वयं ली. फिर मैंने उसे एक सिस्टम से निकालना शुरू कर दिया. मैंने उसके लिए एक देश सेवा प्रेस के मालिक से बात कर के वहां छपाना शुरू किया. मालिक गांधीवादी थे. उन्होंने हमको कम्पोजिंग, कागज़, छपाई आदि एडवांस देने के बंधन से मुक्त कर दिया. तय हो गया कि पैसे को ले कर कोई जल्दीबाजी नहीं रहेगी. फिर हमने इस पत्रिका का डाक से भेजने का रजिस्ट्रेशन कराया. पूरे देश में अखबार एजेंटों से संपर्क कर एजेंसी बनायी. प्रतिनिधि रखे. डाक्टर रघुवंश और प्रोफ़ेसर बनवारी लाल शर्मा जैसे लोगों के मार्गदर्शन में यह पत्रिका पूरे देश में जेपी आंदोलन के मुखपत्र के रूप में उभरी. और आप विश्वास नहीं करेंगी, उस ज़माने में हमने इसकी प्रसार संख्या आठ हज़ार तक पहुंचा दिया था. गुवाहाटी से ले कर गुजरात तक के लोग इस पत्रिका को पढ़ते और खरीदते थे. फिर कुछ विज्ञापन भी आने लगे. हम लोग जेल में थे तो पत्रिका का प्रकाशन बंद था. मार्च 1977 में जेल से बाहर आया तो मैंने सोचा कि अब जब देश में चुनाव के जरिये नयी सरकार बन गयी है अब सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन तो चल नही पायेगा. और मैं दलीय राजनीति कर पाउँगा जो आम तौर पर होती है. गांधी, विनोबा और जेपी के आदर्श रग-रग में भरे हुए थे. मैंने यही सोचा कि मैं समाज सेवा के लिए पत्रकारिता में जाऊँगा. इससे आजीविका भी चलेगी और जनसेवा का बोध भी होगा. कई बार मन में अपना ही कुछ निकालने की बात आई पर फिर सोचा कि सर्वोदय और जेपी अन्दोलन की पत्रिका निकालना दूसरी बात है और एक व्यावसायिक पत्रिका निकालना दूसरी बात. इन सब बातों को ध्यान में रख कर मेरे गुरु जी प्रोफ़ेसर बनवारी लाल शर्मा मुझे उस समय के इलाहाबाद से निकलने वाले दैनिक भारत अखबार के संपादक डाक्टर मुकुंद देव शर्मा के पास ले गए और मैंने भारत अखबार में नौकरी शुरू कर दी.

-वहाँ कब तक रहे?

मैं वहाँ पहले तो आराम से रहा, पर एक ऐसी घटना हो गयी जिसके कारण मैंने वो अखबार छोड़ दिया. बात यह हुई कि उस दौरान मैंने जनता पार्टी की सरकार के नीतियों और कार्यों की समीक्षा करते हुए लेख लिखे और उस समय के इलाहाबाद से नये निकलने वाले चर्चित अखबार अमृत प्रभात को भेज दिया. जब वे लेख वहाँ छप गए तो मेरे भारत अखबार के संपादक मुझसे खफा से हो गए और एक-आध जगह कुछ ऐसी बातें कहीं जो मुझे अच्छी नहीं लगीं. फिर मैंने वह नौकरी छोड़ दी और अमृत प्रभात के उस समय के संपादक सत्य नारायण जायसवाल जी से मिला. वे मेरे लेखनी से प्रभावित थे ही. उन्होंने एक टेस्ट लिया और उसके बाद मुझे रख लिया. वे सचमुच के संत पुरुष थे. इस समय जो हिंदुस्तान में वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र जायसवाल हैं, इन्ही के पिता थे. एक बार की बात बताऊँ. चरण सिंह जब प्रधानमंत्री बने तो जायसवाल जी ने एक सम्पादकीय लिखा कि “यह असंवैधानिक सरकार है”, क्योंकि उनकी पार्टी को बहुमत नही है. लेख पढ़ कर मैं उनके पास पहुंचा और मैंने कहा कि संविधान और कानून की दृष्टि से आपका सम्पादकीय ठीक नही है. जरूरी नही कि प्रधानमंत्री संसद में बहुमत प्राप्त दल का ही नेता हो. कांग्रेस ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि वह समर्थन दे रही है. राष्ट्रपति के लिए इतना पर्याप्त है. मैं ठहरा सबसे जूनियर उपसंपादक. कोई और संपादक होता तो डांटकर भगा देता. मगर वे बोले- “ठीक है तुम मेरे ही सम्पादकीय के खिलाफ अपना लेख लिखो, मैं छापूंगा.” और उन्होंने ऐसा किया भी. इतनी डेमोक्रटिक व्यवस्था थी उस समय और ऐसे संपादक भी.

-फिर बीबीसी?

इलाहाबाद से मैं लखनऊ भेजा गया था अमृत प्रभात में और वहाँ से सन्डे मेल में गया. उसी दौराम मार्क टूली के संपर्क में आया और उन्हीं के कहने से बीबीसी में चला आया. तब से यहीं हूँ.

-समय के साथ परिवर्तन?

सबसे बड़ा परिवर्तन राजनीतिक नेताओं में हुआ है. नेता अब सुरक्षा घेरे के नाम पर आम जनता और पत्रकारों दोनों से दूर हो गए हैं. एक समय था जब बड़े नेता, मुख्यमंत्री और मंत्री किसी भी मुद्दे पर पत्रकारों के सवालों का जवाब देते थे. मैंने हिंदुस्तान के अनेक बड़े नेताओं के इंटरव्यू लिए हैं- चाहे राजीव गांधी हों, वीपी सिंह, चंद्रशेखर या वाजपेयी जी हों या आडवाणी, कल्याण सिंह या मायावती अथवा मुलायम. पर आज ये सारे नेता मीडिया से दूर होते जा रहे हैं. हर पार्टी में प्रवक्ता बैठे हैं जिन्हें पार्टी की रीति-नीति भी नही पता होती. पर मैं समझता हूँ कि शायद राजीव गांधी की हत्‍या के बाद से सारा परिदृश्य बदलता गया. उसके बाद से न केवल नेता बल्कि अफसर और दूसरे न्यूज़मेकर या समाचार स्रोत मीडिया से दूर ही होते चले गए हैं और बीच की जमीन अब नौकरशाहों और सुरक्षा वालों ने घेर लिया है.

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Comments on “वे बोले- मेरे संपादकीय के खिलाफ लिखो, मैं छापूंगा

  • आलोक श्रीवास्तव "आज-तक" says:

    मै हमेशा से ही रामदत्त जी का बहुत बड़ा फैन रहा हूँ उनकी कार्य करने की क्षमता वाकई में बेहतरीन है जिसे आजकल के पत्रकार अगर थोडा सा भी अपना ले तो पत्रकारिता जगत में भूचाल आ जाये | इतनी उम्र के बाद भी इनके जोश की पराकाष्ठा के आगे नौजवान आज भी पानी भरे |
    रामदत्त जी का सादगी भरा जीवन देख कर फिर से जनम लेने की इच्छा जग जाती है |

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  • पहले तो नूतन जी को बधाई कि उन्होंने पत्रकारिता की एक ऐसी शख्सियत का साक्षात्कार लिया जो खुद इतने साक्षात्कारों में व्यस्त रहता है कि अपने बारे में बताने –लिखने कि फुर्सत नहीं होती. मैंने उनके साथ पहले सन्डे मेल और फिर बाद में बीबीसी के लिए काफी काम किया है और उनके साथ हज़ार घंटे से ज्यादा वक्त ये देखते हुए बिताया है कि वे अपना काम कितनी तल्लीनता से करते हैं, वैसे ही जैसे सचिन बल्लेबाजी करता है, वैसे ही जैसे रहमान सुर साधते हैं, कोई हडबडी नहीं-कोई तनाव नहीं. वे खुद में पत्रकारिता की पाठशाला हैं. ऐसी पाठशाला जहाँ से आने को जी नहीं करता.

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  • आपके जीवन के संस्‍मरण वास्‍तव में किसी में भी ऊर्जा भर सकते हैं। आपके बारे में मैंने विनय श्रीवास्‍तव जी से काफी कुछ सुन रखा है। सौभाग्‍य से एक बार आपसे मिलने का मौका भी मिला, लेकिन कुछ ही पलों के लिए। आज नूतन जी के जरिए आपको और करीब से जानने का मौका मिला।

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  • Sunil Amar journalist 09235728753 says:

    अच्छा लगा राम दत्त जी, आपके पत्रकारीय-जीवन के कई नए और रोचक पहलू जानकारी में आये. डा. नूतन ठाकुर को धन्यवाद!

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  • सर प्रणाम। सर आपको संघर्ष के दौरान जेल जाना पड़ा। यह हम आज जान पाए। आप काफी जुझारू पत्रकार हैं। आप कई बार पत्रकार संगठनों के नेता व अध्यक्ष रहे हैं। यह बात आपने अपने साक्षात्कार में क्यों नहीं बतायी। आज लखनऊ प्रेस क्लब का जो स्वरूप है, उसमें आपकी काफी अहम भूमिका रही है। आप से अक्सर भेंट व चर्चा हुआ करती है, लेकिन आपके बारे में मुझे अधूरी जानकारी थी। आपका साक्षात्कार पढने से काफी कुछ मालूम हुआ। नूतन जी बधाई की पात्र हैं।

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  • RAHUL TRIPATHI says:

    THANX NOTAN
    R D TRIPATHI KA INTERVIW EKDAM FINE H. MAI TO RADIO N WEBSITE SE HE TRIPATHI G KO JANTA HO
    RAHUL TRIPATHI

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  • sandhydeep kashiv says:

    सर आप के बारें मैं जान कर बहुत अच्छा लगा. ……..

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  • राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़ says:

    बधाई, डा. नूतन ठाकुर जी। आज तक सिर्फ रामदत्त त्रिपाठी जी के लेख और समाचार ही पढ़ पाए थे। अब उनके बारे में जानने के बाद अच्छा लगा कि वे भी समाज सेवा समझकर पत्रकारिता में आए थे। ऐसे कई युवा पत्रकार हैं, जो पत्रकारिता के स्तर को और उंचा देखना चाहते हैं, लेकिन उन्हें सही जगह और मंच नहीं मिल पाता।

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  • Pramil Dwivedi says:

    Nutan Ji, Aapko kotishah dhanyawad, aapne itni bareeki se jeevan ki har pahlu par prakash dala, itna to mai apne bade bhai ke bare me nahi janta tha.

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  • Dear Nutan,

    I know Mr. Ram Dutt up close and personal and I can tell you that all that he has spoken to you is true. I never new the professional fineness of his work but with this one I now know him much better than before. Hope both of you together can bring some changes that may work as a milestone in Indian history…. all the best.

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  • Virendra Singh says:

    Nutan Ji deserves acclaim for highlighting a senior journalist of repute, Ram Dutt Tripathi. In the changing times today, the mission of journalism has swept away and taken the place of commercialism. In an era when free and fair journalism is deteriorating fast, Ram Dutt Tripathi like journalists stands as parameter for the journalists of next generation. As a journalist and an ideal man, he always promoted ethics and moral values. True to say, this had be instilled into him by the great scholars with whom he spent days in Allahabad.
    I personally have great regard for him.

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  • Subir Bhaumik says:

    Ramduttji has been a BBC colleague for seventeen years now and I deeply rspect his commitment to values and quality journalism . I know JP has left a great impression on Ramduttji and that shows in his people-oriented rather than celebrity-oriented journalism. And he is a great friend — in need and deed.

    Subir Bhaumik, BBC’s Eastern India Correspondent

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  • Dr. Ashok Kumar Sharma says:

    उनके पडोसी के रूप में मैने उन्हें जाना. राम दत्त त्रिपाठी एक नेक और बेहद अच्छे इंसान हैं. नए विचारों से भरपूर. बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया होगा की वह हिंदी पत्रकारिता से आये. हिंदी के पत्रकार होने के बावजूद उनको अंग्रेज़ी से न संकोच है और न परहेज. वह अजातशत्रु हैं तथा सभी के लिये अच्छी भावना रखते हैं. वैसे इंसान, मित्र और पत्रकार दुर्लभ हैं. वह अच्छी खबरें इस लिए रच पाते हैं क्योंकि उनमें सबके लिए सद्भावना और सहानुभूति है. डॉ. नूतन ठाकुर को बधाई. एक अच्छे व्यक्ति पर अच्छी जानकारी जुटाने के लिए.
    अशोक कुमार शर्मा
    विशेष कार्याधिकारी – मुख्यमंत्री
    उत्तराखंड

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  • rishi malviya says:

    sir mein khusnaseeb hu ki soniya gandhiki rally ke dauraan mainay kuch samay apke saath bitaya aur us dauraan meinay apse kaafi kuch seekha |kash apke saath kaam karney ka saobhagya mujhe milta |

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  • JP’s values continue to be with Ram Dutt ji. They are still reflected in his works as well. I am proud to be a colleague There were still many elements attached to Ram Dutt ji’s personality which i was unaware of till i read this interview. My best wishes to him
    SALMAN RAVI, BBC correspondent Raipur

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  • Deepika Verma says:

    a very thank you nutan ji for give knowledge about a graet media person.
    mein abhi media me nai hu jab ki mujhe media se door rahne k liye kaha gaya hai. aaz media ka swaroop badal gaya hai lekin esi mahan shakhsiyat ko apne beech pate hue jo patrkarita ko samaz sewa samjhte hai khusi hoti hai. mein b jab study kar rahi thi to patrakarita ko samaz sewa hi janti thi lekin yaha to TRP ke pichhe bhagte hue sabko paya.
    thanks a lot of ……again nutan ji & Ram Dutt ji

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  • shishu sharma says:

    thanks, tripathi ji kae barae mein jankari danae kay liyae.really tripathi ji nae sangharsh ka lamba yug tay kiya hae.

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  • Meher Wan Rathore says:

    राम दत्त जी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकर अच्छा लगा| बदलावका एक सिरा तो यहाँ भी खुलता है की अब ऐसे पत्रकार भी नहीं हैं जो सामाजिक आंदोलनों से सीधे तौर पर जुड़ते हो| वस्तुतः पत्रकार भी तो ऐ. सी. स्टूडियो में बैठकर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लायी गयी न्यूज़ पर काम करते हैं |

    Reply
  • Meher Wan Rathore says:

    राम दत्त जी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकार अच्छा लगा| बदलाव का एक सिरा तो यहाँ भी खुलता है की अब ऐसे पत्रकार भी तो नहीं है जो की जनता से जुड़े आंदोलनों से सीधे कभी जुड़ते हों| अब तो ऐ. सी. स्टूडियो में बैठकर न्यूज़ पर काम करने का चलन है || आज लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अगर मजबूत है तो सिर्फ रामदत्त जी जैसे जनता के पत्रकारों की वज़ह से…..

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  • awadhesh kumar says:

    Really i am coming to listen to ramdatt tripathi from child hod..
    Fantastic reporting by ramdatt tripathi
    Still i have remember sing off of ramdatt ji ” Ramdatt triopathi BBC kucknow”
    best wishes..

    Reply
  • chandra kumar reporter says:

    Ram dutt Tripathi ke vicharo se avagat hua. jaisa smriti patal per rekhankit kiya tha unhe vaisa hi paya. unki antim parra me netao aur press se banai gayi duria bhi en naukarsaho ki den hai. jisse samacharo ki vastvika se nata tu t ta ja raha hai.

    Reply
  • mahesh sharma says:

    डा. नूतन ठाकुर जी की बहुत-बहुत बधाई, जिन्होंने राम दत्त त्रिपाठी के संबंध में बेहतर और प्रेरणास्पद जानकारी से हम युवा पत्रकारों को अवगत कराया।

    Reply

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