उस शिकायत पर अब तक तो शायद कोई भी कार्रवाई नहीं हुयी है, पर मुझे उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग का एक पत्र दिनांक 02 नवम्बर 2010 अवश्य प्राप्त हुआ है. यह पत्र विभाग के अनु सचिव रामचंद्र यादव द्वारा हस्ताक्षरित है और इनमे कहा गया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत राज्य सूचना आयोग के समक्ष विचाराधीन वादों में आयोग द्वारा पारित आदेशों में राज्य सरकार को हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है. अतः इन सम्बन्ध में राज्य सूचना आयोग को कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता. साथ में यह भी कहा गया है कि यदि प्रार्थिनी यानी कि मैं आयोग के आदेश से क्षुब्ध हूँ तो सक्षम फोरम पर जाऊं. इतना कह कर मेरे द्वारा प्रेषित शिकायती प्रार्थना पत्र राज्य सूचना आयोग के सचिव के पास आवश्यक कार्यवाही हेतु भेज दिया गया है.
मुझे राज्य सूचना आयोग के किसी निर्णय से शिकायत नहीं थी और न ही मैंने आयोग के किसी निर्णय में शासन को हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था. मैंने तो मुख्य सूचना आयुक्त के कथित दुर्व्यवहार के विरुद्ध को राज्यपाल को शिकायत की थी और उनमे कोई जांच नहीं हो कर पत्र घूम कर उसी आयोग के सचिव के पास भेज दी गयी है. यह समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं है कि आयोग के सचिव अपने ही मुख्य सूचना आयुक्त के विरुद्ध क्या जांच कर सकते हैं. अब मैंने आज पुनः राज्यपाल को पत्र लिख कर इस सम्बन्ध में तथ्यों से अवगत कराते हुए उस पत्र पर अपने स्तर से जांच कराने का अनुरोध किया है.
डा. नूतन ठाकुर
कन्वीनर
नेशनल आरटीआई फोरम
विराम खंड, लखनऊ.