वाराणसी। दैनिक हिंदुस्तान ने 17 दिसंबर, 2010 के अंक में पेज 3 वाराणसी की खबरों में नीचे की ओर एक खबर डबल कालम में छापी है जिसका शीर्षक है ‘कैंट-लहरतारा मार्ग पर मिला एक और कबीर’। इस शीर्षक के अंतर्गत एक लावारिस नवजात शिशु के मिलने की बात बताई गयी है। यह शिशु कैंट-लहरतारा मार्ग पर खुले नाले को ढंकने के लिए रखे एक पत्थर पर रोता हुआ मिला था।
इस खबर की अंतिम चार पंक्तियों में यह बताया गया है कि इसी स्थान पर ‘सौ बरस पहले यहां से करीब ढाई किलोमीटर दूर लहरतारा नाले के किनारे भी एक बच्चा रोता हुआ मिला था। तब निःसंतान नीमा और नीरू नामके जुलाहे परिवार ने इसे पाला वही बाद में कबीर बने तब चाइल्ड लाइन नहीं थी।’ लावारिस नवजात शिशुओं के मिलने की ऐसी खबरें प्रायः अखबारों में पढ़ने को मिलती रहती हैं लेकिन अबतक किसी अखबार ने ऐसे बच्चों को कबीर के साथ नहीं जोड़ा था। वैसे यहां भ्रम फैलाया गया है। किंवदंतियों व जानकारियों के आधार पर अबतक यही ज्ञात हुआ है कि कबीर लहरतारा के एक तालाब के किनारे लावारिस शिशु के रूप में पाए गए नाले का उल्लेख नहीं है। लेकिन हिंदुस्तान ने कबीर को लहरतारा नाले के पास मिलना बताया।
अब हिंदुस्तान की मर्जी वह कुछ भी बता सकता है। वह कबीर को नाले-पनाले की जगह नाली से भी पैदा करा सकता है। सौ बरस क्या वह दस-बीस बरस पहले भी पैदा करा सकता है। लेकिन ऐसी खबरों से पाठक का हिंदुस्तान से मोह भंग जरूर होता है। शायद हो भी रहा है क्योंकि इस तरह की भूलें और त्रुटियां हिंदुस्तान की नियती बनती जा रही हैं। हिंदुस्तान ने इतना ही नहीं किया बल्कि इस बात को बताया कि कबीर इसी स्थान के पास सौ बरस पहले नवजात शिशु के रूप में पाए गए। इस खबर को लिखने वाले पत्रकार और उनके संपादक को शायद कबीर के पैदा होने की तिथि और मरने की तिथि का ज्ञान नहीं है। तो कबीर से जोड़ने के पहले कम से कम यह तो पता कर लिया होता कि कबीर कब पैदा हुए और कब मरे। दुनिया जानती है कि कबीर को गुजरे अगर हजारों नहीं तो कई सौ साल बीत चुके हैं। हिंदुस्तान के रिपोर्टर व संपादक की जानकारी के लिए हम बता दें कि कबीर के प्राकट्य के समय की कुछ पंक्तियां जो प्रचलन में हैं वे निम्न हैं-
‘‘चौदह सौ पचपन साल गए,
चंद्रवार इक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसाइत को
पूरनमासी प्रकट भए।
इस तरह देखा जाए तो कबीर का जन्म संवत 1455 यानी सन 1398 ईस्वी जेठ के महीने में शुक्ल पक्ष के पूर्णमासी तिथि और सोमवार के दिन हुआ था। दूसरी ओर आनसर्स डाट काम में ब्रिटानिका एनसाइक्लोपीडिया के हवाले बताया गया है कि कबीर का जन्म सन् 1440 ईस्वी व निधन मगहर 1518 में हुआ। तो इस तरह कबीर को जन्मे और मरे भी पांच सौ साल से ऊपर हो चुके हैं। फिर किस जानकारी के आधार पर दैनिक हिंदुस्तान का रिपोर्टर अथवा उसके संपादक ने इस खबर को सौ बरस पहले कबीर के जन्म के साथ जोड़ा।
पहले इस तरह की भूलों पर संपादक अपने पाठकों से खेद व्यक्त करता है लेकिन अब तो खबर में चाहे जो त्रुटि हो संपादक खेद नहीं व्यक्त करता हां अगर विज्ञापन में कोई त्रुटि हो जाती है तो अवश्य शुद्धिपत्र अथवा भूल सुधार प्रकाशित हो जाता है। खबरों को इस नजर से कोई महत्व नहीं दिया जाता। मतलब हिंदुस्तान जब चाहे जिसे पैदा कर सकता है। भूल सुधार छापना उसकी कार्य पद्धति में शामिल नहीं लगता। अगर ऐसा है तो यह भूल सुधार हिंदुस्तान के अगले अंक में प्रकाशित कर पाठकों से खेद व्यक्त किया जा सकता है क्योंकि यह मामला कबीर जैसे संत पुरुष का है जो लाखों-करोड़ों के आराध्य हैं। (सौजन्य : पूर्वांचल दीप)
bimal
December 18, 2010 at 3:41 pm
JAB HINDUSTAN KA EDITOR SHASHI SHEKHAR GALAT LIKHTE HAIN TO REPORTER KO BHI GALAT LIKHNE KA POOR HAQ H. HINDUSTAN ME KUCHH SAHI CHHAPE TO BATAIYEGA…
Ashok shing
December 17, 2010 at 3:34 pm
:):):):):)Hindustan ki ye ek galti nahi hai agar galtiyo ka bhandar dekhna hai to Bareilly ka akhabaar uthakar dekho pata chal jayega;D;D;
AMRESH SRIVASTAVA
December 17, 2010 at 4:35 pm
jagran phir hindustaan.
sabhi me galtiyo ki bharmaar…..
ye baat teak nahi h.
Purv hindustani
December 18, 2010 at 9:08 am
Errorless akhbar nikalna namumkin hai. Rahi baat Himdustan bareilly ki to kuchh mahine oha desk par kaam karne ka subhgya prapt hua. Working culture ka haal ye hai ki city aur daak ke incharge final page check nahi karte. Agar heading galat ho gayee to thikra sambhandhit edition ke incharge ke upar fod dete hai. Ab aap log khud bataein ek adami 6 page ka pura edtion dhekhe edit kare, page banaye, page ki planing kare aur phir city ka bhi ek page banye. In sabake bawjood ohi final copy bhi check kare oh bhi tab jab edition chhodne ka pressure ho. Galtiya to hongi hi jab jimmedar log face book me uljhe rahenge.
hariom dwivedi
December 18, 2010 at 10:27 am
baat yeh nahi ki galti kiski hai samasya ye hai ki koi bhi sampadak ya jimmedar log ese sudharne ki koshihs nahi karte chahe vo hindustan , jagran, bhaskar ya anya koi bhi hon..
anamisharanbabal
December 20, 2010 at 12:37 pm
ye to hona hi tha jis tarah bhed bakariyo ki bhari bhid media me ane ke liye betab hai ye jane bagair ki media ka full meaning kya hota h lihaya kabhi kabit to kabhi surdas tulsi meera premchand ko lekar bhi is tarah ki khabro se dil dukhane wala h yash bhaie tathyo ke ath navodit patrakaro dwara majak udaya ja raha usse sharam se jyada dukh hota h hindustanke sath ye hona jyada sharamnak h magar kya kare ht me jis tarah ke log aa rahi hai we kabir ko kabhi jinda bhi bata de to kaie hairani nahi bechare shashi shekharji bhi kya kare dande ke bal par ss ne mauj masti ke waste badnam ht house ke hindustanoff ko jail sa bana dala hai fir bhi sab chalta h ‘‘चौदह सौ पचपन साल गए,
चंद्रवार इक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसाइत को
पूरनमासी प्रकट भए।
kitab history jo bole magar sach wahi jo hindustan bole kyoki hnstan bolta hai & bahut bolta hai ya faltu balta hai jai ho jai ho ss baba ki jai ho hindustan ki jai ho
neelesh pal
December 22, 2010 at 5:44 pm
ye to wahi log kah sakte jinhone highschool ki class me hindi na padhi ho .