1974 के छात्र आंदोलन के जनक माने जाने वाले समाजवादी नेता और समाजसेवी सुरेश भट्ट के बारे में भड़ास पर खबर आने के बाद पटना से प्रकाशित दैनिक ‘सन्मार्ग’ और दैनिक ‘प्रत्युष नव बिहार’ ने सुरेश भट्ट के प्रति जन चेतना जगाने के लिए अभियान की शुरुआत कर दी है। इन दोनों अखबार के गुरुवार को प्रकाशित हुए अंक में ‘..और भूल गए समाजवादी चेले अपने गुरु को’ शीर्षक से प्रथम पृष्ठ पर ही एक बड़ी सी खबर छापी है।
‘सन्मार्ग’ के विशेष संवाददाता विनायक विजेता द्वारा दी गई इस खबर में पूर्व रेल मंत्री व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का बयान भी छपा है, जिसमें लालू प्रसाद ने स्वीकार किया है कि सुरेश भट्ट उनके राजनीतिक गुरुओं में से एक हैं। लालू प्रसाद ने ही यह खुलासा किया कि 74 के छात्र आंदोलन में सुरेश भट्ट के तेवर को देखते हुए उनलोगों ने एक नारा भी दिया था। आंदोलन के दौरान सुरेश भट्ट जब सड़क पर निकलते थे तो लालू सहित अन्य लोग यह नारा लगाते थे ‘आगे पीछे हट, आ रहे सुरेश भट्ट।’ नीचे विनायक द्वारा सन्मार्ग में लिखी गई खबर।
..और भूल गए समाजवादी चेले अपने गुरु को
पटना। सुरेश भट्ट यानी एक ऐसा समाजवादी नेता जिसने ता उम्र समाज को तो कुछ दिया पर समाज से कुछ लिया नहीं। जेपी मूवमेंट के दौरान 1974 के छात्र आंदोलन की अगुवाई करने वाले बिहार के नवादा निवासी सुरेश भट्ट को उनके वह समाजवादी चेले अब भूला चुके हैं जो भट्ट को कभी अपना राजनीतिक गुरु माना करते थे।
गौरतलब है कि इसी छात्र आंदोलन में दीनानाथ पांडेय शहीद हुए थे। लालू, नीतीश सहित बिहार के कई नेता इसी छात्र आंदोलन की उपज माने जाते हैं। अपनी ईमानदारी और जुझारू छवि के कारण कभी जयप्रकाश नारायण, मधुलिमये, नानाजी देशमुख सहित उस दौर के अन्य नेताओं के परमप्रिय रहे सुरेश भट्ट आज दिल्ली के एक ओल्ड एज होम में निर्वासित सी जिन्दगी जीने को विवश हैं। छह वर्ष पूर्व हुए ब्रेन हेमरेज और बाद में किडनी में हुए इन्फेक्शन के बाद चिकित्सकों ने उनका ऑपरेशन करने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि उनकी आयु काफी ज्यादा है। चिकित्सकों द्वारा उन्हें लगातार चिकित्सकीय देखरेख में रहने की सलाह देने के बाद सुरेश भट्ट को उनके परिजनों ने दिल्ली के ओल्ड एज होम में रख छोड़ा है। इसके एवज में परिजन प्रतिमाह दस हजार रुपये का भुगतान ओल्ड एज होम के प्रबंधन को करते हैं।
तीन बेटियां और एक बेटे के पिता सुरेश भट्ट ने ने तो आजतक अपने बच्चों के लिए कुछ किया और न ही अपनी पत्नी के लिए। नवादा में उनकी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा उनके छोटे भाई संतोष भट्ट ने हथिया रखा है। उनकी बड़ी पुत्री असीमा भट्ट मुंबई में रहती हैं और अभिनय क्षेत्र में सक्रिय हैं। एक बेटी प्रतिभा भट्ट नवादा में वकालत करती हैं। उनका इकलौता पुत्र प्रकाश जो नवादा में रहता है ने बताया कि ‘पापा को राजनीति और समाज सेवा में सक्रिय रहने के कारण उसका बचपन ननिहाल में ही बीता। समाज के सिवा पापा ने किसी को औलाद माना ही नहीं।’
अपने पिता की स्थिति और उनके समाजवादी चेलों की बेवफाई से आहत असीमा ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि ‘उसके पिता सुरेश भट्ट कोई आम इंसान नहीं। छात्र आंदोलन से लेकर जेपी आंदोलन तक सक्रिय रहने वाले इंसान ने अपना सारा जीवन समाज के लिए झोंक दिया। उसके पापा सिनेमा हॉल सहित करोड़ों की जायदाद के मालिक थे। सबको छोड़ने के बाद अपनी पत्नी और चार छोटे बच्चों को भी छोड़ दिया और समाज सेवा में सच्चे दिल से जुट गए। कभी अपनी सुविधा का ख्याल नहीं किया। सालों जेल में गुजारा। लालू प्रसाद से लेकर नीतीश कुमार और जार्ज फर्नाडीस उन्हें गुरुदेव कहकर संबोधित करते थे। वह सबके आयडियल थे। क्या किसी भी नेता या जनता को, जिनके लिए वो लगातार लड़े फकीरों का जीवन जी रहे भट्ट की कोई खैर खबर है। मेरे पिता ने कभी सत्ता का लोभ नहीं किया। वो कहा करते थे-हम सरकार बनाते हैं सरकार में शामिल नहीं होते। बहुत कम लोग इसका यकीन करेंगे कि सुरेश भट्ट का कभी कोई बैंक अकाउंट नहीं रहा।’ अपने ब्लॉग में असीमा ने कई और बातें लिखी है और अंत में समाज को झकझोर देने वाला सवाल किया है कि ‘क्या सुरेश भट्ट ऐसे लोगों का यही हश्र होना चाहिए।’
लालू ने माना कि उन्हें खबर नहीं
कई पुरानी बातों का किया जिक्र : जाएंगे सुरेश से मिलने ओल्ड एज होम
पटना। पूर्व रेल मंत्री व राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद ने माना कि सुरेश भट्ट उनके राजनीतिक गुरु के समान हैं पर लालू प्रसाद ने इसपर अफसोस जाहिर किया कि उन्हें कई वर्षों से इस महान व्यक्ति के बारे में कोई खबर नहीं है और न ही भट्ट जी के ओल्ड एज होम में रहने की उन्हें सूचना है। दिल्ली से फोन पर इस संवाददाता से बातचीत के क्रम में राजद सुप्रीमों ने कहा कि कौन राजनेता क्या करता है, इस पर वह कुछ नहीं कहेंगे पर वह जल्द ही सुरेश भट्ट से मिलने ओल्ड एज होम जाएंगे।
सुरेश भट्ट के साथ छात्र आंदोलन के बिताए दिनों की चर्चा करते हुए लालू प्रसाद मानते हैं कि उनकी ईमानदारी एक मिशाल है। उन दिनों के उनके राजनीतिक तेवर की चर्चा करते हुए लालू प्रसाद ने कहा कि छात्र आंदोलन की अगुवाई करने वाले सुरेश भट्ट के ऐसे तेवर थे कि हमलोग उस आंदोलन के
दौरान यह नारा लगाते थे कि ‘आगे पीछे हट आ रहे सुरेश भट्ट।’लेखक विनायक विजेता पटना में दैनिक ‘सन्मार्ग’ के विशेष संवाददाता है. उनका लिखा यह आलेख ‘सन्मार्ग’ में प्रकाशित हो चुका है, वहीं से साभार लिया गया है.
kaalchintan
May 13, 2011 at 5:03 pm
एक भयानक तथ्यात्मक गलती है. दीनानाथ पाण्डेय की मृत्यु 1955 की पुलिस फायरिंग में हुई थी. उसी की प्रतिक्रिया में तत्कालीन मुख्यमंत्री के दाहिना हाथ माने जाने वाले महेश प्रसाद राजनीति के मैदान में नए उतरे महामाया प्रसाद सिंह के हाथों पराजित हो गए थे. इतना बहुचर्चित काण्ड रहा है. लिखने वाले ने कैसे अफ़सोसजनक चूक की है!
vinayak vijeta
May 14, 2011 at 2:46 am
respected kalchintan ji,
mai apni galti swikar kar raha hu. dinanath pandey ji ki mot 12 aug 1955 ko police fayring me hui thi. is tathyatmak bhul ke leye mai sanmarg aur bhadas4 media ke patako se mafi cahata hu. mai aapka visesh aabhari hu ki aapne is bhul ke bare me aagah kiya.– VINAYAK VIJETA
Vikash Kumar
June 2, 2011 at 12:14 pm
Excellent real based article has been written By Mr. Vijeta
Thanks a ton for sharing the same down the line Keep it up