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शशि की जगह कोई नहीं रखा जाएगा

अमर उजाला के स्थानीय संपादकों के संबंध में कई अफवाह : दिल्ली संस्करण में गोविंद का नाम जाएगा : निदेशक माहौल सामान्य बनाने में जुटेंगे : शशि के ज्वाइन करने से पहले हिंदुस्तान में सात खबरें रिपीट : मृणाल पांडे और शशि शेखर के अपने-अपने संस्थानों से हटने से इन दोनों अखबारों हिंदुस्तान और अमर उजाला में अंदरखाने जो बदलाव होने लगे हैं, उसको लेकर कई तरह की खबरें हैं। सबसे पहली खबर तो यह कि अमर उजाला प्रबंधन ने अगले कुछ महीनों तक शशि शेखर की जगह पर किसी को भी न लाने का फैसला किया है। ऐसा अमर उजाला में स्थिति को सामान्य बनाने के मकसद से किया गया है। तेजतर्रार निदेशक अतुल माहेश्वरी अब खुद अमर उजाला के कामधाम को देखेंगे।

<p align="justify"><font color="#993300">अमर उजाला के स्थानीय संपादकों के संबंध में कई अफवाह : </font><font color="#993300">दिल्ली संस्करण में गोविंद का नाम जाएगा : </font><font color="#993300">निदेशक </font><font color="#993300">माहौल सामान्य बनाने में जुटेंगे : शशि के ज्वाइन करने से पहले हिंदुस्तान में सात खबरें रिपीट : </font>मृणाल पांडे और शशि शेखर के अपने-अपने संस्थानों से हटने से इन दोनों अखबारों हिंदुस्तान और अमर उजाला में अंदरखाने जो बदलाव होने लगे हैं, उसको लेकर कई तरह की खबरें हैं। सबसे पहली खबर तो यह कि अमर उजाला प्रबंधन ने अगले कुछ महीनों तक शशि शेखर की जगह पर किसी को भी न लाने का फैसला किया है। ऐसा अमर उजाला में स्थिति को सामान्य बनाने के मकसद से किया गया है। तेजतर्रार निदेशक अतुल माहेश्वरी अब खुद अमर उजाला के कामधाम को देखेंगे। </p>

अमर उजाला के स्थानीय संपादकों के संबंध में कई अफवाह : दिल्ली संस्करण में गोविंद का नाम जाएगा : निदेशक माहौल सामान्य बनाने में जुटेंगे : शशि के ज्वाइन करने से पहले हिंदुस्तान में सात खबरें रिपीट : मृणाल पांडे और शशि शेखर के अपने-अपने संस्थानों से हटने से इन दोनों अखबारों हिंदुस्तान और अमर उजाला में अंदरखाने जो बदलाव होने लगे हैं, उसको लेकर कई तरह की खबरें हैं। सबसे पहली खबर तो यह कि अमर उजाला प्रबंधन ने अगले कुछ महीनों तक शशि शेखर की जगह पर किसी को भी न लाने का फैसला किया है। ऐसा अमर उजाला में स्थिति को सामान्य बनाने के मकसद से किया गया है। तेजतर्रार निदेशक अतुल माहेश्वरी अब खुद अमर उजाला के कामधाम को देखेंगे।

अभी तक उन्होंने सब कुछ शशि शेखर पर छोड़ रखा था।  उधर, अमर उजाला के दिल्ली और एनसीआर संस्करण में प्रिंट लाइन में शशि शेखर की जगह अब गोविंद सिंह का नाम जाया करेगा। गोविंद सिंह का नाम स्थानीय संपादक के रूप में जायेगा और वे नोएडा स्थित अमर उजाला मुख्यालय के दिन-प्रतिदिन के काम को देखेंगे। गोविंद सिंह साफ-सुथरी छवि वाले, विनम्र और मिलनसार पत्रकार हैं। वे अमर उजाला में इन दिनों संपादकीय पेज के हेड के रूप में काम कर रहे हैं। 

एक अन्य खबर के मुताबिक शशि शेखर के जाने के बाद प्रबंधन कुछ संस्करणों के स्थानीय संपादकों को शंटिंग में डाल सकता है। निशाने पर वे स्थानीय संपादक हैं जो अपनी दागदार छवि के बावजूद विशेष कृपा के कारण स्थानीय संपादक के पद पर विराजमान हैं और अखबार के कंटेंट की समृद्धि में कोई खास योगदान नहीं दे पा रहे हैं। वैसे, शशि शेखर के जाने के बाद अमर उजाला के ज्यादातर स्थानीय संपादकों के बारे में अमर उजाला कर्मी ही तरह-तरह की अफवाह उड़ाने में जुटे हुए हैं। ये अफवाहबाज हर रोज दो-चार स्थानीय संपादकों को यहां से वहां भिजवाने में लगे रहते हैं। इन अफवाहों से स्थानीय संपादकों में भी भ्रम व दहशत का माहौल है। अमर उजाला के कई स्थानीय संपादकों के नाम की चर्चा हिंदुस्तान के दिल्ली और लखनऊ संस्करण के नए स्थानीय संपादक के रूप में जल्द ज्वाइन करने के संबंध में होने लगी है। यह चर्चा उन्हीं के बारे में है जो शशि शेखर के बेहद प्रिय और बड़ी यूनिटों के संपादक हैं। पर इन चर्चाओं में कोई सिर-पैर नहीं है।

हिंदुस्तान की बात करें तो कल 4 सितंबर को शशि शेखर नए एडिटर इन चीफ के रूप में ज्वाइन कर लेंगे। नए संपादक के काम संभालने से ठीक एक दिन पहले हिंदुस्तान अखबार एनसीआर-गाजियाबाद एडिशन में बड़ी गड़बड़ी हो गई है। इस संस्करण के पेज 10 और 11 में कुल सात खबरें रिपीट हैं। इस बड़ी चूक पर दंडित करने के लिए सिर की तलाश शुरू हो चुकी है। हिंदुस्तान में तरह-तरह की चर्चाएं हैं। पहली चर्चा तो यही है कि हिंदुस्तान की अपनी जो विशिष्टता है, वह खत्म होने जा रही है। यह विशिष्टता कई मायनों में है।

काम का माहौल हिंदुस्तान में बिलकुल सरकारी जैसा है। सुविधाएं बहुत हैं। छुट्टियां ठीकठाक हैं। ज्यादा टोकाटाकी और उत्पीड़न नहीं है। आफिस का माहौल खुला और सहज होता है। काम और काम करने वालों का अनुपात ठीक होने से किसी पर काम का ज्यादा बोझ भी नहीं होता। इस माहौल में कई ऐसे लोग भी पल-बढ़ रहे हैं जिनकी तनख्वाह तो ठीकठाक है पर काम के नाम पर कुछ खास नहीं करते। ऐसे लोग खासतौर पर परेशान हैं। कुछ संवेदनशील और बौद्धिक किस्म के लोग भी परेशान हैं। इनका कहना है कि इस अखबार का माहौल भी अब दूसरे अखबारों से अलग नहीं रह पाएगा। लोगों को आपस में बात करने और हंसने के बारे में भी सोचना पड़ेगा। भय व आतंक का माहौल पूरे आफिस में छाया रहेगा। बौद्धिक बहस व मतभेद की गुंजाइश खत्म हो जाएगी। फौज सरीखा अनुशासन, जिसमें सिर्फ सुना और फालो किया जाता है, यहां भी मानना पड़ेगा।

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