इंडिया टूडे समूह अपने प्रधान संपादक प्रभु चावला और अपने एक संवाददाता की वजह से मुसीबत में फंस गया है। मानहानि के एक मामले में देहरादून की अदालत ने एक बड़े अपवाद के तौर पर प्रभु चावला और पत्रिका के प्रकाशक आशीष बग्गा को हर हाजिरी पर अदालत में मौजूद रहने के लिए कहा है, जहां इन दोनों के पिता के साथ अदालत में आवाज लगती है। मामला उत्तराखंड में रह रहे खुर्जा जिले के आनंद सुमन सिंह का है।
एक भूतपूर्व राजपरिवार के मुस्लिम धर्म त्याग कर लगभग तीस साल पहले वापस हिंदू राजपूत बन गए ठाकुर आनंद सुमन सिंह की ये दास्तान मीडिया मुखौटों की कई त्रासदियों का खुलासा करती है. प्रभु चावला के संपादन में चलने वाली इंडिया टुडे के हिंदी संस्करण में छपा था कि आनंद सुमन सिंह सेक्स कारोबार में शामिल हैं। 21 जून 2006 की यह एफआईआर है जिसमें कहा गया है कि देह व्यापार के मामले में गिरफ्तार कुछ लोगों को जब थाने लाया गया तो उसमें से एक अहमद नुमान खान को फोन नंबर 9911083330 पर आनंद सुमन सिंह का फोन आया जिसमें लड़की की मांग की गई थी और थाने से नुमान खान ने जवाब दिया था कि मैं पकड़ा गया हूं इसलिए लड़की नहीं मिल सकती। यह फोन बीएसएनएल के फोन नंबर 9412009000 से आया बताया गया था।
एफआईआर में यह भी लिखा गया है कि इसके बाद इसी फोन नंबर से अभियुक्त के फोन नंबर पर दूसरा फोन आया जिसे एक सिपाही संजय ने सुना और उसकी रिपोर्ट के अनुसार दूसरे छोर से आनंद सुमन सिंह ने धमकी के अंदाज में कहा कि जिन लोगों को पकड़ा है, उन्हें छोड़ दो वरना अंजाम बुरा होगा। इंडिया टुडे ने यह भी लिखा था कि आनंद सुमन सिंह पहले मुसलमान था और इसलिए अब उच्च न्यायालय में सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने की धारा 295 के तहत भी मामला दर्ज करने की अपील की गई है।
प्रभु चावला और आशीष बग्गा ने अपील की थी कि पत्रिका के रोजमर्रा के काम से उनका वास्ता नहीं पड़ता इसलिए उन्हें हाजिरी से मुक्ति दे दी जाए। मामला सारा गरीब संवाददाता सुभाष मिश्रा पर डाल दिया गया। मगर निचली अदालत ने प्रभु चावला को हाजिरी की जो छूट दी थी उसे सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया। अब प्रभु चावला को हर पेशी में अदालत में जा कर सीधी बात सुननी पड़ रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां सवाल चावला नहीं, अदालत करती है।
राजपूत से मुस्लिम बने लोगों को वापस राजपूत बनाने के इल्जाम में फंसे आनंद सुमन सिंह पर इंडिया टुडे ने यह इल्जाम भी जड़ दिया कि उन्होंने अपनी पत्नी की हत्या की है। सच यह है कि श्री सिंह की पत्नी अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद स्वर्ग सिधारी थीं और अस्पताल का पूरा रिकॉर्ड अदालत में मौजूद है।
देहरादून उच्च न्यायालय ने तो इस बीच एफआईआर ही खारिज कर दी है क्योंकि आनंद सुमन सिंह के जिस फोन के आने और कांस्टेबल संजय सिंह द्वारा सुने जाने की बात पुलिस ने एफआईआर में लिखी है, बीएसएनएल ने जो रिकॉर्ड पेश किया है उसमें ऐसी कॉल की ही नहीं गई। पुलिस ने अदालत से कहा कि यह बीएसएनएल की तकनीकी भूल है। यानी प्रभु चावला जान बचाने के लिए भारत सरकार के संस्थान बीएसएनएल पर भी झूठा आरोप लगवा रहे हैं।
प्रभु चावला का कानून के साथ यह पहला खिलवाड़ नहीं है। कुछ समय पहले उनके पुत्र अंकुर चावला कंपनी लॉ बोर्ड के अध्यक्ष को दस लाख रुपए रिश्वत दिलवाने के इल्जाम में अभियुक्त बनाए गए थे और आज भी हैं, मगर उन्हें अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया। कंपनी लॉ बोर्ड के तत्कालीन कार्यवाहक चेयरमैन जेल में हैं और अंकुर चावला का उप दलाल कहे जाने वाला आदमी भी अंदर ही है। जाहिर है कि प्रभु चावला का दिल्ली के दरबार में इतना सिक्का चलता है कि उनके सात गुनाह माफ, उन्हें भारत सरकार पद्म भूषण तक दे चुकी है।
प्रभु चावला की जो छवि पत्रकारिता में है वह भी एक वजह है कि भाजपा के इतने करीब होने के बावजूद और लगभग छह साल से कोशिश करने के बाद भी भाजपा के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें इंटरव्यू नहीं दिया जबकि श्री वाजपेयी ने दीपक चौरसिया जैसे उम्र में छोटे लेकिन छवि में बड़े पत्रकार को प्रधानमंत्री रहते हुए बाकायदा घर बुला कर इंटरव्यू दिया था। देहरादून के मामले का अंत समझ में आता है। आनंद सुमन सिंह पर लगा अभियोग उच्च न्यायालय द्वारा खत्म हो चुका है और पुलिस की हिम्मत नहीं हुई कि इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे इसलिए इंडिया टुडे और प्रभु चावला के पास अपना बचाव करने के लिए माफी मांगने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
आनंद सुमन सिंह से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि मेरे साथ जानबूझ कर अन्याय किया गया है और सारे तथ्य बताने के बावजूद इंडिया टुडे ने स्पष्टीकरण छापने की जरूरत भी नहीं समझी बल्कि अदालत के सामने झूठ बोला कि सारे तथ्यों की पुष्टि कर ली गई है और वे सही हैं। श्री सिंह ने कहा कि मैंने जानबूझ कर मानहानि का दीवानी मामला नहीं डाला है क्योंकि मुझे इंडिया टुडे से मुआवजा नहीं, प्रभु चावला और उनकी पत्रिका से माफी चाहिए।
लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं.
Comments on “प्रभु चावला हाजिर हो!”
to kya prabhu chawla & company anand singh se mafi mang legi aur mamla khatm ho jayega?
agar aisa hae to samjho yeh to prabhu chawla ke baye hath ka khel hae.
vishwas na ho raha ho to raj babbar wali cd sun lijiye jisme thook kar chaatne wale andaaz me prabhu chawla girgira-ririya rahe hae amar singh se.
Ati har cheez me buri hoti hai. Or patrkarita ki ati to kisi ki jindagi barbad karne jaisi hai. Singh sahab ne to kamse kam adalat ka darwaza khatkhatane ki jurrat ki hai, lekin ishrat jaha jaise logo k privarwalo ko mediawalo ki ghair jimmedar report ki wajah se na jane kitni wednaye jhelni padti hai. Or na sirf privar walo ko balki pure samaj ki wishwasniyta daw par lag jati hai. Jaha tak bat mafi magne ki hai to mafi mangne se koi chota nahi hojata hai,balki unka qad bada hota hai. Isse samaj me shanti aati hai. Bas shart ye hai ki mafi apne kiye par sharminda hokar or bhawishya me dubara na duhrane ki qasam k sath mangi jae. Ye qasam kisi or se nahi balki apne manse mangi jae.
alok ji mere adarash hai main unki patrkarita or sacchai ko naman karta ho plz sir app mere adarsh ho main apse baat karna chata hu app ka no. mila ga kya sir plz apka no. mughe dedo
प्रभु चावला जैसे लोग रंगबदलने में गिरगिट की प्रजाति को भी मात दे रहे हैं। वह तो भला हो ‘भड़ासÓ जैसे पोर्टल का और आलोक तोमर जी जैसे पत्रकारों का जो अपनी पत्रकार बिरादरी में रंगे सियारों को बेनकाब करते रहते हैं। यदि ‘भड़ासÓ जैसा माध्यम न होता तो बरखा दत्त, वीर संघवी जैसों की हकीकत भी हम न जान पाते। जहां तक इंडिया टुडे ग्रुप की बात हो तो इसकी पत्रिका और चैनल सदैव उस दल के साथ रहता है जो केंद्र में सत्तारूढ़ होता है। यह बिके हुए लोग हैं जो अपने निहित स्वार्थों के लिए कुछ भी छापते और दिखाते हैं। वैसे आनंद सुमन सिंह जैसे लोगों से इस पत्रिका को चिढ़ होगी ही क्योंकि वे हिंदुओं के हित मे ंबढ़ा काम कर रहे हैं जबकि इंडिया टुडे का चरित्र अन्य तथाकथित सेकुलर पत्र-पत्रिकाओं की तरह हिंदू विरोधी है। इस बात की जांच होनी चाहिए कि आनंद सुमन सिंह के खिलाफ यह रिपोर्ट मुस्लिम साम्प्रदायिक तत्वों ने तो नहीं प्लांट करवाई है। वैसे यह बात भी अब छिपी नहीं है कि खाड़ी देशों से मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए बड़े मीडिया समूहों को बड़ी धन राशि मिलती है।
प्रभु चावला जैसे लोग रंगबदलने में गिरगिट की प्रजाति को भी मात दे रहे हैं। वह तो भला हो ‘भड़ास’ जैसे पोर्टल का और आलोक तोमर जी जैसे पत्रकारों का जो अपनी पत्रकार बिरादरी में रंगे सियारों को बेनकाब करते रहते हैं। यदि ‘भड़ास’ जैसा माध्यम न होता तो बरखा दत्त, वीर संघवी जैसों की हकीकत भी हम न जान पाते। जहां तक इंडिया टुडे ग्रुप की बात हो तो इसकी पत्रिका और चैनल सदैव उस दल के साथ रहता है जो केंद्र में सत्तारूढ़ होता है। यह बिके हुए लोग हैं जो अपने निहित स्वार्थों के लिए कुछ भी छापते और दिखाते हैं। वैसे आनंद सुमन सिंह जैसे लोगों से इस पत्रिका को चिढ़ होगी ही क्योंकि वे हिंदुओं के हित मे ंबढ़ा काम कर रहे हैं जबकि इंडिया टुडे का चरित्र अन्य तथाकथित सेकुलर पत्र-पत्रिकाओं की तरह हिंदू विरोधी है। इस बात की जांच होनी चाहिए कि आनंद सुमन सिंह के खिलाफ यह रिपोर्ट मुस्लिम साम्प्रदायिक तत्वों ने तो नहीं प्लांट करवाई है। वैसे यह बात भी अब छिपी नहीं है कि खाड़ी देशों से मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए बड़े मीडिया समूहों को बड़ी धन राशि मिलती है।