पाठकों की शर्तों पर चलने से ही बचेगी विश्वसनीयता : वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर का मानना है कि पाठकों की शर्तों पर चलने से ही मीडिया की विश्वसनीयता अक्षुण्ण बनी रहेगी. गुरुवार को धनबाद के अग्रसेन भवन हीरापुर में “खबरों की बिक्री एवं मीडिया की विश्वसनीयता’ विषयक संगोष्ठी को मुख्य वक्ता की हैसियत से संबोधित करते हुए श्री तोमर ने कहा कि भगवान के लिए वैसा धंधा मत कीजिये, जिससे अभिव्यक्ति की आजादी घटती हो. उन्होंने कहा कि नीच अखबार मालिकों के कारण ही पत्रकार कटघरे में खडे हैं. संगोष्ठी का आयोजन हिंदी पत्रकारिता की धारा को बदल देने वाले पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी को श्रद्धांजलि के रूप में अखिल भारतीय पत्रकार परिषद की ओर से किया गया था.
श्री तोमर ने कहा फिल्मों में स्पॉट बेचने का काम किया जाता है. लेकिन अखबार में स्पॉट बेचना अक्षम्य है. उन्होंने पत्रकारिता के अपने अनुभव बांटते हुए नैतिकता की पुरजोर वकालत की. कहा, नैतिक साहस और नैतिक सम्मान के साथ प्रतिरोध करके ही गणेश शंकर विद्यार्थी, विष्णु राव पराड़कर, प्रभाष जोशी की परंपरा को आगे बढाया जा सकता है. अखिल भारतीय पत्रकार परिषद के अध्यक्ष जयंत सिंह तोमर ने कहा कि लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन ने पत्रकारिता को प्रभावित किया है. जिनकी छवि अच्छी नहीं है, मीडिया में उनका महिमा मंडन किया जा रहा है. इसके खिलाफ जागरूक होने की जरूरत है.
क्रीड़ा भारती के संरक्षक लक्ष्मण राव पार्डीकर ने कहा कि समाज सेवा व्यवसाय नहीं है. संगोष्ठी का उदघाटन करते हुए झाविमो नेता विजय कुमार झा ने कहा कि इस तरह के आयोजन जरूरी हैं. क्रीडा भारती के राष्ट्रीय महामंत्री राज चौधरी ने स्वाभिमान जगाने वाली पत्रकारिता पर जोर दिया. आरएसएस के शारीरिक प्रमुख अरुण झा ने कहा कि पत्रकारिता की जीवंतता को बनाये रखे जाने की जरूरत है. स्वागत भाषण प्रमोद झा ने दिया. संचालन संजय झा और धन्यवाद ज्ञापन हेमंत मिश्र ने किया. संगोष्ठी में बिभावि के पूर्व कुलपति प्रो. निर्मल चटर्जी, पीके राय मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य डा. एआईए खान भी उपस्थित थे.
Comments on “नीच मालिकों के कारण पत्रकार कठघरे में : आलोक तोमर”
talaab me 1 machli gandi ho to kya aap sari machliyo ko ganda kahenge,ek doosre per aarop lagane se acha hai ki hum ek hokar sachai ke raste per chale,apni kalam ko takat banai,… hum neta nahi hai…….abhinav_ienn
Bhadas nikalte rahiye. Khud ke gireban mein bhi jhankiye. Yashawant jaise hi inko devta man sakte hain. Jante nahi bechare kuchh.
Sirf maalikon ko neech nahi kaha ja sakta, neech mansikta ke socalled Journalists ke kaaran bhi hamaari PATRAKARITA paani mangne lagi hai. Dono me se ek bhi sudher jaye to BADBOO kuch kam hone lagegi. with thanks
आलोक तोमर जी इन दिनों ‘मीडिया’ को संयम बरतने की हिदायतें खूब दी जा रही हैं। मीडिया को हद में रहने की सलाह देने वालों की कमी नहीं। मीडिया को प्रायोजित, नियोजित करने-होने की बातें भी हो रही हैं। मीडिया को नैतिकता की याद रखने की नसीहतें दी जा रही हैं। सीमा-रेखा और लक्ष्मण रेखा में अंतर का पाठ पढ़ाया जा रहा है। इन सारी हिदायतों, सलाहों, नसीहतों और पाठ पढ़ाने का एकमात्र मकसद है मीडिया को दबाना। मीडिया पर काबू पाना। मीडिया को स्वार्थपूर्ति का अखाड़ा बनाना। मीडिया को खरीदने की हसरत पालना। अपनी हसरतों को अंजाम देने के लिए खुद मीडिया बन जाना-यही आज की राजनीति बन गई है। ‘राज’ करने की इच्छा रखने वाले वर्ग ने अपनी एकमात्र ‘नीति’ बना रखी है कि अपने राज-रसूख को कायम रखने के लिए आचोलना करने वाले हर मुंह को बंद किया जाए। ‘जय जयकार’ की आवाज बुलंद हो और ‘हाहाकार’ करने वालों की गर्दन दबोच ली जाए। सरकार और सरकारी संयंत्रों के अतिरिक्त ‘मीडिया’ में ही एक वर्ग ऐसा है जो ‘मीडिया’ को ‘संयम’ और जिम्मेदार बरतने की सलाह दे रहा है।
जयंत सिंह तोमर मीडिया से खफा हैं। उनका आरोप है कि लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन ने पत्रकारिता को प्रभावित किया है। जिनकी छवि अच्छी नहीं है,वह सिर्फ अपनी टीआरपी की चिंता करता है। उसे जनहित को प्राथमिकता देनी चाहिए। संयम बरतना चाहिए। सोचते हैं, मीडिया को गाली देने से शायद अपनी टीआरपी बढ़ जाए।
बयान दे रहे हैं, मीडिया जिम्मेदार बने क्योंकि वह जनमत के निर्माण का निर्णायक घटक है। आपकी बयानबाजी को भी रेग्युलेशन की आवश्यकता है? आखिर वे भी तो जनमत के निर्माण में अपनी खास हैसियत रखते हैं। उनको भी अलग से रेग्युलेट करने वाले कानून की आवश्यकता नहीं है क्या?
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आजकल मीडिया की आलोचना बढ़ गई है। मीडिया को बार-बार उसके सरोकार और दायित्वबोध की याद दिलायी जा रही है। यह सब हैरत में डालने वाला है। यहां तक कि कभी पुलिस, नेता और पाकिस्तान से आगे न जाने वाली मंचीय कवियों के निशाने पर भी मीडिया है। असल में यह मीडिया की बढ़ती ताकत का ही सबूत है। यह साबित करता है कि मीडिया से लोगों की अपेक्षाएं बहुत बढ़ गयी हैं। इसी वजह से बाकी स्तंभों से ज्यादा याद मीडिया की होती है। आज हर तरफ से मायूस लोग हर बीमारी को मीडिया ताकत से दूर करना चाहते हैं। पहले सभी दरवाजों से निराश आदमी अखबार से दफ्तर में आता था। आज वह सबसे पहले अखबार या न्यूज चैनल के दफ्तर में पहुंचकर इंसाफ मांगता है। स्टिंग आपरेशन और भ्रष्टाचार कथाओं तक पत्रकारों की पहुंच खोज से कम, जनता के सहयोग से ज्यादा कामयाब हो रही है।
Sahib,
Malik kabhi bhi NEECH nahi ho sakata, usne aapko-humko rojgar diya hai wah phir NEECH kaise ho sakata hai? Kuchh aapne jyada he kathorta apne lekh me barti hai.
Chandrabhan Singh, Jaipur cbs_naruka@rediffmail.com