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इन माओवादी महिलाओं की भी सुनें

मिर्जापुर । हथियार उठाकर समाज बदल डालने का सपना देखने वाले माओवादियो के समाज से वे महिलाए ही बाहर धकेल दी जा रही हैं जो सशत्र क्रांति के लिए पुलिस की लाठी गोली का मुकाबला करते हुए जेल की यातना भरी जिंदगी गुजार चुकी हैं। इनकी संख्या भी कम नहीं है। जिसके नाम से कभी उत्तर प्रदेश, झारखंड  और बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में लोग सिहर उठते थे, आज उन महिलाओं के आंसू पोछने वाला भी नज़र नहीं आता।

<p style="text-align: justify;">मिर्जापुर । हथियार उठाकर समाज बदल डालने का सपना देखने वाले माओवादियो के समाज से वे महिलाए ही बाहर धकेल दी जा रही हैं जो सशत्र क्रांति के लिए पुलिस की लाठी गोली का मुकाबला करते हुए जेल की यातना भरी जिंदगी गुजार चुकी हैं। इनकी संख्या भी कम नहीं है। जिसके नाम से कभी उत्तर प्रदेश, झारखंड  और बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में लोग सिहर उठते थे, आज उन महिलाओं के आंसू पोछने वाला भी नज़र नहीं आता।</p>

मिर्जापुर । हथियार उठाकर समाज बदल डालने का सपना देखने वाले माओवादियो के समाज से वे महिलाए ही बाहर धकेल दी जा रही हैं जो सशत्र क्रांति के लिए पुलिस की लाठी गोली का मुकाबला करते हुए जेल की यातना भरी जिंदगी गुजार चुकी हैं। इनकी संख्या भी कम नहीं है। जिसके नाम से कभी उत्तर प्रदेश, झारखंड  और बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों में लोग सिहर उठते थे, आज उन महिलाओं के आंसू पोछने वाला भी नज़र नहीं आता।

हथियारबंद क्रांति के जरिए जंगल-देहात से एक-एक इलाके को मुक्त करते हुए शहर की तरफ बढ़ने की इनकी रणनीति फिलहाल इस इलाके में तो कही सफल होती नज़र नहीं आती उलटे इनका अपना समाज जरुर टूटता नज़र आ रहा है। सोनांचल का इलाका झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और बिहार से लगा हुआ है और कई वर्षों तक एमसीसी का गढ़ माना जाता रहा है। बाद में पीपुल्स वार ग्रुप के साथ जो सीपीआई माओवादी बना  उसका जनाधार कई वजहों से नहीं बन पाया। इस इलाके में माओवादी संगठन की बानगी देखने वाली है। कल की इनामी महिला नक्सली कंचन उर्फ आरती अब डाला क्रशर क्षेत्र में पहाड़ियों का पत्थर तोड़ रही है।

गरीबों, मजलूमों और शोषितों के मसीहा बनने का दावा करने वाले आज  उसकी खोज खबर तक  नही ले रहे। एक माओवादी महिला विवाह के बाद माओवादी पति के घर में ही दुत्कार दी गई तो तीन जेल में है। चंदौली के चुप्पेपुर गाँव की माओवादी बनिता कोल संगठन का नाम लेते ही भड़क कर कहती है -माओवाद ने एक नहीं कई युवतियों का घर बर्बाद किया है। इस युवती का कई बार गर्भपात हो चुका है। नीलम  उर्फ़ सबिता जो मिर्जापुर जेल में है वह आहत होकर कहती है – हम गलत रास्ते पर आ गए है जिसमें अंधकार के आलावा कुछ नही है। जाहिर है हथियारबंद क्रांति की शाब्दिक लफ्फाजी करने वाले कभी न उन महिलाओं के गाँव जाते है और न ही जेल में उनकी सुध लेने। सोनांचल के कई गांवों में इन माओवादी महिलाओं को अभिशप्त जीवन गुजारते देखा जा सकता है। खास बात यह है कि एक तरफ पुलिस इनपर मुखबिर बनने दबाव डालती है तो दूसरी तरफ माओवादी किनारा कर लेते है।

हथियारबंद  क्रांति के रास्ते पर चल रहे नौजवानों के शब्द जाल में फंसकर सिर्फ कंचन जैसी कई युवतियां है जिनकी खोज खबर लेने वाला आज कोई नहीं हैं। माओवादी टीम में रहकर जो स्वप्न उन्होनें संजोये थे, वह तार-तार हो चुके है। अदालतों का चक्कर ,समाज की उपेक्षा और उनमे भी जो  बिन व्याही मॉं बन गई उनका और बुरा हाल है। कई महिलाये अभी भी मिर्जापुर व चन्दौली की जेलो में पड़ी हुई है जिनके जमानतदार तक बनने को लोग तैयार नहीं। मिर्जापुर जेल के तत्कालीन जेल अधीक्षक एसपी यादव ने कहा – माओवादी महिलाओं से बहुत कम लोग मिलने आते थे। जेल में ये महिलाए घुटती रहती।  इस मामले में कुछ जन संगठनो और महिला संगठनो को आना चाहिए वर्ना ये जेल से बाहर कभी निकल ही नही पाएंगी।

आज से पांच वर्ष पूर्व माओवाद से ग्रस्त मिर्जापुर सोनभद्र, व चन्दौली जनपद में एक दर्जन महिला माओवादियों की टीम कंधो पर बन्दूकें पीठ पर बारूदों का गोला लादकर चलती थी। पुलिस दस्तावेजों में दर्ज नामों के अनुसार इस टीम में 20 हजार की इनामी सुषमा कोल, बबिता उर्फ सोमरी, चम्पा अगरियां, नीलम उर्फ सबिता चेरो, निर्मला, सरिता उर्फ सबिता, कंचन उर्फ आरती, बबिता , नेपूरी देवी, बनिता कोल, मीरा उर्फ वन्दना उर्फ निशा उर्फ गुडिया ,उषा कोल प्रमुख थी। जिन गांवों से होकर यह टीम गुजरती थी उन गांवो में सन्नाटा पसर जाता था। इनके कंधे पर उस समय विंध्य गंगा सब जोनल कमेटी के कमांडर कामेश्वर बैठा का हाथ बताया जाता था। 2004 में एक महिला नक्सली का टीम के एक युवक से मधुर सम्बन्धों के चलते संगठन में विवाद पैदा हुआ। इस परिणाम यह रहा कि उप जोनल कमांडर मेवा लाल टीम से अलग हो गया। उसके साथ आरती उर्फ कंचन भी पुलिस द्वारा पकड़ ली गयी। राबर्ट्सगंज कोतवाली में उसने अपने नेता पर जबरियां शारीरिक सम्बन्ध बनाने का प्रयास करने का आरोप लगाया था। मेवालाल अभी भी बिहार की जेल में है।

आरती उर्फ कंचन मांची थाना क्षेत्र के चिचलीक गांव की रहने वाली है, जमानत के बाद जब वह घर आयी तो संगठन के लोगों ने उसकी मदद करने से साफ इनकार कर दिया। उस पर उलटे पुलिस की मुखबिरी करने का दबाव बनाया जाने लगा। दूसरी तरफ संगठन के लोग भी उसे अपने मुखबिर के रूप में प्रयोग करना चाहते थे। इसके चलते उसने एक दिन गांव छोड़ दिया कई महीनों तक उसका कोई पता नही चला। एक दिन डाला के क्रशर क्षेत्र में पत्थर तोड़ती दिखाई पड़ गयी। जब उससे बात हुई तो उसने जो अपनी व्यथा सुनाई उससे हर कोई मर्माहत हो सकता है। आज वह जहां पत्थर तोड़ती है, वहां उसे कोई नहीं जानता की कभी यह गुरिल्ला माओवादी टीम की सक्रिय सदस्य रही है।

यही स्थिति बिहार की सीमा से सटे मांची थाना क्षेत्र के महुली गांव निवासी चंपा अगरियां की है। गुरिल्ला टीम में रहते हुए एक माओवादी ने उसे शादी कर ली। इसी बीच दोनों सोनभद्र पुलिस के हत्थे चढ़ गये। चंपा जमानत पर छूट गई। जब वह अपने बाप के घर गई तो उसे समाज के लोगों ने शक की निगाह से देखना शुरू किया। अपने उपर लादे गये कई मुकदमों की रोज-रोज पड़ने वाली तारीखों से परेशान उसने जब संगठन के लोगों से मदद की गुहार लगाई तो मदद से साफ इनकार कर दिया गया। मई 2006 में महुली गांव में पुलिस और माओवादियों के बीच हुई मुठभेड़ में एक माओवादी मारा गया। उस दौरान नीलम उर्फ सबिता चेरो, पकड़ी गयी। इस पर माओवादी संगठन के लोगों ने चंपा पर पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाया। मुठभेड़ के अगले दिन माओवादी कमांडर शत्रुधन ने चंपा को उसके घर के सामने पेड़ से बांध दिया। उसे तब तक लाठियों से पीटा गया जब तक वह बेहोश नही हो गई। कुछ दिन पहले ही वह मॉं बनी थी। उसके मां बाप हाथ पैर जोड़कर गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उनपर कोई असर नही पड़ा। उस पिटाई का परिणाम यह रहा कि उसका गर्भाशय तक बाहर आ गया। आज भी वह उस बीमारी से पीड़ित है, गरीबी लाचारी व बेवसी में वह अपना जीवन गुजार रही है। माओवादी टीम के जिस युवक ने उससे शादी की थी वह आज उसकी सुध भी नहीं लेता।

यही हाल ढोसरा गांव निवासी सरिता उर्फ सबिता चेरो का है। माओवादी टीम में बिहार के एक युवक घमड़ी उराव ने उससे शादी का नाटक किया। दोनों कुछ दिन बाद पुलिस के हत्थे चढ़ गये। कई महीने के बाद दोनों की जमानत हुई। घमड़ी ने सरिता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। आज वह अपने मां -बाप के साथ उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर है। कुछ समय पहले सबिता ने कहा था – अगर ढोसरा गांव में मौजूद विद्यालय में मुझे रसोईयां बना दिया जाए तो आय का कुछ जरिया हो जाएगा। गरीब मां बाप मुकदमें की पैरबी करने में असमर्थ हैं।

इसी तरह माओवादी टीम में शोषण का शिकार हो चुकी एक महिला माओवादी ने मिर्जापुर जेल में एक बच्ची को जन्म दिया था। लोक लाज के भय से उसने बच्ची को पैदा होते ही मार डाला। उस समय मानवाधिकार कार्यकर्त्ता रोमा भी उसके साथ जेल में थी। रोमा ने जनसत्ता से कहा-  माओवादी महिला बबिता ने जो बयान दिया है वह माओवादियो के तौर तरीके पर सवाल तो खड़ा करता ही है। जमानत के बाद वह  नीलम उर्फ सबिता पन्नूगंज थाना क्षेत्र के औरहवा गांव निवासी है। मई 2006 से वह जेल में है संगठन में रहते समय ही वह गर्भवती हुई और मिर्जापुर जेल में एक बच्ची पैदा हुई। जिस युवक से संगठन में उसका सम्बन्ध था आज उसका कोई अता पता नहीं। उसके मायके वाले आज जमानत कराने को भी तैयार नहीं माओवादी संगठन के नेताओं का कोई अता-पता नहीं। निर्मला की स्थिति कमोबेश यही है। वह भी मिर्जापुर जेल में अपने एक बच्चे के साथ जमानत का इन्तजार कर रही है।

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लौवा गांव निवासी बबिता उर्फ सोमरी  बीस हजार की इनामियां थी। तीन साल से वह मिर्जापुर जेल में है। आज तक उसकी जमानत  के लिए किसी ने आवेदन नहीं किया। कुछ दिनों पूर्व सोनभद्र की अदालत में पेशी पर आने के दौरान तीनों महिला माओवादियों से मुलाकात हुई। इन महिलाओं का कहना था कि हमारा न तो संगठन के शुभ चिन्तक साथ दे रहे और न समाज के लोग ही।

पुलिस दस्तावेजों में दर्ज इनकी कहानियां इन्हें माओवादी बताती है। इसी तरह चन्दौली जनपद के मझगावां गांव निवासी सुषमा कोल दो लाख के इनामी माओवादी संजय कोल की पत्नी है। 2007 में संजय कोल की कथित पुलिस मुठभेड़ में मौत के दौरान यह पकड़ी गयी। इस पर भी बीस हजार का इनाम था। आज यह चन्दौली की जेल में पड़ी हुई है। कभी संजय कोल के नाम पर चन्दौली, मिर्जापुर ,सोनभद्र की पुलिस दहशत में रहती थी। आज उसी संजय की पत्नी संगठन व समाज दोनों से उपेक्षित है।  चन्दौली जनपद के ही चुप्पेपुर गांव निवासी बनिता कोल पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद से उपेक्षित पड़ी हुई है। तमाम प्रयासों के बाद उसकी शादी नहीं हो पा रही। गुमनाम जिन्दगी जी रही बनिता आज माओवाद के नाम पर भड़क कर  कहती है- माओवाद ने कई युवतियों का जीवन बर्बाद कर दिया।

अंबरीश कुमार / विजय विनीत की रिपोर्ट

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0 Comments

  1. Badrinath Verma

    September 15, 2010 at 11:18 am

    kathit maovadi mahilaon ka sharirik shoshad karate hain. yah baat ekadhi bar sabit ho chuki hai. Abhi august mahine me hi west bengal ke midanapur me police ke samaksha atmasamarpan karane wale mahila maovadi shobha ne bhi un par youn shoshan ka aarop lagaya tha. Isase yah sabit hota hai ki yah matra gunda girohon ka sangathan hai. Inka kisi adarsh se dur-dur tak koi lena-dena nahi hai

  2. Vinod Varshney

    September 20, 2010 at 11:57 am

    जमीनी असलियत की जानकारी देने वाली बहुत शानदार रपट है.

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