शाहरुख का अपमान और अमरीकी दादागीरी : अमरीका को शायद यह भ्रम हो गया है कि वह इस दुनिया का आका है। उसने शायद यह भ्रम भी पाल रखा है कि वह दुनिया की महाशक्ति है। हालांकि उसके साथ जो कुछ हुआ, उससे उसका भ्रम टूट जाना चाहिए। 11 सितंबर 2001 को हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के हमले ने उसकी सारी हेकड़ी तोड़ दी थी, लेकिन उसके बाद से वह गाहे-बगाहे एशियाइयों खासकर भारतीयों को छेड़ने या अपमान करने से बाज नहीं आता। पहले कई राजनेताओं के साथ उसने बदसलूकी की जिनमें अंबिका सोनी, जार्ज फर्नांडीज यहां तक के हमारे प्रसिद्ध वैज्ञानिक व पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तक शामिल हैं।
अमरीका की इस दादागीरी का ताजा शिकार अभिनेता शाहरुख खान हुए हैं। पूरी दुनिया जिस किंग खान को जानती है, उसे अमरीका नहीं जानता। उन्हें शुक्रवार की रात को अमरीका के नेवार्क में पूछताछ के लिए घंटों रोके रखा गया। वहां से उन्हें भारत के स्वाधीनता दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने शिकागो जाना था, लेकिन घंटों उन्हें नेवार्क में रोके रखा गया और उनसे तरह-तरह के सवाल किये गये। उनसे पूछताछ भी एकांत में नहीं बल्कि सबके बीच की गयी, जहां एशियाई मूल के लोग थे जिन लोगों ने सुरक्षाकर्मियों के सामने किंग खान से आटोग्राफ भी लिये। इसके बावजूद सुरक्षाकर्मियों ने शाहरुख को नहीं छोड़ा। उन्हें रोकने का कारण था, उनके नाम के अंत में `खान’ शब्द का होना। इस शब्द ने ही उन्हें शक के दायरे में ला दिया और उसके बाद शुरू हुआ उन्हें अपमानित करने का सिलसिला जो पूरे दो घंटे चला। इस बीच शाहरुख से तरह-तरह के प्रश्न किये गये और उनसे कहा गया कि अगर वे यहां किसी भारतीय को जानते हैं तो उनका फोन नंबर दें। शाहरुख ने एक नंबर दिया लेकिन इससे पूछताछ करने वालों को संतोष नहीं हुआ। उन्होंने और नंबर मांगे जिस पर शाहरुख ने दो और नंबर दिये। किसी तरह से शाहरुख ने भारत में अपने सचिव के साथ ही कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला से संपर्क स्थापित किया। राजीव शुक्ला ने तुरत अमरीका स्थित भारतीय दूतावास से संपर्क किया जो आनन-फानन तत्पर हुआ जिसके बाद शाहरुख वहां से मुक्त हो शिकागो जा सके। शहरुख ने भी इस तरह की बेइज्जती पर दुख जताया और कहा कि जब उनके पास वैध कागजात थे तो फिर उनसे इस तरह पूछताछ करने या उन पर शक करने की कोई वजह नहीं थी।
जाहिर है कि इसकी देश भर में व्यापक प्रतिक्रिया होनी ही थी। देश भर में इसके विरोध में स्वर उठे। भारत ने अपनी शिकायत अमरीका से भी दर्ज करायी। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अबिका सोनी ने भी अमरीका के इस व्यवहार पर एतराज जताया और कहा कि हमें भी उनके साथ वैसा भी व्यवहार करना चाहिए। देश के कोने-कोने में शाहरुख के समर्थन और अमरीका के विरोध में प्रदर्शन हुए। आखिरकार भारत स्थित अमरीकी राजदूत को यह बयान देना पड़ा कि -`शाहरुख खान इंटरनेशनल आइकन हैं। उनका अमरीका में स्वागत है।’ अमरीका का यह बयान अपनी गलती छुपाने का एक बहाना है। शाहरुख के साथ जो हुआ वह तो दुनिया भर की मीडिया में प्रचारित हो गया।
शाहरुख पद्म श्री हैं कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी पा चुके हैं। इनमें मलयेशिया सरकार का सर्वोच्च सम्मान ‘दातुक’ भी शामिल है। लंदन में मैडम तुसाद के मोम के पुतलों के विश्वविख्यात म्यूजियम में उनका भी पुतला है। दुनिया के कोने-कोने में लोग उन्हें जानते हैं। लेकिन अमरीका नही जानता। पता नहीं अमरीका को क्या हो गया है। उसे एशियाई मूल के लोगों या भारतीयों से चिढ़ है या वह खुद को दुनिया का ‘बिग ब्रादर’ समझ कर जब-तब सबको घुड़कता या अपमानित करता रहता है। या शाहरुख खान के नाम में खान जुड़ा होना ही अमरीका को उन्हें अपमानित करने की आजादी दे देता है? माना कि अमरीका ने आतंकवाद की बड़ी मार झेली है और उससे उसकी लड़ाई अब तक जारी है लेकिन इससे उसे दुनिया के किसी भी सम्मानित व्यक्ति या आम आदमी को अपमानित करने का हक तो नहीं मिल जाता। उसकी आतंकवाद से लड़ाई अपनी जगह है, आतंकवाद से पीड़ित हर व्यक्ति और देश उसका समर्थन करेगा। लेकिन हर देश का भी अपना गौरव, अपना आत्मसम्मान होता है, जिसे वह किसी भी देश के चरणों पर नहीं रख सकता भले ही वह देश अमरीका जैसा महाशक्ति ही क्यों न हो। आतंकवाद से अमरीका की लड़ाई कहां तक सफल हुई है, इस पर ही अब प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं। जिस अफगानिस्तान में वह वर्षों से आतंकवाद की लड़ाई लड़ रहा है वहां विस्फोटों का सिलसिला अब तक नहीं थमा। पाकिस्तान में ड्रोन अमरीका के लिए सहायक बन रहे हैं वरना वहां भी उसकी लड़ाई उतनी आसान नहीं है। अरबो-खरबों इस लड़ाई में झोंक चुके, अपने सैकड़ों जवानों को शहीद कर चुके अमरीका की बौखलाहट स्वाभाविक है लेकिन इस बौखलाहट में वह इस तरह की दादागीरी में उतर आयेगा तो क्या यह उचित होगा। जो देश शाहरुख को नहीं पहचानता वह आम हिंदुस्तानी के साथ क्या सलूक करता होगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
भारत अरसे से आतंकवाद की मार झेल रहा है। इसमें आंतरिक कम और बाहर से प्रायोजित ज्यादा है लेकिन उसने तो कभी किसी विदेशी के साथ ऐसा सलूक नहीं किया। उसने तो किसी से इस तरह पूछताछ नहीं की। हमारे नेताओं के अमरीका में कपड़े तक उतरवा लिये गये लेकिन हम तो वहां के और दूसरे देशो के अतिथियों को आज भी भगवान की तरह पूजते हैं। हमारा तो आदर्श ही है अतिथि देवो भव लेकिन यह पुनीत आदर्श, विश्व बंधुत्व का यह भाव अमेरिका कहां से पायेगा। वह तो हर एक के फटे में टांग अड़ाता रहा है। किसी न किसी बहाने किसी देश को कटघरे में खड़ा कर उस पर युद्ध थोपता रहा है। ये आदर्श विचार उस देश के आकाओं के पास कहां से आयेंगे। वैसे अब अमेरिका को यह सोच लेना चाहिए कि अगर वह इस तरह दादागीरी दिखाता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व -बिरादरी उसको खारिज कर देगी। वैसे भी आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई पर भी अब प्रश्न उठने लगे हैं। खुद अमेरिका में भी वहां के नागरिक यह नहीं समझ पा रहे कि उनका देश दूसरे देशों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई क्यों और कैसे लड़ रहा है। जिन पर शक किया अमेरिका अभी तक उनके आकाओं तक पहुंच नहीं सका। जिन संगठनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी वे अफगानिस्तान में फिर एकजुट होने लगे हैं। ऐन चुनाव के पूर्व वहां हुआ कार बम धमाका इसका प्रमाण है। अपनी नाकामी की बौखलाहट में वह आम और मशहूर आदमी के साथ भी अगर आतंकवादी की तरह का व्यावहार करेगा तो इससे उस पर ही लोग थू-थू करेंगे।
अमरीका को चाहिए कि वह आतंकवाद के खिलाफ जरूर लडे पर अपनी इस लड़ाई के बहाने आम-ओ-खास को परेशान और बेइज्जत करना बंद करे।
लेखक राजेश त्रिपाठी कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार हैं और तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। इन दिनों हिंदी दैनिक ‘सन्मार्ग’ में कार्यरत हैं। राजेश से संपर्क [email protected] के जरिए कर सकते हैं। वे अपने ब्लाग में समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।