प्रशांत पर हमला : खतरनाक और डरावने भविष्य का संकेत

बुधवार की शाम तीन युवक प्रशांत भूषण के सुप्रीम कोर्ट के पास स्थित चैंबर में प्रवेश करते हैं और उन पर अचानक हमला कर देते हैं। उन पर थप्पड़-घूंसे बरसाये जाते हैं, कुर्सी से खींच कर जमीन पर पटक कर उन पर लातों से प्रहार किया जाता है। यह सब उस वक्त होता है, जब प्रशांत एक निजी टीवी चैनल से बातें कर रहे होते हैं।

अन्ना अनशन तोड़िए, भ्रष्टाचार के संरक्षकों को संसद में घेरिए

राजेश त्रिपाठीअन्ना आपसे करबद्ध प्रार्थना है अपने देश के इस अदने से इनसान  के कहने पर भगवान के लिए  अनशन तोड़ दीजिए। आपके जज्बे को प्रणाम, उस अक्षय ऊर्जा को प्रणाम जो नौ दिन बाद भी आपको जवां मर्दों की तरह दहाड़ने की कूबत दे रही है। आपकी जिंदगी हम सब देशवासियों के लिए बहुत जरूरी है। आपको इससे भी बड़ी लड़ाई लड़नी है।

खामोश हो गई एक ताकतवर कलम

आलोक जी के जाने की खबर से मर्माहत हूं और चिंतित भी। मर्माहत इसलिए कि इस बार वह वीर जिंदगी की लड़ाई कैसे हार गया, जो बड़ों-बड़ों से बेधड़क पंगा लेता रहा और उनकी काली करतूतों को जग जाहिर करता रहा। चिंतित इसलिए कि आलोक भाई के जाने का अर्थ बहुत व्यापक है।उनका जाना एक ताकतवर कलम का खामोश हो जाना है। ऐसी कलम जिसने न कभी दैन्यता दिखाई और न ही किसी के सामने झुकी। उसे न अर्थ खरीद सका और न कोई भय डरा सका।

कोई आपको अरबपति तो नहीं बना रहा

ऐसे मेल से बचनाबच के रहिए इंटरनेट के जरिए ठगी से : देखिए, पढ़िए, किस-किस तरह के आते हैं फर्जी मेल : आपको अगर इंटरनेट से प्यार है तो यह अच्छी बात है। ज्ञान के इस सागर में आप जितना अवगाहन कर सकें. इससे ज्ञान के जितने मोती चुन सकें वह और भी उत्तम है। अगर आप इसकी गंदगी से बच कर इसके उपयोगी अंश को देखते-पढ़ते हैं तो आप अपने ज्ञान की वृद्धि कर रहे होते हैं। आपका पैर तनिक फिसला नहीं कि आप इसकी गंदगी में धंस जायेगे और वहां जो पायेंगे उसमें ज्ञान तो कहीं होगा नहीं, बस आपके समय की बरबादी ही होगी। ऐसी साइट्स जुगुप्सा जगाने, विकृति फैलाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकतीं।  यह तो रही इंटरनेट के अपार संसार के भले-बुरे की बात अब जरा इसके एक और खराब पक्ष की भी सुनते चलिए। आजकल अक्सर आपको ऐसे मेल आते होंगे कि आपने याहू की प्रोमोशन लाटरी जीत ली है। इस लाटरी में लाखों डालर आपके होने को बेताब हैं। बस आपकी ओर से पहल की देर है और आप करोड़पति यहां तक कि अरबपति भी पलक झपकते हो जायेंगे और वह भी बिना कोई श्रम किये।

सरकारी श्राद्ध की नहीं, श्रद्धा की जरूरत

राजेश त्रिपाठीहिंदी दिवस पर विशेष (1) : भाषा न सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन अपितु किसी देश, किसी वर्ग का गौरव होती है। यही वह माध्यम है जिससे किसी से संपर्क साधा जा सकता है या किसी तक अपने विचारों को पहुंचाया जा सकता है। भारतवर्ष की प्रमुख भाषा हिंदी तो जैसे इस देश की पहचान ही बन गयी है। हिंदुस्तान से हिंदी का क्या नाता है यह किसी से छिपा नहीं है। भारतमाता के माथे की बिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी। लेकिन आज अपने ही देश में यह उपेक्षित है। सरकार की ओर से हिंदी की श्री वृद्धि और इसके प्रचार-प्रसार के नाम पर हर साल हिंदी दिवस के दिन इसका सालाना श्राद्ध मनाया जाता है। संयोग से इस साल यह दिवस पितृपक्ष में ही पड़ गया है। लाखों रुपयों का बजट बनता है, जलसे होते हैं, कुछ कर्मचारियों को पुरस्कार बंटते हैं और हो जाता है हिंदी का विकास।

अमरीका : दुनिया का आका होने का भ्रम

राजेश त्रिपाठीशाहरुख का अपमान और अमरीकी दादागीरी : अमरीका को शायद यह भ्रम हो गया है कि वह इस दुनिया का आका है। उसने शायद यह भ्रम भी पाल रखा है कि वह दुनिया की महाशक्ति है। हालांकि उसके साथ जो कुछ हुआ, उससे उसका भ्रम टूट जाना चाहिए। 11 सितंबर 2001 को हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के हमले ने उसकी सारी हेकड़ी तोड़ दी थी, लेकिन उसके बाद से वह गाहे-बगाहे एशियाइयों खासकर भारतीयों को छेड़ने या अपमान करने से बाज नहीं आता। पहले कई राजनेताओं के साथ उसने बदसलूकी की जिनमें अंबिका सोनी, जार्ज फर्नांडीज यहां तक के हमारे प्रसिद्ध वैज्ञानिक व पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तक शामिल हैं।

अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के

[caption id="attachment_15446" align="alignleft"]राजेश त्रिपाठीराजेश त्रिपाठी[/caption]भड़ास4मीडिया में बुंदेली भाषा के साप्ताहिक ‘खबर लहरिया’ के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। यूनेस्को ने इसे साक्षरता सम्मान के लिए चुना, यह और भी सुखद व प्रेरक है। सुखद इसलिए कि यूनेस्को की दृष्टि उस दूरस्थ उपेक्षित और विकास की दौड़ से पीछे छूट गये अंचल में पहुंची और उसने एक नेक और सराहनीय कार्य को सम्मानजनक स्वीकृति दी। प्रेरक इसलिए कि इससे ‘खबर लहरिया’ की संपादक मीरा जी की तरह और भी महिलाएं प्रेरणा लेंगी और साक्षरता से कोसों दूर उस अंचल में उनकी अपनी बोली में ज्ञान की ज्योति फैलाने का पुण्य प्रयास करेंगी। अपनी बात उत्तराखंड आंदोलन के समय गाये जाने वाले एक प्रेरणादायक गीत से करना चाहता हूं जो मुझे रविवार हिंदी साप्ताहिक में मेरे साथी पत्रकार जयशंकर गुप्त ने उत्तराखंड से लौट कर सुनाया था। यह गीत उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े लोग गाते और इससे अपनी लड़ाई में प्रेरणा पाते थे। गीत की प्रारंभिक पंकितयां हैं- ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के /  अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के /

सार्थक पत्रकारिता का ये सारथी

प्रभाष जोशी

जीवन के 72 बसंत पार कर चुके मनीषी, गांधीवादी विचारक और सार्थक पत्रकारिता के सारथी प्रभाष जोशी अनुपम और अतुलनीय हैं। सोचता हूं उनसे जुड़ी स्मृतियों का क्रम कहां से शुरू करूं। चलिए, उनसे अपनी पहली मुलाकात से ही प्रारंभ करता हूं। मैं आनंदबाजार प्रकाशन समूह के हिंदी साप्ताहिक ‘रविवार’ में उप संपादक के रूप में काम कर रहा था। सुरेंद्र प्रताप सिंह यहां से दिल्ली जा चुके थे और उदयन शर्मा जी हमारे नये संपादक बन कर आ गये थे।

‘पंडित जी’ संग काम करने का मुझे भी मौका मिला था

[caption id="attachment_14780" align="alignleft"]राजेश त्रिपाठीराजेश त्रिपाठी[/caption]भड़ास4मीडिया पर उदयन शर्मा के बारे में जनाब सलीम अख्तर सिद्दीकी साहब का आर्टिकल पढ़कर तहेदिल से शुक्रिया कहना चाहता हूं। उन्होंने हमारे ‘पंडित जी’ (स्वर्गीय उदयन शर्मा जी) के बारे में अच्छा आर्टिकल लिखा। वाकई, पंडित जी को जानने वाले हर शख्स ने इसे पढ़ कर प्रीतिकर महसूस किया और उस महान इनसान की यादों में खो गया। ‘रविवार’ पत्रिका के वे संपादक थे और उप संपादक के रूप में मैं भी इस पत्रिका से जुड़ा था, इस लिहाज से चार-पांच साल तक उनके साथ काम करने का मौका मिला। उन्हें जैसा पहचाना-जाना, वे स्मृतियां अमिट हैं और रहेंगी। यहां मैं उनसे जुड़ी कुछ अपनी यादें लिख रहा हूं। संभव है, इससे पाठकों को उनके नये रूप का पता चले। सिद्दीकी साहब की इस बात से मैं सौ फीसदी इत्तिफाक रखता हूं कि पंडित जी सदी के सुपर स्टार पत्रकार थे।

प्रस्तुत है उदयन शर्मा जी पर मेरा आर्टिकल।

सचमुच ही मीडिया के महानायक थे एसपी सिंह

राजेश त्रिपाठीमुझ जैसे कई पत्रकारों को हिंदी साप्ताहिक ‘रविवार’ में 10 साल तक एसपी के साथ काम करने और सार्थक पत्रकारिता से जुड़ने का अवसर मिला। हमने उस व्यक्तित्व को समीप से जाना-पहचाना जो साहसी व सुलझा हुआ था और जिसे खबरों की सटीक और अच्छी पहचान थी। सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता की उन्होंने जो शुरुआत इस साप्ताहिक से की, वह पूरे देश में प्रशंसित-स्वीकृत हुई। यह उनकी सशक्त पत्रकारिता का ही परिणाम था कि ‘रविवार’ ने सत्ता के उच्च शिखरों तक से टकराने में हिचकिचाहट न दिखायी।