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हलचल

मेरे पीछे पड़े हैं वीएन राय : अनिल चमड़िया

[caption id="attachment_14920" align="alignleft"]अनिल चमड़ियाअनिल चमड़िया[/caption]मेरा दलितवादी होना भी वीएन राय को बुरा लगा : वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर पद से हटाए गए जाने-माने पत्रकार अनिल चमड़िया का कहना है कि विश्वविद्यालय की जिस एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) ने उन्हें हटाने का फैसला लिया, उसमें 18 सदस्य हैं लेकिन केवल आठ अपने करीबी लोगों के साथ बैठक करके कुलपति विभूति नारायण राय ने मनमाना निर्णय करा लिया. वीएन राय ने ईसी की बैठक इसी उद्देश्य से दिल्ली में रखी ताकि वे अपने लोगों के साथ बैठकर इच्छित फैसला करा सकें. ईसी की इस बैठक में जो आठ सदस्य शामिल हुए, उनमें मृणाल पांडे भी हैं जो मेरी विरोधी रही हैं. वीएन राय के दो-तीन स्वजातीय लोग हैं. अनिल चमड़िया ने भड़ास4मीडिया से विस्तार से बातचीत में जो कुछ कहा वह इस प्रकार है-

अनिल चमड़िया

अनिल चमड़ियामेरा दलितवादी होना भी वीएन राय को बुरा लगा : वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर पद से हटाए गए जाने-माने पत्रकार अनिल चमड़िया का कहना है कि विश्वविद्यालय की जिस एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) ने उन्हें हटाने का फैसला लिया, उसमें 18 सदस्य हैं लेकिन केवल आठ अपने करीबी लोगों के साथ बैठक करके कुलपति विभूति नारायण राय ने मनमाना निर्णय करा लिया. वीएन राय ने ईसी की बैठक इसी उद्देश्य से दिल्ली में रखी ताकि वे अपने लोगों के साथ बैठकर इच्छित फैसला करा सकें. ईसी की इस बैठक में जो आठ सदस्य शामिल हुए, उनमें मृणाल पांडे भी हैं जो मेरी विरोधी रही हैं. वीएन राय के दो-तीन स्वजातीय लोग हैं. अनिल चमड़िया ने भड़ास4मीडिया से विस्तार से बातचीत में जो कुछ कहा वह इस प्रकार है-

”जिस दिन से मैं यहां आया हूं, वीएन राय मेरे पीछे पड़े हुए हैं. मेरे आते ही उन्होंने मुझसे कहा कि मैं स्टूडेंट्स से हाथ नहीं मिलाऊं, स्टूडेंट्स के हास्टल नहीं जाऊं. जुलाई महीने में मैं वर्धा पहुंचा था और अगस्त महीने में वीएन राय ने मुझसे इस्तीफा देने के लिए कह दिया. आरोप लगाया कि मैं सुबह से रात तक शराब पीता हूं. चाय पीने की बात चली थी तो मैंने कहा था कि मैं काली चाय पीता हूं. इसको वीएन राय ने शराब पीने से जोड़ दिया और आरोप जड़ा कि मैं दिन भर शराब पीता रहता हूं. हद है यह तो. मैं दिल्ली में इतने साल रहा हूं. कोई कह दे कि मैं दिन भर शराब पीता रहता हूं. उन्होंने आरोप लगाया कि मैं हीटर पर खाना बनाता हूं. आठ-आठ आदमी मेरे यहां खाते हैं, मेस चलाता हूं. बताइए, ऐसी बातों और आरोपों को आप क्या कहेंगे. मैं अगर लोगों से मिलता जुलता हूं. लोग मेरे यहां आते हैं तो इसमें आपको क्या दिक्कत. मेरे खिलाफ जितना प्रोपेगंडा कर सकते थे, वीएन राय ने किया.”

”वीएन राय का अस्सी फीसदी वक्त तो मेरे खिलाफ साजिशें-प्रोपेगंडा करने में बीतता है. उनकी कोशिश हमेशा यही रही कि वे मुझे यहां से निकाल दें. इसीलिए उन्होंने अपने एक आदमी के जरिए मेरी नियुक्ति के खिलाफ नागपुर में हाईकोर्ट में मुकदमा करा रखा है. मैं कोर्ट को बताऊंगा कि जब मामला चल रहा है तो उन्होंने मुझे बीच में ही कैसे हटा दिया. दूसरी महत्वपूर्ण बात, जिस आधार पर विवि की ईसी ने मुझे हटाया है, उस आधार पर तो 12 लोगों को हटाया जाना चाहिए. सिर्फ मुझे ही क्यों हटाया गया.”

”डिग्री का कोई मामला नहीं है क्योंकि नियुक्तियों में यूजीसी के दो तरह के प्रावधान होते हैं. एक डिग्रीधारियों की नियुक्ति होती है तो बिना डिग्रीधारियों की भी होती है. बिना डिग्री धारियों के लिए कई पैमाने होते हैं. जैसे उनका संबंधित फील्ड में कांट्रीव्यूशन क्या है, शोध क्या है आदि आदि. बिना डिग्रीधारी पैमाने पर मैं फिट बैठता हूं. अगर आप कह रहे हैं कि गलत क्राइटेरिया पर नियुक्ति हो गई तो उस गलत क्राइटेरिया पर मैं ही क्यों, नियुक्त हुए 12 लोग आएंगे. तो बाकी लोग क्यों नहीं हटाए गए? 1998, 2000 और फिर 2009 में यूजीसी की तरफ से नियुक्ति के लिए जो प्रावधान जारी किए गए, उसी का हवाला देकर मुझे हटाया गया जबकि इन प्रावधानों पर मैं खरा उतरता हूं. आपने कहा कि 1998 के यूजीसी के प्रावधान के आधार पर विज्ञापन निकाला था जो गलत था, इसे 2000 के प्रावधान के आधार पर होना चाहिए था. तो फिर जिन 12 लोगों की नियुक्ति गलत प्रावधान के आधार पर की, उन सभी को हटाया जाना था. सिर्फ मुझे इसलिए हटाया क्योंकि वीएन राय मुझे हटाना चाहते थे. इसीलिए नियम-कायदे को ताक पर रखकर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए मुझे हटा दिया.”

”मेरी नियुक्ति वीएन राय ने यहां पढ़ रहे लड़कों की इच्छा पर की थी. उन्होंने लड़कों से पूछा था कि किसे आप चाहते हो टीचर बनाया जाए. लड़कों ने मेरा नाम लिया. मैं वर्धा में 2004 से पढ़ाने आ रहा हूं. स्टूडेंट्स मुझे चाहते रहे हैं. स्टूडेंट्स ने मेरा नाम लिया. तो मेरी नियुक्ति में केवल वीएन राय की इच्छा नहीं थी बल्कि उन पर स्टूडेंट्स का दबाव भी था. मैं भी छात्रों को पढ़ाने, नई चीजें सिखाने, एक अच्छी पीढ़ी पत्रकारिता में लाने जैसी इच्छाएं पाले हुए दिल्ली छोड़कर वर्धा चला गया. कौन जाता है अपनी बसी-बसाई गृहस्थी छोड़कर पराए शहर. इसे मेरा शौक कहिए या पागलपन. मैंने आते ही कहा कि यहां पत्रकारिता डिपार्टमेंट में अखबार नहीं है, टीवी नहीं है, रेडियो नहीं है, इंटरनेट नहीं है. कैसे चलता है डिपार्टमेंट. सारी व्यवस्थाएं कराने में जुट गया. यह सब वीएन राय को बुरा लगा. मैं हमेशा डिपार्टमेंट बनाने की बात करता रहा हूं और इसके लिए छात्रों की तरफ से लड़ता रहा. मैंने स्टूडेंट्स को गांव में रिपोर्टिंग करने के लिए भेजा. 15 हजार रुपये खर्च आ रहे थे. वीएन राय ने कहा कि यह तो बहुत ज्यादा है, केवल छह हजार रुपये दूंगा. पर उन्होंने छह हजार रुपये भी नहीं दिए. छात्र अपने खर्चे पर बसों से गांव जाते और लौटते. छह हजार रुपये के लिए फाइल घूमती रही पर कुलपति वीएन राय के उस पर दस्तखत आज तक नहीं हुए.

”जिस स्वजातीय को पत्रकारिता विभाग का एचओडी बना रखा है, वह कितना विवादित शख्स है, इसे दुनिया जानती है. उस पर चोरी करके किताबें लिखने जैसे कई गंभीर आरोप हैं पर उसे वीएन राय का पूरा प्रोटेक्शन मिला हुआ है. जातिवाद खूब चल रहा है. कहीं न कहीं सवर्ण मानसिकता भी काम कर रही है. मैं दलित आंदोलनों को हमेशा से समर्थन देता रहा हूं. यह भी वीएन राय को मंजूर नहीं था. वे चाहते थे कि मैं उनके हिसाब से रहूं, उनकी हां में हां मिलाऊं. वर्धा में दलित छात्रों ने वीएन राय के रवैए के खिलाफ इतना बड़ा आंदोलन किया. एक महीने तक लगातार आंदोलन चला. पूरा देश जानता है कि मैं दलितों के लिए लड़ता रहा हूं. मेरा तीस साल का सार्वजनिक जीवन है. मेरी अपनी छवि है. मेरा काम करने का अपना तरीका है. मैं छात्रों को बनाने आया था, दलाल पैदा करने नहीं. पीएचडी में दलित ज्यादा उत्तीर्ण हो गए तो मेरे पर वीएन राय ने आरोप लगा दिया कि मैंने रिजल्ट में धांधली की है. हद है यह तो. ऐसी बातें लगातार मेरे खिलाफ की जाती रही हैं. मेरा तो केवल यही पूछना है कि जब एक्जीक्यूटिव कमेटी 18 लोगों की है तो आपने 8 अपने नामिनेट किए हुए लोगों से ही कैसे फैसला करा लिया. वीएन राय के कामकाज के तरीके कारण ही विष्णु नागर ने ईसी से अपना इस्तीफा दे दिया था.”

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0 Comments

  1. shani singh

    January 28, 2010 at 7:07 am

    anil ji yadi aap hi aise baat karoge to kaise chalega, jab baat aap huck ki ker rahe ho to batao, aapko MGAHU se VC ne kyu nikala, ye sodh ka vishaye ho sakta hai, jab aap jaise logo ki niuktiya hogi to, jo digree dharak hai unka kya hoga, aapko patkarita me exprience hai to aap only patkarita hi karo to aacha hai,
    ek kahabat hai
    aab pachtaye hot kya , jab chidiya chun gaye khet?????????????????
    ek baat or kehna chahuga ki kya aap kisi ko Ph-D kara sakte hai, ek lekh likhne or Ph-D karane me jamin aashman ka fashla hota hai,
    ek baat or kahu
    jis tarah ke andolan ki aap baat ker rahe hai vo galat tha, ab aap bhi university me aamarn ansan per baith sakte hai, sayad aap hi kuch ker le,
    aap logo ne dalit naam ko badnaam ker diya hai, aapko ab chululu bher pani me dub jana chahiye,

  2. रितेश

    January 28, 2010 at 8:34 am

    चामड़ियाजी कौन नहीं जानता कि आप आए तभी से विश्वविद्यालय और शिक्षक की गरिमा से खिलवाड़ करते रहे हैं और कौन ऐसा दारुबाज है जिसे दारूबाज कहने पर बुरा नहीं लगता|

  3. Chandan ( Freelancer Cine Editor,Patna)

    January 28, 2010 at 8:55 am

    APKE ANNE SE IS DARPTMENT MAI IIMC KE JAISA ANUBHA HONE LAGA THA…..BUT DIYA BUJHATA SA NAJAR ANE LAGA HAI… AP VC KE SATH MILKAR UNHE FAIDA KIO NAHI PAHUCHAYA….KIYA APKO PATA NAHI YANHA KRORO KAM KOI MAHAT NAHI HOTA…..SEMEENAR MAI 5-10 LAKH U HI KHARCH HO JATE HAI…KHANE PINE MAI…APNE STUDENT KE RESEARCH KE LIE KIO MANGA…..APNE GALTI KI SAYAD ….
    Ye koi nai bat nahi hai…is university ke VC ka sara samay Gaddar niti Develop karne mai hi khatam hota hai… sayad ap unke ghar par attendence nahi banate gonge chatukarita karne wale yanha bahut age badta hai… chahe vo chaprasi hi kio na ho..

  4. media ka madhav

    January 28, 2010 at 9:58 am

    aji mrinaljee to purani brahminvadi balki ab to ati pahadvadi hain.isliye aapkee bat me dum hai chamadiyakee.yogedra yadav ne unkee kali kholee to chan pahadi alpsankhyak le aain.

  5. Vimal

    January 28, 2010 at 10:16 am

    Muje bara afsos hai ki Yashwant ji ne ye khabar to prakashit kar di lekin ye khabar prakashit nahi ki kee P7 News Channel ki mother company PACL ne Thar deseart me ek land purchase ki hai jo wiwadit hai aur jo national security act ka violation hai, jis par sarkar ne MHA ke through ek high level inquary setup kar di hai. Ab logo ko samaj me aayega ki P7 News Channel lane ke piche kya maksad tha, isi prakar PACL ka karipan 1000 Cr ka scam pahale bhi hai evam ye Public deposit ka kaam bhi karte hai jo RBI se approved nahi hai. Ab mafia is taraha se media ka use apni sefty ke liye kar rahe hai. Yashwant bhai hakikat chapiye, ad chal raha hai P7 ka aapke website ka iska matlab ye nahi ki aap bik gaye hai.

  6. आदर

    January 28, 2010 at 10:21 am

    दलितवाद और सवर्णवाद के परस्पर संघर्ष का यह स्वाभाविक नतीजा है। चमड़िया और राय दोनों जातिवादी हैं और अपनी-अपनी जाति की राजनीति करके सेट होते रहे हैं। चमड़िया को लाज आनी चाहिए कि प्रोफेसर की पोस्ट पर नियुक्त हुए। करीब लाख रुपए की तनख्वाह खाने के लिए आदर्शवाद का जामा छोटा पड़ गया। चमड़िया के विभाग का विभागाध्यक्ष एक महाफर्जी आदमी है। चोरी से किताबें लिखने का आरोपी। चमड़िया बहुत बड़े एक्टिविस्ट हैं। उस फर्जी आदमी के खिलाफ इन्होंने क्या किया। खुद को लखटकिया नौकरी के लिए फिट रखने के लिए राय से समझौता करके नियुक्त हुए। जब राय से नहीं पटी तो आदर्शों की बात करने लगे। वर्धा विश्वविद्यालय फर्जीवाड़ा का अखाड़ा हो चुका है। इस विश्वविद्यालय को तुरंत उच्च-स्तरीय जांच की जरूरत है। चमड़िया का कहना है कि वो छात्रों के लिए वर्धा आए। इससे बड़ा झूठ क्या होगा। कौन नहीं जानता कि विश्वविद्यालय में करीब लाख रुपए की नौकरी का लालच उन्हें खींच लाया। रुपए के रुपए और क्लास न लेने की छूट,नेतागिरी चमकाने की छूट,छात्रों का अपने निजी एजेंडे के हिसाब से लामबंद करने और उनका दरुपयोग करने की छूट चमड़िया को वर्धा लाई थी। चमड़िया के बाद अब राय को भी तत्काल बर्खास्त किए जाने की सख्त जरुरत है। यही हिन्दी के हित में होगा।

  7. gopal, kanpur

    January 28, 2010 at 10:40 am

    anil aapke saath sahi hua hai. aap isi ke hakdar the.

  8. indian male

    January 28, 2010 at 10:46 am

    chamadiya jee sangarsh kariye …………………. ab asli pariksha ka samay hai

  9. rahul

    January 28, 2010 at 10:52 am

    jo log Anilji ko nahi jante wahi unpar iss tarah ka lanchan laga sakte hain. Mera unse pichle 10 saal ka rista hai, lekin unhone mere swabimaan ko kabhi chhota nahi hone diya. Aise log kaam hi hote hain jo itne sangarsh se aage badhte hain, OBC, DALIT, PASMANDA Muslim community ke liye unke sangarsh ko kaam karke nahi aanka ja sakta hai, Kuch log unhe Darubaaj kahne aur unka samrthan karne se nahi chuk raha, jinki aukat nahi hai wo haad me rahen jo jyada accha hai..

  10. akhilesh akhil

    January 28, 2010 at 11:10 am

    bhaiya sangharsh karo humlog aapke saath hai. sahi kahne wale aaj asani se sikar ban jate hai. ye dhadhebaj log hai. inki itni takat nahi hai ki sar uthakar baat kare. bhrast log jyaada din tkte nahi. bhaiya date rahne ki jaroorat hai.

  11. shani singh

    January 28, 2010 at 11:25 am

    rahul ji jo darubaaj hai uhsko darubaaj nahi kahe ti fir kya kahe, or rahe baat haad me rehne ki to app koin hote hai kisi ki haad batane wale??
    kya kabhi aapne haad dekhi hai .

  12. shani singh

    January 28, 2010 at 11:26 am

    anil aaj to aapke student sok mana rahe hai, jaise koi mar gaye ho?

  13. ????????? ???

    January 28, 2010 at 11:33 am

    यह तो ठीक है आप किसी दलितवादी की तरह हैं किन्तु आपका जो व्यवहार है, जीवनशैली है वह किसी पूंजीपति की तरह भी है । आप केवल औरों की ओर ऊँगुली उठाते रहे हैं, लेखनी को आपको बंदूक की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं । आपको उसी का खामियाजा भूगतना तो पडेगा ही । अब ज़रा संभल जायेंगे, विश्वास है ।

  14. kamta prasad

    January 28, 2010 at 12:15 pm

    अन्‍याय का प्रतिकार जरूरी है। आप संघर्ष करें हमारी शुभकानमाएं आपके साथ हैं।

  15. rahul

    January 28, 2010 at 12:31 pm

    Anil Ji aise log hain jo aap jaise kuch sanki logon ki pratikriya se aur majboot hokar sangharsh karte hain. Aap apna virodh jari rakhen yahi hamari takaat banegi.. keep it up.. Ye v mai bata doon ki mai unka student nahi raha hoon.. Unka samarthan karne ke liye student hona nahi aadmi hona jaruri hai..

  16. swatantra mishra

    January 28, 2010 at 1:13 pm

    leek se hatkar chalne ki aadat kahan jaativaadi logon ko suha saakti hai? v.n.roy ki pol patti ab sabke saamne hai. pragatishilta ka dhong rachnewalon ki dukaan band hone ke din aa gaaye hai. pramprawadi tarike se p.hd karnewalon ko 3 idiots dhyan se dekhne ki jaroorat hai. anil ji jaisai log education system ko naaye taarike se chaala chate hai. yeh baat kisi saamantvaadi prashashnik logon ko kahan thik lagagi. naukari ko daanw par rakhkar aapni baat kahnewalon ko mera saalam. anil ji jaisain log akele jeene mein vishwaas nahin karte isliye student se haat milaten hain.student ke liye khana banate hain. kitne log apne samay ka itna sadupyog karte hain? roy sahab ko to naukar, chakar rakhne ki aadat hai. so democratic set up kahan acha lagege.unhone anil ji ko sanghrash ka space diye hum saab unke aabhari hain. anil ji ka in baaton se kya bigadega? woh to phaulaad hain.

  17. shani singh

    January 28, 2010 at 1:36 pm

    aaj to anil ji ke sabhi student matam me hai, yaha lettet waha letter, kya ukhad logo, kuch nahi ukhad paoge,

  18. pranava priyadarshee

    January 28, 2010 at 1:56 pm

    अनिल जी, आपका जीवन आज का नही है और ना ही यह किसी से च्छूपा है. डंके की चोट पर आप अपनी बात कहते रहे हैं बगैर यह सोचे की किसे बुरा लगेगा और कौन नाराज़ होगा. यह भी सबको पता है आपके ज़्यादातर दुश्मन वैचारिक सवालो पर आपके स्टॅंड की वजह से बने हैं. आपके विवाद से अलग भी वी. एन. राय विचारधारा को चूल्‍हे मे झोक कर जैसा जातिवादी रवैया दिखा रहे हैं वह किसी से च्छूपा नही है. ऐसे मे कौन कहाँ खड़ा है इसे लेकर संदेह की कोई गुंजाइश नही रह गयी है, जो जान बूझ कर कंफ्यूज रहना या दिखना चाहते हैं उनकी बात अलग है. आपकी इस लड़ाई मे हम हम सब आपके साथ हैं. – प्रणव

  19. GAUTAM YADAV

    January 28, 2010 at 1:59 pm

    DEAR RITESH,
    TUM JO BHI HO, JITNE BHI HO…. ANIL CHAMADIYA KE BARE KUCH BHI AANAP -SNAAP LIKHNE SE PAHLE MERE BHAI KAM SE KAM, EK BAAR TO SOACH LETE… KI LIKH KYAA RAHE HO.
    JAHAN TAK MERI BAAT HAI, ..
    MAIN ANIL SIR KA STUDENT RAHA HOON, IIMC 2007 ME. APNE POORE STUDENT LIFE ME MAIN JITNE BHI TEACHERS SE PADHA HOON. NO DOUBT ANIL SIR ” WAS, IS AND WILL” THE BEST TEACHER.

    RAHI BAAT SHIKSHAK AND VISHVIDYALYA KI GARIMA KE SAATH KHILWAD KARNE KI—- TO AB PATRKARITA KE NAAM PAR P.A. GIRI(PERSONAL ASSISTANT KA KAAM) KARNE WALE YE TAY KARANGE KI KISI PESHE KI GARIMA KYAA HOTI HAI.

    DARU BAAJI KI BAAT KA JAWAB YE HAI KI,.. JAB MARTIN LUTHAR NE, CHURCH KE FARJIWADE KA VIRODH KIYA THAA ( JO PAISE LEKAR JANTA KO PAAP MUKTI CERTIFICATE BAANT RAHI THI).. TO LUTHAR PAR BHI DALALON NE KUCH AISE HI LANCHAN LAGYE THHE.
    SIR , ANYAAY SE NAYAY KI IS LADAI ME HUM SABHI AAPKE SAATH HAIN.
    GAUTAM YADAV

  20. sanjay gupta

    January 28, 2010 at 2:00 pm

    Anil sir..hum logo ko to sangharsh karna hi likha hai…swarn aap ka dost ho hi nahi sakta..sirf use and throw karna janta hai yeh barg…swarn log kaise pacha sakte hai ki aap nam kare,unhe jab aapse khatra lagne laga to wo aap ko side karna chahenge hi.aap sangharsh kare.

  21. JAYA NIGAM

    January 28, 2010 at 2:27 pm

    mujhe aap par vishwas hai. students ke pakshh aur charitra ki chinta in jaison ko kyon hogi. mai bhi anil sir ki student hoon aur jaanti hoon ki raajneeti me unka paksh kamzor aur shoshit hote hain. aise me shasak varg se bair hona natural hai. maine bhi iimc ke mahaul me rah kar dekha hai. anil sir ko iimc me padane ke baad bhi vardha ke bachhon ki chinta hoti thi. mai kabhi-kabhi un se poochhti thi ki vo delhi kab aaenge. ham bhi to aap ke student hai. aise me jo anil sir ko jante hain, wo un ke saath zaroor khade honge.

  22. pankaj chaudhary

    January 28, 2010 at 4:36 pm

    anilji hum aapke saath hain. aap aage badhen.aapne ek baar phir se missal kaayam ki hai.

  23. Chandan ( Freelancer Cine Editor,Patna)

    January 28, 2010 at 3:49 pm

    Ritesh app jo v ho apk lagata hai Media industries se nahi jure ho bulki Internet ka use karna jante ho tavi vina reserch kiye kuch likhte ho….agar ap media se jure ho to sab se pahle kisi v meter per shodh karne ki awsakta jarur hoti hai….

    Thany bad….take care for other comment…..

  24. नवीन कुमार "रणवीर"

    January 28, 2010 at 4:18 pm

    दोस्तों, वो लोग जो अनिल सर के साथ ऐसा होनें पर खुश हो रहे हैं, वो भी सुनें और जो उन्हें दारूबाज़ कह रहे हैं वो भी सुनें। पहली बात जो लोग अनिल सर को जानते नहीं हो वो आपनी चाटुकारिता भरी जुबान बंद रखे। जिनका कोई बैर है उनसे तो वो तार्किक लिखें, सामनें आकर लिखें। पत्रकारिता में जातिवाद का कितना बोलबाला है, उस सच्चाई को बाहर निकालनें में भी अनिल सर और योगेंद्र यादव जी का योगदान रहा है, तो ज़ाहिर सी बात है कि उन लोगों को अब भौंकनें का मौका तो मिला ही है, उनकी जैसी सोच वाले उनके पूर्वज वीसी (वीएन राय) नें काम ही कुछ ऐसा किया है। उनका गौरवांवित होना तो बनता है। रही बात पत्रकारिता में पीएचडी करनें वाले छात्रों के साथ न्याय की तो, अनिल चमड़िया अपनें आप में पत्रकारिता संस्थान है, किसी पीएचडी की डिग्री में इतना फिल्ड वर्क नहीं मिलेगा जितना इस शख्सियत में मिलेगा। चाटुकारिता और प्रो. लोगों के घर काम करके पीएचडी करनें वालों की संख्या कम नहीं मिलेगी इस देश में। अनिल सर की नियुक्ति किसी “चौरसिया चालिसा” की मौहताज़ नहीं है। आईआईएमसी में मेरे बैच 07-08 के दौरान भी सर का लगाव हमेशा वर्धा के छात्रों से रहा था। उनका हमेंशा मानना रहा है कि पत्रकार, पत्रकारिता को पेशा ना बनाकर दायित्व मानें, उसके लिए उन्होनें अपनें छात्रों में ऐसे विचार रखे कि, आज भी हमारे बैच के छात्र कई आंदोलनों से जुड़े है, और जगह-जगह पर मीडिया में हो रही धांधली और ख़बरों के बाजारीकरण के खिलाफ खड़े है। सर की हमेंशा से कोशिश रही की छात्र केवल नौकरी पानें भर के लिए आईआईएमसी जैसे संस्थान में ना आऐं, बल्कि पत्रकारीय गुण सीखे, अपनें पूर्वाघ्रह को तोड़ें।
    अरे बेटा जिस समय देश में टेलीविजन चैनल शुरू ही हुए थे. उस समय में आपके पाप(अनिल सर) किसी बड़े चैनल में ही प्रड्यूसर हुआ करते थे, जिनकें अंडर में आज के टीआऱपी के महरथी चैनलों के आऊटपुट हैड( जो आज लाखों में कमा रहे हैं) तक इंटर्न किया करते थे। बाबू लोगों, सुनों… जिसनें जीवन में केवल संघर्ष ही किया है औऱ पत्रकारिता के लिए संघर्ष किया हो, उसे कोई लाखों में क्या खरीदेगा? उनके छात्र ही उनका सबसे बड़ा धन है…।

  25. raj

    January 28, 2010 at 4:27 pm

    चमड़िया साहब ….. अक्सर ऐसा क्यों होता है कि जब तक दलितों को घी-शक्कर मिलता है तब तक कुछ नहीं होता…लेकिन जब उनके साथ थोड़ा सा उपर नीचे होता तुंरत दलित और पिछड़ेपन को लेकर ढपली बजाने लगते है। आखिर आप लोग कब इस तरह की गंदी और छिछोरी राजनीति छोड़ेंगे।…. सरकारों ने आप लोगों को जो इज्जत बख्शी है पिछड़ेपन और दलित शब्द को लेकर उसका 500 फीसदी फायदा उठा रहे है।

  26. shobhit

    January 28, 2010 at 4:39 pm

    ANIL SIR .I AM WITH YOU …IS JAATIVADI EDUCATION SYSTEM KO AAPNE CHALLENGE KARNE KA JO KAAM KIYA HAI ..USKE LIYE BADHAI….HAQ AUR INSAAF KI LADAI SE AAPKA PURANA RISHTA HAI..SO GO AHEAD SIR..

  27. bindu

    January 28, 2010 at 4:41 pm

    waha chavaria ji waha aap jaisa imandar avsarvadi communist nahe dekha
    naukari aur publicity ke leye communist bane
    aur naukri jate he dalit bane
    lakin communist ke to koi jat nahi hoti……..waha re avsarvade

  28. ram kumar

    January 28, 2010 at 4:48 pm

    anil media ka jama kab tak pahne raho ge ap ke shat to yesha hona he tha b.com therd de. pass hokar app to shahab ban rahe the …………..ab bat ye hai ke ap hamesha garibo ke liye ladte rahe hai kya ab ap enka pasisha vapash karege ap nokri ke layak nahi thi to ab jo ap ne mote tankha her maha ek lakh le uska kya heshab hoga …………kya bolo jai baba ambedkar ke ………………………………

  29. राजीव रंजन

    January 28, 2010 at 4:56 pm

    पहली बात, मैं राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ का स्‍वयंसेवक हूं और वैचारिक रूप से अनिल जी के विचार से मैं बहुत ज्‍यादा सहमत नहीं रहता हूं। दूसरी बात, जो ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है, वह यह कि एक व्‍यक्ति के रूप में, प्रतिबद्ध विचारक-एक्टिविस्‍ट के रूप में मैंने अनिल जी जैसे बहुत कम लोग देखे हैं। दरअसल, ड्राइंगरूम में बैठकर विचारधारा की बात करने वालों को लिए अनिल जी जैसों को पचा पाना संभव नहीं है। 1861 में बनाए गए अंग्रेजों के पुलिस एक्‍ट के तहत सालों नौकरी करने वाले शख्‍स से ईमाननदारी, निष्‍पक्षता और लोकतांत्रिकता की उम्‍मीद करना बेमानी है। साथ ही, अनिल जी से भी ये अपेक्षा रखना बेमानी है कि वे निजी लाभ्‍ा के लिए किसी भी बेतुके आदमी की बेतुकी बातों को स्‍वीकार कर लेंगे।

  30. gunshyam gupta

    January 28, 2010 at 5:02 pm

    jaise karne baise bharni……………….anil ap to hamesha mgahv ka paisha kate rahe hai or jab ab milna band ho raha hai to kulpati ko bura bhala kahe rahe hai……….ap to etne emandar hai ke p hd ke viava ke samay ap ne kuch khash bacho ke no. etne bada dey ye bat to sabhi jante hai ap ketne baimaan hai ……………ap ne hameshA gandhi university ko dudh dene bali gaye samjha hai ………….ap jab chahe tab bo ap ko dudh date raha ……………ap es university ke damad banna chahte hai ………………….jesh kulpate ne ap ko nokri de ap ushi ko katne lage the ………………………..eh karan kulpati ne ap ka bo dant tode deya hai ………………..lken ap chinta mat karna ham ap ke shath hai ……………

  31. anil pandet

    January 28, 2010 at 5:06 pm

    KULPATE NE JO KYA BO SHAHI KYA HAI …………AP KO TO NIKALNA HE THA OR AP KE SHATH OR LOG BHI HAI JO NIKLEGE ……………………..

  32. एक पत्रकार...

    January 28, 2010 at 5:57 pm

    अनिल जी, नौकरी के लिए आपने सब कुछ ताक पर रख दिया….केवल आदर्श की बातें करने से नहीं होगा…आप तो अवसर के हिसाब से चलने वाले आदमी हैं…लेकिन सबसे बूरी बात तो यह है कि आप निजी स्वार्थ के लिए जातिवाद, दलितवाद, औऱ, और, और…न जाने कितने वाद की बात कर रहे हैं….अच्छा तो यह होगा कि..’वाद’ के नाम पर राजनीति न की जाए..।

  33. akhilesh gupta, mukesh dehariya

    January 28, 2010 at 6:09 pm

    india me jatiwad kabhi na khatm hone wala kharpatwar hai,

    pata nahi chamadia ji ke case me kya chhupa hai lekin,

    jatiwadi ki rajniti ko sabhi jante hai,

    lekin yah bhi sach hai ki india ke logo ki yah sabse badi samsya hai ki ya to ve kisi ko samjhna nahi chahte ya samjh jane par unhe chhode dete hai, kahi yahi baat to nahi ki ve chamadiji ko samjhna chahte ho isliye unke peeche pade hai?

  34. kumar sudhakar

    January 28, 2010 at 7:45 pm

    anil ji ye dalit aur sawarn kahkar logon ko thagane ka khel kab tak kijiyegaa. wardha university ke log jaanate hain ki wahan ke mass com. HOD ko hataane aur khud HOD banane ka lobh sanwaran nahi kar paane ki wazah se aapane jo pilitics kiya usi ke shikaar aap khud ho gaye. ab uspar kam se kam dalit ka mullamma chadakar maamale ki surat badalane ka prayas kyon kar rahe hain.

  35. vishwapratap bharti

    January 29, 2010 at 3:36 am

    anil sahab dalit hona aatmhatya jaisa lagta hai…hum kitne bhi bade ho jayen lekin dalit hone ka ehsas koi nakoi kara hi deta hai……ye bhi sach hai-hum dalit shabd ko chodna nahi chahte..aur media bhi ise bhunati hai.kyon na esi samasyayo ka hal politics cast aur dharm se door rahkar kiya jaye.

  36. swatantra mishra

    January 29, 2010 at 4:06 am

    iss desh mein bagair kisi ke baare mein jaane’, samjhe tippani karna to aam baat ho gaayi hai. bhai mujhe anil ji ka student samajhnewalon aapko jaankari dena chahta hoon ki mene patrakarita ki koi degree nahi li hai. usi tarah anil ji ka apne baare mein dalit kahne ko satahi taur unhe dalit samajhna bhi eek bhool hain. anil ji aapne ko daalit ek bade sandarbh mein kah rahe hain. jaisai urmilesh ji apne ko bihari batate hain. urmilesh ji uttar pradesh se hain. chuki unhene bahut lambe samay tak bihar mein patrakarita ki hai. bihar unke man mein rach bas gaaya hai. anil ji dalit, pichdaon ke liye ladte rahe hain.isliye wo aapne ko dalit baata rahe hain.ekakar hona samajte hain. anil ji ne dalit shabd ko aapne bhitar aur bahar se sweekar kar liya hai. anil ji ka yogdaan koi likhne aur padne aur usko samajhnewala hi kar saakta hai. eek kuntha ka shikaar vyakti kabhi nahi samajh sakta hai. brahamanvaadi soch ke log kuch lut jaane par matam manate hai. anil ji aur unke saath rahne waale log to ” veeron ka kasai ho basant” kavita gungunate hain. aap bhi ekk bar gungunayen bhitar se takat mahoos hogi.tay roop se acha lagega. anil ji ne aisi ladaai chedkar bahut haasil kiya hai. degrre ki baat karnewalon kabir ki degree kyaa thi? gyaan classroom mein nahi mil saakta hai. gyaan to sangrash ki baat hai. prasav peeda ka gyaan classroom mein nahi bachha paidaa karke hi mil sakta hai. kam se kam uski intensity ka aabash tabhi ho saakta hai. ghatia baate karna chod to bhai. shyaad kuch kaar jaaoge. v.n. roy ki nekniyati ka to paata chal gaaya.unhe to anil ji se saarwajanik taur par maafi maangni chaihyee. lekin eek police aadhikaari waala maan ya karne se unhe rokega. kabhi kisi saarwajaanik baithak mein mulakaat hogi to unse kuch saawal kaarna chaoonga.khair aabhi anil ji unko naak mein daam kar dene ke liye kaafi hain. aanij ne laadai saarwajaanik karke hame mauka muhaai kaaraya hai.aab dekhna hai kaun kis paale mein aata.yeh vyaaktigaat imaandari ka saawal hai. kuch log kahte hain teacher ko aandolankaari naahi hona chaiye.unhe ithaas padhne ki jaroorat hai.master suryasen ka naam unhone ne suna.

  37. jitendra kumar

    January 29, 2010 at 5:50 am

    ऊपर के विवादों को पढ़कर क्या कहू . वह रे चमडिया .तुम दलित हो की नहीं अभी यही तय नहीं हो पाया है .तुमने तो जो फॉर्म भरा है उसमे सामान्य ही लिखे हो . फिर दलित कैसे हो गए सुविधा के लिए दलित हो गए क्या . तुम तो थर्ड डिविजन में बी ए पास हो तब भी तुम्हे प्रोफ़ेसर बनाया गया .तब भी शर्म नहीं किये की तुम्हारे पर किसी ने एहसान किया है. सुना है की तुम राज्यसभा में मीडिया सलाहकार हो गए हो और वहा के लिए स्थायी पता पर दिल्ली डाले हो .यह सब इमानदार लोग नहीं करते वर्धा में रहकर दिल्ली का पता देना किस पत्रकारिता का वसूल है दारू के नशे में रहना और वह भी कैम्पस में कानूनन अपराध है. वर्धा में तुम कितने दिन रहे हो? कभी सोचा है ,क्या पढ़ते/पढ़ाते रहे हो कभी फुरसत मिले तो सोचना .
    इ सी में वी सी के आदमी है .यह तो तुम विजीटर पर ही आरोप लगा रहे हो . उसकी प्रक्रिया होती है अब राष्ट्रपति किसी फाइल को पढ़ने से यह पता करता फिरे की इसमे कोई विरोधी तो नहीं है किसी का . इतनी भी समझ जब तुम्हारे पास नहीं है तो अब तक तुम ३० वर्ष का सार्वजनिक जीवन कैसे जिया .दिली बैठक से क्या मतलब है बैठक कही भी हो सकती है.बेकार का मुद्दा है.
    तुम हाथ मिलाते हो की पैर इससे किसी को क्यों एतराज . वाही पर कई मास्टर है जो बच्चो से हाथ मिलाते है . किसी को कोई आपति नहीं .तुम्ही से क्यों . दिल्ली में दारू पीते थे की नहीं मुद्दा यह नहीं है यु जी सी के नियमानुसार तुम कैम्पुस में दारु नहीं पी सकते .यह मुद्दा है अनुशासन तो जीवन में रखना होगा न .पत्रकारिता केवल दूसरो पर कीचड़ उछालने के लिए नहीं होती है .बच्चो को कैसे पढ़ाते होगे अल्लाह ही जाने .हीटर तो तूम जलाते ही थे ,छात्रो से सब्जी मंगाते ही थे तो यह सब तो करते ही थे जो नहीं करना चाहिए थे यदि मन किया गया तो क्या बुरा किया
    मुकदमा तो उसने किया है जो इस पद का हक़दार था . वह तुमसे योग्य भी था पर जब नहीं हुआ तो मुक़दमा किया .उसको हक़ है करने का .तृतीय स्रेडी में पास व्यक्ति से वह योग्य है . यह तो कुलपति की आपके प्रति आसक्ति थी जो नियुक्त करा गयी. पर कुलपति भी पुलिस ही ठहरे . उन्हें नहीं पता की इ सी में मामला उल्टा पड़ जायेगा. १२ के चक्कर में क्यों पड़े हो उनका यदि क्राइटेरिया ठीक है तो क्यों हटाया जाएगा . जिन प्रवाध्हानो का आप जिक्र कर रहे है वह सब मीडिया पर ही लागू है . आप जैसे फर्जी लोग प्रोफ़ेसर न बन जाये इसीलिए १० वर्श्ह का अनुभव पढ़ाने का बना .
    कितना बड़ा झोत तुम लिख रहे हो. वहा के विभाग में सब सुविधाए थी यहाँ तक की लैब भी था जो हिंदुस्तान के शायद ही किसी वी वी में हो .शर्म आनी चाहिए तुम्हे गलत बात लिखते समय. दिल्ली से तुम आनंद लेने गए थे .न की कष्ट सहने . अन्यथा तुम्हारे आचरण में बदलाव आता .
    पूरा देश ही दलितों के लिए लड़ रहा है आप भी लड़िये . लड़ना भी चाहिए पर इसमे श्रेय का मामला कहा बनता है .सबसे सस्ता उपाय लोक प्रिय होने का यही है की हम दलित के लिए लड़ रहे है . रहना होता है ऐयाश की तरह पर है दलित के परोकर .

  38. munhfat

    January 29, 2010 at 8:27 am

    jativadi hai, bhumiharvaad chalata v.n.rai. namvarsingh bhi saath men. dono marxist bante hain.

  39. Naresh Arora Jalandhar

    January 29, 2010 at 6:10 pm

    चमडिया जी और राय जी में कौन सही है और कितना सही है..यह मैं नहीं जनता लेकिन चमडिया जी को इस मामले को जातिवाद से नहीं जोड़ना चाहिए..? यदि चमडिया जी के आरोप को एक बार मान भी लें की साहब उन्हें पसंद नहीं करते इस कारण उन्हें निरस्त किया गया है तो ऐसा तो किसी ब्राह्मण के साथ भी हो सकता था….? दलितों को इतनी सुविधाएँ मिली हुयी हैं उस के लिए तो कभी रोना नहीं रोया गया ? जब किसी मोके पर कोई ऐसी बात होती है तो सुविधा अनुसार दलित शब्द का इस्तेमाल कर लिया जाता है..चमडिया जी आप के शब्दों में आप पत्रकार हो और पत्रकार बनो..दलित नहीं…..

  40. pragati

    January 30, 2010 at 6:38 am

    आपलोग भी कैसे व्यक्ति के बारे में चर्चा करके अपना समय बेकार करे हैं, जो dry area में रह कर भी छात्रों के साथ शराब पिता थे और छात्रों से खैनी लगवाते थे.

  41. algu ram

    January 30, 2010 at 7:18 am

    kripa shanker chaube ab tum apani taiyari karo. mahasweta ke bal par bahut naukari kiye .chamadia ko nikalwane ke liye tum jo bheetar ghat kiye ho.iska phal tumhe jaroor milega . ya allah

  42. ratnabh

    January 30, 2010 at 7:21 am

    tum sab milkar blog ko kuntha ka gahr bana liye ho. bhumiar koi achhut nahi n hai . personal ladai me bhumihar ko kheechate ho. ladai apane tareeke se lado

  43. himanshu mishra

    January 30, 2010 at 7:21 am

    हिमांशु मिश्र
    अनिल जी के बारे में बेहूदी बातें कही जा रही हैं, मैं भी उन्हें बेहद नजदीक से जनता हूँ, उन्होंने वहां बच्चों को पढ़ने में सही दिलचस्पी ली और इसी से वीसी के पेट में दर्द उठा, अनिलजी पर अनरगल आरोप लगाने वाले भी जानते हैं की सच्चाई क्या है, लेकिन यहाँ उन्हें एक दलित को दुत्कारने का अवसर मिल रहा है इसलिए ओछी बातें कही जा रही हैं, कोई ओछा व्यक्ति ही यह कह सकता है की अनिलजी शराब पी कर टुल रहते थे

  44. ratnabh

    January 30, 2010 at 7:26 am

    bhandas ke jank samjahdari ka kam karo . kya kabhi kisi anya vi vi ke kulapati se kabhi bat kiye ho. suvidha ka durupayog mat karo. chamadia koi mudda nahi hai. vah to apni kartooto ka phal paya hai. usake jaisa ghatiya insan milana mushkil hai. chaube chamadia ki jodi kodh aur khaj ki hai. chook yahi hui ki chaube bach gaya . jabki usko pahale jana chahiye tha.jayega hi bakari ki ma kab tak khair manayegi

  45. raj jeph

    January 30, 2010 at 9:04 am

    अरे मूर्खो ,
    क्या काम-धंधा नहीं है क्या , जो चलो हो तरफदारी करने वी एन राय की, क्या मिल रहा है तुम लोगो को जो बड़ी- बड़ी बाते फेक रहे हो सो जाओ घर जाकर,
    कुछ आता जाता नहीं है तुम लोगो को और सुलजाने चलो हो इस मसले को… घर वालो से ये ही संस्कार मिले है तुम लोगो को , कब सुधारोगे हरामखोरो, तुम लोगो की वजह से ये मीडिया बेचारा बदनाम हो रहा है, बंद करो ये राजनीति ….कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो बुरा करने चलो होमीडीया मै यही सिखा है तुम लोगो ने …मूर्खो
    अनिल जी, पत्रकारों के लिए एक मिसाल है, और रहेगे , चन्द मच्छरों के भिनभिनाने से उन्हें कोई फर्क नहीं पडेगा…..

  46. raj jeph

    January 30, 2010 at 9:08 am

    क्या काम-धंधा नहीं है क्या , जो चलो हो तरफदारी करने वी एन राय की, क्या मिल रहा है तुम लोगो को जो बड़ी- बड़ी बाते फेक रहे हो सो जाओ घर जाकर,
    कुछ आता जाता नहीं है तुम लोगो को और सुलजाने चलो हो इस मसले को… घर वालो से ये ही संस्कार मिले है तुम लोगो को , कब सुधारोगे हरामखोरो, तुम लोगो की वजह से ये मीडिया बेचारा बदनाम हो रहा है, बंद करो ये राजनीति ….कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो बुरा करने चलो होमीडीया मै यही सिखा है तुम लोगो ने …मूर्खो
    अनिल जी, पत्रकारों के लिए एक मिसाल है, और रहेगे , चन्द मच्छरों के भिनभिनाने से उन्हें कोई फर्क नहीं पडेगा…..
    नहीं चाहिए, उन्हें ऐसी नौकरी
    जय हिन्द

  47. himanshu mishra

    January 30, 2010 at 9:19 am

    bahut hua

  48. trilokinath tripathi, kolkata

    February 1, 2010 at 1:55 pm

    anil chamaria se mukti mil gaye yahi kya kam bari baat hai.

  49. Chandan ( Cine Editor,Patna)

    February 1, 2010 at 3:25 pm

    raj jeph
    HA…HA……HA…..HA……HA…. KIYA mast bate apne likhi jitna v kau kam hai…………….arre murkhu samval jao….. B.N.j kuchh dene wale nahi hai….

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