अमर उजाला, लखनऊ में उठापटक का दौर चल रहा है. स्थानीय संपादक इंदुशेखर पंचोली से विवाद के बाद प्रादेशिक डेस्क इंचार्ज सियाराम पाण्डेय शांत ने ऑफिस आना बंद कर दिया है. उनकी जगह दैनिक जागरण, कानपुर से आए दिव्येश त्रिपाठी को नया प्रादेशिक डेस्क प्रभारी बनाया गया है. कई और लोग अवकाश पर हैं या अखबार छोड़ने की तैयारी में हैं.
काम प्रभावित होने से बचाने के लिए जूनियर लेवल पर नई भर्तियां करने की तैयारी की जा रही है. सूत्रों का कहना है कि स्थानीय संपादक के रुखे व्यवहार से कर्मचारी परेशान हैं. ऑफिस में कर्मचारियों के गुट बन गए हैं. सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों एक महिला रिपोर्टर उपमा सिंह को फोर्स लीव पर भेज दिया गया. उसकी गल्ती यह थी कि वह बिना छुट्टी लिए एक दिन ऑफिस नहीं आई. दस दिनों तक उपमा घर पर बैठी रही. कल से वह फिर से काम पर आ गई हैं.
कुछ दिन पूर्व संपादक के रवैये से खफा होकर चीफ सब एडिटर नवीन निगम ने अमर ऊजाला को नमस्ते कर दिया था. नवीन सेम पोस्ट पर आई-नेक्स्ट, लखनऊ के हिस्सा बन गए. सिटी रिपोर्टर मुकुल त्रिपाठी के भी संपादक से विवाद के बाद अवकाश पर जाने की चर्चा है लेकिन मुकुल ने भड़ास4मीडिया से बातचीत में विवाद व नाराजगी को बात को अफवाह बताया. मुकुल ने कहा कि वह व्यक्तिगत कारणों से अवकाश पर हैं.
इधर, स्थानीय संपादक से विवाद के बाद घर बैठे सियाराम का कहना है कि थोड़ी बहुत बहस तो हर जगह चलती रहती है. हां, यह सच है कि मैं कार्यालय फिलहाल नहीं जा रहा हूं. प्रबंधन के लोगों के आदेश का इंतजार है, जैसा आदेश आयेगा वैसा कदम उठाया जायेगा. सियाराम ने इस्तीफा देने से इनकार किया है.
उधर, संपादक इंदुशेखर पंचोली के करीबियों का कहना है कि पुरानी टीम को नए संपादक की चाल के साथ कदमताल करने में दिक्कत हो रही है, यही विवाद का कारण है. पुराने लोग अपने स्टाइल में काम करना चाहते हैं जबकि नए संपादक ज्यादा काम और परफेक्ट काम चाहते हैं. वे खुद जब 16 से 18 घंटे आफिस में बैठते हैं और एक-एक पेज पर नजर रखते हैं तो वे दूसरों से भी ज्यादा काम व बढ़िया काम की उम्मीद करते हैं तो कहां से गलत है. हालांकि संपादक के करीबियों का भी कहना है कि सार्वजनिक रूप से किसी को अपमानित करने की आदत से पंचोली को बचना चाहिए. डांट-फटकार अकेले में और प्यार-मोहब्बत सरेआम की नीति को उन्हें अपनाना चाहिए.
भड़ास4मीडिया के कंटेंट एडिटर अनिल सिंह की रिपोर्ट
sweta
August 12, 2010 at 9:51 am
मीडिया दूसरों की पोल खोलता है जबकि कई मीडिया संस्थानों में पत्रकार दस से बारह…यहां तक कि चौदह घंटों तक काम करते हैं और न उन्हें ओवर टाईम मिलता है और न ही उसके एवज में छुट्टी….क्या ये शोषण नहीं…..संपादक को मोटी पगार और मैनेजमेंट की वाहवाही मिलती है…वो सोलह अट्ठारह क्या चौबीसो घंटे दफ्तर में बैठे रहें लेकिन बाकी लोगों को समय पर काम और समय से छुट्टी तो चाहिए न….काम करने से कोई पत्रकार नहीं भागता लेकिन हर चीज की सीमा होती है….मैनेजमेंट के चमचे बने संपादकों को पत्रकारों के हित में भी सोचना चाहिए…..
ASHOK RAJ
August 12, 2010 at 8:51 pm
talented persons dont work longer, they work smarter. ye 18 hours kam karne vala editor gadha hi hoga. dimag se bhi