काम के दबाव में संपादकीय प्रभारी की मौत

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बसंत गुप्तादेर रात तक काम करने के बाद घर लौटते और सुबह-सुबह अखबारों की समीक्षा लेकर आफिस पहुंच जाते : कुछ दिनों पहले जब हार्ट अटैक हुआ तो उसे गंभीरता से न लिया, दूसरे हार्ट अटैक ने जीने का मौका ही नहीं दिया : मौसम बसंत का है. बसंत गुप्ता की उम्र, प्रतिभा और निष्ठा भी बसंत के यौवन की तरह थी. कुछ साल और वे हमारे साथ होते तो उनकी लेखनी, दृष्टि, तरक्की और प्रतिभा से छत्तीसगढ़ के पत्रकार लाभ लेते. नवभारत, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के सम्पादकीय प्रभारी बसंत गुप्ता महज 54 साल की उम्र में हमसे बिछुड़ गए. उनकी अंत्येष्टि में आज कस्तूरबा नगर श्मशान घाट पहुंचे सैकड़ों लोग मानों उनकी काबिलियत के कायल होने के गवाह थे. बसंत आख़िरी दम तक अख़बार के लिए, अपने काम के लिए समर्पित रहे. रात 2-3 बजे तक दफ़्तर में बैठना, फिर सारे अख़बारों की समीक्षा लेकर सुबह की मीटिंग में भी पहुंच जाना. काम खत्म हो जाने के बाद भी सहयोगी और खासकर नये पत्रकारों से गप-शप में घिरे रहना, उन्हें सीख देना उनका शगल था. बसंत पिछले एक पखवाड़े से बीमार चल रहे थे.

बीच में सारे देश में जब शीत लहर चली, छत्तीसगढ़ भी उससे अछूता नहीं रहा. इसी सीजन में बसंत गुप्ता को हार्ट अटैक आया. अपने परिचित डाक्टर के पास गए, उन्होंने बताया- मामूली है, कुछ दवाइयां लीजिए, चिंता की कोई बात नहीं. उनका मफलर-शाल ओढ़कर दफ़्तर आना जारी रहा. लेकिन रात की ड्यूटी के बाद दूसरे दिन सुबह जब दूसरा अटैक 8 फरवरी को आया तो वे सीधे अपोलो पहुंच गए. डाक्टरों ने बताया कि अपनी तसल्ली के लिए देश के किसी अस्पताल में ले जाइये, बचने की कोई उम्मीद नहीं. 12 फरवरी की शाम उन्होंने अपोलो में ही दम तोड़ दिया. सब सन्न रह गए.

श्मशान घाट में हर कोई उनकी प्रतिबद्धता की प्रशंसा कर रहा था, लेकिन एक सवाल यह भी उभर रहा था कि एक पत्रकार का शरीर कोई मशीन तो नहीं. क्या उन्हें काम का इतना दबाव होना चाहिए कि 54 साल की उम्र में भी देर रात तक रुकने और सुबह की मीटिंग में भी पूरी तैयारी के साथ पहुंचने के लिए जोर डालना चाहिए. यहां मैं किसी खास अख़बार की बात नहीं कर रहा हूं, लेकिन शायद सभी बड़े अख़बारों में सबसे ख़राब स्थिति उन लोगों की है, जो सम्पादकीय पन्नों के प्रभारी होते हैं. वे डरते-डरते देर रात तक पन्ने की एक-एक ख़बर, हेडिंग और पूर्ण विराम कामा तक जांचते हैं लेकिन घर जाकर इस चिंता में सो नहीं पाते हैं कि क्या पता कल कोई गलती उनके हिस्से में निकल जाए. रिपोर्टरों की हालत और ख़राब होती है. खासकर देर रात तक व्यस्त रहने वाले हास्पीटल और पुलिस बीट संभालने वाले पत्रकारों की, जो भयग्रस्त होते हैं कि कल उनके हाथ से कोई ख़बर छूट तो नहीं जाएगी.

श्मशान घाट में शोक-सभा हुई. पत्रकारों के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे. वक्ताओं ने बसंत गुप्ता को श्रद्धांजलि देने के साथ यह मुद्दा संजीदगी से उठाया कि मीडिया के लिए समर्पित शरीर और दिमागों को आराम का मौका मिलना चाहिए. यह आराम उन्हें इसलिए भी नसीब नहीं होता कि उन्हें अपने भविष्य के प्रति असुरक्षा का आभास होता है. अपनी जगह को बचाए रखने के लिए वे हर दिन अपनी क्षमता से ज्यादा काम करने के लिए व्यग्र होते हैं. लेकिन यही व्यस्तता उन्हें समय से पहले हमसे छीन लेती है.

अच्छी भली जीवनसंगिनी और दो छोटे बच्चों को छोड़कर चले गए हट्टे-कट्टे व स्वस्थ दिखने वाले, जबरदस्त व विशिष्ट लेखन क्षमता से सम्पन्न बसंत गुप्ता. फक्कड़ थे, जीवट थे, लेकिन उन्होंने अपने शारीरिक और मानसिक दबावों को पहचाना नहीं. पहचाना भी तो काम के धुन में उसकी परवाह नहीं की. उनका असमय चले जाना एक नसीहत है हम सभी पत्रकारों के लिए कि जो शख्स दुनिया भर के लिए मुखर दिखता है वह खुद के तकलीफों में खामोशी साध लेता है. बसंत जैसे ईमानदार और शरीफ पत्रकार क्षमता से ज्यादा कार्य करने के बाद भी तनावग्रस्त रहते हैं क्योंकि आजकल आफिसों का जो माहौल है उसमें तिकड़मी और अवसरवादी ज्यादा सफल हैं, सहज-सरल लोग कम. हमको-आपको, सभी को ये तय कर लेना चाहिए कि उम्र के एक खास मोड़ पर पहुंचकर शरीर को आराम देने का क्रम शुरू कर देंगे. मानसिक तनावों को दूर रखेंगे. शरीर को आराम नहीं देंगे तो शरीर हमें जीने नहीं देगा.

लेखक राजेश अग्रवाल पत्रकार हैं और इन दिनों पत्रिका, भोपाल से जुड़े हुए हैं.

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Comments on “काम के दबाव में संपादकीय प्रभारी की मौत

  • Rizwan Chanchal lucknow says:

    karmath aur appne kam ke prati samarpit Basnt gupta ke pariwar ko aise dukh ki ghari me na kewal humari apki sahanubhuti chahiye balki humari aapki subhi ki yeh kosis honee chahiye ki we jis akhbar ke liye khud ko home kar baithe uske prabandhan samiti se aur Sarkar se unke pariwar ko arthik madad dilayee jaye yahee unke prati humari suchchi sradhanjali hogi .

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  • कमल शर्मा says:

    बसंत गुप्‍ता जी को मेरी श्रद्धांजलि। उनके परिवार को यह दुख सहन करने की ताकत ईश्‍वर प्रदान करें। मीडिया में वाकई काम का दबाव और प्रतिस्‍पर्धा ने हर किसी का तनाव में ला दिया है। मीडिया मालिकों को यह दबाव हटाना चाहिए और सुगमता से कार्य हो इसे तय करना चाहिए। कुछ दिनों पहले अशोक उपाध्‍याय भी इसी तरह के तनाव में हार्ट अटैक के शिकार होकर चल बसे। मीडिया कर्मियों को इस मुद्दे पर गहराई से चर्चा कर अपने ऊपर बनने वाले तनाव को कम करने के लिए मीडिया मालिकों के साथ बैठक करनी चाहिए।

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  • rajesh aggarwal jee…bahut sahi kaha apne…..lekin ek chijh jo main yahan jodra chahunga ki kabhi kabhi ye jyada kaam karna apki aadat ban jati hai aur samasya kabhi bhi jyada kaam karne nahi hoti balki iss kaam ka phal na milne se jo avasad utpann hota hai uske wajah se hoti hai.
    meri shraddhanjali swargwasi patrakar mahoday k liye

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  • om prakash singh cavs,mcu bhopal mp says:

    basant ji jo bhi kiye wo natural hai kyuki inasan jab shikhar pe hota hai tab wo sirf aapne ghar ya aapna nahi balaki pure samaj ka ho jata hai tab jimamadariyo ka, kam ka bad jana lajimi hai…..phir bhi aapna khayal rakhana chiye kyunki health is wealth….basant ji ko meri sharadhanjali,bhagawn unki aatama ko shanti de ….unko mera naman

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  • sachin tiwari says:

    बसंत गुप्‍ता जी को मेरी श्रद्धांजलि। उनके परिवार को यह दुख सहन करने की ताकत ईश्‍वर प्रदान करें।

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  • gareema rana says:

    hum bhi ish mamile me gahera khed prakat kartein hain.
    halanki bhasa ke madhyam se hum dusre mulk se hain magar ish dukhad ghatana se hum bhi bahut aahat huyein hain.. marmahat huye hain…

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  • Ashok Priyadarshi says:

    बसंत गुप्‍ता जी को मेरी श्रद्धांजलि। ईश्‍वर उनके परिवार को यह दुख सहने की ताकत प्रदान करें।

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  • बसंत जी के निधन के बाद उनके परिवार को भगवान साहस प्रदान करें।

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  • sanjay dixit says:

    patrakaro ke mantle pressure ko rajesh bhai ne marmik chitran kia hai…sahsik lekhan ke liye badhai.
    & basantji ko shrandhajli.

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  • vikash tiwari says:

    basant bhaiya ke nidhan ne mujhme patrakarita ki bachi sari hoslon ko tod diya .kya kahun is kalam ke dhani aur sabhi ko sath lekar chalne wale mahan vyaktitwa ko.aaj main agar patrkarita ke is mahol me khud ko dhal saka to usme kewal aur kewal basant bhaiya ka hi yogdan hai. is mahan vaktitwa ke nidhan ne mujhe puri tarah tod diya , aur aisa lagta hai saayad main is ko kabhi bhul na sakun .meri shraddhanjali pita saman basant bhaiya ko.

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  • vikash tiwari says:

    aaj bhi basant bhaiya ki suni kursiya unki maujidagi ka ehsas delati hai, aisa lagta hai mano wo hamare bich hai aur hume kuch nasihat de rahe ho.ab bhi unke nidhan ka ehsas nahi hota.

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