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प्रभाष जी, उनके चेले और हम

बेनामी लाल: बेनामी की टिप्पणी-1 : आज प्रभाष जी का जन्मदिन है, पत्रकारिता के संतों की भीड़ लगेगी। वही संत जिन्हें आज प्रभाष जी अगर होते तो इनमें से कइयों को बेहद निराशा और क्रोध में गरिया रहे होते। कई मठाधीश वहां आएंगे, बैठेंगे, प्रभाष जी को याद करेंगे, पत्रकारिता की दशा पर क्षोभ और ग्लानि का नाटक करेंगे। अपने-अपने को प्रभाष जी का चेला साबित करने की होड़ होगी।

बेनामी लाल

बेनामी लाल: बेनामी की टिप्पणी-1 : आज प्रभाष जी का जन्मदिन है, पत्रकारिता के संतों की भीड़ लगेगी। वही संत जिन्हें आज प्रभाष जी अगर होते तो इनमें से कइयों को बेहद निराशा और क्रोध में गरिया रहे होते। कई मठाधीश वहां आएंगे, बैठेंगे, प्रभाष जी को याद करेंगे, पत्रकारिता की दशा पर क्षोभ और ग्लानि का नाटक करेंगे। अपने-अपने को प्रभाष जी का चेला साबित करने की होड़ होगी।

प्रभाष परम्परा चलाने की बात होगी। पर कोई भी उस परम्परा का बोझ अपने कंधों पर नहीं चाहेगा। प्रभाष जी संपादक थे…. चेले नए जमाने के संपूर्ण संपादक हैं, सीईओ हैं, मैनेजिंग एडिटर हैं…. अंतर है…. गोष्ठी के बाद संगीत होगा…. और फिर भोजन…. रात भर गिलास और थालियां खाली पड़े सुबह अपने अंत का इंतज़ार करेंगे…. ठीक वैसे ही जैसे सारे ईमानदार पत्रकार कर रहे हैं…. शांति से… चुपचाप…. क्यों…. प्रभाष जी होते तो क्या शांत होते….??????

शाम होते ही हालिया पत्रकारिता के तमाम बड़े-छोटे चेहरे राजघाट के करीब पहुंचने लगेंगे, ये वही जगह है जिससे प्रभाष जी का पुराना और गहरा जुड़ाव था। बड़े चेहरों में से कुछ वहां ये दिखाने की गरज से पहुंचेंगे कि उनमें थोड़ी सी शर्म अभी बाकी है, कुछ  वैसा ही ढोंग करने के लिए जैसा वो अपने अपने चैनलों की प्राइम टाइम बहसों में  और सम्पादकीय पन्नों पर करते हैं और कुछ दफ्तर की थकान उतारने के लिए मुकुल शिवपुत्र के गायन के नाम पर….ये ज़ाहिर है कि प्रभाष जी के लिए पर उनमें से कम ही आएंगे क्योंकि प्रभाष जी की उनके जीवन में जगह उनके काम में ही झलक  जाती है।

ये ठीक वैसा ही है जैसा कि गांधी की गांधीवादियों या कांग्रेसियों के जीवन में  जगह की स्थिति है, ज़्यादातर के लिए गांधी का जीवन में होना परेशानी का सबब बन सकता है। ठीक वैसा ही प्रभाष जी के साथ है, हमारे तथाकथित  बड़े नाम जानते हैं कि भले ही वो आज प्रभाष जी की वजह से मीडिया में हों  पर प्रभाष जी का अंश भी उनके जीवन में, रवैये में गलती से भी आ गया तो न काम  छोड़िए…लाला जी नौकरी भी छीन लेंगे। सो बेहतर है कि बूढ़े की आत्मा को दूर  रखा जाए…साल में दो दिन  की ही नौटंकी तो करनी है सो जन्मदिन और पुण्यतिथि पर देखा जाएगा।

खैर कई छोटे, नवोदित और प्रशिक्षु पत्रकार भी पहुंचेंगे राजघाट, ये भी पक्का ही है। ज़ाहिर है इनमें से कई जनसत्ता पढ़के बड़े हुए होंगे, प्रभाष जी के बारे में पाठ्य पुस्तकों और अध्यापकों से भी पता चला होगा। इनमें से जो जड़ होंगे वो अभी भी प्रभाष जी वाली पत्रकारिता करने का सपना पाले होंगे और देखने  आएंगे कि उनके शिष्य उन्हें कैसे याद करते हैं, वो वाकई प्रभाष जी को श्रद्धांजलि देने आएंगे। कुछ जानते हैं कि सच क्या है और वो केवल महानुभावों का तथाकथित नाटक देख कर मज़े लेने आएंगे, कई ऐसे भी होंगे जिनके लिए ये भी एक पीआर ईवेंट होगा यानी कि बड़े लोगों से मिलकर सम्बंध बनाना या मज़बूत करना। कई लोगों के लिए ज़ाहिर है ये एक शांत और गंभीर आउटिंग का मसला होगा, इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूं वाला टाइप।

फिलहाल इतना तय है कि कई लोग पहुंचेंगे, ठीक वैसे ही जैसे उदयन शर्मा स्मृति व्याख्यान में पहुंचे थे पर याद ही होगा आपको कि वहां जाकर किस तरह की बातें की थी लोगों ने। चलिए अब बोलने पर ही आया है बेनामी तो सुन ही लीजिए, तारीख के साथ बताता हूं….तारीख  थी 6 नवम्बर, 2009 की और जगह थी मध्य प्रदेश में प्रभाष जी का गांव, प्रभाष जी के शव को चिता पर रका जा चुका था….पंचतत्वों में विलीन होते शव के साथ एक प्रभाष जी के एक शिष्य और बेहद वरिष्ठ पत्रकार एक शपथ उठा रहे थे….उनके ही चैनल पर चल रहे वॉक्स पॉप को मैं घर पर बैठा देख रहा था…. शपथ के वाक्य थे….”प्रभाष जी हमारे बीच एक लक्ष्य, एक चुनौती छोड़ गए हैं… ईमानदारी, सत्य और पारदर्शिता से भरी पत्रकारिता…. बिना किसी दबाव के पत्रकारिता को करने और आगे बढ़ाने की चुनौती…. और आज से मेरे लिए एक परम्परा… प्रभाष परम्परा प्रारम्भ हो रही है… मैं एक अनुयायी हूं आज से प्रभाष पीठ का…. परम्परा आदर्शों की जो प्रभाष जी ने स्थापित किए…..”

अब उन्हीं महोदय के तीन दिन पहले उदयन शर्मा स्मृति व्याख्यान में कुछ ऐसा मजबूरी भरा वक्तव्य पर कि कैसे समय और हालात के साथ प्रभाष जोशी की प्रासंगिकता उनके लिए बदल जाती है, जनाब पर मालिकान का ऐसा दबाव है कि वो साफ साफ कह रहे हैं कि पत्रकार कुछ नहीं कर सकते क्योंकि सब कुछ मालिकों के हाथ में है।

ज़ाहिर है जनाब आप संपादक नहीं सीईओ हैं और भाषा ज़रूरत के हिसाब से ही प्रभाषमय होती है। खैर ये अकेले नहीं हैं ऐसे बहुतेरे आपको देखने को मिलेंगे आज, अगर देखने का मन है, शौक है तो चले आइए आज राजघाट के सामने गांधी दर्शन परिसर….हम में से कई आप सबका इंतज़ार कर रहे हैं…और हां हम प्रभाष परम्परा के ध्वज वाहक होने का दावा नहीं करते हैं क्योंकि हम प्रभाष जोशी को बेहद प्यार करते हैं और उनका नाम लेकर झूठ नहीं बोल सकते…उनकी झूठी कसमें नहीं खा सकते….

उम्मीद है प्रभाष जी हमें देख रहे हैं और माफ़ कर देंगे….

आपकाही

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बेनामी लाल

पत्रकार


 

: बेनामी लाल का परिचय : हालांकि बेनामी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं क्योंकि लगभग हर वेबसाइट और ब्लॉग पर इनकी टिप्पणियां विवाद मचाकर ख्यातिलब्ध रही हैं। किसी भी बड़े से बड़े औदमी की प्रतिष्ठा की मानहानि पलक झपकते ही कर देना इनकी खासियत रही है। लोग इनको गरियाते हैं, कायर कह कह के सामने आने को उकसाते हैं पर बेनामी किसी फुसलावे में नहीं आते हैं। और तमाम गालियां बक कर भी लोग भी बेनामियों को बिना पढ़े रह नहीं पाते। बेनामी बेशर्म बने चुपचाप अपना काम कर रहे हैं, तर्क भी हैं उनके… वो कहते हैं कि जब बड़े-बड़े लोग बेशर्मी से बेईमानी कर रहे हैं तो मैं तो बस बेशर्मी से सच लिख रहा हूं…. बस पहचान छुपाए हूं…राम राम क्या ज़माना आ गया है कि झूठे खुलेआम हैं…और सच्चे बेनाम हैं…. खैर इतने परिचय के बाद भी दरअसल बेनामी का कोई परिचय नहीं है क्योंकि वो परिचय देना नहीं चाहते हैं। लम्बे अर्से से हमारे गरियाने… समझाने… रोकने और टोकने के बाद भी बेनामी अपनी टिप्पणियों से बाज़ नहीं आ रहे थे तो हमने कहा कि भई आखिर कमेंट बक्से में न दिखने का क्या लोगे… तो बेनामी झट बोले कि ऐसा करो मुझे अलग से कॉलम दे दो… वहीं टिपियाता रहूंगा… मैं भी खुश और तुम लोग भी….

तो आज से अलग स्तंभ में विशेष टिप्पणियों के साथ मिलेंगे आपको बेनामी लाल… बेनामी की टिप्पणी… कालम में. यों, इसे किसी दिलदिमागजले की भड़ास मानें या बेनामी की कुंठित-व्यथित बात, पर अगर किसी को बुरा लगे, किसी का दिल दुखे तो उसके लिए अग्रिम माफी चाहता हूं क्योंकि भड़ास ही तो है. -एडिटर

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0 Comments

  1. ramesh singh

    July 15, 2010 at 11:36 am

    bhai , pata nahi kyon benami ki bhasha ke tewar aapke sampadkeey sai bilkul milte julte hain…par aap to lagai raho…aise nikle ya wise, bhadas hi to hai…;D

  2. kamal trivedi 7 days dhanbad

    July 15, 2010 at 11:50 am

    prabhash jee ke liye benami jee ney kuch bhi galat nahi likha hai bhai yashwantaap unhay ek colam de he dijeya

  3. KP

    July 15, 2010 at 2:19 pm

    Yashwant
    I know it is you, but why are you taxing your self so much. Kyon apnaa khun peete ho bhai.

  4. kartikeya

    July 16, 2010 at 10:11 am

    मित्र बेनामी भाई, आपकी टिप्पणी अच्छी है पर अफसोस कि इसमें नया कुछ नहीं। आप जिन सज्जन की बात कर रहे हैं वे भी क्या करें काफी हाथ पांव जोड़कर तो जुगाड़ हुआ कैसे खो दें वो जो भाग्य से नसीब हुआ। चैनल में बहस होगी नीति निर्देशक तत्वों पर और हाल ये है कि खुद की कोई नीति नहीं। गलीज़ पत्रकारिता के पोषक हैं ये लोग। दरअसल हमारे देश की पत्रकारिता खासकर हिंदी पत्रकारिता में पिछलग्गूवाद बहुत तगड़ा है जीतेजी तो दोहन होता ही है मरने के बाद भी नाम की दुकान चलती है तब तक जब तक फायदा हो। ये सज्जन भी उसी परिपाटी को निभा रहे हैं। चलने दो भाई जब तक चर रहा है वैसे भी घड़ा भरने का समय आ गया है।

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