फिर साबित किया कि दैनिक भास्कर टाइटिल पर सिर्फ डीबी कार्प का हक नहीं है बल्कि इसके मालिक वे भी हैं और उनकी बिना सहमति से नए जगहों से अखबार निकालने के लिए डिक्लयरेशन फाइल नहीं किया जा सकता. बताया जाता है कि डीबी कार्प को संजय अग्रवाल की आपत्ति के बाद नोटिस जारी किया गया. कई नोटिस व
रिमाइंडर के बाद जब डीपी कार्प की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो डीबी कार्प के आवेदन को कैंसिल कर संजय अग्रवाल के नाम डिक्लयरेशन कर दिया गया. संजय अग्रवाल अब नोएडा से अखबार का कामकाज शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं.भड़ास4मीडिया से बातचीत में संजय अग्रवाल का कहना है कि लोग पहला सवाल यही पूछते हैं कि जब पंजाब में दैनिक भास्कर का विस्तार हो रहा था तब आप चुप क्यों थे? इसकी कहानी कुछ इस तरह है. संजय के मुताबिक- ‘तब मुझे बड़े भाई व पिता समान रमेश चंद्र अग्रवाल ने अपने साथ कर रखा था. सारे विस्तार में वे मेरा हक भी बताते थे. वे कहते थे कि बेटे ये सब तेरे लिए ही तो हो रहा है. लेकिन जब आईपीओ लाने की बारी आई तो उन्होंने मेरा नाम हटा दिया. मैंने इस पर आपत्ति जताई. मैं रमेश जी से कहा कि आपने मुझे अपने साथ रखकर कई जगहों पर विस्तार कर लिया. कंपनी में मेरा भी स्टेक होने की बात कहते रहे पर जब आईपीओ लाने की बारी आई तो दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका. तब रमेश ने कहा कि अब कुछ नहीं हो सकता.’ संजय अग्रवाल कहते हैं कि उन्होंने कभी भी रिटेन कंसेंट नहीं दी थी पंजाब में भास्कर निकालने के लिए.
संजय देहरादून का प्रकरण बताते हैं. देहरादून कभी यूपी का पार्ट हुआ करता था इसलिए संजय अग्रवाल के इलाके में आता था. इसी तर्क के आधार पर संजय ने देहरादून से अखबार निकालने के लिए डिक्लयरेशन फाइल किया. संजय का आरोप है कि रमेश चंद्र अग्रवाल व उनके लोगों ने देहरादून के अधिकारियों व आरएनआई के लोगों को मैनेज कर मेरा डिक्लयरेशन वहां से कैंसिल करा दिया. संजय बताते हैं कि उसके बाद मुझे डीएम व आरएनआई के खिलाफ हाईकोर्ट जाना पड़ा.
संजय के मुताबिक पटना और रांची के जिलाधिकारियों ने डीबी कार्प को नोटिस जारी कर हफ्त भर में उन आपत्तियों पर जवाब दाखिल करने को कहा है जिसे मैंने लिखित रूप से उठाया है. संजय आश्वस्त हैं. वे बताते हैं कि जितने भी सुबूत हैं, सब मेरे साथ हैं. इन सुबूतों को आज प्रेस कांफ्रेंस में सभी पत्रकारों के बीच वितरित कर दिया गया है. हम लोगों के पास आरएनआई का लेटर है. सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है. यहां तक कि डीबी कार्प भी मुझे को-आनर मानता है पर अखबार निकालने में हम लोगों की कंसेंट नहीं लेता.
इस खबर पर अगर डीबी कार्प की तरफ से कोई सफाई या प्रतिक्रिया भेजना चाहता हो तो उसका हम स्वागत करते हैं. हम तक अपनी बात [email protected] के जरिए भेज सकते हैं. संजय अग्रवाल की बातों पर डीबी कार्प के कुछ निदेशकों से उनका पक्ष जानने के लिए फोन किया गया पर बातचीत नहीं हो सकी. ऐसे में डीबी कार्प से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारियों से सार्वजनिक अनुरोध है कि वे अपना पक्ष प्रकाशन हेतु भड़ास4मीडिया के पास भेजें. उसे पूरी प्रमुखता से और बिना कांटछांट के प्रकाशित किया जाएगा. -एडिटर, भड़ास4मीडिया