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साहित्य

आइए, मुख्यमंत्री रमन को मक्खन मलें

[caption id="attachment_16134" align="alignnone"]रमन सिंह के व्यक्तित्व-कृतित्व पर लिखी गई किताब का विमोचन करते गणमान्य जनरमन सिंह के व्यक्तित्व-कृतित्व पर लिखी गई किताब का विमोचन करते गणमान्य जन[/caption]

सत्ता में बैठे नेताओं की तारीफ करने वालों के बारे में आमतौर पर यही समझा जाता है कि जरूर इस बंदे का संबंधित नेता से कोई स्वार्थ है वरना आजकल नेता ऐसे होते कहां हैं कि उनकी तारीफ की जा सके। इसी तरह अगर कोई किसी सत्ताधारी नेता की तारीफ में किताब लिख मारता है तो इसे सहज ही समझा जा सकता है कि लेखक का मंतव्य साहित्य सेवा नहीं बल्कि नेता को खुश करना है। ऐसी ही एक किताब का पिछले दिनों दिल्ली में विमोचन हुआ। किताब का नाम है ‘छत्तीसगढ़ के शिल्पी’। इस किताब में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में ढेर सारी बातें की गई हैं। जाहिर है, इस किताब का विमोचन किसी भाजपा नेता के हाथों ही कराया जाएगा। सो, भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री और सांसद प्रभात झा के हाथों इसका विमोचन दिल्ली में करा दिया गया।

रमन सिंह के व्यक्तित्व-कृतित्व पर लिखी गई किताब का विमोचन करते गणमान्य जन

रमन सिंह के व्यक्तित्व-कृतित्व पर लिखी गई किताब का विमोचन करते गणमान्य जन

सत्ता में बैठे नेताओं की तारीफ करने वालों के बारे में आमतौर पर यही समझा जाता है कि जरूर इस बंदे का संबंधित नेता से कोई स्वार्थ है वरना आजकल नेता ऐसे होते कहां हैं कि उनकी तारीफ की जा सके। इसी तरह अगर कोई किसी सत्ताधारी नेता की तारीफ में किताब लिख मारता है तो इसे सहज ही समझा जा सकता है कि लेखक का मंतव्य साहित्य सेवा नहीं बल्कि नेता को खुश करना है। ऐसी ही एक किताब का पिछले दिनों दिल्ली में विमोचन हुआ। किताब का नाम है ‘छत्तीसगढ़ के शिल्पी’। इस किताब में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में ढेर सारी बातें की गई हैं। जाहिर है, इस किताब का विमोचन किसी भाजपा नेता के हाथों ही कराया जाएगा। सो, भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री और सांसद प्रभात झा के हाथों इसका विमोचन दिल्ली में करा दिया गया।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के व्यक्तित्व की गुणगान करने वाली यह किताब उस समय में प्रकाशित हो रही है जब रमन सिंह और उनकी मशीनरी गरीब आदिवासियों को नक्सली बताकर नेस्तनाबूत करने में लगी है और इस राह में जो भी पत्रकार या बुद्धिजीवी ‘रोड़ा’ बन रहे हैं तो उन्हें भी नक्सलियों का समर्थक बताकर सरकारी उत्पीड़न झेलने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। रमन सिंह भले ही फिर से मुख्यमंत्री बन गए हों, निजी तौर पर सहज-सरल-सज्जन आदमी माने जाते हों लेकिन गरीब जनता के प्रति उनका और उनकी मशीनरी का जो रवैया है, वह रमन सिंह के संपूर्ण व्यक्तित्व को माफी के योग्य नहीं बनाता। नक्सलियों के खिलाफ दुष्प्रचार कराने और उनके दमन के लिए माहौल तैयार कराने में रमन सिंह ने जिस तरह मीडिया पर पैसा पानी की तरह बहाया है, अगर उस पैसे को आदिवासियों के इलाके के विकास पर खर्च कर दिया गया होता तो न जाने कितने परिवारों का कल्याण हो गया होता लेकिन लोकतंत्र के इस दौर में चलन ‘करो कम, दिखाओ ज्यादा’ का है, सो रमन सिंह भी इसी अभियान में लगे हुए हैं। पैसे देकर मीडिया का मुंह बंद किया और अब किताब छपवाकर अपनी खुद की ब्रांडिंग में जुटे हैं, इसलिए माना जाना चाहिए कि रमन सिंह वाकई ‘नए जमाने के नए नेता’ हैं जो ‘काम में काम, दिखावे में ज्यादा’ पर विश्वास करते हैं। आखिर रमन सिंह ने ऐसा कौन सा महान कार्य देश या समाज के लिए कर दिया है कि उन पर किताब लिखने की जरूरत आन पड़ी? अगर रमन सिंह इतने बड़े नेता हैं तो शिवराज सिंह चौहान, मायावती समेत देश के सारे मुख्यमंत्री कौन-से छोटे नेता हैं? फिर तो इन पर भी लेखक को एक-एक किताब जरूर लिख देनी चाहिए!

लौटते हैं रमन सिंह पर लिखी गई किताब ‘छत्तीसगढ़ के शिल्पी’ के विमोचन कार्यक्रम पर। विमोचन के मौके पर पुस्तक के लेखक फिल्मकार और पत्रकार तपेश जैन, सुधाकर सिंह और पुस्तक के प्रकाशक ओमप्रकाश अग्रवाल एवं शांतिस्वरूप शर्मा मौजूद थे। पुस्तक में डा. रमन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में छत्तीसगढ़ में हुए विकास कार्यों तथा वहां के राजनीतिक परिदृश्य को रेखांकित किया गया है। पुस्तक की भूमिका माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने लिखी है। पुस्तक में पूर्व राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा छत्तीसगढ़ पर लिखी उनकी कविता को विशेष रूप से प्रकाशित किया गया है। पुस्तक का प्रकाशन जयपुर के श्याम प्रकाशन ने किया है। मूल्य है 200 रुपये। रमन सिंह पर लिखी गई किताब को पढ़ने के लिए कोई 200 रुपये क्यों खर्च करेगा, यह सोचने वाली बात है। होगा यही कि इस किताब को सरकारी कालेज, विश्वविद्यालय, लाइब्रेरियों को सरकारी तौर पर बेचा जाएगा जिससे लेखक और प्रकाशक न सिर्फ अपने पैसे वसूल कर सकें बल्कि मुनाफा भी कमा सकें।
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