राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के लिखे दो काव्य संग्रहों ‘आद्या’ और ‘स्टेपिंग टू स्प्रिचुएलिटी’ का विमोचन रविवार को जयपुर में हुआ। विमोचन वरिष्ठ कवि बालकवि बैरागी ने किया। कोठारी ने ‘आद्या’ में अपनी एक साल की पौत्री को संबोधित रचनाओं के जरिए जीवन के हर पहलू को छुआ है।
इस अवसर पर बालकवि बैरागी ने कहा कि कोठारी की पौत्री आद्या अपने जीवन के हर मोड़ पर जब इसको पढ़ेगी तो इसके अलग-अलग मायने सामने आएंगे। इसमें ढेरों सच्चाइयों को बखूबी उजागर किया गया है। कविता में जीवन की तमाम गतिविधियां शामिल की गई हैं। कोठारी के दूसरे ग्रंथ ‘स्टेपिंग टू स्प्रिचुएलिटी’ का विमोचन करते हुए अणुव्रत विश्वभारती के अध्यक्ष रहे डॉ. एसएल गांधी ने कहा कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का जीवन में संतुलन कैसे बनाए, इस ग्रंथ में बेहतर ढंग से रखा गया है। यह चार खंडों में है। पत्रिका के कार्यकारी संपादक निहार कोठारी ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेट किए। साभार : जनसत्ता
ऋषि दीक्षित
January 18, 2010 at 10:36 am
आदरणीय श्री गुलाबजी कलम के धनी हैं। इससे पहले भी उनकी पुस्तक मानस अद्वितीय रही है। सबसे बड़ी बात ये है राजस्थान पत्रिका जैसे बड़े अखबार में जिम्मेदारियां संभालते हुए इस तरह के लेखन लिए समय निकालना अपने आप में बड़ा काम है।
Sonia Sharma
January 18, 2010 at 12:03 pm
काश……. गुलाब कोठारी पैसे लेकर खबरें छापने पर भी एक किताब लिखते। इस काम को ईनको काफी अच्छा अनुभव है। कोठारी के अखबार राजस्थान पत्रिका ने चुनाव में जिस तरह से एक एक उम्मीदवार से लोखों आर पार्टियों से करोड़ों रुपए लेकर उनके फेवर में कैंपेन चलाए, यह खेल उन्होंने किस तरह से किया, इस पर पूरी किताब वे आसानी से लिख सकते हैं। क्योंकि इस काम के वे महारथी हैं। वे अगर कुछ वक्त निकाल कर अपने अनुभव लिखेंगे, तो कई लोगों का भला हो जाएगा। जो छोटो अखबार वाले हैं, वे भी उनके अनुभवों का उयदा ले सकेंगो। गुलाब जी, बहुत बहुत बधाई, दो नई पुस्तकों के प्रकाशन पर। अब, आपकी अगली पुस्तक का शीर्षक होना चाहिए…. चुनाव आया तो खबरे बेचो इस तरह। बेहतर होगा, गुलाब कोठारी ये बड़ी बड़ी ईमानदारी की बातों पर किताबें लिखने में समय जाया करने के बजाय पत्रिका के खबरे बेचने के कारोबार को और चमकाएं। बिन चुनाव खबरें कैसे बेची जा सकती है, इसके बारे में वे चिंतन करके कुछ ज्ञान बांट सकते हैं।
s.p. mittal
January 18, 2010 at 5:44 pm
आदरणीय गुलाब जी,
सादर प्रणाम
भभक का यह खुला पत्र आपको दूसरी बार लिखा जा रहा है। पूर्व में बाबू सा यानि आपके पिता कपूüरचन्द कुलिश जी के निधन पर भी एक पत्र लिखा था। आपका जवाब भी मिला। यह पत्र आपकी उस हिम्मत के लिए लिख रहा हूं, जिसमें आपने आम जनता से भ्रष्ट मीडिया को उखाड़ फेंकने की अपील की है। राजस्थान पत्रिका की ओर से आयोजित पण्डित झाबरमल शर्मा स्मृति वयाख्यान के अन्तर्गत आपने पत्रिका समूह के प्रधान सपादक की हैसियत से जो भाषण दिया, उसे ज्यो का त्यों 10 जनवरी के रविवारीय परिशिष्ट में भी प्रकाशित किया गया। आपका यह भाषण मैंने पूरा पढ़ा। इसमें कोई दो राय नहीं कि आप और राजस्थान पत्रिका समूह अपनी पीठ थपथपा सकता है। राजस्थान पत्रिका समूह का नाम भ्रष्ट मीडिया की उस सूची में नहीं है, जिसमें चुनाव के दौरान पैसे लेकर खबरें छापी गई। मुझे आपके भाषण से ही यह पता चला कि राजनीतिक दलों के नेताओं के हवाले से पैसे लेकर खबरें छापने वाले अखबारों के नाम उजागर किए गए हैं। आपकी तरह मैं भी किसी प्रतिद्वन्दी अखबार के नाम का उल्लेख नहीं कर रहा, लेकिन राजस्थान और मध्यप्रदेश की जनता यह जानती है कि राजस्थान पत्रिका का प्रतिद्वन्दी अखबार कौनसा है। मुझे यह भी नहीं पता कि भ्रष्ट मीडिया वाली सूची में आपके प्रतिद्वन्दी अखबार का नाम है या नहीं, लेकिन मैं इस मौके पर आपकी हिम्मत को दाद देना चाहता हूं। राजस्थान पत्रिका भी वर्तमान दौर में देश के चुनिन्दा अखबारों में से एक है। राजस्थान पत्रिका की प्रिंट मीडिया में अपनी अलग पहचान है। ऐसे में यदि पत्रिका समूह का प्रधान सम्पादक भ्रष्ट मीडिया को उखाड़ फेंकने का आव्हान करता है तो यह मीडिया की छवि में एक सुधार ही है। यह भी सही है कि चुनाव के अवसर पर अधिक सकूüलेशन वाले अखबारों को ही राजनीतिक दल और उनके नेता पैसे का ऑ र करते हैं। हो सकता है कि गत लोकसभा चुनाव के दौरान राजस्थान पत्रिका को भी ऐसा ऑफर मिला और आपने ठुकराया दिया। निज्सन्देह ऐसा कर आपने ईमानदार पत्रकारिता की मशाल को जलाए रखा। आप अच्छी तरह जानते हैं कि अखबारों में कीमत को लेकर जो होड़ मची हुई है, उससे अखबार को चलाने के लिए सभी को अनेक जतन करने पड़ रहे हैं । अखबार प्रकाशन के साथ-साथ मेले, प्रदर्शनी,कोचिंग संस्थान, सरकारी शिविर, स्वास्थ्य केन्द्र आदि के आयोजन भी किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं हर पाठक को ईनाम मिले, इसके लिए भी लालच दिया जा रहा है। यानि कोई भी अखबार समूह अखबार छापने के अतिरिक्त बहुत से काम कर रहा है। एक ओर कागज, श्रम और अन्य संसाधन महंगे हो गए हैं तो दूसरी ओर बीस पृष्ठ का रंगीन अखबार मात्र डेढ़-दो रूपये में बेचा जा रहा है। इसमें भी हॉकर का पैन्तीस प्रतिशत कमीशन शामिल है। जाहिर है कि अखबार पर अंकित कीमत से कहीं ज्यादा खर्चा होता है। ऐसे में यदि पत्रिका समूह चुनाव की खबरें पैसे लेकर नहीं छाप रहा है तो अखबारी दुनिया में चमत्कार ही है। जो मालिक अपने अखबार के सकूüलेशन को अधिक से अधिक बढ़ा रहे हैं उन्हें अखबार का प्रकाशन व्यवसायिक दृष्टिकोण से ही करना पड़ता है। यदि कोई मालिक सिर्फ पत्रकारिता कर अखबार का प्रकाशन करेगा तो उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। हो सकता है कि ऐसे में अखबार भी बन्द हो जाये। आपने अपने भाषण में कहा कि आम जनता भ्रष्ट मीडिया को उखाड़ फेंके। अच्छा हो कि अगले किसी भाषण में यह भी बताएं कि भ्रष्ट मीडिया को किस प्रकार से उखाड़ा जा सकता है? जहां तक जनता का सावल है तो यही जनता कैसे- कैसे राजनेताओं को सत्ता सौप देती है, यह आपको भी पता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव के अवसर पर आप भी अग्र लेख लिखकर जनता को जागरूक करने का काम करते हैं, लेकिन जो परिणाम सामने आते हैं, उससे आप भलीभान्ति परिचित हैं। भभक तो बहुत छोटा सा अखबार है, लेकिन आपने भ्रष्ट मीडिया का जो मुद्दा उठाया है, उसमें भभक भी स्वयं को शामिल करता है। मीडिया के वे चेहरे बेनकाब होने ही चाहिएं जो पैसे लेकर चुनाव की खबरें प्रकाशित करते हैं। हालांकि भभक इस दौड़ में शामिल नहीं है, क्योंकि पैसे का ऑफर बड़े अखबार समूह को ही मिलता है।
मैं एक बार पुनज् आपकी हिम्मत को दाद देते हुए यह उम्मीद करता हूं कि आपने भ्रष्ट मीडिया को उखाड़ फेंकने का जो अभियान चलाया है, उसे आगे भी चलाते रहेंगे। आप अपने परिवार और पत्रिका समूह के साथियों के साथ स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें, ऐसी मेरी ईEर से प्रार्थना है।
-एस.पी. मितल
संपादक – भभक समाचार पत्र
namaskar
January 18, 2010 at 5:46 pm
by the way, Gulabji khud likhte hain ya…..?
sandes goyal
January 18, 2010 at 6:00 pm
hajuar kabhi moka lagay tou un sai milna jaruar pata chal jayga k Gulab ji kafi achay vakta aur writer hai…
Sanjay Goyal
January 19, 2010 at 4:32 am
गुलाब कोठारी देश भर में सिर्र्फ खबरें बेचने वाले मालिक के रूप में कुख्यात हैं। उनके मुंह से बड़ी बड़ी बाते और उपदेशों की भाषा शोभा नहीं देती। उनको राजस्थान में भी पत्रकार के रूप में नहीं जाना जाता। हां, वे खबरों से किस तरह माल निकाला जा सके, इस मामले में बहुत उस्ताद हैं। किसी ने सहीं ही पूछा है कि… गुलाबजी खुद लिखते हैं, या……..? दुनिया के महान विचारकों, दिग्गज चिंतकों और श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों की सारी किताबें इकट्ठा कर लीजिए, अपने अखबार के किसी नए नए सब एडीटर को बिठा लीजिए, उनका सार लिखवा लीजिए। बस … किताब तैयार हो जाएगी। फिर उस को अपना नाम दे दीजिए। आपका अदना सा नौकर जान भी नहीं पाएगा कि उसके संकलन – संयोजन ही मालिक के नाम से छप गया है। जान भी लेगा तो क्या उखाड़ लेगा। नौकरी करनी है कि नहीं। सो भाई साहब, गुलाब जी की प्रतिभा तो नेताओं और राजनीतिक दलों की खबरे छापने के लिए पैकेज तय करने में काम आती है। ये लिखना – विना तो सिर्फ इज्जत बढ़ाने की कोशिश भर होती है। मेरा कहना गुलाबजी को जानने वालों को सोलह आने सच लग रहा होगा।
satyanarayan
January 19, 2010 at 4:56 am
यह बात किसी से नहीं छुपी है कि गुलाब कोठारी का व्यवहार मुंह में राम बगल में छुरी वाला है। इसका ही एक नमूना यह है कि एक सज्जन ने वर्ष 1989 में इन्हें पत्र लिखकर यह सुझाव दिया था कि चुनाव में गिरते प्रतिषत को ध्यान में रखकर राजस्थान पत्रिका को अपने पाठकों के लिए रोजाना स्लोगन प्रकाषित कर लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करना चाहिए। इन सज्जन का पत्र मिलने के बाद राजस्थान पत्रिका में यह प्रकाषन शुरू किया गया। अब तो हालत यह है कि चुनाव के दौरान जागो जनमत का नारा बुलंद किया जाता है। मालूम हुआ है कि उन सज्जन ने अपनी बदहाली में जब उक्त पत्र का हवाला देकर काम मांगना चाहा तो उन्हें कोई जवाब देना तक मुनासिब नहीं समझा गुलाब कोठारी ने। मुझे उक्त सज्जन ने यह जानकारी दी जरूर पर नाम नहीं देने की सहमति के बाद।
कंमल शर्मा
January 19, 2010 at 9:35 am
करोड़ों रुपए लेकर खबर छापने वाले गुलाब कोठारी उपदेश देने लगे हैं। वाह क्या बात है….। चोर खुद ही चोरी हो जाने का शोर मचाने लगे, तो कैसा लगेगा। गुलाबजी, जैसा महा धुरंधर आदमी मीडिया में भ्रष्टाचार की बात किस मुंह से कह सकता है। खुद ने चुनाव में एक एक पार्टी से करोड़ों की कमाई करके अपनी तिजोरी भर ली। और अब उपदेश देने चले हैं। हा… हा… हा…।
Rishi Dixit
January 29, 2010 at 8:00 am
गुलाब जी पर लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों की भाषा से जाहिर हो रहा है यह उनके प्रतिद्वंद्वियों का बदनाम करने का भौंड़ा तरीका है। साहित्य सृजन के लिए दाद देनी चाहिए। या फिर उस कृति के बारे में टिप्पणी करनी चाहिए जिसका सृजन गुलाब जी ने किया है। व्यक्तिगत भड़ास निकालने के लिए और भी कई रास्ते हैं। हिन्दी पत्रकारिता का स्तर बनाये रखने में जो योगदान राजस्थान पत्रिका का है वह किसी और का दिखाई नहीं देता।
sanyogitakumari
March 3, 2011 at 2:41 pm
JO THA KABHI GULAB…
AAJ KAR RAHA PRALAP…
VIGYAPAN,ZAMEENE SAB BATOR LI
PHIR KYO KAR RAHA HAI VILAP…
HUM PATRAKARON KI DUNAIYA ME
MALIK BAN KAR AAYE TUM…
SATTA KI THALI ME TUMNE KHAYA
AB PATRAKAR KI ROTI PER HALLA MACHAYA
TAB KYO NAHI APNA DHARM NIBHAYA
JAB JALMAHAL,SUKHAM PER TUMNE JI LALCHAYA…
BUS UPDESH DETE RAHE HO ZINDAGI BHAR
KAHA HAI WO PATRAKARON KA ” MILAP”
JO THA KABHI EK GULAB
AAJ KAR RAHA PRALAP…!!
SANYOGITA
March 4, 2011 at 1:36 am
JO THA KABHI GULAB…
AAJ KAR RAHA PRALAP…
VIGYAPAN,ZAMEENE SAB BATOR LI
PHIR KYO KAR RAHA HAI VILAP…
…HUM PATRAKARON KI DUNAIYA ME
MALIK BAN KAR AAYE TUM…
SATTA KI THALI ME TUMNE KHAYA
AB PATRAKAR KI ROTI PER HALLA MACHAYA
TAB KYO NAHI APNA DHARM NIBHAYA
JAB JALMAHAL,SUKHAM PER TUMNE JI LALCHAYA…
BUS UPDESH DETE RAHE HO ZINDAGI BHAR
KAHA HAI WO PATRAKARON KA ” MILAP”
JO THA KABHI EK GULAB
AAJ KAR RAHA PRALAP…!