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क्या नीलू रंजन की खबर प्लांटेड थी?

: दैनिक जागरण में 13 जुलाई को छपी नीलू रंजन की एक खबर की जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) के लोगों ने कुछ इस तरह पड़ताल की है : आजाद की फर्जी मुठभेड़ के बाद केंद्र सरकार जिस तरह माओवादियों के खिलाफ अपने मिथ्या अभियान में लगी है उसे देखते हुए हमें लगता है कि नीलू रंजन की इस प्लांटेड स्टोरी की सच्चाई पर पत्रकारीय और वैचारिक दृष्टि कोण से बहस होनी चाहिए। किसी आमफहम हो चुके तथ्य पर सफेद झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगने के भय से सरकारें अपनी बात खुद न कह कर किस तरह ‘अपने’ पत्रकारों के मुह से अपनी बात रखवाती है, 13 जुलाई 2010 के दैनिक जागरण में छपी नीलू रंजन की खबर ‘नक्सलियों ने ही कराया आजाद का एंकाउंटर’ इसका ताजा उदाहरण है।

<p style="text-align: justify;">: <strong>दैनिक जागरण में 13 जुलाई को छपी नीलू रंजन की एक खबर की जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) के लोगों ने कुछ इस तरह पड़ताल की है </strong>: आजाद की फर्जी मुठभेड़ के बाद केंद्र सरकार जिस तरह माओवादियों के खिलाफ अपने मिथ्या अभियान में लगी है उसे देखते हुए हमें लगता है कि नीलू रंजन की इस प्लांटेड स्टोरी की सच्चाई पर पत्रकारीय और वैचारिक दृष्टि कोण से बहस होनी चाहिए। किसी आमफहम हो चुके तथ्य पर सफेद झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगने के भय से सरकारें अपनी बात खुद न कह कर किस तरह ‘अपने’ पत्रकारों के मुह से अपनी बात रखवाती है, 13 जुलाई 2010 के दैनिक जागरण में छपी नीलू रंजन की खबर ‘नक्सलियों ने ही कराया आजाद का एंकाउंटर’ इसका ताजा उदाहरण है।</p> <p>

: दैनिक जागरण में 13 जुलाई को छपी नीलू रंजन की एक खबर की जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) के लोगों ने कुछ इस तरह पड़ताल की है : आजाद की फर्जी मुठभेड़ के बाद केंद्र सरकार जिस तरह माओवादियों के खिलाफ अपने मिथ्या अभियान में लगी है उसे देखते हुए हमें लगता है कि नीलू रंजन की इस प्लांटेड स्टोरी की सच्चाई पर पत्रकारीय और वैचारिक दृष्टि कोण से बहस होनी चाहिए। किसी आमफहम हो चुके तथ्य पर सफेद झूठ बोलने और गुमराह करने का आरोप लगने के भय से सरकारें अपनी बात खुद न कह कर किस तरह ‘अपने’ पत्रकारों के मुह से अपनी बात रखवाती है, 13 जुलाई 2010 के दैनिक जागरण में छपी नीलू रंजन की खबर ‘नक्सलियों ने ही कराया आजाद का एंकाउंटर’ इसका ताजा उदाहरण है।

खबर में इस आमफहम हो चुके तथ्य, कि आजाद की हत्या कर सरकार खास कर गृहमंत्रालय ने माओवादियों से बात-चीत के किसी भी उम्मीद को खत्म कर दिया है, के विपरीत बताया गया है कि ‘आजाद का एंकाउंटर खुद बातचीत के विरोधी नक्सलियों ने पुलिस को सूचना देकर करवाई है।’ नीलू जी ने इस दावे को सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े कुछ अधिकारियों के हवाले से कही है। नीलू आगे लिखते हैं- ‘आजाद को दरअसल बात-चीत की सरकार की पेशकश स्वीकार करने की कीमत चुकानी पडी है। उसने न सिर्फ चिदम्बरम की बात-चीत की पेशकश को स्वीकार किया था, बल्कि केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार स्वामी अग्निवेश से मुलाकात कर बात-चीत की शर्त का पत्र भी लिया था।

खबर की इन पंक्तियों से कुछ बातें स्पष्ट हैं। अव्वल तो यह कि आजाद की हत्या जिनके साथ फ्रीलांस पत्रकार हेमचंद पाण्डे को भी माओवादी बताकर मार डाला गया, पर उठने वाले सवालों का जवाब सरकार नहीं दे पा रही है और अब सवालों को दूसरी दिशा में मोडना चाहती है। लेकिन चूंकि इस प्रयास में उसे पकड में आ जाने वाले झूठे तर्क देने होंगे जिससे उसकी और किरकिरी होगी इसलिए वो ये सब नीलू और उन जैसे अन्य ‘राजधर्म’ निभाने वाले पत्रकारों से करवा रही है। जिसमें तथ्य और तर्क पिछले 10-15 सालों से सरकारों को ऐसे ही ‘मुश्किल’ सवालों से उबारने के लिए पैदा किए गए कथित रक्षा विशेशज्ञ मुहैया करा रहे हैं। नीलू इन्हीं लोगों के तर्कों के बुनियाद पर एक जाहिर हो चुकी सच्चाई को छुपाने के लिए सरकारी दिवार खडी करना चाहते हैं।

दूसरी बात जो खबर स्थापित करना चाहती है वो ये कि माओवादी अनुशासित और संगठित संगठन नहीं हैं बल्कि डकैतों के गिरोह की तरह हैं जो अपने किसी बडे नेता को सिर्फ इसलिए मार देते हैं कि वो सरकार से बात-चीत करना चाहता है। दूसरे अर्थों में खबर सरकार के इस पुराने धिसे-पिटे तर्क को स्थापित करना चाहती है कि सरकार तो बात-चीत के लिए तैयार है, माओवादी ही ऐसे किसी प्रयास को नहीं सफल होने देना चाहते। यहां तक कि सरकार द्वारा मध्यस्थता के लिए ‘नियुक्त’ स्वामी अग्निवेश और अपने ही एक बडे नेता के इस दिशा में प्रयास को भी नाकाम कर रहे हैं।

यहां ध्यान देने वाली बात है कि नीलू ने स्वामी अग्निवेश को, जो कुछ अन्य लोगों के साथ माओवादियों और सरकार के बीच बातचीत का रास्ता निकालने की लम्बे समय से स्वतंत्र प्रयास में थे, को सरकार द्वारा ‘नियुक्त’ लिखा है। जबकि अग्निवेश ने ऐसी किसी ‘नियुक्ति’ से इनकार किया है। उनके अनुसार सरकार सिर्फ उनसे सम्पर्क में थी। जिस पर बाद में सरकार की तरफ से असहयोगी रवैया अपनाया जाने लगा और दिल्ली में उनके द्वारा इस प्रयास के बाबत प्रेस कांफ्रेंस की योजना को अंतिम समय में टलवा दिया गया। दि हिंदू, इण्डियन एक्सप्रेस और जनसत्ता में प्रकाशित खबरों के मुताबिक अग्निवेश यह प्रेस कांफ्रेंस आजाद के कथित एंकाउंटर में मारे जाने से दो दिन पहले प्रस्तावित था। पत्रकार हेमचंद्र पाण्डे जिन्हें आजाद के साथ ही नक्सली बताकर मारा गया, का अपने कार्यालय के प्रांगण में आयोजित श्रद्धांजली कार्यक्रम में अग्निवेश ने सरकार पर खुलेआम आरोप लगाया कि आजाद की हत्या से सरकार ने अपनी फास्सिट मंशा जाहिर कर दी है कि वो किसी भी कीमत पर माओवादियों से वार्ता नहीं करना चाहती और इस प्रयास में लगे आजाद जैसे लोगों को वो किस तरह ठंडे दिमाग से मारती है।

जाहिर है, सरकार एक स्वतंत्र और ईमानदार प्रयास करने वाले व्यक्ति को अपने द्वारा ‘नियुक्त’ बताकर माओवादियों से बातचीत करने में अपनी तरफ से जानबूझ कर की गयी शरारत को ढकना चाहती है और इस इमानदार प्रयास को अपना श्रेय देना चाहती है। इसके लिये नीलू ने आजाद और हेमचंद्र पाण्डे की हत्या के ठीक बाद अग्निवेश द्वार जारी बयान, जिसमें उन्होंने इस घटना को माओवादियों और सरकार के बीच बात-चीत के किसी भी सम्भावना को खत्म करने वाला बताया था, को उसके वास्तविक संदर्भों से काट कर अपनी स्टोरी के अंत में ‘पेस्ट’ कर दिया है। वे लिखते हैं- ‘कट्टर नक्सली नेताओं ने आजाद को रास्ते से हटाने का फैसला किया और आंध्र प्रदेश पुलिस को आजाद की सूचना दे दी और वह पलिस का शिकार बन गया। स्वामी अग्निवेश का कहना है कि आजाद की मौत के साथ ही नक्सलियों से बात-चीत की तमाम सम्भावनाएं भी खत्म हो गयी हैं’। यानि, जो बयान अग्निवेश ने सरकार को निशाना बनाते हुए दिया था उसे नीलू ने सरकार के पक्ष में ‘पेन्ट’ कर दिया।

इस खबर में अपने नाम से दिए गए बयान पर जब अग्निवेश से पूछा गया तो उन्होंने इसे तोड़ा-मरोड़ा और प्लान्टेड बताया। बहरहाल, नीलू की कलाकारी का एक और नमूना देखें। वे लिखते हैं ‘सूत्रों’ की मानें तो आजाद बातचीत की पेशकश से स्वामी अग्निवेश का पत्र लेकर जा रहा था, ताकि पोलित ब्यूरो में  इस पर अंतिम फैसला लिया जा सके। यह माना जा रहा था कि आजाद नक्सलियों के र्स्वोच्च नेता गणपति से बातचीत के लिए राजी कर लेगा’। गौरतलब है कि आजाद द्वारा शांतिवार्ता हेतु पत्र लेकर पोलिट ब्यूरो के बीच बहस के लिए जाने और वहां गणपति से इस मद्दे पर बात करने की योजना वाला बयान, आजाद के वारगंल के जंगलों में कथित एंकाउंटर में मारे जाने के पुलिसिया दावे के बाद वरवर राव और किशन जी की तरफ से आया था। जिसमें उन्होंने पुलिस पर आजाद के हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए कहा था कि आजाद और हेमचंद्र को पुलिस ने नागपुर के पास पकडा था। जहां से उन्हें इस मुद्दे पर मीटिंग में जाना था। वरवर राव और किशन जी का यह बयान दैनिक जागरण समेत सभी अखबारों में छपा था। अब सवाल उठता है कि ये बयान हफ्ते भर बाद ही ‘सूत्रों’ के हवाले से कैसे और क्यों छापी गयी।

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस), दिल्ली की तरफ से राजीव यादव द्वारा जारी.

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0 Comments

  1. kamta prasad

    August 7, 2010 at 5:54 am

    भाई साहब, मीडिया होता ही है राज्‍य का चौथा खंभा इस सच्‍चाई को आखिर आप लोग कब स्‍वीकार करेंगे। व्‍यपक जनता में जाइये और उसे यह बात समझाइऐ कि मुख्‍य धारा का वित्‍तीय पूंजी के नियंत्रण वाला जनता का नहीं अपने आकाओं का मीडिया है और जनता के पैसों से अपना वैकल्पिक मीडिया खडा कीजिए। मैं यह नहीं कह रहा कि बचे-खचे डेमाके्रेटिक स्‍पेस का फायदा न लें लेकिन यह बेहतर होगा कि इस स्‍पेस में चूं चूं करने के लिए मध्‍यवर्गीय कलमघसीटों को छोड दें।
    और आखिर में संसद की मलाई चाटने वाले संशोधनवादियों को भी व्‍यवस्‍था की दूसरी सुरक्षा पंक्ति के रूप में जनता के सामने लायें।
    आमीन।

  2. JASBIR CHAWLA

    August 9, 2010 at 5:37 am

    Nilooranjan Youtube par jaa kar Swami Agnivesh ka Mumbai me diya bhashan,Seema Mustfaa ko diya intervieu tatha Agniveshji ki site par jaa kar saraa patrachar dekh sakten hain.Patrkarita me aisee Milawat behad nindniya hai.Jagran aur Nilooranjan ko safai den chahiye.

  3. नीलू रंजन

    August 11, 2010 at 8:05 am

    स्वामी अग्निवेश और आप सब लोग मिलकर सिर्फ इतना बता दें कि जिस आजाद को तीन दशक तक पुलिस नहीं ढूंढ पाई, आखिर चिदंबरम की बातचीत की पेशकश स्वीकार करने के एक महीने के भीतर ही वे पुलिस के हत्थे कैसे चढ़ गए ? क्या माओवादियों का सुरक्षा तंत्र कमजोर हो गया या फिर भारतीय खुफिया व सुरक्षा एजेंसियां अचानक बहुत ज्यादा ताकतवर हो गईं। आप लोग जाकर पता लगाएं कि आजाद पर घोषित इनाम की राशि कहां और किस मिली है? मैंने आजाद के एनकाउंटर या हत्या के विवाद में नहीं पड़ना चाहता। यह हत्या हो या एनकाउंटर कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क इस बात से पड़ता है कि पुलिस का आजाद की गतिविधियों की सूचना किससे मिली?

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