Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

अफवाह फैलाने वाले ये अड्डे और पत्रकारों का एक गैंग

(भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित रिपोर्ट अफवाह ने दिल्ली की मीडिया में मचाया हड़कंप पर कई पाठकों ने प्रतिक्रियाएं भेजी हैं। इनमें से तीन प्रतिक्रियाओं को यहां प्रकाशित किया जा रहा है। -संपादक)


नहीं चेते तो दुर्दशा के हम खुद जिम्मेदार होंगे 

मीडिया अगर आज अपनी विश्वसनीयता खो रहा है तो इसके लिए कोई और नहीं, बल्कि हम खुद जिम्मेदार हैं। दूसरों की खबर लेने का दम भरनेवाले जब खुद अपनों की खबर लेने लगे तो यह दिन तो आना ही था। जरा कभी दिल्ली के प्रेस क्लब में बैठ जाइये या फिर मौका लगे तो नोएडा फिल्म सिटी में किसी नुक्कड़ की चाय दुकान पर खड़े हो जाएं…जैसे-जैसे चाय की घूंट आपके हलक से नीचे जाएगी, वैसे-वैसे मीडिया हस्तियों की कथित नई-नई कारगुजारियों आपके कानों में घुसती जाएगी…इनमें मिर्च मसाला, एक्शन, रोमांस और रोमांच- सब होगा। अब आप पर है कि आप क्या सुनना पसंद करते हैं। किस चैनल हेड का किस एंकर के साथ रोमांस चल रहा है और किस ईपी का किस इंटर्न के साथ चक्कर, यह सब आपको यहां मिनटों में पता चल जाएगा। हां, आपको खर्च करने होगा एक कप प्याली चाय की कीमत।

<p align="center">(<strong>भड़ास4मीडिया </strong>पर प्रकाशित रिपोर्ट <a href="index.php?option=com_content&view=article&id=1557:media-character&catid=30:tv-web-radio&Itemid=55" target="_blank">अफवाह ने दिल्ली की मीडिया में मचाया हड़कंप</a> पर कई पाठकों ने प्रतिक्रियाएं भेजी हैं। इनमें से तीन प्रतिक्रियाओं को यहां प्रकाशित किया जा रहा है। -संपादक) </p><hr width="100%" size="2" /><h2 align="center">नहीं चेते तो दुर्दशा के हम खुद जिम्मेदार होंगे  <br /></h2><p align="justify">मीडिया अगर आज अपनी विश्वसनीयता खो रहा है तो इसके लिए कोई और नहीं, बल्कि हम खुद जिम्मेदार हैं। दूसरों की खबर लेने का दम भरनेवाले जब खुद अपनों की खबर लेने लगे तो यह दिन तो आना ही था। जरा कभी दिल्ली के प्रेस क्लब में बैठ जाइये या फिर मौका लगे तो नोएडा फिल्म सिटी में किसी नुक्कड़ की चाय दुकान पर खड़े हो जाएं...जैसे-जैसे चाय की घूंट आपके हलक से नीचे जाएगी, वैसे-वैसे मीडिया हस्तियों की कथित नई-नई कारगुजारियों आपके कानों में घुसती जाएगी...इनमें मिर्च मसाला, एक्शन, रोमांस और रोमांच- सब होगा। अब आप पर है कि आप क्या सुनना पसंद करते हैं। किस चैनल हेड का किस एंकर के साथ रोमांस चल रहा है और किस ईपी का किस इंटर्न के साथ चक्कर, यह सब आपको यहां मिनटों में पता चल जाएगा। हां, आपको खर्च करने होगा एक कप प्याली चाय की कीमत। </p>

(भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित रिपोर्ट अफवाह ने दिल्ली की मीडिया में मचाया हड़कंप पर कई पाठकों ने प्रतिक्रियाएं भेजी हैं। इनमें से तीन प्रतिक्रियाओं को यहां प्रकाशित किया जा रहा है। -संपादक)


नहीं चेते तो दुर्दशा के हम खुद जिम्मेदार होंगे 

मीडिया अगर आज अपनी विश्वसनीयता खो रहा है तो इसके लिए कोई और नहीं, बल्कि हम खुद जिम्मेदार हैं। दूसरों की खबर लेने का दम भरनेवाले जब खुद अपनों की खबर लेने लगे तो यह दिन तो आना ही था। जरा कभी दिल्ली के प्रेस क्लब में बैठ जाइये या फिर मौका लगे तो नोएडा फिल्म सिटी में किसी नुक्कड़ की चाय दुकान पर खड़े हो जाएं…जैसे-जैसे चाय की घूंट आपके हलक से नीचे जाएगी, वैसे-वैसे मीडिया हस्तियों की कथित नई-नई कारगुजारियों आपके कानों में घुसती जाएगी…इनमें मिर्च मसाला, एक्शन, रोमांस और रोमांच- सब होगा। अब आप पर है कि आप क्या सुनना पसंद करते हैं। किस चैनल हेड का किस एंकर के साथ रोमांस चल रहा है और किस ईपी का किस इंटर्न के साथ चक्कर, यह सब आपको यहां मिनटों में पता चल जाएगा। हां, आपको खर्च करने होगा एक कप प्याली चाय की कीमत।

 

अगर आप और कुछ जोरदार सुनना चाहते हैं तो इर्द-गिर्द खड़े टीवी पत्रकारों को अपना परिचय दें और हल्की सी एक चटपटी खबर उनके बीच छोड़ दें..फिर देखिए जनाब, आपको शायद चाय की प्याली की कीमत भी चुकानी नहीं पड़ेगी। फिल्म सिटी के बाद हाल के दिनों में ऐसी गप्पबाजी का अड्डा ओखला के पास खुला एक टीवी चैनल भी बन गया है। साफ है, इन अड्डों पर जो चटपटी खबरें बुनी जाती हैं, उनमें सच्चाई कम और अपना फ्रस्ट्रेशन ज्यादा होता है। फ्रस्ट्रेशन भी तरह-तरह के। किसी को इस बात का फ्रस्ट्रेशन है कि उसी के साथ उसी के शहर से साथ आने वाला गंजू आज गजेंद्र के रूप में बड़ा पत्रकार बन गया है, वो बड़ी एसी गाड़ी में घूमता है, उसके पास ड्राइवर भी है और लोगों को खूब नौकरियां भी बांटता है। ऐसे में उसका फ्रस्ट्रेशन स्वाभाविक है, हो भी क्यों न? वो आज भी पत्रकारिता के नाम पर थानों की दलाली कर अपना घर चलाता है।   

हाल में जिस तरह एक चैनल और उससे जुड़े कुछ वरिष्ठ लोगों को लेकर मीडिया में जिस तरह की बेसिर-पैर की बातें फैलाई गईं वो वाकई दुखद है। दुखद इसलिए कि इनमें से एक को मैं व्यक्तिगत रुप से जानता हूं। टुटपूंजिया अखबारों के बजाय ये सज्जन हमेशा प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। बिहार के एक छोटे से शहर से आनेवाले इस पत्रकार के बारे में नई पीढी के पत्रकारों को बेशक न मालूम हो लेकिन पुरानी पीढ़ी के पत्रकारों को आज भी दस साल पहले का हमीदा कांड याद है जिसमें एक बांग्लादेशी बच्ची के साथ जोर जबरदस्ती करनेवालों को इस पत्रकार ने न सिर्फ उनकी बस्ती में घुसकर उन्हें पुलिस के हवाले करवाया था बल्कि लंबी कानूनी लड़ाई लड़ कर दोषियों को सजा भी दिलवाई थी। प्रिंट से लेकर टीवी पत्रकारों की एक लंबी फौज आज भी इन्हें सम्मान के नजरिये से देती है, क्योंकि कभी उनके करियर पर कोई दाग नहीं लगा। ऐसे में घिनौनी अफवाह फैला कर जो लोग पत्रकारिता के पेश को बदनाम कर रहे हैं, निश्चित तौर पर उनके खिलाफ एक मुहिम शुरू करने की जरूरत है। और हां, इनकी हिमाकत देखिए, अफवाह को गर्म और उसे मुंबइया फिल्मों की तरह एक्शन से भरपूर बनाने की कोशिश में चैनल मालिकों को भी नहीं बख्शा गया। पता नहीं, उस बेचारे चैनल मालिक से अफवाह फैलानेवालों की क्या खुंदक थी।  

वैसे अनुभव और वक्त तो यही बताता है कि अगर आप किसी चैनल में बड़े पद पर हैं तो आपके पास नौकरी मांगनेवालों की लंबी लाइन होती है। जो नौकरी पाने में नाकामयाब रहा, उसका पक्के तौर पर आपका दुश्मन बनना तय है। दूसरी बात, अगर बड़े पद पर रहते आपने किसी जूनियर पर कार्रवाई की तो भी आप नहीं बख्शे जाएंगे। आप देर सबेर ऐसे कुत्सित साजिश के शिकार जरूर बनेंगे। लेकिन मामला तब अधिक चिंताजनक और खतरनाक प्रतीत होता है जब कि छुटभैया पत्रकारों का एक गैंग संगठित होकर समय-समय पर ऐसी खबरें उड़ाता है. दो साल पहले टोटल टीवी की एक पत्रकार ने खुदकुशी की थी। उस घटना को लेकर भी कुछ बड़े पत्रकारों को फंसाने की साजिश रची गई थी। लड़की के घरवालों ने चैनल के ईपी, डिप्टी ईपी और मालिक पर जबरदस्त कानूनी दबाब भी बनाया, लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम था कि जो लोग उन्हें चैनल के वरिष्ठों के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं, उन्हीं लोगों ने उनकी लड़की को खुदकुशी के लिए भड़काया था। ये और कोई नहीं, वही लोग थे जिन्होंने इस बार भी कुछ पत्रकारों और गैर पत्रकारों को बदनाम करने की कोशिश की। फर्क अगर था तो सिर्फ इतना कि पिछली साजिश कनाट प्लेस में रची गई, तो इस बार ये ओखला में रची गई।  

निश्चित रुप से ये प्रवृत्ति पत्रकारिता के लिए खतरनाक है। जरूरत है ऐसे लोगों के खिलाफ उठ खड़ा होने की। अगर हमने इसमें देर की तो शायद आनेवाले दिनों में पत्रकारों की हैसियत भी उन खाकी वर्दीधारियों की तरह होगी जिन्हें आज हम समाज के सबसे भ्रष्ट तबके के रूप में देखते हैं, यह जानते हुए भी कि सभी खाकी वर्दीवाले घूसखोर नहीं हैं। उनमें भी ईमानदार लोग हैं। मतलब साफ है कि अगर हम समय रहते नहीं चेते तो आनेवाले दिनों में अपनी दुर्दशा के लिए खुद जिम्मेदार होंगे।

-अक्षर राज, दिल्ली


बे-पेंदी के पत्रकारों ने मीडिया को दिशाहीन बनाया

निराधार खबरें बनाने वाले और हर खबर से सनसनी फैलाने की कोशिश में लगे रहने वाले एक न एक दिन तो खुद भी खबर बनेंगे ही। इस तरह के ही बे-पेंदी के पत्रकारों ने मीडिया को एक दिशाहीन संस्‍था बना दिया। इसकी ऐसी परिणति तो होनी ही थी। लगातार एक्‍सक्‍लूसिव खबरों की खोज में रहने वाले अक्‍सर इस बात की अनदेखी करते हैं कि क्‍या समाज के हित में है और क्‍या नहीं। इन दिनों ब्‍लॉग जगत में चर्चा का विषय है कि मीडिया को सामाजिक कर्म का पेशा होना चाहिए या नहीं। सहमति असहमति के दायरे अपनी जगह हैं लेकिन यह भी तो तय है कि क्‍या समाज के सहयोग या आधार के बिना मीडिया या कोई अन्‍य संस्‍थान चल सकते हैं। व्‍यापारिक दृष्‍टि से भी देखा जाय तो क्‍या कोई संस्‍थान समाज के बिना अपना व्‍यापार चला सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रबंधन में भी एक विचारधारा है। हर संस्‍थान एक तंत्र की भांति होता है और कार्य करता है। हर तंत्र अपनी आवश्‍यकता के अनुसार समाज से ही कच्चा माल (सेवाओं, मानव संसाधनों के रूप में) लेता है और अंतिम तैयार उत्‍पाद समाज को ही देता है। यह एक श्रंखला है जिसमें निरंतरता अनिवार्य है। न तो संगठन इससे पीछे हट सकता है और न समाज। दोनो में सहजीविता है। फिर ऐसे में मीडिया भी इसका अपवाद नहीं हो सकता है और होना भी नहीं चाहिए। ठीक है कि मीडिया एक व्‍यापारिक कर्म है और फायदे के लिए ही इसके मालिक इसमें पैसा लगाते हैं, लेकिन अखबार या समाचार चैनल या कोई खबरिया वेबसाइट चलती तो लोकप्रियता पर ही है और यह समाज के विश्‍वास से ही तो हासिल होती है। टीआरपी का पैमाना भी तो समाज के एक भाग की लोकप्रियता ही है। फिर क्‍या उन लोगों को ये अधिकार नहीं कि जिस विश्‍वास के कारण वे किसी अखबार, पत्रिका या चैनल के दर्शक, पाठक हैं, वे उनको सही सूचना या मनोरंजन मुहैया कराएं। क्‍या मीडिया मालिकान कल्‍पना कर सकते हैं कि बिना लोकप्रियता के उनका हश्र क्‍या होगा। अगर कोई अखबार या चैनल लोगों की उपेक्षा का शिकार होगा, तो मालिक खुद के लिए इनको चला सकते हैं। अगर नहीं तो फिर जो संसाधन जनता के लिए है, उसके द्वारा जनहितों की उपेक्षा कैसे की जा सकती है।

मीडया के भीतर जो लोग काम करते हैं, उनको खबर गढ़ने से बाज आना चाहिए। यह कतई एक अच्‍छी प्रवृत्ति नहीं है कि बैठै-बैठे खबरें गढ़ी जाएं। इसी का नतीजा है कि अब मीडयाकर्मी ही मीडियाकर्मियों को खबरें बना रहे हैं। अखबारों, चैनलों के भीतर काम करने वाले बेहतर जानते हैं कि कितने वरिष्‍ठ और गरिष्‍ठ मीडियाकर्मी इस तरह के कामों में लिप्‍त होते हैं। होते भी हैं और मीडिया के ही कुछ लोग इसे गलत भी मानते हैं लेकिन कोई इसे रोकने में कारगर और सक्षम नहीं है क्‍योंकि मीडिया में ही ऐसे लोग हैं जो सुधार की बातें खुलेआम करते हैं और मौका मिलते ही बहत पानी में हाथ धोने से बाज नहीं आते हैं। यह चलन खराब नहीं बल्‍कि खतरनाक है। एक बेहतर तंत्र के बेहतर भविष्‍य के लिए नुकसानदायक। भारत में मीडिया, पश्‍चिम की तरह नहीं है, वहां मीडिया को विकसित होने में लंबा समय लगा। इसका परिणाम रहा कि वहां का मीडिया अब परिपक्‍व हो सका है, हमारे यहां यह अभी अपने शैशवकाल में है। अगर अभी से ऐसा है तो आगे क्‍या होगा खुद मीडिया के धुरंधर भी नहीं जानते।

-संदीप भट्ट, इंदौर


चैनल में काम करने वाले भी कमोडिटी बन गए!

इस घटना से साफ जाहिर होता है कि टीवी पत्रकारिता का स्तर किस हद तक गिर गया है. एक चैनल में काम करने वाला भी उसके लिए एक कमोडिटी बन गया है जिसे चैनल जब चाहे बेच सकता है. आज स्थिति यह है कि कोई लड़की किसी चैनल में काम करने के लिए आती नहीं है कि चैनल में उसके बारे में तरह-तरह की बातें बनने लगती हैं, जिनका कोई आधार नहीं होता. इस घटना से झलकता है कि चैनल में कुछ ऐसे लोग काम कर रहे हैं जिनका कोई दीन-ईमान नहीं है. ये वक्त आने पर अपने आप को और अपने परिवार को भी बेच सकते हैं. इससे ये भी जाहिर होता है कि चैनल में तथ्यों को किस तरह तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है, जहां खबर कुछ होती है और लोगों तक कुछ का कुछ पहुंचाया जाता है.

 -अमित कुमार यादव, छात्र, हिन्दी पत्रकारिता

भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement