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‘बिन पिए दिमाग का ढक्‍कन नहीं खुलता’

एक पियक्कड़ संपादक की दास्तान : मदिरा सेवन को किसी भी प्रोफेशन से एकदम अलग करना मुश्किल है। जो लोग पीते हैं वह बिना पिए बेहतर या क्रिएटिव काम नहीं कर पाते। ऐसा मेरा नहीं, पीने वालों का मानना है। करिअर में कुछ लोग ऐसे मिले जो बिना पिए भी बहुत अच्‍छा काम करते हैं। हालांकि मुझे देहरादून की बात याद आती है। वहां के एक नामचीन अखबार के संपादकजी बहुत पीते थे। उन्‍हें जानने वाले लोगों का कहना था कि बिना पिए उनके दिमाग का ढक्‍कन नहीं खुलता। मुझे यह बात सौ फीसदी सही लगी। संपादक जी क्रिएटिव थे।

एक पियक्कड़ संपादक की दास्तान : मदिरा सेवन को किसी भी प्रोफेशन से एकदम अलग करना मुश्किल है। जो लोग पीते हैं वह बिना पिए बेहतर या क्रिएटिव काम नहीं कर पाते। ऐसा मेरा नहीं, पीने वालों का मानना है। करिअर में कुछ लोग ऐसे मिले जो बिना पिए भी बहुत अच्‍छा काम करते हैं। हालांकि मुझे देहरादून की बात याद आती है। वहां के एक नामचीन अखबार के संपादकजी बहुत पीते थे। उन्‍हें जानने वाले लोगों का कहना था कि बिना पिए उनके दिमाग का ढक्‍कन नहीं खुलता। मुझे यह बात सौ फीसदी सही लगी। संपादक जी क्रिएटिव थे।

लेआउट से संबंधित मामलों में मुझे ऐसा लगता था कि मेरी कुछ समझ ठीक है। परंतु कई बार खबरों की पैकेजिंग करते समय उन्‍होंने जो राय दिए वह सुनकर अच्‍छा लगा। ऐसा एहसास हुआ कि उनके दिए सुझाव पर अमल करने के बाद पैकेज वाला पेज खिल उठा हो। ऐसी बात खबरों की प्‍लानिंग के मामले में भी सामने आई। सुबह 11 बजे की मीटिंग में वह आते थे तो ऐसा लगता था कि सो रहे हैं। किसी भी बात पर सिर्फ हां, हूं में जवाब मिलता था। परंतु रात्रि 10 : 30 बजे के बाद किसी भी टॉपिक पर आप बात कर लें। आप अपने आप को संतुष्‍ट महसूस करते थे। उनके साथ साये की तरह रहने वाले लोग भी उनके पीछे इस प्रकार की बात करके हंसते रहते थे। परंतु यह सत्‍य था कि वह रात्रि नौ-दस बजे के बाद बिना पिए नहीं रह सकते थे। और पीने के बाद उनका माइंड सक्रिय होता था। उस संपादक जी से संबंधित एक और वाकया याद आता है। उनके साथ कई वर्षों तक काम कर चुके उनके एक मित्र ने मुझे दिन के करीब 12 बजे फोन किया। उस दौरान मैं देहरादून में ही था।

उन्‍होंने संपादक जी का नाम लेते हुए पूछा कि कहां हैं। मैंने इधर से जवाब दिया कि ऑफिस में। उन्‍होंने तपाक से कहा- अरे यार आजकल क्‍या वह ऑफिस में ही सो रहे हैं। मैंने (संपादक जी के मित्र) उन्‍हें फोन किया तो नींद में बात कर रहे थे। मैंने उनसे कहा कि वह सो नहीं रहे हैं बल्कि वास्‍तव में ऑफिस में हैं। तब उन्‍होंने कहा कि अरे भाई तुम्‍हारा संपादक रात्रि दस बजे के बाद जागता है। पीने वालों के मामले में दूसरा पहलू यह है कि कुछ ऐसे होते हैं जो पीते कम हैं, नशा कम होता है, परंतु नौटंकी अधिक करते हैं। ऐसे लोगों की वजह से सभी पीने वालों की बदनामी होती है।

राजेश

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0 Comments

  1. shekhar pandit

    January 20, 2010 at 5:24 pm

    akhil bhartiya daaru mahasangh ka ghathan hone dijiye . sharaab ka aisa shamaan aankhe chalak padi guru apan jaise log ab kaha jo daaru ka itni izzat karte ho . eak sher irshaad farmaaye ladkhadhana do kadam girnaa sambhlana khub hai . is tarah rangeen tabiyat ke mere mahbub hai . yu jhoom kar kahte hai wo ae mari johraajavi . apni is narajgi ko kar do kal tak multavi . theek hai bhai hum saath saath hai .

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