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इशरत, इन संपादकों-पत्रकारों को माफ करना

इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले मे मीडिया की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी  ने अपनी रुह की आवाज पर व्यक्तिगत रूप से माफी मांगी। माननीय वाजपेयी जी का ये कदम स्वागत के योग्य है। देर से ही सही, लेकिन इन्होंने माना कि इशरत जहां मामले मे कुछ ना कुछ गलत था। सीएम मोदी का खुद को हिन्दुत्व का नायक पेश करने के लिए समुदाय विशेष के लोगों को मरवाना, गुजरात पुलिस का अपने सीने पर चांदी के तमगे सजाने के लिए किसी और के सीने पर गोलिया बरसाना और मीडिया का टीआरपी बढाने के लिए इस खबर की हकीकत जानते हुऐ भी गलत तरीके से पेश करना, ये सभी एक सरीखे लगते हैं।

इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले मे मीडिया की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी  ने अपनी रुह की आवाज पर व्यक्तिगत रूप से माफी मांगी। माननीय वाजपेयी जी का ये कदम स्वागत के योग्य है। देर से ही सही, लेकिन इन्होंने माना कि इशरत जहां मामले मे कुछ ना कुछ गलत था। सीएम मोदी का खुद को हिन्दुत्व का नायक पेश करने के लिए समुदाय विशेष के लोगों को मरवाना, गुजरात पुलिस का अपने सीने पर चांदी के तमगे सजाने के लिए किसी और के सीने पर गोलिया बरसाना और मीडिया का टीआरपी बढाने के लिए इस खबर की हकीकत जानते हुऐ भी गलत तरीके से पेश करना, ये सभी एक सरीखे लगते हैं।

फर्जी एनकाउंटर मामले मे जितने दोषी मोदी और गुजरात पुलिस है, उतने ही दोषी उस वक्त घटना कवर कर रहे और पेश कर रहे पत्रकार-संपादक भी हैं। इन्होंने ये जानते हुए भी कि इशरत जहां और तीन दूसरे लड़कों को बिला वजह मारकर एक एनकाउंटर का रूप दिया गया है, अपने चैनलों पर इसे हकीकत की मुठभेड़ बताकर देश की जनता को बरगलाया।  इन चार मासूमों को लश्कर से जोड़कर मोदी हीरो बने, गुजरात पुलिस के अधिकारियों के सीने पर मेडल सजे और टीवी चैनलों ने खबर को समसनीखेज बनाकर टीआरपी के साथ-साथ आमदनी भी बढाई, लेकिन इस सारे मामले में देश के मुसलमानों पर ऐसा दाग लगा कि हर भारतीय मुसलमान को पूरे देश में शक की नजर से देखा जाने लगा। इशरत जहां को फर्जी तरीके से मरवाकर मोदी ने इस मासूम के खून से अपनी कामयाबी की तहरीर लिखी।

खुशी है कि पुण्य प्रसून वाजपेयी ने अपनी रुह की आवाज को बाहर आने दिया। उन्होंने माफी मांगकर जो पहल की है, यकीनन तारीफ के काबिल है।  वाजपेयी जी ने जिस तरह लिखा है, इसके मुताबिक उन्हें शुरुआत में ही पता चल गया था कि एनकाउंटर फर्जी है। इस नकली मुठभेड़ का कवरेज कर रहे दूसरे पत्रकारों को भी ये मालूम था कि जो दिखाया जा रहा है, वो सच नही है। लेकिन बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे, वाली बात पर किसी ने भी कोशिश नही की कि सच को सामने लाया जाए। उम्मीद है बाकि दूसरे पत्रकार भाई भी बरसों से मोदित्व और टीआरपी तले दबी अपनी आत्मा की आवाज को बाहर आने देंगे।

मैं तो बस इतना कहूंगा कि इशरत जहां, तुम इन पत्रकारों-संपादकों को माफ कर देना, इसके बावजूद कि ये खूब जानते थे कि ये क्या कर रहे हैं।


लेखक शबीक अहमद उस्मानी राजस्थान के नागौर इलाके के निवासी हैं और पत्रकारिता में सक्रिय हैं। उनसे संपर्क करने के लिए [email protected] या फिर 09314590006 का सहारा लिया जा सकता है।

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