जिन्होंने गलती की, वो माफी मांगें : पंकज

[caption id="attachment_15829" align="alignleft"]पंकज पचौरीपंकज पचौरी[/caption]”हमने इस मामले में शुरू से शक किया” : इशरत जहां मामले में मीडिया, खासकर टीवी न्यूज चैनलों के अंदर बहस शुरू हो गई है। पुण्य प्रसून वाजपेयी के माफीनामे के बाद एनडीटीवी इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार और प्रबंध संपादक पंकज पचौरी ने स्पष्ट किया है कि वे लोग शुरू से ही इस मामले में शक करते रहे हैं। पंकज का कहना है कि जिनहोंने गलती की हो वो माफी मांगें। पंकज ने 18 जून 2004 को एनडीटीवी पर दिखाई गई स्टोरी की स्क्रिप्ट भी भेजी है, जिसे हम यहां पूरा का पूरा प्रकाशित कर रहे हैं। स्क्रिप्ट रोमन में है, इसलिए उसे रोमन के साथ-साथ हिंदी में भी प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि पाठक किसी भी तरह की असुविधा से बच सकें। यहां यह उल्लेख आवश्यक है कि इशरत जहां मामले में मीडिया की भूमिका पर सबसे पहले सवाल वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह ने उठाया।

‘फसाने में जिसका जिक्र, वो पुण्य प्रसून नहीं’

इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ के बाद मैंने एक लेख ‘मीडिया को शर्म से सिर झुका लेना चाहिए’ शीर्षक से लिखा था जिसमें मैंने मीडिया के बारे में कुछ टिप्पणी की थी. अपनी एक निजी याद का ज़िक्र किया था कि कैसे मैंने अपने उस वक़्त के एक मित्र, जो एक बड़े न्यूज़ चैनल में बड़े पद पर विराजमान हैं, से इशरत मुठभेड़ मामले की खबर की सच्चाई जांचने के बाद ही आगे बढ़ाने के लिए निवेदन किया था. लेकिन उन्होंने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि रिपोर्ट सही है, आप परेशान न हों. तमांग रिपोर्ट आने के बाद मैंने सुझाव दिया था कि अब उन श्रीमानजी सहित उन सभी को माफी मांगनी चाहिए जिन्होंने खबर को बिना जांचे-परखे प्रसारित कर दिया.

इशरत, इन संपादकों-पत्रकारों को माफ करना

इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले मे मीडिया की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी  ने अपनी रुह की आवाज पर व्यक्तिगत रूप से माफी मांगी। माननीय वाजपेयी जी का ये कदम स्वागत के योग्य है। देर से ही सही, लेकिन इन्होंने माना कि इशरत जहां मामले मे कुछ ना कुछ गलत था। सीएम मोदी का खुद को हिन्दुत्व का नायक पेश करने के लिए समुदाय विशेष के लोगों को मरवाना, गुजरात पुलिस का अपने सीने पर चांदी के तमगे सजाने के लिए किसी और के सीने पर गोलिया बरसाना और मीडिया का टीआरपी बढाने के लिए इस खबर की हकीकत जानते हुऐ भी गलत तरीके से पेश करना, ये सभी एक सरीखे लगते हैं।

पुण्य के माफीनामे से उठे कई सवाल

एनडीए शासनकाल में अहमदाबाद पुलिस ने इशरत जहां और अन्य तीन लोगों को आतंकवादी बताकर मुठभेड़ में मार गिराया था। उस मुठभेड़ की मजिस्ट्रेट जांच में मुठभेड़ को फर्जी और सरकार से तमगे हासिल करने के लिए की गई हत्याएं बताया गया है। मजिस्ट्रेट तमांग जांच रिपोर्ट आने के बाद इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ को लेकर मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। मीडिया पर उठे सवालों के बाद मशहूर टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने ‘इशरत हमें माफ कर दो’ शीर्षक से एक आलेख दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण के लिए लिखा है। उस आलेख को भड़ास4मीडिया डॉट कॉम पर भी प्रकाशित किया गया है।

पुण्य प्रसून वाजपेयी का माफीनामा

दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित आलेखइशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ को सनसनीखेज बनाने के हमारे पेशे के आचरण पर उंगली उठायी गयी थी. एक न्यायिक अधिकारी की रिपोर्ट आने के बाद भड़ास4मीडिया में हमने भी इस मुद्दे पर बहस शुरू की थी. एक लेख में कहा गया था कि सनसनी फैलाने वाले चैनल माफी मांगें. उस वक़्त के सबसे लोकप्रिय चैनल में बड़ी जिम्मेदारी के पद पर काम कर रहे एक बड़े पत्रकार ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि “इशरत, हमें माफ़ कर दो”. पत्रकारिता के पेशे में ऐसे बहुत कम लोग हैं जो अपनी गलती को ऐलानियाँ स्वीकार कर सकें. बहुत ज़्यादा हिम्मत, बहादुरी और पेशे के प्रति प्रतिबद्धता चाहिए ऐसा करने के लिए. देश के बड़े टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने न केवल माफी माँगी है बल्कि उसे सार्वजनिक कर दिया है.

अपने देश में कितने इम्तेहान देंगे हम?

B4M  के जरिए उदय जी के दिल का हाल जाना। कहा जाता है कि एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं, मगर यहां तो उदय भाई (हम तो उन्हें भाई ही कहेंगे, चाहे वो हमें अपना दुश्मन मानें या ना मानें) ने हजार झूठ लिख छोड़े। अफसोस,  अपनी बात को साबित करने और मोदी जी को हीरो साबित करने के लिए उन्होंने कई फर्जी आंकड़े लिखे। एक आम पाठक भी सिरे से इन आंकड़ों को नकार देगा और भाई जान तो पत्रकारों के सामने अपनी झूठ की चाशनी मे लपेट कर आंकड़े पेश कर रहे हैं। पत्रकार ऐसे भी होते हैं, ये आज पता चला। मुसलमान हर बार देशभक्ति का सबूत दे, यो तो उदय जी जैसों ने परंपरा बना दी है। शक सिर्फ मुसलमान पर ही। गाली सिर्फ मुसलमान को ही। जातिवाद का आरोप सिर्फ मुसलमान पर ही। आतंकवाद का ठप्पा सिर्फ मुसलमान पर ही।

The questions raised by Mr. Uday

Chand-Fiza case cannot be the total explaination of Islam in India. Relgions spread by multiple mechanisms. As Swami Viviekanand explains, the main reason of spread of Islam is the caste system.  Conversions were not the aim of Kings (except Ashoka) Formation of Muslim community took place in various stages.  To begin with it started emerging along Malabar coast when the Arab traders used to come for trade during Seventh Century A.D. They had a religious influence and many people through their interaction took to Islam. Arab army conquered Sind early in 8th Century, but it had a marginal impact on the society.

‘Saddened by Uday’s cheap article’

Dear Yashwant, I am saddened by Uday Shankar’s cheap article. I don’t think it is worth publishing. He can easily be answered but it’s useless to argue as these people rarely talk sense and are indoctrinated to the hilt. Firstly, where did he get the figures of 90%, 85% and 94%. It’s totally false. As far as terrorism is concerned, nearly half of the terrorist groups in India function in North east and most of them have Hindu and Christian members. Though it is wrong to say such things in context of religion.

सही बात कही तो वो मुझे संघी कह गए

उदय शंकर खवारेप्रिय यशवंत जी, अब सलीम जी को संबोधित करके प्रिय नहीं लिख सकता हूं, क्योंकि ऐसी मानसिकता के लोग प्रिय नहीं होते। इसमें शायद उनका दोष नहीं है। दरअसल, भारत में जितने मुस्लिम हैं, वो पहले हिन्दू थे। इस बात को परिभाषित करने की जरूरत नहीं है। ये लोग किन कारणों से मुस्लिम बने, इसका उदाहरण हरियाणा के चांद-फिजा काण्ड को मान सकते हैं। ‘मेरी भाषा संघी है….’ इस आरोप के जवाब में कहना चाहूंगा कि ना तो मैं संघ का सेवक रहा हूं, और ना कभी संघी विचारधारा को माना है। दस साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। हरिवंश जी, ओम प्रकाश अश्क जी, गिरीश मिश्र जी, महेश खरे… इन सभी के साथ मैंने काम किया। 

मगर मोदी को शर्म क्यों नहीं आती?

सलीम अख्तर सिद्दीक़ीबी4एम पर उदय शंकर खवारे ने शेष नारायण सिंह के आलेख के जवाब में कहा है कि ‘सिंह साहब, शर्म तो आपको आनी चाहिए।‘ उदय शंकर जी, सिंह साहब को तो इस बात पर शर्म आती है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में नरेन्द्र मोदी नामक एक मुख्यमंत्री अपने मातृ संगठन आरएसएस के एजेंडे को परवान चढ़ाने के लिए गुजरात के हजारों मुसलमानों को ‘एक्शन का रिएक्शन’ बताकर मरवा देता है। बेकसूर नौजवानों को फर्जी एनकाउन्टर में मरवा डालता है और वह फिर भी मुख्यमंत्री बना रहता है। लेकिन दुनिया के धिक्कारने के बाद भी नरेन्द्र मोदी को शर्म नहीं आती। सही बात तो यह है कि नरेन्द्र मोदी को ‘मानवता के कत्ल’ के इल्जाम में जेल में डालना चाहिए। इशरत और उसके साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया, इसकी पुष्टि तमांग जांच रिपोर्ट करती है। लेकिन जैसा होता आया है, मुसलमानों के कत्लेआम की किसी रिपोर्ट को संघ परिवार हमेशा से नकारता आया है। मुंबई दंगों की जस्टिस श्रीकृष्णा आयोग की रिपोर्ट को भी महाराष्ट्र सरकार ने डस्टबिन के हवाले कर दिया था।

सिंह साहब, शर्म तो आपको आनी चाहिए

उदय शंकर खवारेप्रिय यशवंत जी, आज अपने अखबार का काम ख़त्म करके रात को ग्यारह बजे बी4एम को देखा. लेखक शेष नारायण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार, का आलेख पढ़ा, पढ़कर खुशी नहीं, मायूशी हुई. उन्होंने लिखा है कि “मोदी एक ऐसी जमात से ताल्लुक रखते हैं जो मुसलमानों को तबाह करने की राजनीति पर काम करती है।”  बहुत ही गलत लिखा उन्होंने। फिर आगे लिखा है- ”1925 में अपनी स्थापना के बाद आरएसएस. ने 1927 में नागपुर में योजनाबद्ध तरीके से पहला दंगा करवाया था। तबसे मुसलमानों के खिलाफ इनका ‘प्रोग्राम’ चल रहा है। गुजरात में सरकार बनी तो गोधरा कांड करके राज्य में मुसलमानों को तबाह करने की योजना पर अमल किया गया। जब अफसरों ने देखा कि मुख्यमंत्री मुसलमानों के खून से खुश होता है तो उन्होंने भी निरीह सीधे-साधे और गरीब लोगों को आतंकवादी बताकर मारने का सिलसिला शुरू कर दिया।”

मीडिया को शर्म से सिर झुका लेना चाहिए

शेष नारायण सिंहहत्यारी पुलिस, सांप्रदायिक सरकार, गैर-जिम्मेदार मीडिया : एक बहुत बडे़ टीवी न्यूज चैनल के न्यूज सेक्शन के कर्ताधर्ता, जो उस वक्त तक मेरे मित्र थे, ने जब इशरत जहां की हत्या को इस तरह से अपने चैनल पर पेश करना शुरू किया जैसे देश की सेना किसी दुश्मन देश पर विजय करके लौटी हो, तो मैंने उन्हें याद दिलाया कि खबर की सच्चाई जांच लें। इतना सुनते ही वे बिफर पडे़ और कहने लगे कि उनके रिपोर्टर ने जांच कर ली है और उन्हें अपने रिपोर्टर पर भरोसा है। मैं न सिर्फ चुप हो गया बल्कि उनसे दोस्ती भी खत्म कर ली। वे श्रीमानजी टीवी के सबसे वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार किए जाते हैं। टीवी के कारण उनकी संकुचित हो गई सोच पर मुझे घोर आश्चर्य हुआ। बात सिर्फ सबसे बड़े न्यूज चैनल की ही नहीं है। उस दौर में इशरत जहां को ज्यादातर टीवी न्यूज चैनलों ने पाकिस्तानी जासूस बताया।