यह स्तब्धकारी है। अलोकतांत्रिक है। कोई सरकार पत्रकारों का ही स्टिंग कराए, यह सचमुच अविश्वसनीय है। पर यह हो रहा है। यह कर-करा रही है यूपी की माया सरकार। मीडिया को नापसंद करने वाली और चौथे खंभे का मुंह बंद करने में विश्वास रखने वाली माया सरकार के निशाने पर कब कौन चढ़ जाए, कहना मुश्किल है। लेकिन इस बार तो हद ही हो गई। मीडिया पर हमला बोल दिया गया है।
हमला हल्लाबोल की तरह नहीं, दबे-पांव, चुपके-चुपके, चोरी-चोरी। पिछले दस महीनों से लखनऊ के एनेक्सी स्थित नवनिर्मित मीडिया सेंटर में खुफिया कैमरे लगाकर पत्रकारों की चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है। उनकी आपस की एक-एक बातचीत टेप की जा रही है। मायावती के सगे माने जाने वाले सिपहसालारों की इस ओछी करतूत से प्रदेश का पत्रकार समुदाय भारी गुस्से में है। जासूसी के शौकीन सिपहसालारों ने पूरे मामले पर चुप्पी साध ली है।
इस सनसनीखेज घटनाक्रम का खुलासा किया है उत्तर प्रदेश के अखाबर डेली न्यूज एक्टिविस्ट (डीएनए) ने। इस अखबार ने आज (10 जुलाई 09) के अपने अंक में पहले पेज पर राजेंद्र के. गौतम की बाइलाइन एक्सक्लूसिव स्टोरी प्रकाशित की है। इस स्टोरी में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह पत्रकारों का स्टिंग किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि 9 अक्तूबर 08 को मुख्यमंत्री मायावती ने इस मीडिया सेंटर का धूम-धड़ाके से उदघाटन किया था। उस समय तो उन्होंने बड़े मीठे वचन बोले थे। कहा था कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, सरकार और मीडिया के बीच बेहतर आपसी समझदारी होनी चाहिए, इसीलिए मीडिया सेंटर को आधुनिक सुविधाओं से लैस कर दिया गया है, आदि-आदि। लेकिन किसे पता था कि हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और थे। काफी देर से ही सही, पत्रकारों की सजग निगाहों से माया सरकार की ये काली करतूत छिप न सकी। पता चल गया कि औरों की तरह पत्रकारों पर भी सरकार की निगाह उतनी ही टेढी है। कोप अंजाम तक पहुंचा दिया गया है। सुरक्षा व्यवस्था के बहाने मीडिया सेंटर में सीसीटी कैमरे फिट कर दिए गए हैं। कैमरों को स्मोक अलार्म और स्पीकर के बीच इस तरह सेट किया गया है कि उन पर किसी की निगाह न पड़ सके।
बात खुलते ही पूरा पत्रकार समुदाय आग बबूला हो उठा। करतूत की तह तक पहुंचने पर पता चला कि यह सब माया के सगे सिपहसालार प्रमुख सचिव विजय शंकर पांडेय का किया-धरा है। पांडेय इस बात से गुस्सा हैं कि पत्रकार उनकी नाक के नीचे मीडिया सेंटर में ही उनकी आलोचना करते रहते हैं। पत्रकारों की जुबान बंद करने के लिए जनाब का और कोई बस नहीं चला तो उन्होंने उनके पीछे मशीनी जासूस लगा दिए, कि अब जो कुछ भी बतियाओगे, करोगे, सबकी चौबीसों घंटे निगरानी और मानिटरिंग होती रहेगी। और भी वाकये हैं। बताते हैं कि मीडिया सेंटर के भीतर अपनी हो रही आलोचनाओं की पिन्नक पांडेय जी ने अपने मातहतों पर भी उतार दी। डांटा-डपटा कि तुम लोग क्या करते रहते हो, तुम लोगों के रहते पत्रकार मेरी आलोचना कैसे करते रहते हैं? तुम लोग सुधर जाओ, वरना नौकरी से हाथ धो जाओगे, बर्खास्त कर दूंगा। इसी पिन्नक के चलते और कुछ न कर सके तो उन्होंने मुख्यमंत्री के आधुनिक सुविधाओं के दावे को झुठलाते हुए मीडिया सेंटर में सिर्फ दो मेजें और कुर्सी डलवा दीं हैं। मीडिया से संवादहीनता का बहाना लेते हुए उन मेज-कुर्सियों पर सूचना विभाग के दो अफसर तैनात कर दिए गए हैं।
इस पूरे वाकये से गुस्सा मान्यता-प्राप्त संवाददाता समिति के कार्यकाल पूरा कर चुके अध्यक्ष प्रमोद गोस्वामी, पूर्व अध्यक्ष सुरेश बहादुर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान, हसीब सिद्दीकी आदि का कहना है कि पत्रकारों की बातचीत टेप कराना माया सरकार का मीडिया पर खुला हमला है, व्यक्ति स्वतंत्रता पर सेंसरशिप है। प्रमुख सूचना सचिव पांडेय इस तरह की करतूतों से दोहरा निशाना साध रहे हैं। एक तो पत्रकारों की जासूसी करवा रहे हैं, दूसरे इसी बहाने पत्रकार समुदाय को माया सरकार के खिलाफ भड़का रहे हैं। जब प्रदेश की राजधानी में पत्रकारों के साथ ऐसा सुलूक किया जा रहा है तो बाकी जगह अपने इशारों पर नचाने की खातिर अफसरशाही मीडिया के साथ कैसा बर्ताव कर रही होगी।
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