: भाग 24 : मेरठ में अखिल भारतीय ग्रामीण स्कूली खेल हुए, तो मेरे लिए वह मेरठ में सबसे बड़ा खेल आयोजन था। एक हफ्ते चले इन खेलों की मैंने जबरदस्त रिपोर्टिंग की। मैं सुबह आठ बजे स्टेडियम पहुंच जाता। चार बजे तक वहां रहकर रिपोर्टिंग करता। वहां से दफ्तर जाकर पहले दूसरे खेलों की खबरें बनाता। फिर मेरठ की खबरें। सात बजे तक यह काम पूरा करके फिर स्टेडियम जाता। लेटेस्ट रिपोर्ट लेकर आठ बजे दफ्तर लौटता। इन खेलों की खबरें अपडेट करता। पेज बनवाकर रात 11 बजे घर पहुंचता।
कई दिन तक नौनिहाल भी स्टेडियम में आये। उन्हें कौतूहल था कि पूरे भारत के ग्रामीण अंचलों के स्कूली बच्चे किस तरह मिल-जुलकर रहते हैं। हालांकि वे एक-दूसरे की भाषा नहीं जनाते थे। तो नौनिहाल ने मुझे उसी पर एक स्टोरी करने को कहा। वह स्टोरी काफी सराही गयी। लेकिन इन खेलों की सबसे खास और बेहतरीन खबर जो मैंने की, वह लगभग असंभव थी।
हुआ ये कि खेलों के समापन से एक दिन पहले तक तमिलनाडु की एक एथलीट जयश्री पांच स्वर्ण पदक जीत चुकी थी। आखिरी दिन 100 मीटर रेस में भी उसका जीतना तय था (और वह जीती भी)। मैंने दफ्तर आकर नौनिहाल से कहा कि बेस्ट एथलीट का खिताब तमिलनाडु की एक एथलीट को मिलेगा। उन्होंने तुरंत सुझाव दिया- तो उसका इंटरव्यू पहले पेज पर जाना चाहिए।
‘ये तो मैं भी सोच रहा था। पर उसे हिन्दी नहीं आती और मैं तमिल नहीं जानता।’
‘हां, फिर तो मुश्किल है। एक काम किया जा सकता है। उसके कोच को दुभाषिया बनाकर बात कर लेना।’
‘लगता है, ऐसा ही करना पड़ेगा।’
और हम काम में लग गये। रात को 11 बजे मैं और नौनिहाल एक साथ दफ्तर से निकले। स्टेडियम और मेरठ कॉलेज के सामने से होते हुए हम वेस्टर्न कचहरी रोड पर पहुंचे ही थे कि अचानक नौनिहाल ने साइकिल रोक दी। मैं भी रुक गया।
‘तूने एक बार बताया था कि मेरठ कॉलेज के एक प्रोफेसर तमिल जानते हैं।’
‘हां। मेरठ कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉक्टर रामेश्वर दयालु अग्रवाल तमिल जानते हैं।’
‘अच्छी जानते हैं?’
‘बहुत अच्छी जानते होंगे। उन्होंने पीएचडी ही वाल्मीकि की संस्कृत और कंबन की तमिल रामायण की तुलना पर की है।’
‘तो फिर जयश्री का इंटरव्यू करने की तेरी समस्या हल हो गयी।’
‘कैसे?’
‘इंटरव्यू के लिए एक प्रश्नावली तैयार कर। उसे लेकर दयालुजी के पास जा। उनसे सारे प्रश्नों को तमिल में अनुवाद कराकर देवनागरी में लिख ले। फिर उन्हीं प्रश्नों को कल जाकर जयश्री से इंटरव्यू कर। इस तरह तमिल में इंटरव्यू हो जायेगा।’
डॉ. दयालुजी मेरे पापा के अच्छे मित्र थे। मैं अगली सुबह जल्दी उठकर 6.30 बजे विजयनगर में उनके घर पहुंच गया। उनकी दिनचर्या सुबह 4.30 बजे ही शुरू हो जाती थी। मुझे इतनी सुबह आया देखकर वे अचकचाये। मैंने उन्हें आने की वजह बतायी।
‘… तो दयालुजी मुझे एक खिलाड़ी का इंटरव्यू तमिल में करना है। ये रही प्रश्नावली। आप मुझे तमिल में लिखवा दो।’
‘यह महान तरकीब किसकी है?’
‘मेरे गुरू नौनिहाल की।’
‘विलक्षण व्यक्ति हैं तुम्हारे गुरू। चलो लिखो।’
वे बोलते गये। हिन्दी में लिखे प्रश्नों के नंबर डालकर मैं तमिल में लिखता गया। कई शब्दों का उच्चारण काफी कठिन था। उन्होंने मुझसे कई-कई बार बुलवाकर मुझे सहज कराया। आखिर में एक बार और मैंने देवनागरी में लिखी तमिल प्रश्नावली उन्हें पढ़कर सुनायी। वे संतुष्ट हो गये, तभी उनके घर से निकला। आठ बज गये थे। मैंने नौनिहाल के घर जाकर उन्हें भी दिखाया। पर तभी मुझे एक शंका हुई। जयश्री जवाब तमिल में देगी। पहले मुझे उन्हें हाथ के हाथ हिन्दी में लिखना आसान लग रहा था। पर जब दयालुजी ने सवाल लिखवाये, तो मुझे अहसास हुआ कि जवाब लिखना आसान नहीं होगा, क्योंकि तमिल का उच्चारण बहुत मुश्किल है। मैंने नौनिहाल के सामने अपनी शंका रखी। उनका समाधान भी तैयार था- ‘टेप कर लेना।’
मेरे पास टेप रिकार्डर नहीं था। अपने एक दोस्त से मांगकर लाया। घर जाकर नहाया। दस बजे स्टेडियम पहुंचा। कुछ देर बाद 100 मीटर रेस हुई। उसमें भी जयश्री ही जीती। पुरस्कार वितरण के बाद मैं जयश्री के पास गया। वह अपनी ट्रॉफियों के साथ स्टेडियम में घास पर बैठी थी। नौनिहाल की तरकीब काम कर गयी। मैं कई जगह सवाल पूछने में अटका भी, लेकिन करीब 10 मिनट का इंटरव्यू मेरे पास टेप में था। मेरठ कॉलेज जाकर डॉ. दयालुजी को टेप सुनाकर उनसे तमिल जवाब हिन्दी में लिखवाये। दफ्तर जाकर उन्हें फेयर किया। थोड़ी देर बाद नौनिहाल आ गये। उन्होंने पढ़ा, तो वे भी झूम गये।
नौनिहाल ने खबर का इंट्रो लिखा-
मेरठ में आयी तमिलनाडु की एक लड़की। नाम उसका जयश्री। अखिल भारतीय ग्रामीण स्कूली खेलों में छह स्वर्ण पदक जीतकर बनी बेस्ट एथलीट। पेश है उससे हमारे खेल संवाददाता भुवेन्द्र त्यागी की खास बातचीत:
इसके नीचे पूरा इंटरव्यू था-
तुम्हें हिन्दी आती है क्या?
नहीं आती।
ठीक है हम तमिल में बात करते हैं। यहां के सबसे बड़े हिन्दी अखबार दैनिक जागरण के लिए इंटरव्यू करना है।
अरे, आपको तो तमिल आती है! ठीक है, शुरू करें।
छह गोल्ड मैडल जीतने की बधाई।
थैंक्यू।
तुम्हारी रॉल मॉडल एथलीट कौन हैं?
पी.टी. उषा।
रोज कितने घंटे प्रेक्टिस करती हो?
छह घंटे। तीन घंटे सुबह को, तीन घंटे शाम को।
एथलेटिक्स में कौन सी इवेंट सबसे अच्छी लगती है?
100 मीटर स्प्रिंट।
क्यों?
ये रेस की रानी है। इसलिए। इसके विनर को ही सबसे तेज माना जाता है। इसलिए भी।
एथलेटिक्स के अलावा और कौन सा गेम पसंद है?
फुटबॉल।
फुटबॉल का फेवरेट प्लेयर कौन है?
माराडोना।
क्यों?
क्योंकि वो फुटबॉल का अब तक का सबसे महान खिलाड़ी है।
चैंपियन एथलीट होने का घर पर फायदा मिलता है?
नहीं। मेरे भाई-बहन तो चिढ़ाते हैं कि मैं खेलने की वजह से पढ़ाई से बच जाती हूं।
थैंक्यू।
आपको भी बहुत-बहुत थैंक्यू।
यह इंटरव्यू जागरण में पहले पेज पर छपा। उसके नीचे एक टिप्पणी और थी-
(भुवेन्द्र त्यागी ने यह इंटरव्यू तमिल में किया, क्योंकि जयश्री को हिन्दी को नहीं आती। पर हमारे रिपोर्टर को भी तमिल नहीं आती। फिर भी यह इंटरव्यू तमिल में ही हुआ। खेल पेज पर पढिय़े तमिल इंटरव्यू, जिसका हिन्दी अनुवाद ऊपर छपा है।)
खेल पेज पर छपा इंटरव्यू इस तरह था-
उनक्कू हिन्दी तेरियुमा?
एनक्कू तेरियादु।
सरि। नांगल तमिषिल पेसि गिरोम। इन्गु निगप्पेरिय हिन्दी नालीदव दैनिक जागरण इदएक्काण उन्गुलुडुन पेस विरुम्भुगिरोम।
सरि उन्गुलुक्कु तमील तेरिगरुदु। सरि पेच्सै आरम्भिग्रोम।
आरु तन्ग पदक्कम वेल्लुवदर्कु नन्द्री।
वन्दन्म।
उन्गलुडय मुक्य विरन्दांलि यारू?
पी. टी. उषा।
दिन्मुम एन्थनै मणिनेरम पयीवर्ची सेयगिरिरगड़?
आरु मणि नेरम। मुनु मणि काड़ैयील, मुनुमणि माड़ैयील।
एन्थ पथीय्र्यी मुक्यन्वम तरुगिसेगल?
नुरु मीटर स्परीन्ट।
यदर्कु?
इवर पन्दयन्तीन राणी, अदर्कक। इन्द वीरकु मुक्कयन्म तरुगिरतु, इदर्कक।
यन्थलिटीक तविर वेरु पोट्टी पिदिक्कुम?
फुटबॉल।
फुटबॉल विलैयाटिन प्रिय वीरर यारु?
मारदोणा।
एदक्कु?
अवर फुटबॉल विलैयाटिन पेरिय वीरर आदलाल।
चैम्पियन एथलीट आनदर्कु एदेणुम वीटटील एदुम वीरर पेच्चु मुदियुमा?
ईल्लै। एन्नुडैय सगोदर-सगोदरिगड़ कीन्डल सैगिरार्कल। आदलाल विलैयाटिनाल पडिप्पु पोयगिरदु।
नन्ड्री?
उन्गर्लुकुम नन्ड्री।
यह इंटरव्यू पढ़कर डॉ. दयालु सुबह-सुबह बुढ़ाना गेट से जलेबी लेकर हमारे घर आये। उन्हें बहुत खुशी हुई थी। बोले, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे तमिल ज्ञान का इतना रचनात्मक उपयोग होगा। कोई विश्वास नहीं करेगा कि यह इंटरव्यू तमिल में हुआ और इंटरव्यू करने वाले को तमिल आती ही नहीं थी।’
उन्होंने इस बात का खूब प्रचार किया। यहां तक कि कोतवाली के पास जिस कारपोरेशन बैंक में मेरा खाता था, उसका तमिल मैनेजर रामचंद्रन भी अक्सर मेरा अभिवादन तमिल में ही करने लगा। उसने स्टेडियम में मुझे जयश्री का इंटरव्यू करते देखा था।
यह असंभव काम कराने का आइडिया देने वाले नौनिहाल ने मुझसे दावत देने को कहा। मैं तो उन्हें कहीं भी दावत देने को तैयार था। उन्होंने बेगम पुल पर मारवाड़ी भोजनालय चुना। उस दिन हमने वहां शानदार डिनर किया। कुछ दिन बाद वहीं हमारे साथ एक अजीब घटना भी हुई। उसकी चर्चा बाद में।
लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है. वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
vijay singh kaushik
June 26, 2010 at 2:15 pm
sir sach me int.ki yah tarkib nayab tha….acha laga..
AS Raghunath
June 28, 2010 at 11:29 am
This indeed is a noble and experimental journalism at its best. When a journalist takes so much of pain to prepare for the interview, even interviewee would break free and answer very informally. I am sure even Jaishree would have carried the copy of the interview and must have shown it her world of Tamil journalist.
Well done. Keep the josh going.
jain
July 3, 2010 at 9:24 am
wah , Maja aa Gaya ,