ये नौनिहाल ही थे, जिन्होंने मुझे इंजीनियर के बजाय पत्रकार बना दिया। मैं मेरठ के स्थानीय अखबारों को खबरें दिया करता था। तब वहां ‘दैनिक प्रभात’, ‘मेरठ समाचार’ और ‘हमारा महानगर’ जैसे इवनिंगर थे। सुबह के अखबार दिल्ली से आते थे। खबरें देने के सिलसिले में ही नौनिहाल से मेरी मुलाकात हुई थी। वे मेरी कुछ खबरें अंदर के पेज पर लगा देते थे। फिर एक दिन उन्होंने मुझे एक एसाइनमेंट दिया। मेरठ के विक्टोरिया पार्क में वी. पी. सिंह की रैली कवर करने का। मैं घबराया। अभी तक मैंने केवल क्रिकेट मैचों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के समाचार लिखे थे। नौनिहाल बोले – जो वीपी बोलें, कागज पर नोट कर लेना। माहौल के बारे में भी नोट्स लेना। नौनिहाल ने मुझे एक छोटी सी डायरी भी दी। मैं साइकिल से पहुंच गया विक्टोरिया पार्क। वीपी का हैलीकॉप्टर दो घंटे लेट आया। 15 मिनट के माला-तमाशे और आधे घंटे के दूसरों के भाषणों के बाद वीपी ने एक घंटे का भाषण दिया।
चार घंटे बाद मैं ‘मेरठ समाचार’ के दफ्तर पहुंचा। डायरी के आठ पन्ने भर गए थे। वे सब नौनिहाल ने पढ़े। फिर उन्होंने उसके आधार पर खुद खबर लिखी। साथ-साथ मुझे बताते गए- ये इंट्रो है। ये न्यूज का बाकी मैटर है। ये हैडिंग है। और ये सब -हैडिंग है। हैडिंग और सब-हैडिंग में इतने अक्षर होने चाहिए। वो हैंड कंपोजिंग का जमाना था। इसलिए हैडिंग के अक्षर गिनना बेहद जरूरी होता था। आज की तरह कंडैंस या एक्सपैंड नहीं किया जा सकता था। तो ये था पत्रकारिता का मेरा पहला सबक। मुझे लगा, ये तो लॉटरी लग गई। शुरू में ही ऐसे उस्ताद से पाला पड़ा, जो अपने फन का माहिर था। आज पत्रकारिता संस्थानों में जितना सीखने में तीन महीने लगते हैं, उतना नौनिहाल ने मुझे एक घंटे में सिखा दिया था।
ये तो शुरुआत थी। यह सिलसिला अगले पांच साल चलने वाला था। मैं हर रोज एक उत्तेजना के साथ उनके पास पहुंचता था। तीन-चार घंटे की इस मुलाकात का मैं अगले 24 घंटे इंतजार करता था। वे मुझे असाइनमेंट देने के अलावा दफ्तर में बैठाकर प्रेस रिलीज से खबरें भी बनवाने लगे। ‘मेरठ समाचार’ के मालिक-संपादक राजेन्द्र गोयल ने एक दिन मुझे बुलाया, कहा, ‘यहां काम करोगे?’
‘मतलब नौकरी?’, मैंने पूछा।
‘हां। रोज यहां तीन घंटे काम करो। क्राइम की रिपोर्टिंग करो। तुम्हें सीखने को मिलेगा। तनखा कुछ नहीं’, वे बोले।
पलक झपकने से पहले मैंने कहा- ‘जी।’
भला नौनिहाल के साथ काम करने का मौका मैं क्यों छोड़ता?
अगले दिन से मैं ऑफिशियली नौनिहाल की शागिर्दी में आ गया। उनसे रोज नयी बातें सीखने को मिलतीं। उनके व्यक्तित्व की नयी परतें खुलतीं। उनकी प्रतिभा का कायल तो मैं पहले दिन ही हो गया था। अब उनकी इंसानियत के रोज नये रंग दिखते। रोज एक नयी कहानी लेकर मैं अपने घर जाता।
दो महीने बाद मैंने अपने कुछ दोस्तों को नौनिहाल के बारे में बताया। उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा कोई शख्स हो सकता है। उन्हें नौनिहाल से मिलवाया। एक घंटे की गपशप के बाद वहां से चले, तो सबकी जबान पर एक ही बात थी – भई वाह! क्या आदमी है!
लेखक भुवेन्द्र त्यागी को नौनिहाल का शिष्य होने का गर्व है। वे नवभारत टाइम्स, मुम्बई में चीफ सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं। उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।
saleem akhter siddiqui
January 15, 2010 at 2:12 pm
BT TUMENE TO MUJHE ATEET MEIN DHKEL DIYA HAI. NOUNIHAAL NE SUN SAKTE THE AUR NE BOL SAKTE THE LEKIN WO AADMI KAMMAL KA THA.
Jeet Bhati
January 16, 2010 at 5:38 pm
आप भाग्यशाली हैं , जो आपको ऐसे गुरु मिले वरन आज न तो पहले जैसे गुरु रहे और न ही शिष्य,
अब तो हर कोई एक अंधी दोड मैं भगा चला जी रही हैं ,
saroj kumar acharya
November 26, 2010 at 12:34 pm
maine aap ke bataye hua baato ko padha main ne abhi 3 mahina se hi patrikarta suru kiya hai.jaan ke accha laga ki koi to hai