[caption id="attachment_18075" align="alignleft" width="71"]नौनिहाल[/caption]: भाग -40 : जिस तरह से रिपोर्टिंग हुई उससे किसान आंदोलन एक बीट बन गया : नौनिहाल ने एक बार मंगलजी से कहा कि मेरठ के बाहर की बीट की खबरें कवर करने के लिए मेरठ से रिपोर्टर भेजे जाएं। स्ट्रिंगर वहां की सामान्य खबरें भेजें। पर बड़ी खबरें, खासकर बीट की खबरें अपने रिपोर्टर ही करें। मंगलजी समझे नहीं। ‘मने, आप जरा विस्तार से बताइये। कहना क्या चाहते हैं?’
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एक बार नौनिहाल ने होली पर मेरठ भ्रमण का कार्यक्रम बनाया
: भाग-39 : मन से आज तक नहीं उतरा वो रंग : मेरठ की होली मशहूर रही है। खासकर पुराने शहर की। अब दूर तक जा बसे नये शहर में आभिजात्य प्रवृत्ति के कारण भले ही वहां होली के रंग फीके पड़ गये हों, पर पुराने शहर में अब भी ठसक वाली होली खेली जाती है। नौनिहाल बेशक सुन नहीं सकते थे और बोलते भी बहुत अस्पष्ट थे, पर त्योहारों पर उनका मूड देखते ही बनता था।
नजदीक से किसी वेश्या को देखने की उत्सुकता
: भाग 37 : अल्ला कसम, तुम पहले इंसान हो जिसने मुझे हाथ भी नहीं लगाया, मैं रंडी हूं, पर हराम का नहीं खाती : वह लड़का दो-दो सीढ़ी एक साथ चढ़ रहा था। हम ठंड से ठिठुरे जा रहे थे। उस लड़के के पीछे-पीछे ऊपर सीढिय़ां चढ़ते हुए हमारी नजर नीचे की ओर भी थी और ऊपर की ओर भी। नीचे इसलिए कि किसी जान-पहचान वाले की नजर हम पर ना पड़ जाये। ऊपर इसलिए कि हमें पहली बार नजदीक से किसी वेश्या को देखने की उत्सुकता थी। रोमांच की हद तक !
जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स, मास्टर ऑफ सम
: भाग-34 : दैनिक जागरण में कई लोग बाहर से आते थे। नरनारायण गोयल बागपत से। संतोष वर्मा मवाना से। श्रवण मुफ्फरनगर से। अनिल त्यागी और रामनिवास भारद्वाज कैली से। ओमवार चौधरी दबथुवा से। इन सबका सफर बहुत लंबा तो नहीं था, पर बाहर से आना आखिर बाहर से ही आना होता है। कई बार किसी को कुछ देर हो जाती, तो बाकी लोग इच्छातुर होने लगते।
हम ज्यादा परंपरागत हैं, प्रयोग नहीं करते
[caption id="attachment_18075" align="alignleft" width="71"]नौनिहाल[/caption]: भाग-33 : मेरठ में दैनिक जागरण अब पूरी तरह झंडे गाड़ चुका था। सर्कुलेशन बढ़ता जा रहा था। अमर उजाला के आने का भी कोई असर नहीं पड़ा। उल्टे, स्पर्धा से दोनों अखबारों का फायदा ही हुआ। सिटी में जागरण और डाक में अमर उजाला आगे थे। लेकिन कुल सर्कुलेशन जागरण का ही ज्यादा था। अब भी है। इसकी वजह थी जागरण की सिटी रिपोर्टिंग। हालांकि नौनिहाल इसका कुछ श्रेय जागरण के खेल पेज को भी देते थे।
मंगलजी आए, भगवतजी लौट गए
भाग 20 : लास एंजेलिस ओलंपिक खेलों की शानदार कवरेज के बाद मुझे भगवतजी के साथ ही धीरेन्द्र मोहनजी से भी काफी शाबाशी मिली थी। हालांकि इसके सही हकदार नौनिहाल थे। आखिर देर रात तक समाचार लेने का आइडिया उन्हीं का था। इससे अखबार को भी फायदा हुआ। अभी तक दिल्ली से मेरठ आने वाले अखबारों के एजेंट यही प्रचार कर रहे थे कि जागरण में लोकल खबरें जरूर भरपूर मिल रही हों, पर देश-विदेश की खबरों में यह दिल्ली के अखबारों का मुकाबला नहीं कर सकता। ओलंपिक कवरेज ने उनका यह दावा झठा साबित कर दिया।
क्राइम रिपोर्टिंग को कोई गंभीर पत्रकारिता नहीं मानता
[caption id="attachment_16921" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मा[/caption]भाग 7 : धीरे-धीरे मेरठ में क्राइम रिपोर्टर के रूप में मेरी पहचान बनने लगी। मेरी वो स्टोरी, जिसे नौनिहाल ने ‘ब्रेकिंग’ और ‘इम्पैक्ट’ खबर बना दिया था, काफी चर्चित हुई। इसके बाद हर थाने से मुझे ऐसी खबरें मिलने लगीं। अब नौनिहाल ने मुझे मेरठ के दो दिग्गज क्राइम रिपोर्टरों के टच में रहने को कहा। वे तब अनिल-सुधीर के नाम से सत्यकथाएं लिखा करते थे। अनिल बंसल बाद में ‘जनसत्ता’ में चले गये। पहले मेरठ में ही। फिर दिल्ली में। जबरदस्त लिक्खाड़। जितनी देर में हम दो समोसे और चाय की प्याली खत्म करते, उतनी देर में उनकी दो खबरें तैयार हो जातीं। हमेशा एक छोटा ब्रीफकेस साथ रखते। उसी पर कागज रखकर वे चौराहे पर खड़े-खड़े ही खबर लिख डालते थे। सुधीर पंडित के पुलिस में गहरे कांटेक्ट थे। वे अंदर की खबरें निकालने में माहिर थे। बाद में वे पत्रकारिता छोड़कर ऐड एजेंसी चलाने लगे। मेरठ का यह धांसू पत्रकार अगर आज किसी चैनल में होता, तो उस चैनल की टीआरपी को सबसे ऊपर रखने की गारंटी होती।
ये हमारा नया क्राइम रिपोर्टर है
[caption id="attachment_16897" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मा[/caption]पार्ट 6 : मैं ‘मेरठ समाचार’ में क्राइम रिपोर्टिंग करने लगा। पहला सवाल था- ‘समाचार कैसे लाया जाये?’ इस शंका का समाधान किया खुद नौनिहाल ने- ‘एसपी शहर और एसपी देहात के दफ्तर में रोज सुबह 11 बजे पिछले 24 घंटों में पूरे जिले के थानों में दर्ज हुए अपराधों की प्रेस विज्ञप्तियां बनती हैं। वे विज्ञप्ति वहां जाकर रोज लो। उनमें से समाचार बनेंगे। लेकिन विज्ञप्ति में धाराओं के अनुसार घटनाएं होती हैं। गंभीर धाराओं वाली घटनाओं को ही इनमें शामिल किया जाता है।’
मेरी जिज्ञासाएं, मूंगफली का झब्बा और नौनिहाल का गाना
[caption id="attachment_16852" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मा[/caption]पार्ट 5 : अब नौनिहाल के साथ ‘मेरठ समाचार’ में काम करते हुए मुझे कई महीने हो गये थे। उनके साथ रोज नये अनुभव मिलते थे। लेकिन मुझे कभी उनके निजी जीवन के बारे में पूछने का साहस नहीं हुआ था। एक दिन हम काम खत्म होने के बाद जिमखाना मैदान में एक क्रिकेट मैच देखने गये। वह रमेश सोमाल मैमोरियल टूर्नामेंट का फाइनल था। मुझे मनोज प्रभाकर की गेंदबाजी देखने का आकर्षण था। मैदान की दीवार पर बैठकर हम मूंगफली टूंगते हुए मैच देख रहे थे। अचानक नौनिहाल कुछ गुनगुनाने लगे। मैंने जरा ध्यान से सुनने की कोशिश की।
पुराने चटोरे लगते हैं, आते रहिए
[caption id="attachment_16791" align="alignleft"]स्व. नौनिहाल शर्मा[/caption]पार्ट 4 : मेरी दिनचर्या में नौनिहाल के साथ के लम्हे बेहद जरूरी और शिक्षाप्रद होते जा रहे थे। यहां तक कि अपने दोस्तों को भी अब मैं ज्यादा वक्त नहीं दे पाता था। ये 1983 की बात है। मैं उनसे रोज नयी चीजें सीखता। वे मुझे एकदम दोस्ताना अंदाज में सिखाते थे। मेरी हर जिज्ञासा और शंका का समाधान करते। उन्हें मैंने कभी झुंझलाते नहीं देखा। चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती। आंखों में चमक। हर नयी चीज खुद भी जानने को उतावले रहते और दूसरों को बताने को भी। लेकिन जब उन्हें गुस्सा आता था, तब वे किसी की नहीं सुनते थे। आपे से बाहर हो जाते थे। गुस्सा आता किसी वाजिब वजह से ही। फिर उनका रौद्र रूप रामलीला के परशुराम की याद दिला देता। जब उन्हें गुस्से आता, तो उनकी बात आंख बंद करके माननी ही पड़ती थी। नहीं तो वे रूठ जाते। कटे-कटे से रहते। फिर सामने वाले को अपनी गलती समझ में आती। वह गलती कबूल करता। और नौनिहाल का चेहरा फिर खिलखिला उठता। ‘कट्टी’ खत्म होने का यह जश्न खास चाय के साथ मनाया जाता।
होठों को पढ़ते थे मेरे गुरु नौनिहाल
[caption id="attachment_16665" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मा[/caption]पार्ट 3 : नौनिहाल के प्रताप से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर मैंने एन.ए.एस. कॉलेज में बी.ए. में एडमिशन ले लिया। ‘मेरठ समाचार’ में बिना तनखा का रिपोर्टर बन गया। सुबह 7 से 11 बजे तक कॉलेज लगता था। वहां से मैं साइकिल से ‘मेरठ समाचार’ के दफ्तर जाता। तीन बजे एडिशन निकलने तक नौनिहाल की शागिर्दी में पत्रकारिता के नए-नए रंगों से परिचित होता। सबसे पहले उन्होंने मुझे प्रेस विज्ञप्तियों से खबर बनाना सिखाया। यह बताया कि प्रचार की सामग्री में से भी किस तरह खबर निकाली जा सकती है। विज्ञप्ति पर हैडिंग लगाकर ही छपने को नहीं भेज देना चाहिए। हर विज्ञप्ति को कम से कम एक महीने तक संभालकर रखना चाहिए। कभी-कभी वही व्यक्ति या संस्थान कुछ दिन बाद दूसरी विज्ञप्ति भेजकर पहली की विरोधाभासी सामग्री देता है। तब पिछली विज्ञप्ति का हवाला देकर बढिय़ा खबर बन सकती है। .. और नौनिहाल के मार्गदर्शन में मुझे ऐसी खबरें बनाने के कई मौके मिले। मेरठ के एक नेता थे मंजूर अहमद। विधायक भी रहे थे। उनकी दो विज्ञप्तियों के विरोधाभास पर मेरी बाईलाइन खबर नौनिहाल ने पहले पेज पर छाप दी। अगले दिन मंजूर अहमद अपने लाव-लश्कर के साथ अखबार के दफ्तर में आ गए। मालिक-संपादक राजेन्द्र गोयल (बाबूजी) से बोले, ‘ये क्या छापा है? हमारी हैसियत का कुछ ख्याल है या नहीं?’
नौनिहाल ने एक घंटे में पत्रकार बना दिया
[caption id="attachment_16665" align="alignleft"]नौनिहाल शर्मा[/caption]ये नौनिहाल ही थे, जिन्होंने मुझे इंजीनियर के बजाय पत्रकार बना दिया। मैं मेरठ के स्थानीय अखबारों को खबरें दिया करता था। तब वहां ‘दैनिक प्रभात’, ‘मेरठ समाचार’ और ‘हमारा महानगर’ जैसे इवनिंगर थे। सुबह के अखबार दिल्ली से आते थे। खबरें देने के सिलसिले में ही नौनिहाल से मेरी मुलाकात हुई थी। वे मेरी कुछ खबरें अंदर के पेज पर लगा देते थे। फिर एक दिन उन्होंने मुझे एक एसाइनमेंट दिया। मेरठ के विक्टोरिया पार्क में वी. पी. सिंह की रैली कवर करने का। मैं घबराया। अभी तक मैंने केवल क्रिकेट मैचों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के समाचार लिखे थे। नौनिहाल बोले – जो वीपी बोलें, कागज पर नोट कर लेना। माहौल के बारे में भी नोट्स लेना। नौनिहाल ने मुझे एक छोटी सी डायरी भी दी। मैं साइकिल से पहुंच गया विक्टोरिया पार्क। वीपी का हैलीकॉप्टर दो घंटे लेट आया। 15 मिनट के माला-तमाशे और आधे घंटे के दूसरों के भाषणों के बाद वीपी ने एक घंटे का भाषण दिया।
उन-सा संपूर्ण पत्रकार दूसरा न देखा
[caption id="attachment_16639" align="alignnone"]वर्गाकार घेरे में नीली शर्ट वाले नौनिहाल शर्मा.[/caption]
नौनिहाल होते तो देश के पहले मूक-बधिर संपादक होते : उनके बच्चों के प्रति जीवन दूसरी बार इतना क्रूर नहीं हो सकता : सुधा भाभी के ब्रेन हैमरेज की खबर भड़ास4मीडिया पर पढ़कर बहुत दुख हुआ। उन्होंने पिछले 16 साल में परिवार चलाने की जिम्मेदारी अकेले ही निभाई है। जब 1993 में भाई नौनिहाल की दुखद मृत्यु हुई थी, तो मधुरेश, प्रतीक और गुड़िया काफी छोटे थे। मधुरेश ने जरूर अपनी उम्र के मानो कई साल लांघकर छोटे भाई-बहन को पढ़ाई के लिए प्यार से डांटने-डपटने की जिम्मेदारी ले ली थी। पर था तो वो भी बच्चा ही। ऐसे में सुधा भाभी ने जिस साहस के साथ तीनों बच्चों को पाला और अच्छी तरह पढ़ाया, वह सचमुच किसी साहस-कथा से कम नहीं है। उन्होंने एक दुर्लभ उदाहरण पेश किया है। बच्चे भी योग्य निकले। कल ही प्रतीक से बात हुई। उसने बताया, मम्मी की हालत में कुछ सुधार है। राहत मिली। उसे ढांढस बंधाया। कहा, हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा। फोन बंद करते ही मेरी यादों में नौनिहाल का अक्स उभर आया।
नौनिहाल शर्मा के परिवार को मदद की जरूरत
बात 1993 की है। अमर उजाला, मेरठ में कार्यरत वरिष्ठ उपसंपादक नौनिहाल शर्मा रात को कार्यालय से लौटते वक्त रोड एक्सीडेंट के शिकार हो गए और इस दुनिया को उन्होंने हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। मेरठ के पत्रकार जगत को उस वक्त गहरा धक्का लगा। अखबार के मालिकान से लेकर उनके सहयोगियों तक, भारी संख्या में लोगों का हुजूम उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ा। तमाम ढांढस बधाए गए और मदद के आश्वासन दिए गए, लेकिन नौनिहाल जी के परिवार ने उस दिन से लेकर आज तक एक दिन चैन से नहीं बिताया। उस समय उनके बच्चे बहुत छोटे थे।