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सहारा समय : इंतजाम अली, चैनल हेड, लड़की-दारू सप्लायर!

प्रिय यशवंत जी, सहारा समय के स्ट्रिंगर का दर्द पढ़कर कुछ आश्चर्य नहीं हुआ. सहारा समय में हमेशा से काम करने वालों की दुर्गत हुई है और चमचों ने मलाई काटी है. सहारा में किसी भी खुद्दार व्यक्ति का काम करना असंभव है. अगर आप दारू और लड़की अपने बॉस को सप्लाई कर सकते हैं तो आप निश्चिंत होकर हर महीने अपनी सेलरी बिना कुछ किए पा सकते हैं और इनक्रीमेंट तथा प्रमोशन भी समय से पूर्व पा सकते हैं.

प्रिय यशवंत जी, सहारा समय के स्ट्रिंगर का दर्द पढ़कर कुछ आश्चर्य नहीं हुआ. सहारा समय में हमेशा से काम करने वालों की दुर्गत हुई है और चमचों ने मलाई काटी है. सहारा में किसी भी खुद्दार व्यक्ति का काम करना असंभव है. अगर आप दारू और लड़की अपने बॉस को सप्लाई कर सकते हैं तो आप निश्चिंत होकर हर महीने अपनी सेलरी बिना कुछ किए पा सकते हैं और इनक्रीमेंट तथा प्रमोशन भी समय से पूर्व पा सकते हैं.

यह सहारा में ही संभव है कि कोई इंतजाम अली चैनल हेड बना दिया जाता है. ऐसे इंतजाम अलियों की लंबी लिस्ट है जिन्हें पत्रकारिता का ककहरा भी नहीं आता है पर उन्हें यहां चैनल प्रमुख बना दिया जाता है. धन्य हैं सहारा समय के कुछ पुराने संपादक, जो अब या तो सहारा में ही नहीं हैं या फिर उनका तबादला कर दिया गया है. इन्हीं लोगों ने इंतजाम अलियों की परंपरा की शुरुआत की और बाद में उनके बाद आए लोगों ने इसे आगे बढ़ाया. संजीव श्रीवास्तव जी और उपेंद्र राय जी, यहां काम कर पाना और करा पाना इतना आसान नहीं है. यहां तो पूरे सिस्टम में इसी तरह के लोग मौजूद हैं. देखते हैं, क्या सुधार ला पाते हैं आप लोग या फिर अपमानित होकर बाहर जाते हैं.

आल दी बेस्ट संजीव एंड उपेंद्र.

आपका

नवल किशोर पराशर

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0 Comments

  1. nitin sharma

    January 14, 2010 at 12:09 pm

    ऐसा तो हर चैनल मैं ही होता है………बस फर्क इतना है की किसी की पोल खुल जाती है और किसी की नहीं वर्ना राजनीती तो हर जगह ही है…….जिसकी वजह से मेहनती आदमी काम नहीं कर सकता

  2. KC Sharma

    January 14, 2010 at 12:14 pm

    प्रिय, नवलकिशोर जी आपने जो लिखा है वो एक कटु सत्य है, पर हकीक़त ये भी है की अकेले सहारा में ये हालत नहीं है अन्य चैनल की भी यही स्थिति है…

  3. sumedha singh

    January 14, 2010 at 12:26 pm

    Tv chaneel ho ya news paper har zagah yehi haal hai.

  4. Vasant Joshi

    January 14, 2010 at 12:43 pm

    Dear Navalkishore aajkal lagbhag sari media ka yahi haal hai. Chamche hi malaie kha rahe hai. Dhang ke admi ki koi ginti nahi hoti. Usko tarah tarah se pareshan kiya jata hai bas.

  5. pankaj awasthi

    January 14, 2010 at 1:14 pm

    Dear navalkishore ji, aap ka dard jayaz hai, lekin kya karenge lagbhag pure media jagat ka yahi haal hai. rajneetik galiyaro se chali ye aandhi ab media jagat ko bhi apni giraft me le chuki hai. bhagwan bhala kare!!!!!!!!!!!!!!!

  6. ABDUL QUABIZ

    January 14, 2010 at 1:14 pm

    सहारा समय के जबलपुर ब्यूरो की जाँच करने आई सहारा श्री की विश्वस्त कर्तव्य काउन्सिल की टीम “घोटालो को उजागर करने वाले संदेह के दायरों में क्या होगी निस्पक्च जाँच ” सहारा समय जबलपुर ब्यूरो को लेकर पिछले 6 महीनो से उहापोह की स्थिति बनी हुई है पिछले कुछ महीनो तो सहारा ब्यूरो के ऑफिस को बंद करके ब्यूरो चीफ कहे जाने बाले श्री जितेन्द्र रिछारिया जी की सारी सुबिधाये बंद कर के ब्यूरो से बाहर कम करने के लिए बाध्य कर दिया गया था लगभग एक माह तक श्री रिछारिया ने सहारा के ब्यूरो ऑफिस को बंद करके सवाददाता के रूप में कम करते रहे अब अन्दर की बात क्या है ये तो स्वयम सहारा वाले और रिछारिया जी ही बतला सकते है,10 जनवरी से जबलपुर के सिद्धार्थ पेलेश नामक होटल में सहारा इण्डिया परिवार की कर्तव्य काउन्सिल की एक टीम डेरा डाल कर जाँच में जुटी है जिसमे जबलपुर में बिधानसभा चुनाव में बिधान सभा के उमीदवारो से विज्ञापन के नाम पर लाखो रूपये वसूले जाने की शिकायत की जाँच मुख्य बिंदु थी , सहारा समय के जबलपुर ऑफिस में लगी इंडिका कारों के भुगतान में किये गये घोटाले के बारे में भी भरी शिकायते थी वहि जबलपुर ब्यूरो से निकाले गए स्टाफ ने सहारा की कर्तव्य कौंसिल को प्रमाण सहित शिकायते की थी जिसकी जाँच करने यह टीम जबलपुर जाँच करने पहुची है इस जाँच को लेकर मिडिया जगत में काफी चर्चाये व्याप्त है. [

  7. Prem sharma

    January 14, 2010 at 1:17 pm

    priya naval, is trishna bhari vyavastha me apni gati saanp-chhachhonder jaisi hai, media jagat me neeche se lekar nupar tak choro ka giroh kaam kar raha hai, lekin pareshan na ho mitra bahut jald videshi media ham jaise logon ki parakh karega aur is tarah ke intzam alio ki chaudhrahat shikanjo ke peechhe nazar aayegi.

  8. Arvind Kumar

    January 14, 2010 at 2:05 pm

    Ye vyawastha sadiyon naheen yugon se chali aa rahi hai …ham aaj bhi mandir masjid jakar yahee karya karte hain…chaplusi aur chatukarita..len-den…ye ho jaye to aisa kar denge ..ya fir …..waah main falan jagah gaya to mera ye kaam ho gaya….aaj bhi jinaka kaam naheen hota wo sirf yahee kahta hai….agar aisa sahee main hota to shayad koyee bhi channel naheen chal pata.rone ki aadat dal lene se behtar hain ki koyee aur rasta dekhen…..magar news walon ka to sirf kaam hai logon ko batana sunana…matalab narad muni …unhe kya matalab ki samadhan kaise ho…

  9. विजय पाल सिंह

    January 14, 2010 at 2:48 pm

    जिसे देखो चाटुकारिता पर लंबे लंबे भाषण देने को तैयार बैठा रहता हैं….हर कोई किसी न किसी की बुराई में लगा हुआ हैं लेकिन क्या कभी किसी ने अपने अंदर झांकने की कोशिश की हैं…हर इंसान के अंदर एक चाटुकार बैठा हुआ हैं…और जहां तक पत्रकारिता के मूल्यों का सवाल है तो भाई आज के इस दौर में आपको थोड़ा सा व्यावहारिक तो होना ही पडेगा…सहारा विश्व का एक ऐसा संस्थान हैं जहां सबसे ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं…और सहारा समय का विरोध करने वालों को शायद इस बात का अंदाजा नहीं कि लाखो लोगों का रोजगार इससे जुड़ा हुआ हैं….और रविंद्र पंचौली जी मुझे नहीं पता कि आपने सहारा में काम किया हैं या नहीं लेकिन जो आप बात कर रहे हैं कि बॉस की सेवा मंगल मेवा तो अगर आपने सहारा में काम किया होगा तो आपने भी बॉस की सेवा करने की कोशिश जरूर की होगी वो बात और हैं कि आपको मेवा नहीं मिला और वो मेवा किसी और को मिल गया जिसकी ग्लानि आपके भड़ास को दिए गए लेख में साफ झलकती हैं….और जहां तक नवल किशोर पराशर के लेख का सवाल हैं “अगर आप दारू और लड़की अपने बॉस को सप्लाई कर सकते हैं” तो यशवंत भाई मैं आपको बता दूं कि मैंने सहारा में साढ़े पांच साल काम किया हैं लेकिन मैने कभी नहीं सुना कि सहारा समय में बॉस को लड़की सप्लाई की जाती है…जिस भाषा का प्रयोग नवल जी ने किया हैं….ये निश्चित तौर पर सहारा में काम करने वाले लोगों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकती हैं और पत्रकार बिरादरी की भी इसमें बदनामी हैं….अच्छे बुरे लोग हर जगह होते हैं तो वो सहारा में भी हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पूरे सिस्टम को ही आप इस तरह गाली दें…ये कहां कि सभ्यता हैं…इसलिए मेरा भड़ास के सभी पाठकों से अनुरोध हैं कि भड़ास4मीडिया हमारे लिए एक मंच हैं लेकिन इस मंच पर आप भड़ास निकाले लेकिन मर्यादा में रहकर…
    विजय पाल सिंह

  10. MAJID AZMI

    January 14, 2010 at 2:57 pm

    मैं बहुत ज़्यादा अनुभवी और क़ाबिल पत्रकार तो नहीं लेकिन जो कुछ भी देखसुन रहा हूं अच्छा नहीं हो रहा है…चाहे वो सहारा की ये खबर हो या कोई औऱ…हालाकि मैं भी एक भुक्तभोगी पत्रकार हूं…पहले तो मैं खुद अपने ही ऊपर अपनी क़ाबीलियत पर शक करता था लेकिन अब कुछ सच्चाईयों से रूबरू हो गया हूं…अब मेरा आत्मविश्वास और भी बड़ गया है…हालाकि देखा जाए तो मीडिया के प्रति आम लोगों का क्या नज़रिया है और यहां मीडिया के अंदर के क्या हैं हालात..इसी लिए आज मैं ये देख रहा हूं कि…इस इंडस्ट्री में काम करने वाला खुश नज़र नहीं आ रहा है…जब भी मैं चाय की चुस्कियां लेने फिल्म सिटी के किसी कोने पर होता हूं तो किसी न किसी की अनचाही रोने के सुर सुनने को मिल ही जाते हैं…डर लगता है पत्रकारिता के उस दौर के बारे में सोच कर जिस दिन आम लोगों का विश्वास उनका यक़ीन एकदम से खत्म हो जाएगा…तो लोग कैमरा देखते ही किसी को भी दुतकार के उस दर से भगा देंगे..और ऐसे हालात सचमुच बनते जा रहे हैं..और ये बड़े ही शर्म की बात है…तो ऐ पत्रकार बंधुओं बचा लो इसकी मर्यादा…बचा लो…!!!

  11. ambuj

    January 14, 2010 at 3:16 pm

    it can be your frustration or manipulation against the newly appointed head.
    it is true that hard work speaks and focus over work rather than criticizing others.

  12. danish Aziz

    January 14, 2010 at 5:02 pm

    हम विजय पाल जी की बातो से पुरी तरह सहमत है क्योकि जब कोई व्यक्ती किसी के साथ होता है तो वह सिर्फ उसी की तारीफ करता है लेकिन जैसे ही वो व्यक्ती उसका साथ छोङता है तुरन्त उसके बारे मे उल जलुल बकने लगता है मुझे सहारा समय से कोई मतलब नही है और ना किसी के कार्यालयो मे हो रही राजनीती से लेकिन ये कैसा परिवार है जहा एक भाई दुसरे भाई के उपर आरोप लगा रहा है वो भी सार्वजनिक तौर से हम किसी के चैनल की इज्जत करे या ना करे किसी सन्संथा की इज्जत करे या ना करे लेकिन कम से कम हम पत्रकारिता की गरिमा औऱ पेशे को तो शर्मसार ना होने दे यशवन्त जी हम कोई बङे पत्रकार नही है सिर्फ एक शुरुआत की है लेकिन मेरे छोटे भाई ने इस तरह मीडीया के बारे मे पङकर मुझसे पुछा की आखिर समाज की आवाज कहा जाने वाले मीडीया खुद क्या है नए-नए बच्चे पङकर निकल पत्रकार बनने निकलते है औऱ संघर्ष करने पर बन भी जाते है और ऐसे उपर बैठे लोग सिर्फ उसको इस लिए निकाल देते है कि वो उनके पर्सनल कामो को नही सुनता इस तरह से एक दुसरे पर तोहमत लगाने से कुछ नही होता अगर पत्रकारिता की एक बङी कुर्सी पर बैठे है तो कुछ कर के दिखाई पत्रकारिता से गन्दगी हटा कर दिखाईए तब पता चलेगा कि आप पत्रकारिता को समर्पित है इस तरह से चैनलो और रिपोर्टरो की पोल खोलने से पत्रकारिता का अस्तित्व मिटेगा नाकी बङेगा तो आदरणीय कुछ करिए ना की चिल्लाई ये परिवार को बचाईये ……………………………………………………….

  13. vijay

    January 15, 2010 at 5:19 am

    नवल किशोर पराशर जी मैंने सहारा में साढ़े पांच साल काम किया हैं लेकिन मैने कभी नहीं सुना कि सहारा समय में बॉस को लड़की सप्लाई की जाती है…जिस भाषा का प्रयोग नवल जी वो निश्चित तौर पर सहारा में काम करने वाले लोगों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकती हैं और पत्रकार बिरादरी की भी इसमें बदनामी हैं….अच्छे बुरे लोग हर जगह होते हैं तो वो सहारा में भी हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पूरे सिस्टम को ही आप इस तरह गाली दें…ये कहां कि सभ्यता हैं…

  14. omhari trivedi

    January 15, 2010 at 7:53 am

    yashwant ji, stringer ka darde padhe kare aisa laga ki sahara-samay news channel me patrekar nahi bhaduea kaam karte ho patrikarta ager bhaduaaye karne ka naam hai ta jai ho aise channel ki aur jai ho aise bhaduo ki . sahara samay news channel ka naam sahara bhaduo ka hona chahiye.jai ho bhaduai karane wale news channel jai ho.

  15. मुकुंद शाही

    January 15, 2010 at 9:37 am

    नवल जी…माफ किजीएगा जिस बेवाकी के साथ आपने सच को सामने लाने की कोशिश की…उसका मैं स्वागत तो करता हूं लेकिन ये किसी एक ऑरगेनाईजेशन की बात नहीं है…और न हीं सब के उपर ये लागू होता है…बल्कि सच तो ये है कि कुछ लोगों की वजह से दोस्त हमारा सारा महकमा बदनाम है….क्या करें दोस्त यहां तो बॉस को भी चाटुकारिता करने वाले लोगों से ही सरोकार है….मसलन एक ऐसा भी चैनल है जहां का बॉस काम के मामले में जितने सख्त…चरित्र के मामले में जितने साफ हैं उतने ही कान के कच्चे हैं…कुछ लोगों के कान भरने के बाद ही वो दूसरों के बारे में आकलन कर लेते हैं…अब इसे आप क्या कहेंगे…ये तो इंसानी फितरत है..दोस्त आपने लिखा कि कोई लड़की की मांग करता है तो कोई दारू का…लेकिन एक सवाल आप से कि क्या इसे आप पूरा सच मानते हैं…क्या आपने जिस ऑरगेनाईजेशन का नाम लिया क्या ये सब सिर्फ वहीं है…शायद नहीं…मैं तो ये मानता हूं कि जिस सच को सामने लाने की आपने कोशिश की है कमोवेश यही कहानी हर एक जगह की है…कहीं तो दो बॉस आपस में एक लड़की को अपने साथ काम करवाने के लिए लड़ते हैं तो कहीं कुछ बॉस ऐसे भी हैं जो सिर्फ लड़कियों का ही इंटरव्यू करते हैं…कहीं उम्रदराज लोग जो बॉस की कुर्सी पर बैठे हैं काम के बदले अपनी बेटी की उम्र की लड़कियों के साथ अपने केबिन में पाये जाते हैं…अब जब वाक्ये ऐसे हों तो भला आप क्या कहेंगे…नवल जी सच तो ये भी है कि इसके लिए वो लड़कियां भी कम जिम्मेदार नहीं है…जो महज एक दो साल में तरक्की के पायदान पर छलांग लगाने के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं…नवल जी सच तो ये है कि अपने चौखट की गंदगी तो सब को दिख जाती है लेकिन उन कचड़ों पर नजर नहीं जाती जो आपके पड़ोस में फैला है…नवल जी किस किस को नसीहत देंगे आप और हम…यहां तो हमाम में सब नंगे हैं….

  16. Kumar Sauvir

    January 15, 2010 at 9:41 am

    मुझे गर्व है कि सहारा इंडिया के अखबार में मैंने तीन साल गुजारे। हां, कुछ दिक्कतों के चलते प्रबंधन से मामला बिगड़ा और आखिरकार साप्ताहिक शान-ए-सहारा को बंद कर दिया गया। लेकिन उस पूरे दौरान मेरा और हमारा विरोध प्रबंधन के साथ वैचारिक स्तर पर तो रहा, लेकिन जिस तरह के शोषण की बात नवल किशोर पराशर ने कही है, वह हमने कभी स्वप्न में भी नहीं सोची। हमारे सम्पादक थे तड़ित कुमार चटर्जी और संयुक्त संपादक आनंद स्वरूप वर्मा। उनके नेतृत्व में वरिष्ठ पत्रकारों की पूरी की पूरी टीम थी जिनमें से वीरेंद्र सेंगर, कमलेश त्रिपाठी जैसे लोग आज भी हम जैसों के लिए बाकायदा आदर्श बने हुए हैं। मैं सबसे छोटा था और उसी तरह मुझे सभी से बडों जैसा प्रेम और आशीर्वाद मिला। लेकिन दारू और लड़की सप्लाई करने की बात तो— तौबा-तौबा। और तो और, सुब्रत राय तक ने कभी अखबार में हस्तक्षेप नहीं किया। एक बार किया भी तो केवल राजीव गांधी के नाम एक खत लिख कर, और प्रबंध सम्पादक होने के नाते यह उनका अधिकार भी था। सन 82 से सन 85 तक उन्होंने केवल दो बार ही अखबार का मुआयना किया और किसी भी पत्रकार को अपने केबिन में बुलाया तक नहीं और न ही कोई सम्पर्क ही रखा। उन्होंने पत्रकारों को काम की पूरी छूट दी थी। यही वजह है कि मैं आज तक सुब्रत राय का बेइंतहा सम्मान करता हूं।
    हां, यह हो सकता है कि तब से लेकर आज तक सहारा में खासे बदलाव आ चुके हैं, लेकिन शायद इतना भी नहीं जितना नवल बता रहे हैं। वजह यह कि इसी अखबार में अजय पांडेय, मनमोहन, विजय शंकर पंकज और रामकृष्ण बाजपेई जैसे मेरे अभिन्न मित्र काम करते हैं और जहां तक मेरी जानकारी है, यह सारे के सारे लोग अपनी मेहनत और सक्रियता के चलते उस अखबार में, उन गतिविधियों से उनका कोई भी लेना देना नहीं जिसके बारे में जिक्र नवल ने किया है।
    मेरा अनुरोध है कि भड़ास निकालने के लिए झूठ का सहारा न लिया जाए क्योंकि तब भड़ास को भड़ास का दर्जा कैसे दिया जा सकेगा।

  17. naval kishore

    January 15, 2010 at 11:18 am

    Bhai
    Kumar Sauvir
    Baat Rashtriya Sahara KI nahi Sahara Samay News Channel ki hai aur vishesh roop se m.p aur c.g. ki.

  18. govind goyal

    January 16, 2010 at 5:15 am

    sab shor machate hain. yashvant ji ne manch or de diya. pata nahi ye bade bade patrkar kuchh karte kyon nahi. dusaro ke dard dur karne ka theka hai,apne liye kuchh nahi kar pate. kya dohari zindagi hai.

  19. Randhir Kumar

    January 16, 2010 at 11:28 am

    yeh Koi Nayi baat Nahi Hai . yeh sirf Sahara mein hi nahi har jagah hota hai.Sahara mein sabse jyada hota hai mumbai to iski misaal hai isise sahara Besahara ho gaya hai. Punya Prasoon jaise logo ke saath kya hua saari media jaanti hai.Woh to sirf ek bahana tha .sacchai to saari duniya jaanti thi bas ab khulkar saamne aa gayi hai.Bina ladki diye aap aage nahi badh sakte.daaru to nazdik aane ka sabse accha sadhan hai. Jab media mein kaam karne wali ladki kabhi Goa to Kabhi Mahableshwar kisi senior ke saath 10 din ki chhutti par jaati hai tokya uske senior uskowahan ki mandiron mein pooja karane nahi balki ash karne aur poori tarah sharirik sukh bhogne ke liye jaate hain taaki sharir ka koi kona sukh se vanchit na rah jaaye. ye to personal life hai .aise hi log aage badhte hai. jai ho media ki , media karmiyon ki, jai ho jai ho..,jai ho……..Dhanyavaad.

  20. lala

    January 17, 2010 at 8:20 am

    सहारा जैसे कई ऐसे संस्थान और भी है………………….

  21. Neeraj Sahu

    January 17, 2010 at 3:05 pm

    Dear Naval Ji
    Maine bhi abhi haal me hi sahara se regin kiya hai.ye baat aap sahi kah rahe hai.kyoki yaha kaam karne walo ki koi kadr nahi hai.jo boss ka chamcha hoga wahi rahega.main to yahi prayer karta hoo ki naya management hum jaise mediakarmiyo ki baat suno taki dusro ke saath aisa na hone paye.
    thanks

  22. Aniruddha Tiwari

    January 18, 2010 at 3:54 am

    Aaadranya Sahara shri,

    Kripa kar kartavya council ke karyakalapon ki bhi janch karen ki kis se kitne paise janch ke naam par khaaye.

  23. sonu kumar

    January 19, 2010 at 10:10 am

    yashwant ji manta hoon ki media ke sabhi logo ko kahi na kahi pareshani jaror hai par aakhir samadhan kab niklega jishme kya to print or kya electronic media samajh nahi aata ki sabhi media shri is or dhyan kyoun nahi rakhte.

  24. RAJEEV

    January 19, 2010 at 12:44 pm

    sahara samay ka hal itna kharab ho chuka hae ki stringer ke bilo me bhi beimani hone lagi hae. mahino payment to diya hi nahi jata hae usi par jo story chalti hae unka bhi payment ye log kha jate hae. pahle to detail di jati thi ab beimani ke chalte wo bhi dena band kar di gai hae. snjeev ji se anurodh he ki we is system ko sudharen.stringer ke payment time se karayenge khaskar sahara samay u.p. ke.

  25. hanuman p sharma

    January 20, 2010 at 8:05 am

    kisi par bhi arop lagan aasan hai, prove karna ek alag cheeze hai.

    har bade sanasthan main har taraha ke log hote hai , iska matlab ye nahi ki pura sansthan hi kharab hai.

  26. hanuman p sharma

    January 20, 2010 at 8:06 am

    Agar koi bhi mehnat, imandari, creativity ke sath kam karta rahe to growth jaroor hoti hai.

  27. raja

    January 20, 2010 at 1:40 pm

    wow sir apne to sahara samay ki khal nikal di… sahara samay ki wastvikata itna bhayanak ho sakata hai ..ye kalpana se bhi pare hai….

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